नेटाल भारतीय कांग्रेस

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नेटाल भारतीय कांग्रेस
लंदन स्थित महात्मा गाँधी जी की कांस्य मूर्ति
विवरण 'नेटाल भारतीय कांग्रेस' महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित एक संगठन था, जिसकी स्थापना उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका में की थी।
स्थापना तिथि 22 अगस्त, 1894
संस्थापक महात्मा गाँधी
देश दक्षिण अफ़्रीका
विशेष इस सामान्य राजनीतिक संगठन के माध्यम से महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ़्रीका के बहुजातीय भारतीय समुदाय में एकता की भावना भर दी।
अन्य जानकारी एक प्रचारक के रूप में गाँधी जी की सफलता का प्रमाण यह था कि लंदन के 'द टाइम्स' और कलकत्ता के 'स्टेट्समैन' तथा 'इंग्लिशमैन' जैसे अख़बारों के संपादकीय में भी नेटाल के भारतीयों के कष्टों पर टिप्पणियाँ लिखी गईं।

नेटाल भारतीय कांग्रेस की स्थापना राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा 22 अगस्त, 1894 ई. में की गई थी। सन 1893 ई. में एक भारतीय फर्म के लिये केस लड़ने महात्मा गाँधी दक्षिण अफ़्रीका गए थे। वहाँ उन्हें सभी प्रकार के रंगभेद का सामना करना पड़ा। गाँधी जी नागरिक अधिकारों का उल्लघंन, नस्लीय भेदभाव और पुलिस क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध व्यक्त करने के लिए भारतीय समुदाय को संगठित करने का प्रयास करने लगे। इसके लिए उन्होंने वहीं रहकर समाज कार्य तथा वकालत करने का निर्णय लिया और 'नेटाल भारतीय कांग्रेस' की स्थापना की।

स्थापना

महात्मा गाँधी ने अनुभव किया कि सबसे पहली आवश्यकता तो इस बात की है कि दक्षिण अफ़्रीका के भारतीयों के हितों की रक्षा करने वाला एक स्थायी संगठन तुरन्त बनाया जाना चाहिए। उन्होंने नेटाल की विधायिका और ब्रिटिश सरकार के नाम याचिकाएँ लिखीं और उन पर सैकड़ों भारतीयों के हस्ताक्षर कराए। वह विधेयक को तो नहीं रोक सके, लेकिन नेटाल में रहने वाले भारतीयों के कष्टों की ओर नेटाल, भारत और इंग्लैंड के अख़बारों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे। उन्हें डरबन में रहकर वकालत करने और भारतीय समुदाय का एकजुट करने के लिए राज़ी कर लिया गया। 1894 में उन्होंने 'नेटाल इंडियन कांग्रेस' की स्थापना की और उसके सक्रिय सचिव बन गए।

गाँधी जी नेटाल इंडियन कांग्रेस को अपनी प्रतिभा से वहां के भारतीयों की आवश्यकताओं के अनुरूप एक जीवंत संगठन बना सके, जो पूरे साल कार्यशील रहता और जिसका उद्देश्य केवल राजनीतिक चौकसी न होकर सदस्यों का सामाजिक और नैतिक उत्थान भी था।

गाँधीजी की प्रयत्नशीलता

जिनके हितों के लिए यह संगठन बना था, उनका राजनैतिक अनुभव और ज्ञान नहीं के बराबर था; फिर भी उस संस्था पर किसी व्यक्ति विशेष की इजारेदारी नहीं थी। उसके अथक परिश्रमी सचिव महात्मा गाँधी हर कदम पर सभी का सक्रिय सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहे। इससे काम में सार्वजनिक उत्साह और रुचि बराबर बनी रही। सदस्य बनाने और चंदा जमा करने जैसे साधारण कार्य को भी उन्होंने महत्व दे रखा था। आधे मन से सहयोग देने वालों के साथ वह नैतिक दबाव का विनम्र ढंग अपनाते थे। एक बार एक छोटे कस्बे के भारतीय व्यापारी के घर पर वह सारी रात भूखे बैठे रहे, क्योंकि व्यापारी नेटाल कांग्रेस का अपना चन्दा नहीं बढ़ा रहा था। आखिर सबेरा होते-होते उन्होंने उसे अपना चन्दा तीन से बढ़ाकर छः पौण्ड कर देने को राजी कर ही लिया।[1]

भारतीय समुदाय में एकता का संचार

इस सामान्य राजनीतिक संगठन के माध्यम से महात्मा गाँधी ने बहुजातीय भारतीय समुदाय में एकता की भावना भर दी। उन्होंने सरकार विधायिका और प्रेस में भारतीयों के कष्टों से सम्बन्धित तर्कपूर्ण वक्तव्यों की झड़ी लगा दी। अन्ततः उन्होंने महारानी विक्टोरिया की भारतीय प्रजा के साथ उनके ही अफ़्रीका स्थित उपनिवेश में किए जा रहे भेदभाव को दुनिया के सामने उजागर करके साम्राज्य की पोल खोल दी। एक प्रचारक के रूप में उनकी सफलता का प्रमाण यह था कि लंदन के 'द टाइम्स' और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के 'स्टेट्समैन' तथा 'इंग्लिशमैन' जैसे अख़बारों के संपादकीय में भी नेटाल के भारतीयों के कष्टों पर टिप्पणियाँ लिखी गईं।

यह महात्मा गाँधी का दुर्भाग्य था कि उनकी गतिविधियों और वक्तव्यों की ऊटपटांग ख़बरें नेटाल पहुँची और वहाँ की यूरोपीय जनता बिगड़ उठी। जनवरी, 1897 में डरबन पहुँचने पर उग्र गोरों की भीड़ ने उन पर प्राण घातक हमला कर दिया। ब्रिटिश मंत्रिमंडल में औपनिवेशिक सचिव जोज़फ़ चेंबरलेन ने नेटाल सरकार को तार भेजकर दोषी व्यक्तियों को गिरफ़्तार करने को कहा, लेकिन गांधी जी ने हमलावरों पर मुक़दमा करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि "यह उनका सिद्धांत है कि व्यक्तिगत क्षति को क़ानूनी अदालत में न ले जाया जाए"।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युवा राजनीतिज्ञ (हिन्दी) हिन्दी.एम.के.गाँधी। अभिगमन तिथि: 10 फरवरी, 2014।

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