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पोस्टकार्ड

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संचार माध्यमों और प्रौद्योगिकियों में विस्फोटक वृद्धि के इस युग में भी अपने जाने-चाहे लोगों तक संदेश पहुंचाने का सबसे सस्ता तरीका पोस्टकार्ड ही है। महात्मा गांधी पोस्टकार्ड के अच्छे खासे प्रशंसक एवं उपयोगकर्ता थे। उन्होंने अपने सैंकड़ों पत्र पोस्टकार्डों पर लिखे। पोस्टकार्ड के इस विश्व-विख्यात उपयोगकर्ता को सम्मानित करने के लिए डाक विभाग ने 1951 और 1969 में विशेष गांधी पोस्टकार्ड जारी किए। डाक का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. उस समय एक राजा दूसरे राज्य के राजा तक अपना संदेश एक विशेष व्यक्ति जिसे दूत कहा जाता था, के माध्यम से भेजते थे. उन दूतों को राज्य की ओर से सुरक्षा तथा सम्मान प्रदान किया जाता था.

पौराणिक उल्लेख

महाकाव्य रामायण तथा महाभारत में कई प्रसंगों में संदेश भेजे जाने का उल्लेख प्राप्त होता है. राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता और राम के विवाह होने का संदेश राम के पिता दशरथ को भिजवाया था. रावण की राजसभा में श्रीराम का सन्देश लेकर अंगद का जाना, इस बात का प्रमाण है.. महाभारत में श्रीकृष्ण का कौरवों के लिए पांच गांव मांगने जाना तथा अनेक राज्यों में पांडवों तथा कौरवॊं के पक्ष में, युद्ध में भाग लेने के लिए संदेश पहुँचाना, जैसी कोई डाक व्यवस्था उस समय काम कर रही होगी.

अन्य प्रसंगों में राजा नल द्वारा दमयन्ती के बीच सन्देशों का आदान-प्रदान हंस द्वारा होने का वर्णण आता है. महाकवि कालीदास के मेघदूत में दक्ष अपनी प्रेमिका के पास मेघों के माध्यम से सन्देश पहुँचाते थे. एक प्रेमी राजकुमार अपनी प्रेमिका को कबूतरों द्वारा पत्र पहुँचाते थे. खुदाई के दौरान कुछ ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं कि मिस्र, यूनान एवं चीन में डाक व्यवस्था थी. सिकन्दर महान ने भारत से यूनान तक संचार व्यवस्था बनाई थी, जिससे उसका संपर्क यूनान तक रहता था. अनेक राजा-महाराजा एक स्थान से दूसरे स्थान तक सन्देश पहुंचाने के लिए द्रुतगति से दौडने वाले घोडॊं का प्रयोग किया करते थे.

यह सब कालान्तर की बातें तो है ही, साथ ही रोचक भी है. इसका प्रयोग केवल उच्च वर्ग तक ही सीमित था. साधारण जन इससे कोसों दूर था. बाद मे कई प्रयास किए गए और डाक व्यवस्था में निरन्तर सुधार आता गया और आज यह व्यवस्था आम हो गई है।[1]

आविष्कार

पोस्टकार्ड का आविष्कार आस्ट्रिया में 1869 को हुआ था। वह इतना लोकप्रिय साबित हुआ कि एक महीने में ही 15 लाख पोस्टकार्ड बिक गए। अन्य देशों ने भी उसे अपनाने में देरी नहीं की। ब्रिटेन ने 1872 में पोस्टकार्ड जारी किया। सात ही वर्षों में, यानी 1879 को, भारत में पोस्टकार्ड जारी कर दिया गया। यहां पहले पोस्टकार्ड की कीमत तीन पैसे थी। प्रथम नौ महीने में ही भारत में 7.5 लाख रुपए के पोस्टकार्ड बिक गए।[2]

