पह्लव

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  • पह्लव ईरानी क़बीला था।
  • सिकन्दर के समय इसका विवरण मिलता है।
  • महाभारत में पह्ल्वों का उल्लेख किया गया है।
  • ई. 20 में गोन्दोफ़ैरस ने साम्राज्य का प्रारम्भ किया। इसे 'हिन्दी-पार्थियन' राज्य कहा गया है। बाद में कुषाणों द्वारा वापस ले लिया गया।
  • ई. पू. पहली शती के अन्त में पर्थियन नामों वाले कुछ शासक उत्तर पश्चिम भारत पर शासन कर रहे थे, जिन्हें भारतीय स्रोतों में पहलव कहा गया है। पार्थिया ने भी बैक्ट्रिया के साथ ही स्वयं को यूनानी शासन से स्वतंत्र किया था और सेल्यूकस वंशीय शासक एण्टियोकस तृतीय को इसकी स्वतंत्रता को भी मान्यता देनी पड़ी थी।
  • पहलव शक्ति का वास्तविक संस्थापक 'मिथ्रेडेट्स प्रथम' था जो 'यूक्रेटाइड्स' का समकालीन था। सीस्तान, कंधार, काबुल में प्राप्त कई सिक्कों से, चीनी एवं रोमन साहित्य में इस सूचना कि पुष्टि होती है कि इस पर बैक्ट्रिया के बाद पहलवों ने राज्य किया और लगभग ईस्वीं की पहली शती के मध्य तक इनकी शक्ति का इस प्रदेश में काफ़ी बोलबाला था।
  • सिक्कों में ऐसे कई शासकों के नाम हैं जो पार्थियन हैं, ये सम्भवतः पहले पार्थियन शासकों के गवर्नर थे। भारत में पहला पार्थियन शासक 'माउस' है (ई. पू. 90 से ई. पू. 70)।
  • स्वात की घाटी तथा गंधार प्रदेशों में प्राप्त सिक्कों में इसका नाम खरोष्ठी लिपि में 'मोय' और यूनानी लिपि में 'माउस' लिखा है। सबसे शक्तिशाली पहलव शासक गोंडोफ़र्निस (गुन्दफ़र्न) था (20 - 41 ई.)।
  • खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण तख्तेबही अभिलेख में इसे 'गुदुव्हर' कहा गया है। फ़ारसी में इसका नाम 'विन्दफ़र्ण' है जिसका अर्थ है यश विजयी। उसने पार्थिया के साम्राज्य के पूर्वी ईरान आदि प्रदेशों को और यूनानी राजा हर्मियस से उत्तरी काबुल की घाटी को जीता।
  • तख्तेबही अभिलेख से, पेशावर ज़िले पर उसका अधिकार होना स्पष्ट है।
  • पहलव साम्राज्य का अन्त 'कुषाणों' के द्वारा हुआ, यह बात दो अभिलेखों से स्पष्ट होती है। हज़ारा ज़िले के 'पंजतर अभिलेख' (65 ई.) में 'महाराज कुषाण' का राज्य लिखा है।
  • 79 ई. के 'तक्षशिला अभिलेख' में राजा के लिए 'महाराज राजाधिराज देवपुत्र कुषाण' लिखा है।


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