"पुनर्जन्म" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी आत्मा उसमे स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replacement - "किस्सा" to "क़िस्सा ")
 
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 43 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी आत्मा उसमे से बाहर निकल जाती है और इस ज़िन्दगी के कर्मो के अनुसार उसको दूसरा शरीर मिलता है। अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में इस बात के लिए अलग-अलग सोच है। कुछ वैज्ञानिक इसे धार्मिक अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं। यह एक रहस्य ही है कि मृत्यु के बाद कोई जीवन है क्या? भारत में पुनर्जन्म के बारे में बहुत प्राचीन काल से चर्चा चलती आ रहीं हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्मं के ग्रंथों में इनका उल्लेख पाया जाता है। यह माना जाता है कि आत्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपडे बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है। मनुष्य को अगले जन्म अच्छी या खराब जगह जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप कि वजह से मिलता है। पश्चिमी देशों में भी कुछ जगहों पर इन धारणाओं को माना जाता है। प्रसिद्द दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। क्रिशचैनिती, इस्लाम में इसे मान्यता नहीं है परन्तु कुछ इसे व्यक्तिगत विचारों के लिए छोड़ देते है। वैज्ञानिकों में शुरू में इस विषय पर बहुत बहस हुई, कुछ ने इसके पक्ष में दलीलें दीं तो कुछ ने उन्हें झूठा साबित करने कि कोशिश की, कुछ विज्ञानिकों ने कहा यदि यह सच है तो लोग अपने पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रखते ? ऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिलता है जिससे आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाते हुए साबित किया जा सके इसलिए इसे कानूनी मान्यता भी नहीं प्राप्त है। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और कुछ मनोविज्ञानिक पुनर्जन्म को मानकर, इसी आधार पर इलाज कर रहे है। <br>
+
{{विपरीत मानक2}}
पुनर्जन्म का अर्थ है पुन: नवीन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन: नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। मोक्ष को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्य आदि नामों से भी जानते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है। <br>
+
[[चित्र:reincar1.jpg|250px|right|पुनर्जन्म]]
प्रामाणिकता हिंदूओं में अत्यंत प्रचलित एवं प्रसिद्ध अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म की मान्यता को सत्य बताया है। गीताकार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मेरे बहुत से जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी। मैं उन्हें जानता हूं लेकिन तुम नहीं जानते। एक स्थान पर ईसा मसीह ने कहा है कि मैं इब्राहीम से पहले भी था। अमर आत्माइस प्रकार हम देखते हैं कि एक ही आत्मा अलग-अलग शरीरों मे जन्म ग्रहण करता है। <br>
+
आज देश ही नहीं, बल्कि विश्व के कई वैज्ञानिक बड़ी उलझन में हैं। वहीं बहुत सारी धार्मिक मान्यताओं में से एक मान्यता अब वैज्ञानिक आधार प्राप्त करने लगी है। ये धार्मिक मान्यता है, पुनर्जन्म की। वैज्ञानिक अब तक इसे पूरी तरह से नकार रहे थे, इसके लिए उनके पास तमाम दावे भी थे। पर अब वे आशंकित नजर आ रहे हैं, क्योंकि अपने ही पुराने आधारों के कारण वे पुनर्जन्म को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है, वही नई वैज्ञानिक शोधो को वे नकार नहीं पा रहे हैं, इसलिए वे इस पर कुछ बोलना भी नहीं चाहते। दूसरी ओर पुनर्जन्म की मान्यता को कई वैज्ञानिक अपना समर्थन दे रहे हैं। इससे उनकी उलझन और बढ़ गई है।
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है।
+
==पौराणिक मान्यता==
पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण '''ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत''' है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है। भौतिक ऊर्जा और आत्म ऊर्जा में फर्क इतना ही है कि आत्म ऊर्जा चेतना युक्त होती है जबकि भौतिक ऊर्जा चेतना से रहित होती है। कर्मफल एवं जन्म-मरण का चक्र पुनर्जन्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा अपनी आवश्यकता के अनुसार एक नया शरीर धारण करना। हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है। किसी कारण, आवश्यकता या परिस्थिति के अनुसार यह आत्मा शरीर को छोड़कर मुक्त हो जाता है। एक निर्धारित समय तक मुक्त रहने के पश्चात आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त करता है। जब तक कि समस्त पिछले कर्मों एवं संस्कारों का पूर्णत: समापन नहीं हो जाता, आत्मा को जन्म मृत्यु के चक्र में घूमना पड़ता है। <br>
+
एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी [[आत्मा]] उसमे से बाहर निकल जाती है और इस ज़िन्दगी के कर्मो के अनुसार उसको दूसरा शरीर मिलता है। अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में इस बात के लिए अलग-अलग सोच है। कुछ वैज्ञानिक इसे धार्मिक अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं। यह एक रहस्य ही है कि मृत्यु के बाद कोई जीवन है क्या ? [[भारत]] में पुनर्जन्म के बारे में बहुत प्राचीन काल से चर्चा चलती आ रहीं हैं। [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]], [[जैन]], [[बौद्ध धर्म]] के ग्रंथों में इनका उल्लेख पाया जाता है। यह माना जाता है कि आत्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपड़े बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है। मनुष्य को अगले जन्म अच्छी या ख़राब जगह जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप कि वजह से मिलता है। पश्चिमी देशों में भी कुछ जगहों पर इन धारणाओं को माना जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक [[सुकरात]], [[प्लेटो]] और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। '''क्रिशचैनिती, इस्लाम''' में इसे मान्यता नहीं है परन्तु कुछ इसे व्यक्तिगत विचारों के लिए छोड़ देते है। वैज्ञानिकों में शुरू में इस विषय पर बहुत बहस हुई, कुछ ने इसके पक्ष में दलीलें दीं तो कुछ ने उन्हें झूठा साबित करने कि कोशिश की, कुछ विज्ञानिकों ने कहा यदि यह सच है तो लोग अपने पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रखते? ऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिलता है जिससे आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाते हुए साबित किया जा सके, इसलिए इसे क़ानूनी मान्यता भी नहीं प्राप्त है। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और कुछ मनोविज्ञानिक पुनर्जन्म को मानकर, इसी आधार पर इलाज कर रहे है।  
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्थ्सा में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारत हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे। प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना ओर अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है? <br>
 
डॉ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनः प्रकटन आज भी एक पहेली है। बेरूत में एक छोटे से लड़के ने अपने इक्कीस साल के मैकेनिक होने की बात कही। उसने बताया की उसकी मौत एक बीच रोड पर तेजी से आती कार की टक्कर से हुई थी। बहुत सारे लोगों के सामने उसने ड्राईवर का नाम, एक्सीडेंट की जगह, मैकेनिक के मातापिता का नाम, उसके चचेरे भाई-बहनों और दोस्तों के बारे में बताया। लोगों ने उसकी बताई बातों की विस्तार से खोजबीन की और पाया कि सूक्ष्मतम विवरण सही हैं जबकि वह मैकेनिक उस लड़के के पैदा होने के कई साल पहले ही मर गया था। वैज्ञानिक स्टीवन्सन ने इस घटना का गहराई से अध्ययन किया। उसने लड़के की बातचीत से लेकर अन्य सभी बातों के सिलसिलेवार दस्तावेज बनाये। उसने लड़के के जन्म चिन्ह, घावों और कटने के निशान इत्यादि को मृतक के रिकॉर्ड से मिलाया और पाया की वे एकदम एक से है। उस वैज्ञानिक ने चालीस साल तक ऐसी ही घटनाओं का अध्ययन किया और उन पर किताब भी लिखी। <br>
 
डॉ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है। श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली उक्त महिला का जब कोई भी डॉक्टर इलाज नहीं कर सका। तब थककर वे मनोचिकित्सक के पास गई। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई  कई, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है? <br>
 
सम्पूर्ण विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों एवं समाजों में पुनर्जन्म के सिद्धांतों किसी न किसी रुप में मान्यता प्राप्त है। अंततः इस कम्प्युटर युग में भी यह स्पष्ट है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत विज्ञान सम्मत है। आधुनिक तकनीकी शब्दावली में पुनर्जन्म के सिद्धांत को इस तरह समझ सकते हैं। आत्मा का अदृश्य कम्प्युटर है और शरीर एक रोबोट है। हम कर्मों के माध्यम से कम्प्युटर में जैसा प्रोग्राम फीड करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। कम्प्युटर पुराना रोबोट खराब को जाने पर अपने कर्मों के हिसाब से नया रोबोट बना लेता है। पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रक्ष खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। संस्कारों की नदी में बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है। <br>
 
वैज्ञानिक आधार पुनर्जन्म की पूर्णत: वैज्ञानिक मान्यता के प्रति कुछ लोगों के मन में संदेह होता है। कुछ तो इस मान्यता को पूर्णत: काल्पनिक एवं अवास्तविक मानते हैं। उनका कहना है कि यदि पहले भी हमारे जन्म हो चुके हैं तो हमें उनकी याद क्यों नहीं है। संदेह रखने वालों को सोचना चाहिए कि मनुष्य इसी जन्म की तमाम बातों, घटनाओं एवं विचारों से इतना अशांत एवं तनावग्रस्त हो जाता है कि यदि पूर्व जन्मों की बातें भी याद रहे तो वह पागल ही हो जाए। यह प्रकृति की मनुष्य पर असीम कृपा एवं करुणा ही है कि वह पिछले जन्मों की सारी घटनाएं भुला देती है। यदि पिछले सभी जन्मों की सारी घटनाएं हूबहू याद रहे तो मनुष्य अपना मानसिक संतुलन बनाए नहीं रख सकता। यही कारण है कि प्रकृति मनुष्य को पिछली घटनाओं और और दुखों को भुलाकर एक नई आशाभरी शुरुआत करने का अवसर प्रदान करती है। <br>
 
  
{{प्रचार}}
+
'''पुनर्जन्म (Reincarnation)''' का अर्थ है पुन: नवीन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन: नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। '''मोक्ष को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्य''' आदि नामों से भी जानते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक '''जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु''' का क्रम लगातार चलता रहता है। <br>
{{लेख प्रगति
+
[[चित्र:vishnu_reincarnation.jpg|250px|right|पुनर्जन्म]]
|आधार=आधार1
+
 
|प्रारम्भिक=
+
*हिन्दुओं में अत्यंत प्रचलित एवं प्रसिद्ध अवतार भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने पुनर्जन्म की मान्यता को सत्य बताया है। गीताकार श्रीकृष्ण [[अर्जुन]] से कहते हैं कि मेरे बहुत से जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी। मैं उन्हें जानता हूँ, लेकिन तुम नहीं जानते। एक स्थान पर '''[[ईसा मसीह]]''' ने कहा है कि मैं इब्राहीम से पहले भी था। अमर आत्मा इस प्रकार हम देखते हैं कि एक ही आत्मा अलग-अलग शरीरों मे जन्म ग्रहण करता है।
|माध्यमिक=
+
 