पहला भारतीय पोस्टकार्ड

1 अक्टूबर सन 1854 को पहला भारतीय डाक टिकिट जारी किया गया था। उस समय तक पोस्टकार्ड की कल्पना भी नहीं की गई थी। सन 1869 में आस्ट्रिया के डाक्टर इमानुएल हरमान ने पत्राचार के एक सस्ते साधन के रुप में पोस्टकार्ड की कल्पना की थी। भारत में पहली बार 1 जुलाई 1879 को पोस्टकार्ड जारी किए गये। जिसकी डिज़ाइन और छपाई का कार्य मेसर्स थामस डी.ला.रयू. एण्ड कंपनी लंदन ने किया था। उसके दो मूल्य वर्ग थे- एक पैसा( उस समय एक आने में चार पैसे हुआ करते थे) मुल्य का कार्ड अन्तरदेशीय प्रयोग के लिए था और देढ-आना वाला कार्ड ,उन देशों के लिए था जो “अंतरराष्ट्रीय डाक संघ” से संबद्ध थे.

स्वरूप

पोस्टकार्ड एक मोटे कागज या पतले गत्ते से बना एक आयताकार टुकड़ा होता है जिसे संदेश लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है, साथ ही इसे बिना किसी लिफाफे में बंद किये, डाक द्वारा भेजा भी जा सकता है। अधिकतर देशों में इसका शुल्क एक लिफाफे के (जिस पर डाक टिकट चिपकाई गयी हो) द्वारा भेजे गये एक पत्र की तुलना में कम होता है। पहले पोस्टकार्ड मध्यम हलके भूरे से रंग में छपे थे. एक पैसे वाले कार्ड पर “ ईस्ट इण्डिया पोस्टकार्ड” छपा था. बीच में ग्रेट ब्रिटेन का राज चिन्ह मुद्रित था और ऊपर की तरफ़ दाएं कोने मे लाल-भूरे रंग में छपी ताज पहने साम्राज्ञी विक्टोरिया” की मुखाकृति थी. विदेशी पोस्टकार्ड में ऊपर अंग्रेजी और फ़्रेंच भाषाओं में” यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन” अंकित था. इसके नीचे दो पंक्तियों में अंग्रेजी में क्रमशः “ब्रिटिश इण्डिया” और” पोस्टकार्ड” और इसका फ़्रेंच रुपान्तर तथा इन दोनों के बीच में ब्रिटेन का राजचिन्ह मुद्रित था एवं ऊपर दाहिने कोने पर टिकिट होता था. टिकिट और लेख नीले रंग में थे. दोनों ही प्रकार के कार्डॊ में अंग्रेजी में” दि एड्रेस ओनली टु बी रिटेन दिस साईड” छपा था. पोस्टकार्ड में कई परिवर्तन हुए. १८९९ में “ईस्ट” शब्द हटा दिया गया और उसके स्थान पर “ इण्डिया पोस्ट कार्ड” मुद्रित होने लगा.[3]

पहले पोस्टकार्ड के केवल एक ओर संदेश लिखने की अनुमति थी। दूसरी ओर केवल पता लिखा जा सकता था। सन 1902 में ब्रिटेन ने सर्वप्रथम इस असुविधाजनक नियम को खत्म किया।[4]

विशेष पोस्ट कार्ड

दिल्ली के सम्राट जार्ज पंचम के राज्याभिषॆक की स्मृति में सन १९११ में केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों ने सरकारी प्रयोग के लिए विशेष पोस्टकार्ड जारी किए थे. इन पर “ पोस्टकार्ड” शब्द मुद्रित था,परन्तु टिकिट का कोई चिन्ह अंकित नहीं था. इन पर “ताज” और “ जी.आर.आई” मोनोग्राम सुनहरे रंग में और दिल्ली तथा विभिन्न प्रांतों के बीच के प्रतीक-चिन्ह ,भिन्न-भिन्न रंगों से इम्बासिंग पद्धति से मुद्रित थे.

