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'''दुर्गा खोटे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Durga Khote'') (जन्म: 14 जनवरी, 1905− मृत्यु: 22 सितंबर, 1991) अपने जमाने मे हिन्दी व मराठी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उन्होंने अनेक हिट फिल्मों में शानदार अभिनय किया। आरम्भिक फिल्मों में नायिका की भूमिकाएँ करने के बाद जब वे चरित्र अभिनेत्री की भूमिकाओं में दर्शकों के सामने आईं, तब उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं। दुर्गा खोटे ने करीब 200 फिल्मों के साथ ही सैंकड़ों नाटकों में भी अभिनय किया और फिल्मों को लेकर सामजिक वर्जनाओं को दूर करने में अहम भूमिका निभाई।  
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'''दुर्गा खोटे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Durga Khote'') (जन्म: 14 जनवरी, 1905− मृत्यु: 22 सितंबर, 1991) अपने जमाने में [[हिन्दी]] [[मराठी भाषा|मराठी]] फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उन्होंने अनेक हिट फ़िल्मों में शानदार अभिनय किया। आरम्भिक फ़िल्मों में नायिका की भूमिकाएँ करने के बाद जब वे चरित्र अभिनेत्री की भूमिकाओं में दर्शकों के सामने आईं, तब उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं। दुर्गा खोटे ने करीब 200 फ़िल्मों के साथ ही सैंकड़ों नाटकों में भी अभिनय किया और फ़िल्मों को लेकर सामजिक वर्जनाओं को दूर करने में अहम भूमिका निभाई।  
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
 
एक प्रतिष्ठित परिवार में [[14 जनवरी]] [[1905]] को पैदा हुईं दुर्गा खोटे का शुरुआती जीवन सुखमय नहीं रहा और मात्र 26 साल की उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया। दुर्गा खोटे का बचपन तो सामान्य रूप से कटा लेकिन अपनी पसन्द से विवाह के बाद भी उनका घरेलू जीवन बहुत ही कठिन व दुख से भरा रहा। अपने पति की ओर से बेहद परेशान रही दुर्गा को जो कुछ खुशी मिली, वह अपने बच्चों से ही मिली।   
 
एक प्रतिष्ठित परिवार में [[14 जनवरी]] [[1905]] को पैदा हुईं दुर्गा खोटे का शुरुआती जीवन सुखमय नहीं रहा और मात्र 26 साल की उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया। दुर्गा खोटे का बचपन तो सामान्य रूप से कटा लेकिन अपनी पसन्द से विवाह के बाद भी उनका घरेलू जीवन बहुत ही कठिन व दुख से भरा रहा। अपने पति की ओर से बेहद परेशान रही दुर्गा को जो कुछ खुशी मिली, वह अपने बच्चों से ही मिली।   
 
