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13:45, 13 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

  • इस अनुवाक में ऋषि ने आचरण और सत्य वाणी के साथ-साथ शास्त्र के अध्ययन और अध्यापन करने पर बल डाला है।
  • तदुपरान्त इन्द्रिय-दमन, मन-निग्रह और ज्ञानार्जन पर विशेष प्रकाश डाला है।
  • प्रजा की वृद्धि के साथ-साथ शास्त्र-अध्ययन भी करना चाहिए।
  • रथीतर ऋषि के पुत्र सत्यवचा ऋषि 'सत्य' को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। और ऋषिवर पुरूशिष्ट के पुत्र तपोनित्य ऋषि 'तप' को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं तथा ऋषि मुद्गल के पुत्र नाम मुनि शास्त्रों के अध्ययन और अध्यापन पर बल डालते हुए उसे ही सर्वश्रेष्ठ तप मानते हैं।
  • इस प्रकार स्वाध्याय की आवश्यकता पर बल दिया गया है।


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