"नाना फड़नवीस" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
}}
+
}}'''नाना फड़नवीस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nana Fadnavis'', जन्म: [[12 फरवरी]] 1742 ई.- मृत्यु: [[13 मार्च]] 1800 ई.) एक [[मराठा]] राजनेता थे, जो [[पानीपत]] के तृतीय युद्ध के समय [[पेशवा]] की सेवा में नियुक्त थे। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध हैंं। 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु हो गई थी। नाना फड़नवीस ने रघुनाथराव ([[राघोवा]]) की स्वयं पेशवा बनने की सारी कोशिशें नाकाम कर दी थीं। नाना फड़नवीस का [[टीपू सुल्तान]] से भी युद्ध हुआ था। उन्होंने [[मराठा साम्राज्य]] की शक्ति को एक छत्र के नीचे एकत्र करने की सफल चेष्टा की। पेशवा शासन के दौरान नाना फड़नवीस मराठा साम्राज्य के प्रभावशाली मंत्री व कूटनीतिज्ञ थे। यूरोपीयों द्वारा उन्हें '''मराठा मैकियावेली''' (सुप्रसिद्ध इतालवी कूटनीतिज्ञ निकोलो मैकियावेली पर आधारित नाम) कहा जाता था।
 
 
 
 
'''नाना फड़नवीस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nana Fadnavis'', जन्म: [[12 फरवरी]] 1742 ई.- मृत्यु: [[13 मार्च]] 1800 ई.) एक [[मराठा]] राजनेता था, जो [[पानीपत]] के तृतीय युद्ध के समय [[पेशवा]] की सेवा में नियुक्त था। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध है। 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु हो गई थी। नाना फड़नवीस ने रघुनाथराव ([[राघोवा]]) की स्वयं पेशवा बनने की सारी कोशिशें नाकाम कर दी थीं। नाना फड़नवीस का [[टीपू सुल्तान]] से भी युद्ध हुआ था। उसने [[मराठा साम्राज्य]] की शक्ति को एक छत्र के नीचे एकत्र करने की सफल चेष्टा की थी।
 
 
==मराठा राज्य का संचालन==
 
==मराठा राज्य का संचालन==
{{tocright}}
 
 
नाना फड़नवीस युद्धभूमि से जीवित लौट आया था। इसके बाद 1773 ई. में [[नारायणराव]] पेशवा की हत्या करा कर उसके चाचा राघोवा ने जब स्वयं गद्दी हथियाने का प्रयत्न किया, तो उसने उसका विरोध किया। नाना फड़नवीस ने नारायणराव के मरणोपरान्त उत्पन्न पुत्र [[माधवराव नारायण]] को 1774 ई. में पेशवा की गद्दी पर बैठाकर राघोवा की चाल विफल कर दी। नाना फड़नवीस ही अल्पवयस्क पेशवा का मुख्यमंत्री बना और 1774 से 1800 ई. में मृत्युपर्यन्त मराठा राज्य का संचालन करता रहा। किन्तु उसकी स्थिति निष्कंटक न थी, क्योंकि अन्य मराठा सरदार, विशेषकर [[महादजी शिन्दे]] उसके विरोधी थे।
 
नाना फड़नवीस युद्धभूमि से जीवित लौट आया था। इसके बाद 1773 ई. में [[नारायणराव]] पेशवा की हत्या करा कर उसके चाचा राघोवा ने जब स्वयं गद्दी हथियाने का प्रयत्न किया, तो उसने उसका विरोध किया। नाना फड़नवीस ने नारायणराव के मरणोपरान्त उत्पन्न पुत्र [[माधवराव नारायण]] को 1774 ई. में पेशवा की गद्दी पर बैठाकर राघोवा की चाल विफल कर दी। नाना फड़नवीस ही अल्पवयस्क पेशवा का मुख्यमंत्री बना और 1774 से 1800 ई. में मृत्युपर्यन्त मराठा राज्य का संचालन करता रहा। किन्तु उसकी स्थिति निष्कंटक न थी, क्योंकि अन्य मराठा सरदार, विशेषकर [[महादजी शिन्दे]] उसके विरोधी थे।
 
==नाना फड़नवीस की चतुराई==
 
==नाना फड़नवीस की चतुराई==
 +
[[चित्र:Nana-Fadnavis-1.jpg|thumb|200px|नाना फड़नवीस]]
 
राज्य में इतने विरोधी होते हुए भी नाना फड़नवीस अपनी चतुराई से समस्त विरोधों के बावजूद अपनी सत्ता बनाये रखने में सफल रहा। 1775 से 1783 ई. तक उसने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के विरुद्ध प्रथम [[मराठा]] युद्ध का संचालन किया। [[सालबाई की सन्धि]] से इस युद्ध की समाप्ति हुई थी। उक्त संधि के अनुसार राघोबा को पेंशन दे गई और मराठों को [[साष्टी]] के अतिरिक्त अन्य किसी भूभाग से हाथ नहीं धोना पड़ा। 1784 ई. में ही नाना फड़नवीस ने [[मैसूर]] के शासक टीपू सुल्तान से लोहा लिया और कुछ ऐसे इलाके पुन: प्राप्त कर लिये, जिन्हें टीपू ने बलपूर्वक अपने अधिकार में कर लिया था। 1789 ई. में टीपू सुल्तान के विरुद्ध उसने अंग्रेज़ों और [[निज़ामशाही वंश|निज़ाम]] का साथ दिया तथा तृतीय मैसूर युद्ध में भी भाग लिया। जिसके फलस्वरूप मराठों को टीपू के राज्य का एक भूभाग प्राप्त हुआ।
 
