नायिका

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नायिका या अभिनेत्री उस व्यक्ति को कहते है जो किसी नाटक, फ़िल्म (चलचित्र) या अन्य कला की प्रस्तुति में अपने किरदार को निभाए। नायिका ऐसा कार्य करने वाली मादा शख्स को कहते हैं। ऐसा ही कार्य करने वाले पुरुष को नायक या अभिनेता कहते हैं।

रसखान की दृष्टि में 'नायिका'

हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है। रसखान के अनुसार नायिका से अभिप्राय उस स्त्री से है जो यौवन, रूप, कुल, प्रेम, शील, गुण, वैभव और भूषण से सम्पन्न हो। रसखान प्रेमोन्मत्त भक्त कवि थे। उन्होंने अपनी स्वच्छंद भावना के अनुकूल कृष्ण प्रेम का चित्रण अपने काव्य में किया। इसीलिए रसखान का नायिका-भेद वर्णन न तो शास्त्रीय विधि के अनुरूप ही है और न ही किसी क्रम का उसमें ध्यान रखा गया है। कृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम-वर्णन में नायिका-भेद का चित्रण स्वाभाविक रूप से हो गया है।

नायिका भेद

नायिका भेद की परंपरा के दर्शन संस्कृत-साहित्य तथा संस्कृत-काव्य-शास्त्र में होते हैं। नायिकाएं तीन प्रकार की बताई हैं-

  1. स्वकीया
  2. परकीया एवं
  3. सामान्य।

इसके अतिरिक्त भी नायिका के जाति, धर्म, दशा एवं अवस्थानुसार अनेक भेद किए गए हैं।[1] प्रेमोमंग के कवि से नायिका भेद के सागर में गोते लगाकर समस्त भेदोपभेद निरूपण की आशा करना निरर्थक ही होगा, क्योंकि इन्होंने गोपियों के स्वरूप को अधिक महत्त्व न देकर उनकी भावनाओं को ही अधिक महत्त्व दिया है। फिर भी गोपियों के निरूपण में कहीं-कहीं नायिका भेद के दर्शन हो जाते हैं।

परकीया नायिका

जो नायिका पर पुरुष से प्रीति करे, उसे परकीया कहते हैं। रसखान के काव्य में निरूपित गोपियां पर स्त्री हैं। पर पुरुष कृष्ण प्रेम के कारण वे परकीया नायिका कहलाएंगी। रसखान ने अनेक पदों में[2] उनका सुंदर निरूपण किया है। उन्होंने परकीया नायिका के चित्रण में नायिकाओं की लोक लाज तथा अपने कुटुंबियों के भय से उनकी वेदनामयी स्थिति और प्रेमोन्माद का बड़ा ही मर्मस्पर्शी चित्रण किया है-

काल्हि भट् मुरली-धुनि में रसखानि लियो कहुं नाम हमारौ।
ता छिन तैं भई बैरिनि सास कितौ कियौ झांकत देति न द्वारौ।
होत चवाव बलाइ सों आली री जौ भरि आँखिन भेंटियै प्यारो।
बाट परी अबहीं ठिठक्यौ हियरे अटक्यौ पियरे पटवारी॥[3]

परकीया नायिका के भेद

परकीया नायिका के दो भेद माने गए है[4]-

  1. अनूठा और
  2. ऊढ़ा।

रसखान ने ऊढ़ा नायिका का वर्णन किया है। परकीया के अवस्थानुसार छ: भेद होते हैं-

  1. मुदिता,
  2. विदग्धा,
  3. अनुशयना,
  4. गुप्ता,
  5. लक्षिता,
  6. कुलटा।

इनमें से रसखान ने ऊढ़ा मुदिता और विदग्धा का ही चित्रण किया है।

ऊढ़ा

ऊढ़ा वह नायिका है जो अपने पति के अतिरिक्त अन्य किसी पुरुष से प्रेम करे रसखान ने इस पद में ऊढ़ा का वर्णन किया है-

