"धरनीदास" के अवतरणों में अंतर
फ़ौज़िया ख़ान (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | '''धरनीदास''' [[भारत]] के प्रसिद्ध [[संत]] कवियों में से एक थे। ये संत परंपरा में ‘धरनी’ के नाम से विख्यात थे। धरनीदास ने [[स्वामी रामानंद]] की शिष्य-परंपरा के स्वामी विनोदानंद से दीक्षा ली थी। इनके द्वारा लिखी गईं [[भक्ति काल]] की कई रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। आत्महीनता, नाम स्मरण तथा आध्यात्मिक विषयों का समावेश इनकी रचनाओं में हुआ है। [[बिहार]] और [[उत्तर प्रदेश]] में धरनीदास के काफ़ी संख्या में अनुयायी हैं। | |
− | '''धरनीदास''' संत परंपरा में ‘धरनी’ के नाम से विख्यात हैं। धरनीदास का जन्म [[बिहार]] के छपरा ज़िले के माझी गांव में एक [[कायस्थ]] [[परिवार]] में हुआ था। उनके जन्म के समय के संबंध में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। फिर भी उनकी बानी-साक्ष्य के आधार पर 1616 ई. उनका जन्म-समय माना गया है। | + | {{tocright}} |
− | + | ==जन्म== | |
− | धरनीदास का परिवार कृषक था। उन्होंने गांव के जमींदार के यहाँ दीवान के रूप में काम किया। | + | धरनीदास का जन्म [[बिहार]] के [[छपरा|छपरा ज़िले]] के माझी गांव में एक [[कायस्थ]] [[परिवार]] में हुआ था। उनके जन्म के समय के संबंध में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। फिर भी उनकी बानी-साक्ष्य के आधार पर 1616 ई. उनका जन्म-समय माना गया है। धरनीदास का परिवार कृषक था। उन्होंने गांव के जमींदार के यहाँ [[दीवान]] के रूप में काम किया। |
+ | ====चमत्कारिक प्रसंग==== | ||
+ | धरनीदास सत्यनिष्ठ तो थे ही, वैराग्य की भावना उनके अंदर बराबर रही। धरनीदास के संबंध में अनेक चमत्कारिक घटनाएँ प्रचलित हैं। एक बार बहीखाते पर पानी का भरा लोटा लुढ़क गया, जिससे खाते की लिखावट मिट गई। जमींदार को उनकी ईमानदारी पर संदेह हुआ। जब उनसे इस लापरवाही के संबंध में पूछा गया तो बोले- "मैं तो पुरी के जगन्नाथ जी के [[वस्त्र|वस्त्रों]] में लगी आग बुझा रहा था।" जब जमींदार ने [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|पुरी के मंदिर]] से इस संबंध में पता लगाया तो ज्ञात हुआ कि वहाँ [[आग]] लगी थी और एक साधु ने लोटे से [[जल]] डालकर उसे बुझाया। इससे जमींदार बड़ा लज्जित हुआ, धरनीदास से क्षमा मांगी, पर उन्होंने फिर उसके यहाँ नौकरी नहीं की। | ||
+ | ==रचनाएँ== | ||
+ | धरनीदास ने [[स्वामी रामानंद]] की शिष्य-परंपरा के स्वामी विनोदानंद से दीक्षा ली थी। उनकी [[भक्ति]] रचनाओं में तीन प्रसिद्ध हैं- | ||
+ | #‘शब्द प्रकाश’ | ||
+ | #‘रत्नावली’ | ||
+ | #‘प्रेम प्रगास’ | ||
− | + | ‘शब्द प्रकाश’ में [[भोजपुरी]] के गेय पद हैं। ‘रत्नावली’ में गुरु परंपरा के साथ कुछ अन्य संतों का परिचय मिलता है। ‘प्रेम प्रगास’ सूफ़ियों की प्रेमाख्यान शैली में रचित मनमोहन और प्रानमती की प्रेम कहानी है। धरनीदास ने अपनी रचनाओं में आत्महीनता, नाम स्मरण, विनय और आध्यात्मिक विषयों का समावेश है। उनका कहना था कि व्यक्ति को एक ओर अपने ‘निज’ की पहचान होनी चाहिए, दूसरी ओर संतों के व्यक्तित्व और अपने कार्यों को भी जानना आवश्यक है। | |