|पूर्णता=
+
==वैज्ञानिक तथ्य==
|शोध=
+
पुनर्जन्म एक अबूझ पहेली है। विज्ञान कहता है कि इस सृष्टि में पुनर्जन्म जैसी कोई व्यवस्था नहीं है और चिकित्सा विज्ञान कहता है कि पुनर्जन्म होता है। अधिकांश धर्मों में भी पुनर्जन्म की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है। लेकिन कुल मिलाकर यह अभी भी समझना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति मरने के बाद फिर से जन्म ले सकता है या नहीं ? [[हिन्दू]] मान्यताओं के मुताबिक़ पुनर्जन्म होता है लेकिन कोई भी व्यक्ति मरने के तुरंत बाद ही दूसरा जन्म ले यह संभव नहीं है। अगर हिन्दू मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो मृत्यु के बाद आत्मा इस वायु मंडल में ही चलायमान होती है। स्वर्ग-नर्क जैसे स्थानों पर घूमती है। लेकिन उसे एक न एक दिन शरीर ज़रूर लेना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र इस बात को ज़्यादा मज़बूती से रखता है। धर्म में जिसे प्रारब्ध कहा जाता है, यानी पूर्व कर्मों का फल, वह ज्योतिष का ही एक हिस्सा है। इसलिए ज्योतिष की लगभग सारी विधाएं ही पुनर्जन्म को स्वीकार करती हैं। इस विद्या का मानना है कि हम अपने जीवन में जो भी कर्म करते हैं उनमें से कुछ का [[फल]] तो जीवन के दौरान ही मिल जाता है और कुछ हमारे प्रारब्ध से जुड़ जाता है। इन्हीं कर्मों के फल के मुताबिक़ जब ब्रह्मांड में ग्रह दशाएं बनती हैं, तब वह आत्मा फिर से जन्म लेती है। इस प्रक्रिया में कई साल भी लग सकते हैं और कई दशक भी। <br>
}}
+
चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि हमारी कई आदतें और परेशानियां पिछले जन्मों से जुड़ी होती हैं। कई बार हमारे सामने ऐसी चीज़ें आती है या ऐसी घटनाएं घटती हैं, जो होती तो पहली बार हैं लेकिन हमें महसूस होता है कि इस तरह की परिस्थिति से हम पहले भी गुजर चुके हैं। चिकित्सा विज्ञान इसे हमारे अवचेतन मन की यात्रा मानता है, ऐसी स्मृतियां जो पूर्व जन्मों से जुड़ी हैं। बहरहाल पुनर्जन्म अभी भी एक अबूझ पहेली की तरह ही हमारे सामने है। ज्योतिष, धर्म और चिकित्सा विज्ञान ने इसे खुले रूप से या दबी जुबान से स्वीकारा तो है लेकिन इसे अभी पूरी तरह मान्यता नहीं दी है।
 +
==पुनर्जन्म का वैज्ञानिक पहलू==
 +
[[चित्र:changing-bodies2.jpg|250px|right|पुनर्जन्म]]
 +
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है। पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण '''ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत''' है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार [[ऊर्जा]] का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात् जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है। भौतिक ऊर्जा और आत्म ऊर्जा में फ़र्क़ इतना ही है कि आत्म ऊर्जा चेतना युक्त होती है जबकि भौतिक ऊर्जा चेतना से रहित होती है। कर्मफल एवं जन्म-मरण का चक्र पुनर्जन्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा अपनी आवश्यकता के अनुसार एक नया शरीर धारण करना। हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों [[पृथ्वी]], [[जल]], [[अग्नि]], [[वायु]] और [[आकाश]] से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात् शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है। किसी कारण, आवश्यकता या परिस्थिति के अनुसार यह आत्मा शरीर को छोड़कर मुक्त हो जाता है। एक निर्धारित समय तक मुक्त रहने के पश्चात् आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त करता है। जब तक कि समस्त पिछले कर्मों एवं संस्कारों का पूर्णत: समापन नहीं हो जाता, आत्मा को जन्म मृत्यु के चक्र में घूमना पड़ता है।
 +
 
 +
<blockquote>पुनर्जन्म का दूसरा [[प्रत्यक्ष]] प्रमाण पूर्वजन्म की स्मृति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना '''मोर्जाट''' चार वर्ष की अवस्था में [[संगीत]] नहीं कम्पोज कर सकता था। '''लार्ड मेकाले''' और विचारक '''मील''' चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक '''जान गास''' तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारथ हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे। प्रथमतः [[शिशु]] जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना और अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन् नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है ?</blockquote>
 +
 
 +
==पुनर्जन्म पर शोध==
 +
;डॉ. इयान स्टीवेन्सन का शोध
 +
[[चित्र:reincarnation.jpg|250px|right|पुनर्जन्म]]
 +
[[अमेरिका]] के वर्जीनिया यूनिवर्सिटी वैज्ञानिक '''डॉ. इयान स्टीवेन्सन''' ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिह्न मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिह्नों का पुनः प्रकटन आज भी एक पहेली है। एक छोटे से लड़के ने अपने इक्कीस साल के मैकेनिक होने की बात कही। उसने बताया की उसकी मौत एक बीच रोड पर तेज़ीसे आती कार की टक्कर से हुई थी। बहुत सारे लोगों के सामने उसने ड्राईवर का नाम, एक्सीडेंट की जगह, मैकेनिक के माता-पिता का नाम, उसके चचेरे भाई-बहनों और दोस्तों के बारे में बताया। लोगों ने उसकी बताई बातों की विस्तार से खोजबीन की और पाया कि सूक्ष्मतम विवरण सही हैं, जबकि वह मैकेनिक उस लड़के के पैदा होने के कई साल पहले ही मर गया था। वैज्ञानिक स्टीवन्सन ने इस घटना का गहराई से अध्ययन किया। उसने लड़के की बातचीत से लेकर अन्य सभी बातों के सिलसिलेवार दस्तावेज बनाये। उसने लड़के के जन्म चिह्न, घावों और कटने के निशान इत्यादि को मृतक के रिकॉर्ड से मिलाया और पाया की वे एकदम एक से है। उस वैज्ञानिक ने चालीस साल तक ऐसी ही घटनाओं का अध्ययन किया और पूरी दुनिया में पुनर्जन्म के मामलों का परीक्षण कर एक किताब लिखी, जिसका नाम है '''रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी'''। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि इस किताब को पढ़ने के बाद अमेरिका के कई वैज्ञानिकों ने पुनर्जन्म को स्वीकारना शुरू कर दिया है। उनकी इस किताब को पढ़कर एक लेखिका एलिजाबेथ कुबलर-रोज ने लिखा है कि मुझे अपनी ज़िंदगी की ढलान पर यह जानने को मिला कि प्रो. ईयान स्टिवंस ने पुनर्जन्म को एक हकीकत साबित कर दिया है। मुझे बहुत ही खुशी हो रही है कि दूसरे मिलिनियम के अंत में इस सत्य को आखिर वैज्ञानिक रूप से सिध्द कर दिया गया है।
 +
;डॉ. सतवंत पसरिया का शोध
 +
[[चित्र:reincarnation (1).jpg|250px|right|पुनर्जन्म]]
 +
पुनर्जन्म और पूर्वजन्म विषय पर अमेरिका में इयान स्टीवंस ने जिस तरह से शोध किया है, ठीक उसी प्रकार का शोध भारत में '''डॉ. सतवंत पसरिया''' ने भी किया है। [[बेंगलोर]] की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजय में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत ने ईस्वी सन् 1973 से लेकर अभी तक [[भारत]] में प्रकाश में आई पुनर्जन्म के क़रीब 500 घटनाओं का संकलन किया है। इसे एक पुस्तक का आकार दिया गया है, जिसका नाम है '''श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया'''। उल्लेखनीय है कि बेंगलोर की ये महिला वैज्ञानिक ने अपने शोध के लिए अमेरिका की वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. इयान स्टिवेंस के साथ ही काम किया है। इस किताब की प्रस्तावना भी प्रो. स्टिवेंस ने ही लिखी है। वे कहते हैं कि जो इस तरह के किस्सों को पहली बार पढ़ रहे होंगे, उनके लिए इसमें शामिल घटनाओं को सच मानने में बहुत मुश्किल होगी, इसके बाद भी पाठक यह विश्वास रखें कि इस पुस्तक में जो भी घटनाएँ शामिल की गई हैं, वे सभी काफ़ी सावधानीपूर्वक और प्रामाणिकता के साथ लिखी गई हैं। <br>
 +
[[उत्तर भारत]] में यह मान्यता है कि जो बच्चे अपने पिछले जन्म के बारे में जानकारी रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है। इसलिए जो बच्चे पुनर्जन्म की घटनाओं को याद रखते हैं, उनके लिए पालक उसकी इस स्मृति को भुलाने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। कई बार तो उसे कुम्हार के चाक पर बैठाकर चाक को उल्टा घुमाया जाता है, ताकि उसकी स्मृति का लोप हो जाए। डॉ. सतवंत के अनुसार जिन बच्चों को अपना पूर्वजन्म याद रहता है, वे 3 से 9 वर्ष तक की उम्र के होते हैं। डॉ. सतवंत ने पहली बार 1973 में वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऑफ साइकियाट्री इयान स्टिवंस के बारे में जाना, फिर उनके साथ काम किया। इस दौरान उसने जाना कि मानव विज्ञान में इंसान की कई गतिविधियाँ अभी तक समझ से बाहर हैं, ऐसे में पुनर्जन्म की थ्योरी से इसे बखूबी समझा जा सकता है। इस आधार पर उन्होंने अपना शोध शुरू किया। शुरुआत में जब उनके सामने एक के बाए एक किस्से आने लगे, तो उन्हें इस पर विश्वास नहीं होता था। इतने में उनके सामने [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] की '''मंजू शर्मा''' नाम की एक कन्या का मामला सामने आया। उसे अपने पूर्वजन्म की घटना याद की। इसका प्रमाण भी उनके सामने था, तब वे पुनर्जन्म पर विश्वास करने लगी। <br>
 +
बेंगलोर में डॉ. सतवंत के सहकर्मियों एवं उच्च अधिकारियों ने उनके इस शोध की उपेक्षा की। किंतु डॉ. सतवंत की तर्कबत्र कार्यपध्दति से प्रभावित होकर उनका साथ देना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद उन्हें भी डॉ. सतवंत की सच्चाई पर विश्वास होने लगा। डॉ. सतवंत कहती हैं कि पुनर्जन्म, इंद्रियातीत शक्तियों और मृत्यु जैसे अनुभवों पर विश्वास करें या न करें, अब इसका सवाल ही पैदा नहीं होता। विश्वभर में इस मामले पर वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं, इनका अस्तित्व अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो रहा है। कई बार तो ऐसे मामले सामान्य बुद्धि से भी समझे जा सकते हैं। पर जहाँ सामान्य बुद्धि की सीमा समाप्त हो जाती है, तब पुनर्जन्म की बात को स्वीकारना पड़ता है। <br>
 +
[[चित्र:MWS-50-Reincarnation.jpg|250px|right|पुनर्जन्म]]
 +
अपने अनुभवों से गुजरते हुए डॉ. सतवंत कहती हैं कि कल्पना करो कि कोई बच्चा यदि पानी में जाने से डरता है, तो यह तय है कि पिछले जन्म में उसकी मौत पानी में डूबने से हुई होगी, या फिर उसकी मौत के पीछे पानी ही कोई कारण रहा होगा। कई बच्चों के शरीर पर जन्म से ही कई तरह के निशान होते हैं, इससे यह धारणा सत्य साबित होती है कि पिछले जन्म में उसे किसी तरह की चोट लगी होंगी। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि पूर्वजन्म को याद रखने वाले कम उम्र में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं, पर [[नागपुर]] की '''उत्तरा''' का क़िस्सा  कुछ और ही है। जब यह 30 वर्ष की थीं, तब वह कहने लगी कि वह बंगाल की शारदा है और चटोपाध्याय परिवार की सदस्य है। [[मराठी भाषी]] उत्तरा अब धाराप्रवाह रूप से [[बंगला भाषा|बंगला]] बोलने लगी। यही नहीं 18 वीं [[सदी]] के रीति-रिवाजों पर बात करने लगी। पूर्वजन्म में ऐसा होता है कि मृत्यु के एक वर्ष बाद फिर से जन्म होता है। पर यहाँ तो बंगाल की शारदा की मृत्यु के 110 वर्ष बाद उसका पुनर्जन्म हो रहा है। इस मामले को विस्तार से डॉ. सतवंत ने अपनी किताब में बताया है। <br>
 +
[[मुंबई]] की एक महिला बासंती भायाणी अपने [[परिवार]] में हुई पुनर्जन्म की एक घटना 8 सितम्बर 2004 के एक गुजराती अखबार में प्रकाशित हुई है। इस घटना में जूनागढ़ की एक [[ब्राह्मण]] कन्या गीता का जन्म [[भावनगर]] के एक जैन परिवार में '''राजुल''' के रूप में हुआ। राजुल जब अपने पिछले जन्म को याद करने लगी, तो उसे जूनागढ़ ले जाया गया, यहाँ उसने अपना घर, स्वजन ही नहीं, बल्कि अपनी गुडिया तक को पहचान लिया। जब राजुल की शादी हुई, तब उसके पूर्वजन्म के परिजनों ने उसे बहुत सारा दहेज भी दिया। आज राजुल [[अहमदाबाद]] में अपने छोटे से परिवार में रहती है। <br>
 +
एक समय ऐसा था जब अपने को तार्किक बताने वाले बुद्धिजीवी पुनर्जन्म की घटना को बकवास कहकर हँसी उड़ाते थे, पर अब समय बदल रहा है, अधिकांश तार्किक यह मानने लगे हैं कि जिसे बुद्धि समझ नहीं सकती, वैसा ही इस दुनिया में कुछ हो रहा है। [[भारत]] के प्रखर बुद्धिवादी जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर का अनुभव कहता है कि उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद वह रोज उनके सपने में आकर उनसे बात करतीं थीं। इसका ज़िक्र उन्होंने अपनी किताब डेथ ऑटरय में भी किया है। इस किताब को कोणार्क पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है। <br>
 +
आधुनिक विज्ञान के अनुसार पुनर्जन्म का संबंध टेलीपेथी या मानवशास्त्र से हो सकता है। विद्यार्थी टेस्ट बुक के रूप में इंट्रोडक्शन टु साइकोलॉजी का अध्ययन करते हैं, उसके लेखक रिचर्ड अटिकिंसन कहते हैं - पेरासाइकोलॉजी विषय में जो शोध हो रहे हैं, इस बारे में हमें बहुत सी शंकाएँ हैं। पर हाल ही में टेलिपेथी के संबंध में जो शोध हुए हैं, वे हमें विवश करते हैं कि हम उसे स्वीकार लें। पुनर्जन्म और टेलिपेथी पर किताब लिखने वाले डॉ. डीन रेडिन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात कहते हैं - इस प्रकार की घटनाओं के जितने सुबूत पेश किए गए हैं, उतने सुबूत यदि किसी अन्य विषय पर पेश किए होते, तो वैज्ञानिक कब का इसे स्वीकार चुके होते। यही [[विज्ञान]] और धर्म के बीच संघर्ष का जन्म होता है। <ref> [https://sites.google.com/site/narayankealawaaur/parimal/punarmjanam  पुनर्जन्म को मिलने लगी वैज्ञानिक मान्यता]</ref>
 +
 