'औचक दृष्टि परे कहूँ कान्ह जू तासों कहै ननदी अनुरागी।
सौ सुनि सास रही मुख मोरि, जिठानी फिरै जिय मैं रिस पागी।
नीके निहारि कै देखै न आँखिन, हों कबहूँ भरि नैन न जागी।
मा पछितावो यहै जु सखी कि कलंक लग्यौ पर अंक न 'लागी।[5]

मुदिता

यह परकीया के अवस्थानुसार भेदों में से एक है। पर-पुरुष-मिलन-विषयक मनोभिलाषा की अकस्मात पूर्ति होते देखकर जो नायिका मुदित होती है उसे मुदिता कहते हैं। रसखान ने भी नायिका की मोदावस्था का सुंदर चित्रण किया है-

'जात हुती जमना जल कौं मनमोहन घेरि लयौ मग आइ कै।
मोद भरयौ लपटाइ लयौ, पट घूंघट टारि दयौ चित चाइ कै।
और कहा रसखानि कहौं मुख चूमत घातन बात बनाइ कै।
कैसें निभै कुलकानि रही हिये साँवरी मूरति की छबि छाइ।[6]

विदग्धा

चतुरतापूर्वक पर पुरुषानुराग का संकेत करने वाली नायिका को विदग्धा कहते हैं। विदग्धा के दो भेद होते हैं-

  1. वचनविदग्धा
  2. क्रियाविदग्धा।
वचनविदग्धा नायिका

जो नायिका वचनां की चतुरता से पर पुरुषानुराग विषयक कार्य को संपन्न करना चाहे उसे 'वचनविदग्धा' कहते हैं। रसखान की गोपियाँ अनेक स्थानों पर वचन चातुर्य से काम लेती हैं-

छीर जौ चाहत चीर गहें अजू लेउ न केतिक छीर अचैहौ।
चाखन के मिस माखन माँगत खाउ न माखन केतिक खैहौ।
जानति हौं जिय की रसखानि सु काहे कौं एतिक बात बढ़ैहौ।
गोरस के मिस जो रस चाहत सो रस कान्हजू नेकु न पैहौ।[7]

यहाँ गोपियों ने वचनविदग्धता द्वारा अपनी इच्छा का स्पष्टीकरण कर दिया है।

क्रियाविदग्धा

जो नायिका क्रिया की चतुरता से पर-पुरुषानुराग विषयक कार्य को सम्पन्न करना चाहे, उसे क्रियाविदग्धा कहते हैं। रसखान ने निम्नलिखित पद में क्रिया विदग्धा नायिका का सुंदर चित्रण किया है-

खेलै अलीजन के गन मैं उत प्रीतम प्यारे सौं नेह नवीनो।
बैननि बोध करै इत कौं, उत सैननि मोहन को मन लीनो।
नैननि की चलिबी कछु जानि सखी रसखानि चितैवे कों कीनो।
जा लखि पाइ जँभाई गई चुटकी चटकाइ बिदा करि दीनो।[8]

दशानुसार नायिकाएँ

नायिका के दशानुसार तीन भेद होते हैं-

  1. गर्विता
  2. अन्य संभोग दु:खिता
  3. मानवती में से रसखान के काव्य में अन्य संभोग दु:खिता तथा मानवती नायिका का चित्रण मिलता है।
अन्य संभोग दुखिता

अन्य स्त्री के तन पर अपने प्रियतम के प्रीति-चिह्न देख कर दु:खित होने वाली नायिका को 'अन्य संभोग दु:खित' कहते हैं रसखान ने भी अन्य संभोग दु:खिता नारी का चित्रण किया है।

काह कहूँ सजनी सँग की रजनी नित बीतै मुकुंद कों हेरी।
आवन रोज़ कहैं मनभावन आवन की न कबौं करी फेरी।
सौतिन-भाग बढ्यौ ब्रज मैं जिन लूटत हैं निसि रंग घनेरी।
मो रसखानि लिखी बिधना मन मारि कै आपु बनी हौं अँहेरी॥[9]

मानवती

अपने प्रियतम को अन्य स्त्री की ओर आकर्षित जानकर ईर्ष्यापूर्वक मान करने वाली नायिका मानवती कहलाती है। रसखान ने मानिनी नायिका का चित्रण तीन पदों में किया है। दूती नायिका को समझा रही है कि मेरे कहने से तू मान को त्याग दे। तुझे बसंत में मान करना किसने सिखा दिया।[10] अगले पद्य में वह कृष्ण की सुंदरता एवं गुणों का बखान करके अंत में कहती है कि तुझे कुछ नहीं लगता। न जाने किसने तेरी मति छीनी है।[11] पुन: नायिका को समझाती हुई कहती है कि मान की अवधि तो आधी घड़ी है, तू मान त्याग दे-

मान की औधि है आधि घरी अरी जौ रसखानि डरै हित के डर,
कै हित छोड़ियै पारियै पाइनि ऐसे कटाछनहीं हियरा-हर।
मोहनलाल कों हाल बिलोकियै नेकु कछू किनि छूबेकर सौं कर,
नां करिबे पर वारे हैं प्रान कहा करिहैं अब हां करिबे पर।[12]

रसखान ने मानिनी नायिका के मान का स्वाभाविक चित्रण किया है। नायिका को समझाया जा रहा है कि तू किसी प्रकार मान त्याग दे।

अवस्थानुसार नायिकाएं

अवस्थानुसार नायिका के दस भेद माने गए हैं जिनमें से दो की चर्चा रसखान ने की है-

  1. आगतपतिका
  2. प्रोषितपतिका।
आगतपतिका

अपने प्रियतम के आगमन पर प्रसन्न होने वाली नायिका 'आगतपतिका' कहलाती है। रसखान ने आगतपतिका नायिका का चित्रण बहुत ही सुंदर तथा भावपूर्ण ढंग से किया है-

नाह-बियोग बढ्यौ रसखानि मलीन महा दुति देह तिया की।
पंकज सों मुख गौ मुरझाई लगीं लपटैं बरि स्वांस हिया की।
ऐसे में आवत कान्ह सुने हुलसैं तरकीं जु तनी अंगिया की।
यौ जगाजोति उठी अंग की उसकाइ दई मनौ बाती दिया की।[13]

नायिका विरह-पीड़ित है किन्तु कृष्ण के आगमन से उसकी पीड़ा समाप्त हो जाती है और उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता। जैसे दीपक की बत्ती बढ़ाने से प्रकाश बढ़ जाता है वैसे ही प्रिय के आगमन से नायिका का शरीर प्रफुल्लित हो उठता है।

प्रोषितपतिका

प्रियतम के वियोग से दु:खित विरहिणी नायिका को प्रोषितपतिका कहते हैं। रसखान के काव्य में प्रोषितपतिका नायिका के अनेक उदाहरण मिलते हैं-

उनहीं के सनेहन सानी रहैं उनहीं के जु नेह दिवानी रहैं।
उनहीं की सुनैं न औ बैन त्यौं सैन सों चैन अनेकन ठानी रहैं।
उनहीं सँग डोलन मैं रसखानि सबै सुख सिंधु अघानी रहैं।
उनहीं बिन ज्यौं जलहीन ह्वै मीन सी आँखि मेरी अँसुवानी रहैं।[14]

निम्न पद में परकीया मध्या प्रोषितपतिका का चित्रण किया गया है-

औचक दृष्टि परे कहूँ कान्ह जू तासों कहै ननदी अनुरागी।
सो सुनि सास रही मुख मोरि, जिठानी फिरै जिय मैं रिस पागी।
नीकें निहारि कै देखे न आंखिन, हों कबहूँ भरि नैन न जागी।
मो पछितावो यहै जु सखी कि कलंक लग्यौ पर अंक न लागी॥[15]

रसखान के काव्य में प्रोषितपतिका नायिका का निरूपण कई स्थानों पर मिलता है।

वय
क्रम से नायिका

वय:क्रम से नायिका के तीन भेद माने गए हैं-

  1. मुग्धा,
  2. मध्या,
  3. प्रौढ़ा।

रसखान ने मुग्धा नायिका का वर्णन किया है।

मुग्धा

जिसके शरीर पर नव यौवन का संचार हो रहा हो, ऐसी लज्जाशीला किशोरी को 'मुग्धा नायिका' कहते हैं। रसखान ने मुग्धा नायिका की वय:संधि अवस्था का सुंदर चित्र खींचा है-