+ | ====अनुयायी==== | ||
+ | [[उत्तर प्रदेश]] के पूर्वी भाग और बिहार में संत धरनीदास के बहुत से अनुयायी हैं। | ||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
− | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
− | [[Category:भक्ति काल]] | + | [[Category:भक्ति काल]][[Category:कवि]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]] |
− | [[Category:कवि]][[Category:साहित्य कोश]] | ||
− | [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]] | ||
− | [[Category:चरित कोश]] | ||
− | |||
− | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
10:55, 27 जुलाई 2014 का अवतरण
धरनीदास भारत के प्रसिद्ध संत कवियों में से एक थे। ये संत परंपरा में ‘धरनी’ के नाम से विख्यात थे। धरनीदास ने स्वामी रामानंद की शिष्य-परंपरा के स्वामी विनोदानंद से दीक्षा ली थी। इनके द्वारा लिखी गईं भक्ति काल की कई रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। आत्महीनता, नाम स्मरण तथा आध्यात्मिक विषयों का समावेश इनकी रचनाओं में हुआ है। बिहार और उत्तर प्रदेश में धरनीदास के काफ़ी संख्या में अनुयायी हैं।
जन्म
धरनीदास का जन्म बिहार के छपरा ज़िले के माझी गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके जन्म के समय के संबंध में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। फिर भी उनकी बानी-साक्ष्य के आधार पर 1616 ई. उनका जन्म-समय माना गया है। धरनीदास का परिवार कृषक था। उन्होंने गांव के जमींदार के यहाँ दीवान के रूप में काम किया।
चमत्कारिक प्रसंग
धरनीदास सत्यनिष्ठ तो थे ही, वैराग्य की भावना उनके अंदर बराबर रही। धरनीदास के संबंध में अनेक चमत्कारिक घटनाएँ प्रचलित हैं। एक बार बहीखाते पर पानी का भरा लोटा लुढ़क गया, जिससे खाते की लिखावट मिट गई। जमींदार को उनकी ईमानदारी पर संदेह हुआ। जब उनसे इस लापरवाही के संबंध में पूछा गया तो बोले- "मैं तो पुरी के जगन्नाथ जी के वस्त्रों में लगी आग बुझा रहा था।" जब जमींदार ने पुरी के मंदिर से इस संबंध में पता लगाया तो ज्ञात हुआ कि वहाँ आग लगी थी और एक साधु ने लोटे से जल डालकर उसे बुझाया। इससे जमींदार बड़ा लज्जित हुआ, धरनीदास से क्षमा मांगी, पर उन्होंने फिर उसके यहाँ नौकरी नहीं की।
रचनाएँ
धरनीदास ने स्वामी रामानंद की शिष्य-परंपरा के स्वामी विनोदानंद से दीक्षा ली थी। उनकी भक्ति रचनाओं में तीन प्रसिद्ध हैं-
- ‘शब्द प्रकाश’
- ‘रत्नावली’
- ‘प्रेम प्रगास’
‘शब्द प्रकाश’ में भोजपुरी के गेय पद हैं। ‘रत्नावली’ में गुरु परंपरा के साथ कुछ अन्य संतों का परिचय मिलता है। ‘प्रेम प्रगास’ सूफ़ियों की प्रेमाख्यान शैली में रचित मनमोहन और प्रानमती की प्रेम कहानी है। धरनीदास ने अपनी रचनाओं में आत्महीनता, नाम स्मरण, विनय और आध्यात्मिक विषयों का समावेश है। उनका कहना था कि व्यक्ति को एक ओर अपने ‘निज’ की पहचान होनी चाहिए, दूसरी ओर संतों के व्यक्तित्व और अपने कार्यों को भी जानना आवश्यक है।
अनुयायी
उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग और बिहार में संत धरनीदास के बहुत से अनुयायी हैं।
|
|
|
|
|