==फ़िल्मों में प्रवेश==
 
==फ़िल्मों में प्रवेश==
पति के निधन के बाद दुर्गा खोटे पर दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी भी आ गई थी। ऐसे में उन्होंने फिल्मों की राह ली। उस दौर में बहुधा पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते थे और अधिकतर घरों में फिल्मों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। दुर्गा खोटे मूक फिल्मों के दौर में ही फिल्मों में आ गई थी और 'फरेबी जाल' उनकी पहली फिल्म थी। बतौर नायिका 'अयोध्येचा राजा' उनकी पहली फिल्म थी जो [[मराठी भाषा|मराठी]] के साथ साथ [[हिंदी]] में भी थी। यह फिल्म कामयाब रही और दुर्गा खोटे नायिका के रूप में सिनेमा की दुनिया में स्थापित हो गईं। दुर्गा खोटे की कामयाबी ने कइयों को प्रेरित किया और हिंदी फिल्मों से जुड़ी सामाजिक वर्जना टूटने लगी। दुर्गा खोटे ने एक और पहल करते हुए स्टूडियो व्यवस्था को भी दरकिनार कर दिया और फ्रीलांस कलाकार बन गई। स्टूडियो सिस्टम में कलाकार मासिक वेतन पर किसी एक कंपनी के लिए काम करते थे। लेकिन दुर्गा खोटे ने इस व्यवस्था को अस्वीकार करते हुए एक साथ कई फिल्म कंपनियों के लिए काम किया।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8306.html |title=दुर्गा खोटे: सिने जगत में महिलाओं की राह सुगम बनाई |accessmonthday=21 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी }} </ref>
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दुर्गा खोटे के फिल्मों में काम करने से पहले पुरुष ही स्त्री पात्र भी निभाते थे। हिन्दी फिल्मों के पितामह [[दादा साहेब फाल्के]] ने जब पहली हिन्दी फीचर फिल्म “[[राजा हरिश्चंद्र]]” बनायी तो उन्हें राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती का किरदार निभाने के लिए कोई महिला नहीं मिली। उन्हें मजबूर होकर एक युवक सालुंके से यह भूमिका करानी पडी। इस स्थिति को देखकर दुर्गा खोटे ने फिल्मों में काम करने का फैसला किया और उनके इस कदम से सम्मानित परिवारों की लड़कियों के लिए भी फिल्मों के दरवाजे खोलने में मदद मिली। उन्होंने 1931 में प्रभात फिल्म कम्पनी की मूक फिल्म ‘फरेबी जाल’ में एक छोटी सी भूमिका से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की लेकिन उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा और फिल्मों से उनका मोहभंग हो गया था। वह शायद फिर फिल्मों में काम नहीं करतीं लेकिन निर्माता-निर्देशक [[वी. शांताराम]] ने उन्हें मराठी और हिन्दी भाषाओं में बनने वाली अपनी अगली फिल्म ‘अयोध्येचा राजा’ 1932, में रानी तारामती की भूमिका के लिए किसी तरह मना लिया। उन्होंने इस काम के लिए फिल्म के नायक गोविंदराव तेम्बे की मदद ली। कहा जाता है कि तेम्बे शांताराम बापू के साथ दुर्गा खोटे के घर इतनी बार गए कि उनका रंग काला पड गया और लोग कहने लगे थे कि उन्हें ‘अयोध्येचा राजा’ कहा जाए या ‘अफ्रीकाचा राजा’ बोला जाए।
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मराठी की इस पहली सवाक् फिल्म की जबरदस्त कामयाबी के बाद दुर्गा खोटे ने फिर पलट कर नहीं देखा। प्रभात फिल्म कंपनी की ही 1936 में बनी फिल्म ‘अमर ज्योति’ से वह सुर्खियों में आ गयीं। 1934 में कलकत्ता की ईस्ट इंडिया फिल्म कंपनी ने ‘सीता’ फिल्म का निर्माण किया, जिसमें उनके नायक [[पृथ्वीराज कपूर]] थे। देवकी कुमार बोस निर्देशित इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय ने उन्हें शीर्ष अभिनेत्रियों की कतार में खडा कर दिया। वह भारतीय अभिनेत्रियों की कई पीढियों की प्रेरणास्रोत रहीं। इनमें शोभना समर्थ जैसी नायिकाएं भी शामिल थीं जो बताया करती थीं कि किस तरह दुर्गा खोटे से उन्हें प्रेरणा मिली।<ref>{{cite web |url=http://www.cgnewsupdate.com/cnu/category_detail.php?id=232&typeid=7 |title=दुर्गा खोटे ने अमीर लडकियों को दिखाई फिल्म की राह |accessmonthday=21 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=cgnewsupdate |language=हिन्दी }}</ref>  
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====यादगार फ़िल्में====
 