बांकी मरोर गही भृकुटीन लगीं अँखियाँ तिरछानि तिया की।
टांक सी लांक भई रसखानि सुदामिनि ते दुति दूनी हिया की।
सोहैं तरंग अनंग की अंगनि ओप उरोज उठी छतिया की।
जोबन-जोति सु यौं दमकै उसकाई दई मनो बाती दिया की।[16]

जिस प्रकार कृष्ण काव्य में परकीया नायिकाओं को विशेष गौरव दिया गया है, उसी प्रकार रसखान ने भी परकीया वर्णन को महत्त्व दिया। इसके तीन प्रधान की सफलता के लिए भावों का मार्मिक चित्रण आवश्यक है।

  1. रति भाव की जितनी अधिक मार्मिकता और तल्लीनता परकीया प्रेम में संभव है उतनी स्वकीया प्रेम में नहीं।
  2. दूसरा कारण यह है कि परकीया प्रेम का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। उसमें प्रेम के विभिन्न रूपों और परिस्थितियों के वर्णन का अवकाश रहता है। इस प्रकार कवि को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का असीम अवसर मिलता है।
  3. तीसरा कारण है लीलावतारी कृष्ण का मधुर रूप। कृष्ण परब्रह्म परमेश्वर है और गोपियां जीवात्माएं हैं। अनंत जीवात्माओं के प्रतीक रूप में अनंत गोपियों का चित्रण अनिवार्य था। अतएव कृष्ण भक्त श्रृंगारी कवियों ने सभी गोपियों के प्रति कृष्ण (भगवान) के स्नेह की और कृष्ण के प्रति सभी गोपियों के उत्कट अनुराग की व्यंजना के लिए परकीया-प्रेम का विधान किया। यहाँ तक कि उनके काव्य में स्वकीया का कहीं भी चित्रण नहीं हुआ। परकीया नायिका निरूपण के अंतर्गत रसखान ने ऊढ़ा मुदिता, क्रियाविदग्धा, वचनविदग्धा अन्यसंभोगदु:खिता, मानवती, आगतपतिका, प्रोषितपतिका एवं मुग्धा आदि नायिकाओं का चित्रण किया है। रसखान का उद्देश्य नायिका-भेद निरूपण करना नहीं था अतएव उन्होंने गोपियों के संबंध से कृष्ण का वर्णन करते हुए प्रसंगानुसार नायिकाओं के बाह्य रूप एवं उनकी अंतर्वृत्तियों का चित्रण किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जाति के अनुसार नायिका के चार भेद किए गए हैं-
    1. पदमिनी,
    2. चित्रिणी,
    3. शंखिनी,
    4. हस्तिनी।
    • धर्म के अनुसार तीन प्रकार की नायिकाएँ मानी गई हैं-
    1. गर्विता,
    2. अन्य संभोग दु:खिता,
    3. मानवती।
    • अवस्था के अनुसार नायिका के दस भेद किए गए हैं-
    1. स्वाधीनपतिका,
    2. वासकसज्जा,
    3. उत्कंठिता,
    4. अभिसारिका,
    5. विप्रलब्धा,
    6. खंडिता,
    7. कलहांतरिता,
    8. प्रवत्स्यत्प्रेयसी,
    9. प्रोषितपतिका,
    10. आगतपतिका। - ब्रजभाषा साहित्य में नायिका भेद, पृ0 219
  2. सुजान रसखान, 203, 139, 178, 74, 81, 126
  3. सुजान रसखान, 99
  4. साहित्य-दर्पण पृ0 166
  5. सुजान रसखान, 138
  6. सुजान रसखान, 36
  7. सुजान रसखान, 42
  8. सुजान रसखान, 116
  9. सुजान रसखान, 106
  10. सुजान रसखान, 113
  11. सुजान रसखान, 114
  12. सुजान रसखान, 115
  13. सुजान रसखान, 117
  14. सुजान रसखान, 74
  15. सुजान रसखान, 138
  16. सुजान रसखान, 51

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