राज्य में इतने विरोधी होते हुए भी नाना फड़नवीस अपनी चतुराई से समस्त विरोधों के बावजूद अपनी सत्ता बनाये रखने में सफल रहा। 1775 से 1783 ई. तक उसने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के विरुद्ध प्रथम [[मराठा]] युद्ध का संचालन किया। [[सालबाई की सन्धि]] से इस युद्ध की समाप्ति हुई थी। उक्त संधि के अनुसार राघोबा को पेंशन दे गई और मराठों को [[साष्टी]] के अतिरिक्त अन्य किसी भूभाग से हाथ नहीं धोना पड़ा। 1784 ई. में ही नाना फड़नवीस ने [[मैसूर]] के शासक टीपू सुल्तान से लोहा लिया और कुछ ऐसे इलाके पुन: प्राप्त कर लिये, जिन्हें टीपू ने बलपूर्वक अपने अधिकार में कर लिया था। 1789 ई. में टीपू सुल्तान के विरुद्ध उसने अंग्रेज़ों और [[निज़ामशाही वंश|निज़ाम]] का साथ दिया तथा तृतीय मैसूर युद्ध में भी भाग लिया। जिसके फलस्वरूप मराठों को टीपू के राज्य का एक भूभाग प्राप्त हुआ।
 
==निष्कंटक राज्य संचालन==
 
==निष्कंटक राज्य संचालन==
पंक्ति 49: पंक्ति 46:
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
 
[[13 मार्च]], 1800 ई. में नाना फड़नवीस की [[मृत्यु]] हो गई और इसके साथ ही मराठों की समस्त क्षमता, चतुरता और सूझबूझ का भी अंत हो गया।
 
[[13 मार्च]], 1800 ई. में नाना फड़नवीस की [[मृत्यु]] हो गई और इसके साथ ही मराठों की समस्त क्षमता, चतुरता और सूझबूझ का भी अंत हो गया।
 
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{प्रचार}}
 
{{लेख प्रगति
 
|आधार=
 
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
 
|माध्यमिक=
 
|पूर्णता=
 
|शोध=
 
}}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
{{cite book | last = भट्टाचार्य| first = सच्चिदानन्द | title = भारतीय इतिहास कोश | edition = द्वितीय संस्करण-1989| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location =  भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =  हिन्दी| pages = 220 | chapter =}}
 
{{cite book | last = भट्टाचार्य| first = सच्चिदानन्द | title = भारतीय इतिहास कोश | edition = द्वितीय संस्करण-1989| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location =  भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =  हिन्दी| pages = 220 | chapter =}}
पंक्ति 64: पंक्ति 52:
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{मराठा साम्राज्य}}
 
{{मराठा साम्राज्य}}
[[Category:इतिहास कोश]]
+
[[Category:मराठा साम्राज्य]][[Category:जाट-मराठा काल]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:मराठा साम्राज्य]][[Category:जाट-मराठा काल]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

12:57, 3 मार्च 2020 के समय का अवतरण

नाना फड़नवीस
नाना फड़नवीस
जन्म 12 फरवरी 1742 ई.
मृत्यु तिथि 13 मार्च 1800 ई.
प्रसिद्धि नाना फड़नवीस अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध था।
युद्ध 1775 से 1783 ई. तक अंग्रेज़ों के विरुद्ध प्रथम मराठा युद्ध तथा 1784 ई. में नाना फड़नवीस ने मैसूर के शासक टीपू सुल्तान से लोहा लिया था।
शासन काल 1774 ई.-1800 ई.
संबंधित लेख शिवाजी, शाहजी भोंसले, शम्भाजी पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बाजीराव द्वितीय, राजाराम शिवाजी, ग्वालियर, दौलतराव शिन्दे, सालबाई की सन्धि, टीपू सुल्तान, मैसूर युद्ध, आंग्ल-मराठा युद्ध, पानीपत युद्ध
अन्य जानकारी राज्य में विरोधियों के होते हुए भी नाना फड़नवीस अपनी चतुराई से समस्त विरोधों के बावजूद अपनी सत्ता बनाये रखने में सफल रहा। 1775 ई. से 1783 ई. तक उसने अंग्रेज़ों के विरुद्ध प्रथम मराठा युद्ध का संचालन किया। सालबाई की सन्धि से इस युद्ध की समाप्ति हुई थी।