====यादगार फ़िल्में====
हिंदी फिल्मों में उन्हें मां की भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है। फिल्मकार के. आसिफ की बहुचर्चित फिल्म [[मुगल ए आजम]] में जहां उन्होंने सलीम की मां जोधाबाई की यादगार भूमिका निभाई वहीं उन्होंने विजय भट्ट की 'भरत मिलाप' में कैकेई की भूमिका को भी जीवंत बना दिया। बतौर मां उन्होंने चरणों की दासी, मिर्जा गालिब, बॉबी, विदाई जैसी फिल्मों में भी बेहतरीन भूमिका की।  
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हिंदी फ़िल्मों में उन्हें मां की भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है। फ़िल्मकार के. आसिफ की बहुचर्चित फ़िल्म [[मुगल ए आजम]] में जहाँ उन्होंने सलीम की मां जोधाबाई की यादगार भूमिका निभाई वहीं उन्होंने विजय भट्ट की 'भरत मिलाप' में कैकेई की भूमिका को भी जीवंत बना दिया। बतौर मां उन्होंने चरणों की दासी, मिर्जा गालिब, बॉबी, विदाई जैसी फ़िल्मों में भी बेहतरीन भूमिका की।  
 
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[[आनन्द (फ़िल्म)|फ़िल्म आनन्द]]]]
 
;‘माया मछिन्द्र’  
 
;‘माया मछिन्द्र’  
प्रभात कंपनी की ही फिल्म ‘माया मछिन्द्र’ 1932 में दुर्गा खोटे ने एक बहादुर योद्धा की भूमिका निभायी। इसके लिए उन्होंने योद्धा के कपडे पहने, हाथ में तलवार पकडी और सिर पर शिरस्त्राण पहना। फिल्म के एक दृश्य में एक बाज ने एक चरित्र अभिनेता पर सचमुच हमला कर दिया तो दुर्गा खोटे ने उसे पकड लिया और उसे तब तक काबू में किए रखा जब तक उसका प्रशिक्षक नहीं आ गया। इस तरह की भूमिकाओं ने दूसरी अभिनेत्रियों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करने का काम किया।  
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प्रभात कंपनी की ही फ़िल्म ‘माया मछिन्द्र’ 1932 में दुर्गा खोटे ने एक बहादुर योद्धा की भूमिका निभायी। इसके लिए उन्होंने योद्धा के कपडे पहने, हाथ में तलवार पकडी और सिर पर शिरस्त्राण पहना। फ़िल्म के एक दृश्य में एक बाज ने एक चरित्र अभिनेता पर सचमुच हमला कर दिया तो दुर्गा खोटे ने उसे पकड लिया और उसे तब तक काबू में किए रखा जब तक उसका प्रशिक्षक नहीं आ गया। इस तरह की भूमिकाओं ने दूसरी अभिनेत्रियों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करने का काम किया।  
  
 
====निर्माण एवं निर्देशन====
 
====निर्माण एवं निर्देशन====
अभिनय के अलावा दुर्गा खोटे ने लंबे समय तक लघु फिल्में, विज्ञापन फिल्में, वृत्त चित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में 'साथी' नाम की एक फिल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया।  
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अभिनय के अलावा दुर्गा खोटे ने लंबे समय तक लघु फ़िल्में, विज्ञापन फ़िल्में, वृत्त चित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में 'साथी' नाम की एक फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया।  
 
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* इसके अलावा 1958 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला।  
 
* इसके अलावा 1958 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला।  
 
* उन्हें 1968 में [[पद्मश्री]] से भी सम्मानित किया गया।  
 
* उन्हें 1968 में [[पद्मश्री]] से भी सम्मानित किया गया।  
* बिदाई में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें वर्ष 1974 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।
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* विदाई में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें वर्ष 1974 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।
 
==आत्मकथा==
 
==आत्मकथा==
 
दुर्गा खोटे ने अपनी आत्मकथा (मी दुर्गा खोटे) भी लिखी जिसकी व्यापक सराहना हुई। मूल रूप से [[मराठी भाषा]] में लिखी आत्मकथा का [[अंग्रेज़ी]] में भी अनुवाद हुआ है।  
 
दुर्गा खोटे ने अपनी आत्मकथा (मी दुर्गा खोटे) भी लिखी जिसकी व्यापक सराहना हुई। मूल रूप से [[मराठी भाषा]] में लिखी आत्मकथा का [[अंग्रेज़ी]] में भी अनुवाद हुआ है।  
  