 +
 
 +
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
[[Category:नया पन्ना]]
 
[[Category:नया पन्ना]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

14:16, 9 मई 2021 के समय का अवतरण

Warning-sign.gif
इस लेख में अवैज्ञानिक और अंधविश्वासी सामग्री होने का प्रमाण मिला है। इसलिए इस पन्ने की सामग्री हटाई जा सकती है। सदस्यों को चाहिये कि वे भारतकोश के मानकों के अनुरूप ही पन्ना बनाएँ। यह लेख उचित सामग्री के साथ शीघ्र ही पुन: निर्मित किया जाना चाहिएआप इसमें सहायता कर सकते हैं
पुनर्जन्म

आज देश ही नहीं, बल्कि विश्व के कई वैज्ञानिक बड़ी उलझन में हैं। वहीं बहुत सारी धार्मिक मान्यताओं में से एक मान्यता अब वैज्ञानिक आधार प्राप्त करने लगी है। ये धार्मिक मान्यता है, पुनर्जन्म की। वैज्ञानिक अब तक इसे पूरी तरह से नकार रहे थे, इसके लिए उनके पास तमाम दावे भी थे। पर अब वे आशंकित नजर आ रहे हैं, क्योंकि अपने ही पुराने आधारों के कारण वे पुनर्जन्म को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है, वही नई वैज्ञानिक शोधो को वे नकार नहीं पा रहे हैं, इसलिए वे इस पर कुछ बोलना भी नहीं चाहते। दूसरी ओर पुनर्जन्म की मान्यता को कई वैज्ञानिक अपना समर्थन दे रहे हैं। इससे उनकी उलझन और बढ़ गई है।