स्वतंत्रता के बाद चटकीले हरे रंग में “त्रिमूर्ति” की नयी डिजाइन के टिकिट वाला प्रथम पोस्टकार्ड ७ दिसम्बर १९४९ को जारी किया गया था. सन १९५० में कम डाक दर( ६ पाई) के स्थानीय़ पोस्टकार्ड जारी किए गए, जिन पर कोणार्क के घोडॆ की प्रतिमा पर आधारित टिकिट की डिजाइन चाकलेट रंग में छपी थी. २ अक्टूबर १९५१ को तीन चित्र पोस्ट्कार्डॊं की एक श्र्रृंखला जारी की गई,जिसमें एक पर बच्चे को लिए हुए गांधीजी, दूसरे पर चर्खा चलाते हुए गांधीजी और तीसरे पर कस्तूरबा गांधी के साथ गांधीजी का चित्र अंकन था. २ अक्टूबर १९६९ को गांधी शताब्दी के उपलक्ष में तीन पोस्टकार्डॊं की दूसरी श्रृंखला निकाली गई, जिसमें गांधीजी और गांधीजी की मुखाकृति अंकित थी.

चित्रित पोस्टकार्ड

चित्रित पोस्टकार्ड (पिक्चर पोस्टकार्ड) 1889 में प्रचलन में आए। यही वह साल था जब पेरिस में ईफिल टावर का उद्घाटन हुआ था। इस अवसर पर फ्रांसीसी सरकार ने खास तरह के पोस्टकार्ड जारी किए जिनके एक ओर ईफिल टावर का चित्र अंकित था। ईफिल टावर देखने आए सैलानी इन पोस्टकार्डों को ईफिल टावर के उच्चतम मंजिल में बनाए गए एक डाकघर में अपने मित्रों और परिचितों को पोस्ट कर सकते थे। इसके बाद दुनिया भर के अनेक देशों ने भी चित्रित पोस्टकार्ड जारी किए।[5]

लोकप्रियता

जबसे पोस्टकार्डॊं का प्रचलन हुआ है, तभी से जनता के पत्र-व्यवहार का माध्यम ये पोस्ट्कार्ड रहे हैं. हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ये काफ़ी लोकप्रिय है. इस समय प्रतिवर्ष अरबों की संख्या में पोस्टकार्ड देश के एक छोर से दूसरे छोर तक, देशवासियों को भातृत्व के बंधन में बांधने का कार्य करते हैं.

लागत

यद्यपि पोस्टकार्ड संदेश भेजने का सबसे सस्ता माध्यम है, लेकिन सरकार के लिए वह एक महंगा सौदा है। प्रत्येक पोस्टकार्ड पर, जो आज 25 पैसे को बिकता है, सरकार को 55 पैसे की लागत आती है। इस घाटे की पूर्ति के लिए सरकार ने पोस्टकार्ड के अनेक रोचक उपयोग खोज निकाले हैं। 21 जुलाई 1975 में जारी किए गए पोस्टकार्डों में सरकार ने एक संदेश अपनी ओर से हिंदी में छापा। वह इस प्रकार था, "अपनी फसल को चूहों और कीड़ों से बचाएं"। इसके बाद अनके प्रकार के सरकारी संदेश अनेक भाषाओं में पोस्टकार्डों पर छापे गए।[6]

संग्रह

डाक टिकटों के समान लोग पोस्टकार्डों का भी संग्रह करते हैं। इस हॉबी को अंग्रेजी में डेल्टियोलजी कहा जाता है। इसमें काफी पैसा भी कमाया जाता है। सन 1984 में अमरीका के इलिनोस शहर की सूसन ब्राउन निकोलस नामक महिला ने एक दुर्लभ पोस्टकार्ड बेचा। दुनिया में इस प्रकार के केवल पांच पोस्टकार्ड अस्तित्व में थे। सूसन को उस पोस्टकार्ड के बदले 1.75 लाख रुपए मिले।[7]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कहानी पोस्टकार्ड की (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  2. कहानी पोस्टकार्ड की (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  3. कहानी पोस्टकार्ड की (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  4. कहानी पोस्टकार्ड की (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  5. कहानी पोस्टकार्ड की (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  6. कहानी पोस्टकार्ड की (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  7. कहानी पोस्टकार्ड की (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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