 
==निधन==
 
==निधन==
सिनेमा जगत में महिलाओं की स्थिति मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इस हस्ती का [[22 सितंबर]] [[1991]] में निधन हो गया। हिंदी एवं मराठी फिल्मों के अलावा [[रंगमंच]] की दुनिया में करीब पांच दशक तक सक्रिय रहीं दुर्गा खोटे अपने दौर की प्रमुख हस्तियों में थी जिन्होंने फिल्मों में महिलाओं की राह सुगम बनाई।
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सिनेमा जगत में महिलाओं की स्थिति मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इस हस्ती का [[22 सितंबर]] [[1991]] में निधन हो गया। हिंदी एवं मराठी फ़िल्मों के अलावा [[रंगमंच]] की दुनिया में करीब पांच दशक तक सक्रिय रहीं दुर्गा खोटे अपने दौर की प्रमुख हस्तियों में थी जिन्होंने फ़िल्मों में महिलाओं की राह सुगम बनाई।
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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14:01, 21 सितम्बर 2012 का अवतरण

दुर्गा खोटे
दुर्गा खोटे
पूरा नाम दुर्गा खोटे
जन्म 14 जनवरी, 1905
जन्म भूमि मुम्बई, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 22 सितंबर, 1991
मृत्यु स्थान मुम्बई, भारत
कर्म-क्षेत्र अभिनेत्री
मुख्य फ़िल्में मुगल ए आजम, 'भरत मिलाप', विदाई, माया मछिन्द्र आदि
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फाल्के पुरस्कार, पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में 'साथी' नाम की एक फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया।

दुर्गा खोटे (अंग्रेज़ी: Durga Khote) (जन्म: 14 जनवरी, 1905− मृत्यु: 22 सितंबर, 1991) अपने जमाने में हिन्दीमराठी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उन्होंने अनेक हिट फ़िल्मों में शानदार अभिनय किया। आरम्भिक फ़िल्मों में नायिका की भूमिकाएँ करने के बाद जब वे चरित्र अभिनेत्री की भूमिकाओं में दर्शकों के सामने आईं, तब उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं। दुर्गा खोटे ने करीब 200 फ़िल्मों के साथ ही सैंकड़ों नाटकों में भी अभिनय किया और फ़िल्मों को लेकर सामजिक वर्जनाओं को दूर करने में अहम भूमिका निभाई।

जीवन परिचय

एक प्रतिष्ठित परिवार में 14 जनवरी 1905 को पैदा हुईं दुर्गा खोटे का शुरुआती जीवन सुखमय नहीं रहा और मात्र 26 साल की उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया। दुर्गा खोटे का बचपन तो सामान्य रूप से कटा लेकिन अपनी पसन्द से विवाह के बाद भी उनका घरेलू जीवन बहुत ही कठिन व दुख से भरा रहा। अपने पति की ओर से बेहद परेशान रही दुर्गा को जो कुछ खुशी मिली, वह अपने बच्चों से ही मिली।

फ़िल्मों में प्रवेश

पति के निधन के बाद दुर्गा खोटे पर दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी भी आ गई थी। ऐसे में उन्होंने फ़िल्मों की राह ली। उस दौर में बहुधा पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते थे और अधिकतर घरों में फ़िल्मों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। दुर्गा खोटे मूक फ़िल्मों के दौर में ही फ़िल्मों में आ गई थी और 'फरेबी जाल' उनकी पहली फ़िल्म थी। बतौर नायिका 'अयोध्येचा राजा' उनकी पहली फ़िल्म थी जो मराठी के साथ साथ हिंदी में भी थी। यह फ़िल्म कामयाब रही और दुर्गा खोटे नायिका के रूप में सिनेमा की दुनिया में स्थापित हो गईं। दुर्गा खोटे की कामयाबी ने कइयों को प्रेरित किया और हिंदी फ़िल्मों से जुड़ी सामाजिक वर्जना टूटने लगी। दुर्गा खोटे ने एक और पहल करते हुए स्टूडियो व्यवस्था को भी दरकिनार कर दिया और फ्रीलांस कलाकार बन गई। स्टूडियो सिस्टम में कलाकार मासिक वेतन पर किसी एक कंपनी के लिए काम करते थे। लेकिन दुर्गा खोटे ने इस व्यवस्था को अस्वीकार करते हुए एक साथ कई फ़िल्म कंपनियों के लिए काम किया।[1]