पौराणिक मान्यता

एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी आत्मा उसमे से बाहर निकल जाती है और इस ज़िन्दगी के कर्मो के अनुसार उसको दूसरा शरीर मिलता है। अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में इस बात के लिए अलग-अलग सोच है। कुछ वैज्ञानिक इसे धार्मिक अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं। यह एक रहस्य ही है कि मृत्यु के बाद कोई जीवन है क्या ? भारत में पुनर्जन्म के बारे में बहुत प्राचीन काल से चर्चा चलती आ रहीं हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्म के ग्रंथों में इनका उल्लेख पाया जाता है। यह माना जाता है कि आत्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपड़े बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है। मनुष्य को अगले जन्म अच्छी या ख़राब जगह जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप कि वजह से मिलता है। पश्चिमी देशों में भी कुछ जगहों पर इन धारणाओं को माना जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। क्रिशचैनिती, इस्लाम में इसे मान्यता नहीं है परन्तु कुछ इसे व्यक्तिगत विचारों के लिए छोड़ देते है। वैज्ञानिकों में शुरू में इस विषय पर बहुत बहस हुई, कुछ ने इसके पक्ष में दलीलें दीं तो कुछ ने उन्हें झूठा साबित करने कि कोशिश की, कुछ विज्ञानिकों ने कहा यदि यह सच है तो लोग अपने पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रखते? ऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिलता है जिससे आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाते हुए साबित किया जा सके, इसलिए इसे क़ानूनी मान्यता भी नहीं प्राप्त है। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और कुछ मनोविज्ञानिक पुनर्जन्म को मानकर, इसी आधार पर इलाज कर रहे है।

पुनर्जन्म (Reincarnation) का अर्थ है पुन: नवीन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन: नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। मोक्ष को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्य आदि नामों से भी जानते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है।

पुनर्जन्म
  • हिन्दुओं में अत्यंत प्रचलित एवं प्रसिद्ध अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म की मान्यता को सत्य बताया है। गीताकार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मेरे बहुत से जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी। मैं उन्हें जानता हूँ, लेकिन तुम नहीं जानते। एक स्थान पर ईसा मसीह ने कहा है कि मैं इब्राहीम से पहले भी था। अमर आत्मा इस प्रकार हम देखते हैं कि एक ही आत्मा अलग-अलग शरीरों मे जन्म ग्रहण करता है।

वैज्ञानिक तथ्य

पुनर्जन्म एक अबूझ पहेली है। विज्ञान कहता है कि इस सृष्टि में पुनर्जन्म जैसी कोई व्यवस्था नहीं है और चिकित्सा विज्ञान कहता है कि पुनर्जन्म होता है। अधिकांश धर्मों में भी पुनर्जन्म की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है। लेकिन कुल मिलाकर यह अभी भी समझना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति मरने के बाद फिर से जन्म ले सकता है या नहीं ? हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक़ पुनर्जन्म होता है लेकिन कोई भी व्यक्ति मरने के तुरंत बाद ही दूसरा जन्म ले यह संभव नहीं है। अगर हिन्दू मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो मृत्यु के बाद आत्मा इस वायु मंडल में ही चलायमान होती है। स्वर्ग-नर्क जैसे स्थानों पर घूमती है। लेकिन उसे एक न एक दिन शरीर ज़रूर लेना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र इस बात को ज़्यादा मज़बूती से रखता है। धर्म में जिसे प्रारब्ध कहा जाता है, यानी पूर्व कर्मों का फल, वह ज्योतिष का ही एक हिस्सा है। इसलिए ज्योतिष की लगभग सारी विधाएं ही पुनर्जन्म को स्वीकार करती हैं। इस विद्या का मानना है कि हम अपने जीवन में जो भी कर्म करते हैं उनमें से कुछ का फल तो जीवन के दौरान ही मिल जाता है और कुछ हमारे प्रारब्ध से जुड़ जाता है। इन्हीं कर्मों के फल के मुताबिक़ जब ब्रह्मांड में ग्रह दशाएं बनती हैं, तब वह आत्मा फिर से जन्म लेती है। इस प्रक्रिया में कई साल भी लग सकते हैं और कई दशक भी।
चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि हमारी कई आदतें और परेशानियां पिछले जन्मों से जुड़ी होती हैं। कई बार हमारे सामने ऐसी चीज़ें आती है या ऐसी घटनाएं घटती हैं, जो होती तो पहली बार हैं लेकिन हमें महसूस होता है कि इस तरह की परिस्थिति से हम पहले भी गुजर चुके हैं। चिकित्सा विज्ञान इसे हमारे अवचेतन मन की यात्रा मानता है, ऐसी स्मृतियां जो पूर्व जन्मों से जुड़ी हैं। बहरहाल पुनर्जन्म अभी भी एक अबूझ पहेली की तरह ही हमारे सामने है। ज्योतिष, धर्म और चिकित्सा विज्ञान ने इसे खुले रूप से या दबी जुबान से स्वीकारा तो है लेकिन इसे अभी पूरी तरह मान्यता नहीं दी है।

