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'''धूपबत्ती''' से तात्पर्य है कि विशेष प्रकार से बनाई गई मसाला लगी हुई ऐसी सींक या बत्ती, जिसे जलाने से सुगंधित धुआँ उठकर फैलता है। विश्व के कई धर्मों में धूपबत्ती का प्रयोग देवताओं आदि को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। [[हिन्दू धर्म]] में तो किसी भी [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवता]] की [[पूजा]] धूपबत्ती की सुगन्ध के बिना अधूरी सी मानी जाती है।
 
'''धूपबत्ती''' से तात्पर्य है कि विशेष प्रकार से बनाई गई मसाला लगी हुई ऐसी सींक या बत्ती, जिसे जलाने से सुगंधित धुआँ उठकर फैलता है। विश्व के कई धर्मों में धूपबत्ती का प्रयोग देवताओं आदि को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। [[हिन्दू धर्म]] में तो किसी भी [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवता]] की [[पूजा]] धूपबत्ती की सुगन्ध के बिना अधूरी सी मानी जाती है।
 
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तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, [[चंदन]], [[इलाइची]], तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे 'षोडशांग धूप' कहते हैं। 'मदरत्न' के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे 'दशांग धूप' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त भी अन्य मिश्रणों का भी उल्लेख मिलता है, जैसे- छह भाग कुष्ठ, दो भाग गुड़, तीन भाग लाक्षा, पाँचवाँ भाग नखला, हरीतकी, राल समान अंश में, दपै एक भाग, शिलाजय तीन लव जिनता, नागरमोथा चार भाग, गुग्गुल एक भाग लेने से अति उत्तम धूप तैयार होती है। रुहिकाख्य, कण, दारुसिहृक, अगर, सित, शंख, जातीफल, श्रीश ये धूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं।<ref name="a">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%A7%E0%A5%82%E0%A4%AA-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF/%E0%A4%A7%E0%A5%82%E0%A4%AA-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF-1090826028_1.htm|title=धूप से पाएँ जीवन में शांति|accessmonthday=18 सितम्बर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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====पुराण उल्लेख====
 
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*'हेमाद्रि'<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 50-51</ref> ने धूप के कई मिश्रणों का उल्लेख किया है, यथा- अमृत, अनन्त, अक्षधूप, विजयधूप, प्राजापत्य, दस अंगों वाली धूप का भी वर्णन है।  
 
*'कृत्यकल्पतरु'<ref>कृत्यकल्पतरु (13</ref> ने 'विजय' नामक धूप के आठ अंगों का उल्लेख किया है।  
 
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*'[[भविष्य पुराण]]'<ref>भविष्य पुराण, (1|68|28-29</ref> का कथन है कि विजय धूपों में श्रेष्ठ है, लेपों में चन्दन लेप सर्वश्रेष्ठ है, सुरभियों (गन्धों) में कुंकुम श्रेष्ठ है, पुष्पों में जाती तथा मीठी वस्तुओं में मोदक (लड्डू) सर्वोत्तम है। 'कृत्यकल्पतरु'<ref>कृत्यकल्पतरु व्रतखण्ड 182-183</ref> ने इसका उदधृत किया है।<ref>देखिए [[गरुड़ पुराण]] (1|177|88-89</ref>  
 
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*धूप से मक्खियाँ एवं पिस्सू नष्ट हो जाते हैं।<ref>कृत्यरत्नाकर (77-78); स्मृतिचन्द्रिका (1|203 एवं 2|435); बाण (कादम्बरी प्रथम भाग)।</ref>
 
*धूप से मक्खियाँ एवं पिस्सू नष्ट हो जाते हैं।<ref>कृत्यरत्नाकर (77-78); स्मृतिचन्द्रिका (1|203 एवं 2|435); बाण (कादम्बरी प्रथम भाग)।</ref>
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==धूप देना==
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[[हिन्दू धर्म]] में धूप देने और [[दीपक]] जलाने का बहुत अधिक महत्त्व है। सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है। गुड़ और [[घी]] से दी गई धूप का खास महत्त्व है। इसके लिए सर्वप्रथम एक कंडा जलाया जाता है। फिर कुछ देर बाद जब उसके अंगारे ही रह जाएँ, तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दिया जाता है और उसके आस-पास अँगुली से [[जल]] अर्पण किया जाता है। अँगुली से [[देवता|देवताओं]] को और अँगूठे से अर्पण करने से वह धूप [[पितर|पितरों]] को लगती है। जब देवताओं के लिए धूप दान करें, तब [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] का [[ध्यान]] करना चाहिए और जब पितरों के लिए अर्पण करें, तब अर्यमा सहित अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए तथा उनसे सुख-शांति की कामना करें।<ref name="a"/>
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[[हिन्दू धर्म]] में धूपबत्ती आदि से धूप देने के भी नियम बताए गये हैं, जैसे-
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*यदि रोज धूप नहीं दे पाएँ तो [[त्रयोदशी]], [[चतुर्दशी]] तथा [[अमावस्या]] और [[पूर्णिमा]] को सुबह-शाम धूप अवश्य देना चाहिए। सुबह दी जाने वाली धूप देवगणों के लिए और शाम को दी जाने वाली धूप पितरों के लिए होती है।
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*धूप देने के पूर्व घर की सफाई करनी चाहिए। पवित्र होकर-रहकर ही धूप देना चाहिए। धूप ईशान कोण में ही दें। घर के सभी कमरों में धूप की सुगंध फैल जानी चाहिए। धूप देने और धूप का असर रहे तब तक किसी भी प्रकार का [[संगीत]] नहीं बजाना चाहिए। हो सके तो कम से कम बात करना चाहिए।
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==लाभ==
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धूप देने से मन, शरीर और घर में शांति की स्थापना होती है। रोग और शोक मिट जाते हैं। गृह कलह और आकस्मिक घटना-दुर्घटना नहीं होती। घर के भीतर व्याप्त सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलकर घर का वास्तुदोष मिट जाता है। [[ग्रह]]-[[नक्षत्र|नक्षत्रों]] से होने वाले छिटपुट बुरे असर भी धूप देने से दूर हो जाते हैं। श्राद्ध पक्ष में 16 दिन ही दी जाने वाली धूप से पितृ तृप्त होकर मुक्त हो जाते हैं तथा पितृदोष का समाधान होकर पितृयज्ञ भी पूर्ण होता है।<ref name="a"/>
  