लड़कियों को दिखाई फ़िल्म की राह

दुर्गा खोटे के फ़िल्मों में काम करने से पहले पुरुष ही स्त्री पात्र भी निभाते थे। हिन्दी फ़िल्मों के पितामह दादा साहेब फाल्के ने जब पहली हिन्दी फीचर फ़िल्म “राजा हरिश्चंद्र” बनायी तो उन्हें राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती का किरदार निभाने के लिए कोई महिला नहीं मिली। उन्हें मजबूर होकर एक युवक सालुंके से यह भूमिका करानी पडी। इस स्थिति को देखकर दुर्गा खोटे ने फ़िल्मों में काम करने का फैसला किया और उनके इस कदम से सम्मानित परिवारों की लड़कियों के लिए भी फ़िल्मों के दरवाजे खोलने में मदद मिली। उन्होंने 1931 में प्रभात फ़िल्म कम्पनी की मूक फ़िल्म ‘फरेबी जाल’ में एक छोटी सी भूमिका से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की लेकिन उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा और फ़िल्मों से उनका मोहभंग हो गया था। वह शायद फिर फ़िल्मों में काम नहीं करतीं लेकिन निर्माता-निर्देशक वी. शांताराम ने उन्हें मराठी और हिन्दी भाषाओं में बनने वाली अपनी अगली फ़िल्म ‘अयोध्येचा राजा’ 1932, में रानी तारामती की भूमिका के लिए किसी तरह मना लिया। उन्होंने इस काम के लिए फ़िल्म के नायक गोविंदराव तेम्बे की मदद ली। कहा जाता है कि तेम्बे शांताराम बापू के साथ दुर्गा खोटे के घर इतनी बार गए कि उनका रंग काला पड गया और लोग कहने लगे थे कि उन्हें ‘अयोध्येचा राजा’ कहा जाए या ‘अफ्रीकाचा राजा’ बोला जाए।

मराठी की इस पहली सवाक् फ़िल्म की जबरदस्त कामयाबी के बाद दुर्गा खोटे ने फिर पलट कर नहीं देखा। प्रभात फ़िल्म कंपनी की ही 1936 में बनी फ़िल्म ‘अमर ज्योति’ से वह सुर्खियों में आ गयीं। 1934 में कलकत्ता की ईस्ट इंडिया फ़िल्म कंपनी ने ‘सीता’ फ़िल्म का निर्माण किया, जिसमें उनके नायक पृथ्वीराज कपूर थे। देवकी कुमार बोस निर्देशित इस फ़िल्म में उनके दमदार अभिनय ने उन्हें शीर्ष अभिनेत्रियों की कतार में खडा कर दिया। वह भारतीय अभिनेत्रियों की कई पीढियों की प्रेरणास्रोत रहीं। इनमें शोभना समर्थ जैसी नायिकाएं भी शामिल थीं जो बताया करती थीं कि किस तरह दुर्गा खोटे से उन्हें प्रेरणा मिली।[2]

यादगार फ़िल्में

हिंदी फ़िल्मों में उन्हें मां की भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है। फ़िल्मकार के. आसिफ की बहुचर्चित फ़िल्म मुगल ए आजम में जहाँ उन्होंने सलीम की मां जोधाबाई की यादगार भूमिका निभाई वहीं उन्होंने विजय भट्ट की 'भरत मिलाप' में कैकेई की भूमिका को भी जीवंत बना दिया। बतौर मां उन्होंने चरणों की दासी, मिर्जा गालिब, बॉबी, विदाई जैसी फ़िल्मों में भी बेहतरीन भूमिका की।

दुर्गा खोटे
फ़िल्म आनन्द
‘माया मछिन्द्र’

