धर्म

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धर्मों के प्रतीक
  • (संस्कृत शब्द, अर्थात जो स्थापित हो यानी धर्म, रीति, विधि या कर्तव्य), पालि शब्द, धम्म। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में बहुअर्थी मूल अवधारणा।
  • हिंदू धर्म में धार्मिक और नैतिक नियम है, जो व्यक्तिगत और सामूहिक आचरण को शासित करते हैं। यह जीवन के चार साध्यों में से एक है। प्रासंगिक संवेदनशीलता इसके विशिष्ट लक्षणों में से एक है। यद्यपि धर्म के कुछ पहलुओं को सार्वभोमिक और चिरस्थायी माना जाता है, अन्य का पालन लोगों को अपनी श्रेणी, स्तर और लक्ष्य के अनुसार करना होता है। धर्म हिंदू विधि के आरंभिक स्रोत धर्मसूत्र, जो नीतिशास्त्र व सामाजिक संगठन की नियमावली है, की विषय–वस्तु है। यह नियमावली समय के साथ विधि एवं परंपरा के संग्रह के रूप में विस्तृत हुई, जो धर्मशास्त्र कहलाई। सर्वाधिक ज्ञात धर्मशास्त्र मनुस्मृति है, जो प्रारंभिक शताब्दियों तक प्रामाणिक बन गया था, परंतु यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है कि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा इसके कुछ पहलुओं को औपनिवेशिक क़ानून में समाहित कर लिये जाने से पहले यह कभी वास्तविक न्यायिक प्रक्रिया में क्रियाशील था भी अथवा नहीं।
  • बौद्ध धर्म में धर्म प्रत्येक व्यक्ति के लिये सर्वकालिक सार्वभौमिक सत्य है, जैसा गौतम बुद्ध ने खोजा व घोषित किया था। धर्म, बुध्द और संघ (बौद्ध मठ व्यवस्था) मिलकर ‘त्रिरत्न’ या तीन रत्न हैं। जो बौद्ध सिध्दांत और आचरण के प्राथमिक स्रोत हैं। बौद्ध अध्यात्म में बहुवचन के रूप में इस शब्द का उपयोग उन अंतर्संबंधित तत्त्वों के उल्लेख के लिए होता है, जो अनुभवजन्य विश्व की रचना करते हैं।
  • जैन दर्श्न में धर्म आमतौर पर नैतिक मूल्य के रूप में समझे जाने के अलावा एक विशिष्ट अर्थ रखता है, शाश्वत वस्तु (द्रव्य) का एक सहायक माध्यम, जो मनुष्य का आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

हिन्दू धर्म

भारत का सर्वप्रमुख धर्म हिन्दू धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये। वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्राम देवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है।

सिक्ख धर्म

सिक्ख धर्म का प्रतीक

सिक्ख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग के पंजाब में गुरु नानक देव द्वारा की गई। 'सिक्ख' शब्द शिष्य से उत्पन्न हुआ है, जिसका तात्पर्य है गुरु नानक के शिष्य, अर्थात् उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले। नानक देव का जन्म 1469 ई. में लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) के समीप तलवण्डी नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम कालूचंद और माता का तृप्ता था। बचपन से ही प्रतिभा के धनी नानक को एकांतवास, चिन्तन एवं सत्संग में विशेष रुचि थी। सुलक्खिनी देवी से विवाह के पश्चात् श्रीचंद और लखमीचंद नामक दो पुत्र हुए।

इस्लाम धर्म

इस्लाम धर्म का प्रतीक

इस्लाम शब्द का अर्थ है – 'अल्लाह को समर्पण'। इस प्रकार मुसलमान वह है, जिसने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया, अर्थात इस्लाम धर्म के नियमों पर चलने लगा। इस्लाम धर्म का आधारभूत सिद्धांत अल्लाह को सर्वशक्तिमान, एकमात्र ईश्वर और जगत का पालक तथा हज़रत मुहम्मद को उनका संदेशवाहक या पैगम्बर मानना है। यही बात उनके 'कलमे' में दोहराई जाती है - ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह अर्थात 'अल्लाह एक है, उसके अलावा कोई दूसरा (दूसरी सत्ता) नहीं और मुहम्मद उसके रसूल या पैगम्बर।' कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व मुसलमान यह क़लमा पढ़ते हैं।

जैन धर्म

जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों । 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म । जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूलमन्त्र है- णमो अरिहंताणं।
णमो सिद्धाणं।
णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं।
णमो लोए सव्वसाहूणं॥

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म का प्रतीक

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध, शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। बुद्ध राजा शुद्धोदन के पुत्र थे और इनका जन्म लुंबिनी नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया।

वैदिक धर्म

वैदिक धर्म कर्म पर आधारित था।वैदिक धर्म पूर्णतः प्रतिमार्गी हैं। वैदिक देवताओं में पुरुष भाव की प्रधानता है। अधिकांश देवताओं की अराधना मानव के रूप में की जाती थी किन्तु कुछ देवताओं की अराधना पशु के रूप में की जाती थी। 'अज एकपाद' और 'अहितर्बुध्न्य' दोनों देवताओं परिकल्पना पशु के रूप में की गई है। मरुतों की माता की परिकल्पना 'चितकबरी गाय' के रूप में की गई है। इन्द्र की गाय खोजने वाला 'सरमा' (कुतिया) श्वान के रूप में है। इसके अतिरिक्त इन्द्र की कल्पना 'वृषभ' (बैल) के रूप में एवं सूर्य की 'अश्व' के रूप में की गई है। ऋग्वेद में पशुओं के पूजा प्रचलन नहीं था।

पारसी धर्म

पारसी धर्म का प्रतीक

जरथुस्ट्र धर्म विश्व का एक अत्यंत प्राचीन धर्म है, जिसकी स्थापना आर्यों की ईरानी शाखा के एक संत जरथुष्ट्र ने की थी। इस्लाम के आविर्भाव के पूर्व प्राचीन ईरान में जरथुस्ट्र धर्म का ही प्रचलन था। सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को पराजित कर वहाँ के जरथुस्ट्र धर्मावलम्बियों को जबरन इस्लाम में दीक्षित कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आये और यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये। वर्तमान में भारत में उनकी जनसंख्या लगभग एक लाख है, जिसका 70% बम्बई में रहते हैं।

ईसाई धर्म

ईसाई धर्म का प्रतीक

ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह (जीसस क्राइस्ट) थे, जिनका जन्म रोमन साम्राज्य के गैलिली प्रान्त के नज़रथ नामक स्थान पर 6 ई. पू. में हुआ था। उनके पिता जोजेफ़ एक बढ़ई थे तथा माता मेरी (मरियम) थीं। वे दोनों यहूदी थे। ईसाई शास्त्रों के अनुसार मेरी को उसके माता-पिता ने देवदासी के रूप में मन्दिर को समर्पित कर दिया था। ईसाई विश्वासों के अनुसार ईसा मसीह के मेरी के गर्भ में आगमन के समय मेरी कुँवारी थी। इसीलिए मेरी को ईसाई धर्मालम्बी 'वर्जिन मेरी (कुँवारी मेरी) तथा ईसा मसीह को ईश्वरकृत दिव्य पुरुष मानते हैं।

यहूदी धर्म

प्राचीन मेसोपोटामिया (वर्तमान ईराक तथा सीरिया) में सामी मूल की विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले अक्कादी, कैनानी, आमोरी, असुरी आदि कई खानाबदोश कबीले रहा करते थे। इन्हीं में से एक कबीले का नाम हिब्रू था। वे यहोवा को अपना ईश्वर और अब्राहम को आदि-पितामह मानते थे। उनकी मान्यता थी कि यहोवा ने अब्राहम और उनके वंशजों के रहने के लिए इस्त्राइल प्रदेश नियत किया है। प्रारम्भ में गोशन के मिस्त्रियों के साथ हिब्रुओं के सम्बंध अच्छे थे, परन्तु बाद में दोनों में तनाव उत्पन्न हो गया।


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