 
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08:29, 18 सितम्बर 2013 का अवतरण

धूपबत्ती से तात्पर्य है कि विशेष प्रकार से बनाई गई मसाला लगी हुई ऐसी सींक या बत्ती, जिसे जलाने से सुगंधित धुआँ उठकर फैलता है। विश्व के कई धर्मों में धूपबत्ती का प्रयोग देवताओं आदि को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। हिन्दू धर्म में तो किसी भी देवी-देवता की पूजा धूपबत्ती की सुगन्ध के बिना अधूरी सी मानी जाती है।

प्रकार

तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे 'षोडशांग धूप' कहते हैं। 'मदरत्न' के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे 'दशांग धूप' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त भी अन्य मिश्रणों का भी उल्लेख मिलता है, जैसे- छह भाग कुष्ठ, दो भाग गुड़, तीन भाग लाक्षा, पाँचवाँ भाग नखला, हरीतकी, राल समान अंश में, दपै एक भाग, शिलाजय तीन लव जिनता, नागरमोथा चार भाग, गुग्गुल एक भाग लेने से अति उत्तम धूप तैयार होती है। रुहिकाख्य, कण, दारुसिहृक, अगर, सित, शंख, जातीफल, श्रीश ये धूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं।[1]

पुराण उल्लेख

  • 'हेमाद्रि'[2] ने धूप के कई मिश्रणों का उल्लेख किया है, यथा- अमृत, अनन्त, अक्षधूप, विजयधूप, प्राजापत्य, दस अंगों वाली धूप का भी वर्णन है।
  • 'कृत्यकल्पतरु'[3] ने 'विजय' नामक धूप के आठ अंगों का उल्लेख किया है।
  • 'भविष्य पुराण'[4] का कथन है कि विजय धूपों में श्रेष्ठ है, लेपों में चन्दन लेप सर्वश्रेष्ठ है, सुरभियों (गन्धों) में कुंकुम श्रेष्ठ है, पुष्पों में जाती तथा मीठी वस्तुओं में मोदक (लड्डू) सर्वोत्तम है। 'कृत्यकल्पतरु'[5] ने इसका उदधृत किया है।[6]
  • धूप से मक्खियाँ एवं पिस्सू नष्ट हो जाते हैं।[7]

धूप देना

हिन्दू धर्म में धूप देने और दीपक जलाने का बहुत अधिक महत्त्व है। सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है। गुड़ और घी से दी गई धूप का खास महत्त्व है। इसके लिए सर्वप्रथम एक कंडा जलाया जाता है। फिर कुछ देर बाद जब उसके अंगारे ही रह जाएँ, तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दिया जाता है और उसके आस-पास अँगुली से जल अर्पण किया जाता है। अँगुली से देवताओं को और अँगूठे से अर्पण करने से वह धूप पितरों को लगती है। जब देवताओं के लिए धूप दान करें, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ध्यान करना चाहिए और जब पितरों के लिए अर्पण करें, तब अर्यमा सहित अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए तथा उनसे सुख-शांति की कामना करें।[1]

नियम

हिन्दू धर्म में धूपबत्ती आदि से धूप देने के भी नियम बताए गये हैं, जैसे-

  • यदि रोज धूप नहीं दे पाएँ तो त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा अमावस्या और पूर्णिमा को सुबह-शाम धूप अवश्य देना चाहिए। सुबह दी जाने वाली धूप देवगणों के लिए और शाम को दी जाने वाली धूप पितरों के लिए होती है।
  • धूप देने के पूर्व घर की सफाई करनी चाहिए। पवित्र होकर-रहकर ही धूप देना चाहिए। धूप ईशान कोण में ही दें। घर के सभी कमरों में धूप की सुगंध फैल जानी चाहिए। धूप देने और धूप का असर रहे तब तक किसी भी प्रकार का संगीत नहीं बजाना चाहिए। हो सके तो कम से कम बात करना चाहिए।

लाभ

धूप देने से मन, शरीर और घर में शांति की स्थापना होती है। रोग और शोक मिट जाते हैं। गृह कलह और आकस्मिक घटना-दुर्घटना नहीं होती। घर के भीतर व्याप्त सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलकर घर का वास्तुदोष मिट जाता है। ग्रह-नक्षत्रों से होने वाले छिटपुट बुरे असर भी धूप देने से दूर हो जाते हैं। श्राद्ध पक्ष में 16 दिन ही दी जाने वाली धूप से पितृ तृप्त होकर मुक्त हो जाते हैं तथा पितृदोष का समाधान होकर पितृयज्ञ भी पूर्ण होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 धूप से पाएँ जीवन में शांति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 18 सितम्बर, 2013।
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 50-51
  3. कृत्यकल्पतरु (13
  4. भविष्य पुराण, (1|68|28-29
  5. कृत्यकल्पतरु व्रतखण्ड 182-183
  6. देखिए गरुड़ पुराण (1|177|88-89
  7. कृत्यरत्नाकर (77-78); स्मृतिचन्द्रिका (1|203 एवं 2|435); बाण (कादम्बरी प्रथम भाग)।

अन्य संबंधित लिंक