प्रभात कंपनी की ही फ़िल्म ‘माया मछिन्द्र’ 1932 में दुर्गा खोटे ने एक बहादुर योद्धा की भूमिका निभायी। इसके लिए उन्होंने योद्धा के कपडे पहने, हाथ में तलवार पकडी और सिर पर शिरस्त्राण पहना। फ़िल्म के एक दृश्य में एक बाज ने एक चरित्र अभिनेता पर सचमुच हमला कर दिया तो दुर्गा खोटे ने उसे पकड लिया और उसे तब तक काबू में किए रखा जब तक उसका प्रशिक्षक नहीं आ गया। इस तरह की भूमिकाओं ने दूसरी अभिनेत्रियों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करने का काम किया।

निर्माण एवं निर्देशन

अभिनय के अलावा दुर्गा खोटे ने लंबे समय तक लघु फ़िल्में, विज्ञापन फ़िल्में, वृत्त चित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में 'साथी' नाम की एक फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया।

दुर्गा खोटे की प्रमुख फ़िल्में
वर्ष फ़िल्म चरित्र
1983 दौलत के दुश्मन
1980 कर्ज़ शान्ता प्रसाद वर्मा
1977 पहेली ब्रिजमोहन की माँ
1977 डार्लिंग डार्लिंग
1977 पापी अशोक की माँ
1977 चोर सिपाही
1977 साहेब बहादुर
1977 चाचा भतीजा
1976 शक
1976 रंगीला रतन
1976 जानेमन
1976 जय बजरंग बली
1975 खुशबू
1975 चैताली
1975 काला सोना
1974 विदाई पार्वती
1973 अग्नि रेखा
1973 बॉबी मिसेज़ ब्रैगैन्ज़ा
1973 अभिमान
1972 बावर्ची
1972 राजा जानी
1971 बनफूल
1971 एक नारी एक ब्रह्मचारी
1970 खिलौना ठकुराइन सूरज सिंह
1970 गोपी
1970 आनन्द रेणु की माता
1969 जीने की राह पार्वती
1969 धरती कहे पुकार के
1969 प्यार का सपना
1968 सपनों का सौदागर
1968 संघर्ष
1968 झुक गया आसमाँ दादी माँ
1967 चन्दन का पालना
1966 प्यार मोहब्बत
1966 अनुपमा अशोक की माँ
1966 सगाई
1966 दादी माँ
1965 काजल रानी साहिबा
1964 कैसे कहूँ
1964 दूर की आवाज़
1964 बेनज़ीर
1963 मुझे जीने दो
1962 मनमौजी
1962 मैं शादी करने चला
1961 भाभी की चूड़ियाँ
1960 पारख
1960 मुगल-ए-आज़म महारानी जोधा बाई
1960 उसने कहा था
1959 अर्द्धांगिनी
1957 भाभी
1956 राजधानी
1954 लकीरें
1954 मिर्ज़ा गालिब
1953 शिकस्त
1952 आँधियां
1952 मोरद्वाज
1951 आराम सीता
1951 सज़ा
1950 बेकसूर
1950 निशाना
1949 सिंगार
1949 जीत
1935 इन्कलाब

सम्मान और पुरस्कार

  • दुर्गा खोटे को हिंदी सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1983 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • इसके अलावा 1958 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला।
  • उन्हें 1968 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
  • विदाई में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें वर्ष 1974 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।

आत्मकथा

दुर्गा खोटे ने अपनी आत्मकथा (मी दुर्गा खोटे) भी लिखी जिसकी व्यापक सराहना हुई। मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी आत्मकथा का अंग्रेज़ी में भी अनुवाद हुआ है।

निधन

सिनेमा जगत में महिलाओं की स्थिति मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इस हस्ती का 22 सितंबर 1991 में निधन हो गया। हिंदी एवं मराठी फ़िल्मों के अलावा रंगमंच की दुनिया में करीब पांच दशक तक सक्रिय रहीं दुर्गा खोटे अपने दौर की प्रमुख हस्तियों में थी जिन्होंने फ़िल्मों में महिलाओं की राह सुगम बनाई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दुर्गा खोटे: सिने जगत में महिलाओं की राह सुगम बनाई (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 21 सितम्बर, 2012।
  2. दुर्गा खोटे ने अमीर लडकियों को दिखाई फ़िल्म की राह (हिन्दी) (पी.एच.पी) cgnewsupdate। अभिगमन तिथि: 21 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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