नाना फड़नवीस (अंग्रेज़ी: Nana Fadnavis, जन्म: 12 फरवरी 1742 ई.- मृत्यु: 13 मार्च 1800 ई.) एक मराठा राजनेता थे, जो पानीपत के तृतीय युद्ध के समय पेशवा की सेवा में नियुक्त थे। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध हैंं। 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु हो गई थी। नाना फड़नवीस ने रघुनाथराव (राघोवा) की स्वयं पेशवा बनने की सारी कोशिशें नाकाम कर दी थीं। नाना फड़नवीस का टीपू सुल्तान से भी युद्ध हुआ था। उन्होंने मराठा साम्राज्य की शक्ति को एक छत्र के नीचे एकत्र करने की सफल चेष्टा की। पेशवा शासन के दौरान नाना फड़नवीस मराठा साम्राज्य के प्रभावशाली मंत्री व कूटनीतिज्ञ थे। यूरोपीयों द्वारा उन्हें मराठा मैकियावेली (सुप्रसिद्ध इतालवी कूटनीतिज्ञ निकोलो मैकियावेली पर आधारित नाम) कहा जाता था।

मराठा राज्य का संचालन

नाना फड़नवीस युद्धभूमि से जीवित लौट आया था। इसके बाद 1773 ई. में नारायणराव पेशवा की हत्या करा कर उसके चाचा राघोवा ने जब स्वयं गद्दी हथियाने का प्रयत्न किया, तो उसने उसका विरोध किया। नाना फड़नवीस ने नारायणराव के मरणोपरान्त उत्पन्न पुत्र माधवराव नारायण को 1774 ई. में पेशवा की गद्दी पर बैठाकर राघोवा की चाल विफल कर दी। नाना फड़नवीस ही अल्पवयस्क पेशवा का मुख्यमंत्री बना और 1774 से 1800 ई. में मृत्युपर्यन्त मराठा राज्य का संचालन करता रहा। किन्तु उसकी स्थिति निष्कंटक न थी, क्योंकि अन्य मराठा सरदार, विशेषकर महादजी शिन्दे उसके विरोधी थे।

नाना फड़नवीस की चतुराई

नाना फड़नवीस

राज्य में इतने विरोधी होते हुए भी नाना फड़नवीस अपनी चतुराई से समस्त विरोधों के बावजूद अपनी सत्ता बनाये रखने में सफल रहा। 1775 से 1783 ई. तक उसने अंग्रेज़ों के विरुद्ध प्रथम मराठा युद्ध का संचालन किया। सालबाई की सन्धि से इस युद्ध की समाप्ति हुई थी। उक्त संधि के अनुसार राघोबा को पेंशन दे गई और मराठों को साष्टी के अतिरिक्त अन्य किसी भूभाग से हाथ नहीं धोना पड़ा। 1784 ई. में ही नाना फड़नवीस ने मैसूर के शासक टीपू सुल्तान से लोहा लिया और कुछ ऐसे इलाके पुन: प्राप्त कर लिये, जिन्हें टीपू ने बलपूर्वक अपने अधिकार में कर लिया था। 1789 ई. में टीपू सुल्तान के विरुद्ध उसने अंग्रेज़ों और निज़ाम का साथ दिया तथा तृतीय मैसूर युद्ध में भी भाग लिया। जिसके फलस्वरूप मराठों को टीपू के राज्य का एक भूभाग प्राप्त हुआ।

निष्कंटक राज्य संचालन

1794 ई. में महादजी शिन्दे की मृत्यु हो जाने से नाना फड़नवीस का एक प्रबल प्रतिद्वन्द्वी उठ गया और उसके बाद नाना फड़नवीस ने निर्विरोध मराठा राजनीति का संचालन किया। 1795 ई. में उसने मराठा संघ की सम्मिलित सेनाओं का निज़ाम के विरुद्ध संचालन किया और खर्दा के युद्ध में निज़ाम की पराजय हुई। फलस्वरूप निज़ाम को अपने राज्य के कई महत्त्वपूर्ण भूभाग मराठों को देने पड़े।

मराठा शक्ति का विभाजन

1796 ई. में नाना फड़नवीस के कठोर नियंत्रण से तंग आकर माधवराव नारायण पेशवा ने आत्महत्या कर ली। उपरान्त राघोवा का पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना, जो प्रारम्भ से ही नाना फड़नवीस का प्रबल विरोधी था। इस प्रकार ब्राह्मण पेशवा और उसके ब्राह्मण मुख्यमंत्री में प्रतिद्वन्द्विता चल पड़ी। दोनों में से किसी में भी सैनिक क्षमता नहीं थी, किन्तु दोनों ही राजनीति के चतुर एवं धूर्त खिलाड़ी थे। दोनों के परस्पर षड़यंत्र से मराठों का दो विरोधी शिविरों में विभाजन हो गया, जिससे पेशवा की स्थिति और भी कमज़ोर पड़ गई। इसके बावजूद नाना फड़नवीस आजीवन मराठा संघ को एक सूत्र में आबद्ध रखने में समर्थ रहा।

मृत्यु

13 मार्च, 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु हो गई और इसके साथ ही मराठों की समस्त क्षमता, चतुरता और सूझबूझ का भी अंत हो गया।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 220।

संबंधित लेख