नानक भील

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

नानक भील अंग्रेज़ों का विरोध करने वाले क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। 13 जून, 1922 को एक किसान सभा के दौरान अंग्रेज़ों ने उन्हें गोली मार दी। उनकी शहादत के बाद अंग्रेज़ों की शासन व्यवस्था में कुछ परिवर्तन आया और किसानों और आम जनता को राहत मिली और उनमें एक नवजागृति पनपी। अमर शहीद नानक भील की स्मृति में मूर्तियां स्थापित की गई और मेले का आयोजन होता है।

परिचय

अमर शहीद नानक भील का जन्म 1890 ई. में बराड़ के धनेश्वर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम भेरू था। यह बचपन से ही बहादुर निडर साहसी और एक जागरुक व्यक्ति रहे। नानक भील गोविंद गुरु और मोतीलाल तेजावत द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन से काफी प्रभावित थे। उन्होंने अपने क्षेत्र में आम किसानों, जनता को अपने अधिकारों और अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता के लिए जागरूकता किया।

अंग्रेज़ों के विरोधी

नानक भील ने अपने क्षेत्र में झंडा गीतों के माध्यम से अंग्रेज़ों का विरोध किया और अपने क्षेत्र के आम लोगों को अंग्रेज़ों के खिलाफ विरोध करने के लिए प्रेरित किया। यह अपने झंडा गीतों के माध्यम से लोगों में एक नया उत्साह भर देते थे।

शहादत

13 जून, 1922 में डाबी गांव में किसानों की बैठक रखी गई थी। वहीं पर अचानक से अंग्रेज़ पुलिस ने आकर फायरिंग कर दी। इस गोलाबारी से आम किसानों में भगदड़ मच गई, लेकिन नानक भील ने झंडा लहराते हुए अंग्रेज़ों का विरोध किया और झंडा गीत गाते हुए विरोध करते रहे। इसी दौरान वहां पुलिस ने नानक भील को सीने पर गोली मारी और इस प्रकार भारत का एक वीर सपूत शहीद हो गया; लेकिन नानक भील की शहादत व्यर्थ नहीं गई। उनके इस महत्वपूर्ण कदम से अंग्रेज़ों की शासन व्यवस्था में कुछ परिवर्तन आया और किसानों और आम जनता को राहत मिली और उनमें एक नवजागृति पनपी। आम लोगों ने खुद के लिए लड़ना शुरू किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख