पहाड़ी जाति

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  • पहाड़ी, ख़ासा या छेत्री कहलाने वाले, मिश्रित उद्गम के लोग हैं, जो नेपाल की आबादी का 3/5 तथा पड़ोसी हिमालय भारत, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तरांचल की बहुसंख्यक आबादी हैं। ये भारोपीय परिवार की भारतीय-आर्य शाख से संबंधित भाषाएं बोलते हैं; ऐतिहासिक रूप से लोग प्राचीन उत्पत्ति के हैं। इनके बारे में प्लिनी तथा हेरोडोटस जैसे लेखक ने लिखा है और महाकाव्य महाभारत में भी इनका ज़िक्र है।
  • 20वीं सदी के अंत में इनकी संख्या अनुमानत: लगभग दो करोड़ थी।
  • अधिकांश पहाड़ी हिन्दू हैं, लेकिन इनकी जातीय संरचना मैदानी लोगों की अपेक्षा कम रूढ़िवादी तथा कम जटिल है। आमतौर पर इनका उच्च 'शुध्द' या 'द्विज' जाति 'खासिया' या 'का' और निम्न 'अशुध्द' या 'अपवित्र' जाति 'डोम' के रूप में वर्गीकरण किया जाता है।
  • अधिकांश उच्च जाति वाले पहाड़ी कृषक है; डोम विभिन्न व्यवसायों में संलग्न होते हैं तथा ये सुनार, चर्मकार, दर्जी, संगीतकार, ढोलकिया तथा सफ़ाईकर्मी हो सकते हैं।
  • इस जाति में बहुपति प्रथा बहुतायत में दिखाई देती है, विशेषकर, कई भाई एक या अधिक पत्नियों की हिस्सेदारी करते हैं।
  • अन्य वैवाहिक व्यवस्थाएं निश्चित ही अधिक सामान्य हैं; कुछ परिवारों में पति पत्नी की संख्या बराबर होती है; कुछ में, एक पति की कई पत्नियां होती हैं; और कुछ परिवारों में केवल एक की पति तथा एक ही पत्नी होते हैं। अधिकांश लड़कियों की शादी 10 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पूर्व ही हो जाती है। हालांकि परिपक्व होने तक वे अपने पतियों के साथ सहवास नहीं करती हैं।
  • महिलाओं के लिए लैंगिक व्यवहार का दोहरा मापदंड है, जिनहें अपने पतियों के साथ रहते हुए उनके लिए निष्ठावान होना चाहिये। तथापि जब कोई विवाहिक महिला अपने अभिभावकों से मिलने घर जाती है, उसे अविवाहित लड़की की तरह ही आज़ादी मिलती है।
  • पहाड़ी लोग कृषक होते हैं। और पहाड़ी भूमि पर सीढ़ीदार खेती करते हैं । इनकी मुखय फ़सलें आलू तथा चावल हैं, अन्य फ़सलों में गेहूँ, जौ, प्याज, टमाटर, तंबाकू और विभिन्न सब्जियाँ शामिल हैं। वे भेड़, बकरियां तथा मवेशी भी पालते हैं। सभी लोग ऊन की कताई करते हैं जबकि बुनाई निम्न जाति के लोग करते हैं।

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