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक पहलू

पुनर्जन्म

पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है। पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात् जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है। भौतिक ऊर्जा और आत्म ऊर्जा में फ़र्क़ इतना ही है कि आत्म ऊर्जा चेतना युक्त होती है जबकि भौतिक ऊर्जा चेतना से रहित होती है। कर्मफल एवं जन्म-मरण का चक्र पुनर्जन्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा अपनी आवश्यकता के अनुसार एक नया शरीर धारण करना। हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात् शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है। किसी कारण, आवश्यकता या परिस्थिति के अनुसार यह आत्मा शरीर को छोड़कर मुक्त हो जाता है। एक निर्धारित समय तक मुक्त रहने के पश्चात् आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त करता है। जब तक कि समस्त पिछले कर्मों एवं संस्कारों का पूर्णत: समापन नहीं हो जाता, आत्मा को जन्म मृत्यु के चक्र में घूमना पड़ता है।

पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मृति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्था में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गास तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारथ हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे। प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना और अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन् नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है ?

पुनर्जन्म पर शोध

डॉ. इयान स्टीवेन्सन का शोध
पुनर्जन्म

अमेरिका के वर्जीनिया यूनिवर्सिटी वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिह्न मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिह्नों का पुनः प्रकटन आज भी एक पहेली है। एक छोटे से लड़के ने अपने इक्कीस साल के मैकेनिक होने की बात कही। उसने बताया की उसकी मौत एक बीच रोड पर तेज़ीसे आती कार की टक्कर से हुई थी। बहुत सारे लोगों के सामने उसने ड्राईवर का नाम, एक्सीडेंट की जगह, मैकेनिक के माता-पिता का नाम, उसके चचेरे भाई-बहनों और दोस्तों के बारे में बताया। लोगों ने उसकी बताई बातों की विस्तार से खोजबीन की और पाया कि सूक्ष्मतम विवरण सही हैं, जबकि वह मैकेनिक उस लड़के के पैदा होने के कई साल पहले ही मर गया था। वैज्ञानिक स्टीवन्सन ने इस घटना का गहराई से अध्ययन किया। उसने लड़के की बातचीत से लेकर अन्य सभी बातों के सिलसिलेवार दस्तावेज बनाये। उसने लड़के के जन्म चिह्न, घावों और कटने के निशान इत्यादि को मृतक के रिकॉर्ड से मिलाया और पाया की वे एकदम एक से है। उस वैज्ञानिक ने चालीस साल तक ऐसी ही घटनाओं का अध्ययन किया और पूरी दुनिया में पुनर्जन्म के मामलों का परीक्षण कर एक किताब लिखी, जिसका नाम है रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि इस किताब को पढ़ने के बाद अमेरिका के कई वैज्ञानिकों ने पुनर्जन्म को स्वीकारना शुरू कर दिया है। उनकी इस किताब को पढ़कर एक लेखिका एलिजाबेथ कुबलर-रोज ने लिखा है कि मुझे अपनी ज़िंदगी की ढलान पर यह जानने को मिला कि प्रो. ईयान स्टिवंस ने पुनर्जन्म को एक हकीकत साबित कर दिया है। मुझे बहुत ही खुशी हो रही है कि दूसरे मिलिनियम के अंत में इस सत्य को आखिर वैज्ञानिक रूप से सिध्द कर दिया गया है।

डॉ. सतवंत पसरिया का शोध
पुनर्जन्म

पुनर्जन्म और पूर्वजन्म विषय पर अमेरिका में इयान स्टीवंस ने जिस तरह से शोध किया है, ठीक उसी प्रकार का शोध भारत में डॉ. सतवंत पसरिया ने भी किया है। बेंगलोर की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजय में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत ने ईस्वी सन् 1973 से लेकर अभी तक भारत में प्रकाश में आई पुनर्जन्म के क़रीब 500 घटनाओं का संकलन किया है। इसे एक पुस्तक का आकार दिया गया है, जिसका नाम है श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया। उल्लेखनीय है कि बेंगलोर की ये महिला वैज्ञानिक ने अपने शोध के लिए अमेरिका की वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. इयान स्टिवेंस के साथ ही काम किया है। इस किताब की प्रस्तावना भी प्रो. स्टिवेंस ने ही लिखी है। वे कहते हैं कि जो इस तरह के किस्सों को पहली बार पढ़ रहे होंगे, उनके लिए इसमें शामिल घटनाओं को सच मानने में बहुत मुश्किल होगी, इसके बाद भी पाठक यह विश्वास रखें कि इस पुस्तक में जो भी घटनाएँ शामिल की गई हैं, वे सभी काफ़ी सावधानीपूर्वक और प्रामाणिकता के साथ लिखी गई हैं।
उत्तर भारत में यह मान्यता है कि जो बच्चे अपने पिछले जन्म के बारे में जानकारी रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है। इसलिए जो बच्चे पुनर्जन्म की घटनाओं को याद रखते हैं, उनके लिए पालक उसकी इस स्मृति को भुलाने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। कई बार तो उसे कुम्हार के चाक पर बैठाकर चाक को उल्टा घुमाया जाता है, ताकि उसकी स्मृति का लोप हो जाए। डॉ. सतवंत के अनुसार जिन बच्चों को अपना पूर्वजन्म याद रहता है, वे 3 से 9 वर्ष तक की उम्र के होते हैं। डॉ. सतवंत ने पहली बार 1973 में वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऑफ साइकियाट्री इयान स्टिवंस के बारे में जाना, फिर उनके साथ काम किया। इस दौरान उसने जाना कि मानव विज्ञान में इंसान की कई गतिविधियाँ अभी तक समझ से बाहर हैं, ऐसे में पुनर्जन्म की थ्योरी से इसे बखूबी समझा जा सकता है। इस आधार पर उन्होंने अपना शोध शुरू किया। शुरुआत में जब उनके सामने एक के बाए एक किस्से आने लगे, तो उन्हें इस पर विश्वास नहीं होता था। इतने में उनके सामने मथुरा ज़िले की मंजू शर्मा नाम की एक कन्या का मामला सामने आया। उसे अपने पूर्वजन्म की घटना याद की। इसका प्रमाण भी उनके सामने था, तब वे पुनर्जन्म पर विश्वास करने लगी।
बेंगलोर में डॉ. सतवंत के सहकर्मियों एवं उच्च अधिकारियों ने उनके इस शोध की उपेक्षा की। किंतु डॉ. सतवंत की तर्कबत्र कार्यपध्दति से प्रभावित होकर उनका साथ देना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद उन्हें भी डॉ. सतवंत की सच्चाई पर विश्वास होने लगा। डॉ. सतवंत कहती हैं कि पुनर्जन्म, इंद्रियातीत शक्तियों और मृत्यु जैसे अनुभवों पर विश्वास करें या न करें, अब इसका सवाल ही पैदा नहीं होता। विश्वभर में इस मामले पर वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं, इनका अस्तित्व अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो रहा है। कई बार तो ऐसे मामले सामान्य बुद्धि से भी समझे जा सकते हैं। पर जहाँ सामान्य बुद्धि की सीमा समाप्त हो जाती है, तब पुनर्जन्म की बात को स्वीकारना पड़ता है।

