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नाडिया

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नाडिया (जन्म- 8 जनवरी, 1908, ऑस्ट्रेलिया; मृत्यु- 10 जनवरी, 1996) भारतीय सिनेमा की ख्यातिप्राप्त अभिनेत्रियों में से एक थीं। सिर्फ़ हिन्दी ही नहीं, किसी भी भारतीय भाषा के सिनेमा के इतिहास में इतनी दबंग, निर्भीक, बहादुर, स्टंटबाज, टारजन या रॉबिनहुड स्टॉइल की नायिका आज तक दूसरी नहीं हुई। नाडिया ने हिन्दुस्तानी सिनेमा के तीस और चालीस के दशक में एक दिलेर-जांबाज अभिनेत्री के रूप में ऐसा जीवटभरा प्रदर्शन किया कि उसने पारम्परिक भारतीय समाज की अनेक मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया। अपने समय में नाडिया बहुत बड़ी स्टार थीं। उन्होंने अपने बलबूते पर कई हिट फ़िल्में दी थीं। किंतु नाडिया को वह मान-सम्मान नहीं मिल सका, जिसकी वह हकदार थीं।

जन्म तथा नामकरण

नाडिया का जन्म 8 जनवरी, सन 1908 को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के 'पर्थ' शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम हर्बर्ट इवान्स था, जो ब्रिटिश सेना में सैनिक थे। माता का नाम ग्रीक मार्गरेट था। पहले नाडिया का नाम 'मेरी इवान्स' रखा गया था, किंतु एक अमेरिकी ज्योतिष की सलाह पर वह 'मेरी इवान्स' से 'नाडिया' हो गईं।

भारत आगमन

जब नाडिया केवल पाँच साल की थीं, तब उनके पिता का तबादला बम्बई (वर्तमान मुम्बई) हो गया, और पूरा परिवार भारत आ गया। प्रथम विश्वयुद्ध में उन्हें फ़्राँस के मोर्चे पर भेजा गया था, जहाँ वे मारे गए। पिता की मृत्यु के बाद नाडिया की माँ बम्बई में ही बस गईं।

व्यावसायिक जीवन की शुरुआत

जब नाडिया ने होश संभाला तो माँ की मदद के लिए नौसेना के स्टोर्स में सेल्स गर्ल बन गईं। फिर सेक्रेटरी का दायित्व निभाया। इसी दौरान रशियन बैले नर्तकी मैडम एस्ट्रोव से उनकी मुलाकात हुई। बैले सीखने के लिए नाडिया ने अपन वजन भी घटाया। कुछ समय 'झाको रशियन सर्कस' में भी काम किया और अपनी कलाबाजियाँ दिखाईं। वे ब्रिटिश-भारतीय दर्शकों का मनोरंजन बैले के प्रदर्शन से करने लगीं। इसी दौरान एक शो में होमी वाडिया ने नाडिया को देखा तो उन पर मंत्रमुग्ध हो गए। स्क्रीन टेस्ट के बाद 'वाडिया मूवीटोन' के लिए नाडिया ऐसे अनुबंधित हुईं कि होमी वाडिया के 'होम' की मालकिन बनीं।[1]

अभिनय

नाडिया ने सन 1933 में पहली बार हिन्दी फ़िल्म 'लाल ए यमन' में अभिनय किया था, जिसका निर्माण 'वाडिया मूवीटोन' के जेबीएच वाडिया ने किया था। भारत में 'हंटरवाली' के नाम से मशहूर हुई नाडिया ने 1930 और 1940 के दशक में 35 से भी अधिक फ़िल्मों में काम किया।

हिन्दी फ़िल्मों में सफलता

आरंभिक दो-तीन फ़िल्मों में छोटे रोल करने के बाद जेबीएच वाडिया ने सन 1935 में फ़िल्म "हंटरवाली" की पटकथा लिखी। इस दौर में गूंगा सिनेमा अपने धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक गुफ़ाओं से बाहर आ रहा था। प्रभात फ़िल्म कंपनी, न्यू थिएटर्स, बाम्बे टॉकिज अपने स्टाइल की फ़िल्में बना रहे थे। वाडिया भाइयों ने अपना अलग चलन शुरू किया। यह अमेरिकन टार्जन मूवीज, वेस्टनर्स, काऊबॉय स्टाइल से प्रेरित था। नाडिया को स्टंट फ़िल्मों का ऑफ़र दिया गया।

'हंटरवाली' नायिका प्रधान फ़िल्म थी। उन दिनों साठ हज़ार रुपयों में फ़िल्म बन जाया करती थी। जेबीएच वाडिया ने 'हंटरवाली' का बजट अस्सी हज़ार किया। जब वितरकों ने फ़िल्म देखी, तो हीरोइन के हाथों में हंटर और तलवार देखकर पीछे हट गए। मजबूर होकर वाडिया भाइयों ने अपने दोस्त बिलिमोरिया की भागीदारी में 'हंटरवाली' फ़िल्म रिलीज की। दर्शकों ने अब तक या तो स्वर्ग की अप्सराओं या देवियों को फूल बरसाते देखा था या फिर घरों में कैद हमेशा रोने-धोने-कलपने वाली औरत को देखा था। इतनी दिलेर स्त्री को परदे पर हैरतअंगेज करतब करते देख वे चकित रह गए। फ़िल्म 'हंटरवाली' ने बॉक्स ऑफ़िस पर ऐसा धमाल किया कि नाडिया रातोंरात सुपर स्टार बन गईं। इस प्रकार स्टंट फ़िल्मों का कारवाँ चल पड़ा।[1]

साहसी स्त्री

नाडिया सचमुच में एक बहादुर स्त्री थीं। इसका प्रमाण फ़िल्म "जंगल प्रिंसेस" से मिलता है। इस फ़िल्म के एक दृश्य में नाडिया चार शेरों से लड़ती हैं। हिन्दी उच्चारण ठीक नहीं होने के बावजूद भी फ़िल्म "पहाड़ी कन्या" में नाडिया ने लम्बे संवाद बोले थे। मारधाड़ में माहिर नाडिया ने कई भावुक दृश्य भी बड़ी खूबी के साथ दिए थे। फ़िल्म "मौज" में भावना प्रधान संवाद बोलकर उन्होंने दर्शकों को रुला दिया था।

अन्तिम फ़िल्म

उनकी आखिरी स्टंट फ़िल्म "सरकस क्वीन" थी। सन 1959 में उन्होंने अपने निर्माता-निर्देशक होमी वाडिया से विवाह कर फ़िल्मों से संन्यास ले लिया। 1968 में "खिलाड़ी" फ़िल्म में छोटी भूमिका में वह आखिरी वार परदे पर आई थीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 स्टंट स्वीन, फ़ियरलैस नाडिया (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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