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==पंचसंग्रहटीका / Panchsangrah Teeka==
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'''पंचसंग्रहटीका / Panchsangrah Teeka'''<br />
 
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मूल पंचसंग्रह नामक यह मूलग्रन्थ [[प्राकृत]] भाषा में है। इस पर तीन [[संस्कृत]]-टीकाएँ हैं।  
 
मूल पंचसंग्रह नामक यह मूलग्रन्थ [[प्राकृत]] भाषा में है। इस पर तीन [[संस्कृत]]-टीकाएँ हैं।  

08:18, 22 अप्रैल 2010 का अवतरण

पंचसंग्रहटीका / Panchsangrah Teeka

मूल पंचसंग्रह नामक यह मूलग्रन्थ प्राकृत भाषा में है। इस पर तीन संस्कृत-टीकाएँ हैं।

  1. श्रीपालसुत डड्ढा विरचित पंचसंग्रह टीका,
  2. आचार्य अमितगति रचित संस्कृत-पंचसंग्रह,
  3. सुमतकीर्तिकृत संस्कृत-पंचसंग्रह।
  • पहली टीका दिगम्बर प्राकृत पंचसंग्रह का संस्कृत-अनुष्टुपों में परिवर्तित रूप है। इसकी श्लोक संख्या 1243 है। कहीं कहीं कुछ गद्यभाग भी पाया जाता है, जो लगभग 700 श्लोक प्रमाण है। इस तरह यह लगभग 2000 श्लोक प्रमाण है। यह 5 प्रकरणों का संग्रह है। वे 5 प्रकरण निम्न प्रकार हैं-
  1. जीवसमास,
  2. प्रकृतिसमुत्कीर्तन,
  3. कर्मस्तव,
  4. शतक और
  5. सप्ततिका।
  • इसी तरह अन्य दोनों संस्कृत टीकाओं में भी समान वर्णन है।
  • विशेष यह है कि आचार्य अमितगति कृत पंचसंग्रह का परिमाण लगभग 2500 श्लोक प्रमाण है। तथा सुमतकीर्ति कृत पंचसंग्रह अति सरल व स्पष्ट है।
  • इस तरह ये तीनों टीकाएँ संस्कृत में लिखी गई हैं और समान होने पर भी उनमें अपनी अपनी विशेषताएँ पाई जाती हैं।
  • कर्म साहित्य के विशेषज्ञों को इन टीकाओं का भी अध्ययन करना चाहिए।

कर्म-प्रकृति

यह अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की एक लघु किन्तु महत्वपूर्ण, प्रवाहमय शैलीयुक्त संस्कृत गद्य में लिखी गई कृति है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि जैन मनीषियों ने प्राकृत भाषा में ग्रथित सिद्धान्तों को संस्कृत भाषा में विवेचित किया और उसके प्रति हार्दिक अनुराग व्यक्त किया है।

कर्म-विपाक

इसके कर्ता सकलकीर्ति (14वीं शताब्दी) ने कर्मों के अनुकूल-प्रतिकूल आदि फलोदय का इसमें संस्कृत में अच्छा विवेचन किया है। ==सिद्धान्तसार-भाष्य आचार्य जिनचन्द्र रचित प्राकृतभाषाबद्ध सिद्धान्तसार नामक मूलग्रन्थ आचार्य पर ज्ञानभूषण ने संस्कृत में यह व्याख्या लिखी है। इसे भाष्य के नाम से उल्लेखित किया गया है। इस व्याख्या में 14 वर्गणाओं, 14 जीवसमासों आदि का कथन किया गया है। इसकी संस्कृत अत्यन्त सरल और विशद है।

कर्म-प्रकृति-भाष्य

कर्मप्रकृति एक प्राकृत भाषा में निबद्ध नेमिचन्द्र सैद्धांतिक की रचना है। इसमें कुल 162 गाथाएँ हैं। ये गाथाएँ ग्रन्थकार ने गोम्मटसार कर्मकाण्ड से संकलित की हैं। इसमें प्रकृति समुत्कीर्तन, स्थितिबंध अधिकार, अनुभाग बंधाधिकार और प्रत्ययाधिकार ये 4 प्रकरण हैं इन चारों प्रकरणों के नामानुसार उनका इसमें संकलनकार ने वर्णन किया है। इस पर भट्टारक ज्ञानभूषण एवं सुमतिकीर्ति ने संस्कृत में व्याख्या लिखी है और उसे कर्मप्रकृतिभाष्य नाम दिया है। ध्यातव्य है कि भट्टारक ज्ञानभूषण सुमतिकीर्ति के गुरु थे और सुमतिकीर्ति उनके शिष्य। यह टीका सरल संस्कृत में रचित है इसका रचनाकाल वि0 सं0 16वीं शती का चरमचरण तथा 17वीं का प्रथम चरण है। इन्हीं ने पूर्वोक्त सिद्धान्तसार-भाष्य भी रचा था। साँचा:जैन दर्शन