पुनर्जन्म

अपने अनुभवों से गुजरते हुए डॉ. सतवंत कहती हैं कि कल्पना करो कि कोई बच्चा यदि पानी में जाने से डरता है, तो यह तय है कि पिछले जन्म में उसकी मौत पानी में डूबने से हुई होगी, या फिर उसकी मौत के पीछे पानी ही कोई कारण रहा होगा। कई बच्चों के शरीर पर जन्म से ही कई तरह के निशान होते हैं, इससे यह धारणा सत्य साबित होती है कि पिछले जन्म में उसे किसी तरह की चोट लगी होंगी। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि पूर्वजन्म को याद रखने वाले कम उम्र में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं, पर नागपुर की उत्तरा का क़िस्सा कुछ और ही है। जब यह 30 वर्ष की थीं, तब वह कहने लगी कि वह बंगाल की शारदा है और चटोपाध्याय परिवार की सदस्य है। मराठी भाषी उत्तरा अब धाराप्रवाह रूप से बंगला बोलने लगी। यही नहीं 18 वीं सदी के रीति-रिवाजों पर बात करने लगी। पूर्वजन्म में ऐसा होता है कि मृत्यु के एक वर्ष बाद फिर से जन्म होता है। पर यहाँ तो बंगाल की शारदा की मृत्यु के 110 वर्ष बाद उसका पुनर्जन्म हो रहा है। इस मामले को विस्तार से डॉ. सतवंत ने अपनी किताब में बताया है।
मुंबई की एक महिला बासंती भायाणी अपने परिवार में हुई पुनर्जन्म की एक घटना 8 सितम्बर 2004 के एक गुजराती अखबार में प्रकाशित हुई है। इस घटना में जूनागढ़ की एक ब्राह्मण कन्या गीता का जन्म भावनगर के एक जैन परिवार में राजुल के रूप में हुआ। राजुल जब अपने पिछले जन्म को याद करने लगी, तो उसे जूनागढ़ ले जाया गया, यहाँ उसने अपना घर, स्वजन ही नहीं, बल्कि अपनी गुडिया तक को पहचान लिया। जब राजुल की शादी हुई, तब उसके पूर्वजन्म के परिजनों ने उसे बहुत सारा दहेज भी दिया। आज राजुल अहमदाबाद में अपने छोटे से परिवार में रहती है।
एक समय ऐसा था जब अपने को तार्किक बताने वाले बुद्धिजीवी पुनर्जन्म की घटना को बकवास कहकर हँसी उड़ाते थे, पर अब समय बदल रहा है, अधिकांश तार्किक यह मानने लगे हैं कि जिसे बुद्धि समझ नहीं सकती, वैसा ही इस दुनिया में कुछ हो रहा है। भारत के प्रखर बुद्धिवादी जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर का अनुभव कहता है कि उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद वह रोज उनके सपने में आकर उनसे बात करतीं थीं। इसका ज़िक्र उन्होंने अपनी किताब डेथ ऑटरय में भी किया है। इस किताब को कोणार्क पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार पुनर्जन्म का संबंध टेलीपेथी या मानवशास्त्र से हो सकता है। विद्यार्थी टेस्ट बुक के रूप में इंट्रोडक्शन टु साइकोलॉजी का अध्ययन करते हैं, उसके लेखक रिचर्ड अटिकिंसन कहते हैं - पेरासाइकोलॉजी विषय में जो शोध हो रहे हैं, इस बारे में हमें बहुत सी शंकाएँ हैं। पर हाल ही में टेलिपेथी के संबंध में जो शोध हुए हैं, वे हमें विवश करते हैं कि हम उसे स्वीकार लें। पुनर्जन्म और टेलिपेथी पर किताब लिखने वाले डॉ. डीन रेडिन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात कहते हैं - इस प्रकार की घटनाओं के जितने सुबूत पेश किए गए हैं, उतने सुबूत यदि किसी अन्य विषय पर पेश किए होते, तो वैज्ञानिक कब का इसे स्वीकार चुके होते। यही विज्ञान और धर्म के बीच संघर्ष का जन्म होता है। [1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