नाग जाति

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
नाग जाति

जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं, उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है। लेकिन भारत के धार्मिक और सामाजिक इतिहास को सर्वसम्मत बनाकर कभी भी क्रमबद्ध रूप से नहीं लिखा गया, इसीलिए विरोधाभास ही अधिक नजर आता है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। ये लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए। कुछ विद्वान् मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को ‘नागभाषा’ कहते हैं।

इतिहास

एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का ‘अनंतनाग’ इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। नाग वंशावलियों में ‘शेष नाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही 'तक्षकशिला' (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं। उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था। अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं- श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।[1]

नागकुल की भूमि

यह सभी नाग को पूजने वाले नागकुल थे, इसीलिए उन्होंने नागों की प्रजातियों पर अपने कुल का नाम रखा। जैसे तक्षक नाग के नाम पर एक व्यक्ति जिसने अपना ‘तक्षक’ कुल चलाया। उक्त व्यक्ति का नाम भी तक्षक था, जिसने राजा परीक्षित की हत्या कर दी थी। बाद में परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक से बदला लिया था। ‘नागा आदिवासी’ का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्य प्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार एक समय ऐसा था, जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।

नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव ‘नाग’ शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महार से महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी। इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में ‘नागदाह’ नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जानिए, नागवंश का संक्षिप्त परिचय और उनका विचित्र रहस्य (हिन्दी) indiannova.in। अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2016।

संबंधित लेख