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||बार्कर का कहना है कि आधुनिक [[राज्य|राज्यों]] में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है, क्योंकि व्यक्तियों ने आपसी हितों के लिए राज्य में छोटे-छोटे समूह बना लिए हैं। इसके पहले स्पेंसर जैसे विद्वानों ने 'व्यक्ति बनाम राज्य' जैसे सिद्धांत को प्रमुखता दी थी। | ||बार्कर का कहना है कि आधुनिक [[राज्य|राज्यों]] में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है, क्योंकि व्यक्तियों ने आपसी हितों के लिए राज्य में छोटे-छोटे समूह बना लिए हैं। इसके पहले स्पेंसर जैसे विद्वानों ने 'व्यक्ति बनाम राज्य' जैसे सिद्धांत को प्रमुखता दी थी। | ||
− | {"असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था | + | {"असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था किसके द्वारा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-57 |
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− | ||ल्यूशियन पाई ने अपनी पुस्तक "एसपेक्ट्स | + | ||ल्यूशियन पाई ने अपनी पुस्तक "एसपेक्ट्स ऑफ़ पॉलिटिकल डेवलेपमेंट" में राजनीतिक विकास का अर्थ राजनीतिक व्यवस्था में समानता, क्षमता और संरचनात्मक विभेदीकरण (Structural Differentiation) से संबंधित बताया है। 'स्वतंत्रता ल्यूशियन पाई की राजनीतिक विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है।राजनीतिक विकास (Political Development) की अवधारणा राजनीति शास्त्र में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आई है। राजनीतिक विकास का अध्ययन करने वाले अन्य राजनीतिक विचार डेविड ईस्टन, डेविड एप्टर, कोलमैन वीनर, रिग्स, ला पालोम्बरा आदि हैं। माइनर वीनर ने [[भारत]] के राजनीतिक विकास का अध्ययन किया। |
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{सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67 | {सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67 | ||
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+[[उच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश को अपदस्थ करने की प्रक्रिया के समान प्रक्रिया के द्वारा। | +[[उच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश को अपदस्थ करने की प्रक्रिया के समान प्रक्रिया के द्वारा। | ||
||संविधान के 73वें संशोधन द्वारा अंत:स्थापित अनुच्छेद 243-ट (2) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाता है, अन्यथा नहीं, और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। | ||संविधान के 73वें संशोधन द्वारा अंत:स्थापित अनुच्छेद 243-ट (2) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाता है, अन्यथा नहीं, और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। | ||
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− | {नेहरू समर्थक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-63 | + | {[[जवाहर लाल नेहरू|जवाहर लाल नेहरू]] समर्थक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-63 |
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-पूंजीवाद के | -पूंजीवाद के | ||
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+गणतांत्रिक समाजवाद के | +गणतांत्रिक समाजवाद के | ||
-अराजकतावाद के | -अराजकतावाद के | ||
− | ||[[पं. जवाहरलाल नेहरू]] गणतांत्रिक समाजवाद के समर्थक थे। जवाहर लाल नेहरू की लोकतंत्र में गहरी आस्था | + | ||[[पं. जवाहरलाल नेहरू]] गणतांत्रिक समाजवाद के समर्थक थे। जवाहर लाल नेहरू की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी। ये आर्थिक नियोजन (समाजवाद) तथा, लोकतंत्र में समंवय स्थापित करना चाहते थे। इसलिए लोकतांत्रिक समाजवाद में निष्ठा व्यक्त की। इसीलिए नेहरू जी ने [[भारत]] में भूमि सुधार को प्राथमिकता दी तथा जमींदारी, तालुकेदारी प्रथाओं को मिटाने की पहल की। इन्होंने राष्ट्रीयकरण की नीति भी अपनाई और प्रतिरक्षा तथा अन्य प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] |
{सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78 | {सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78 | ||
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+मैक्स वेबर | +मैक्स वेबर | ||
-कार्ल पॉपर | -कार्ल पॉपर | ||
− | ||मैक्स वेबर ने सत्ता के वर्गीकरण का प्रयास किया था। वेबर का नौकरशाही सिद्धांत सत्ता के सिद्धांत का ही एक अंग है। वेबर ने सत्ता के कुल तीन प्रकार माने हैं- 1. पारंपरिक सत्ता, 2.श्रद्धा पर आधारित सत्ता अथवा करिश्माई सत्ता, तथा 3.वैधानिक प्रभुत्व। नौकरशाही इनमें से अंतिम श्रेणी में आती है। विधिक स्तर से पोषित एवं समर्थिक नौकरशाही को उन्होंने संगठन का सबसे प्रभावशाली स्वरूप माना। | + | ||मैक्स वेबर ने सत्ता के वर्गीकरण का प्रयास किया था। वेबर का नौकरशाही सिद्धांत सत्ता के सिद्धांत का ही एक अंग है। वेबर ने सत्ता के कुल तीन प्रकार माने हैं- 1. पारंपरिक सत्ता, 2.श्रद्धा पर आधारित सत्ता अथवा करिश्माई सत्ता, तथा 3.वैधानिक प्रभुत्व। नौकरशाही इनमें से अंतिम श्रेणी में आती है। विधिक स्तर से पोषित एवं समर्थिक नौकरशाही को उन्होंने संगठन का सबसे प्रभावशाली स्वरूप माना।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[प्लेटो]] |
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[कार्ल मार्क्स]] द्वारा नहीं लिखी गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-38 | {निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[कार्ल मार्क्स]] द्वारा नहीं लिखी गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-38 | ||
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-दास कैपिटल | -दास कैपिटल | ||
− | +ग्रामर | + | +ग्रामर ऑफ़ पॉलिटिक्स |
− | -कम्युनिस्ट | + | -कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो |
− | -वैल्यू प्राइस एंड | + | -वैल्यू प्राइस एंड प्रॉफ़िट |
{समाजवाद की संकल्पना किसके द्वारा क्रमबद्धता से विकसित की गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-49 | {समाजवाद की संकल्पना किसके द्वारा क्रमबद्धता से विकसित की गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-49 | ||
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-सेंट साइमन | -सेंट साइमन | ||
+[[कार्ल मार्क्स]] | +[[कार्ल मार्क्स]] | ||
− | ||समाजवाद को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप देने का श्रेय [[कार्ल मार्क्स]] को दिया जाता है। इसीलिए उनके समाजवाद को 'वैज्ञानिक समाजवाद' कहा जाता है। लास्की के अनुसार, 'मार्क्स ने समाजवाद को अव्यवस्थित रूप में पाया और इसे एक निश्चित आंदोलन बना दिया"। | + | ||समाजवाद को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप देने का श्रेय [[कार्ल मार्क्स]] को दिया जाता है। इसीलिए उनके समाजवाद को 'वैज्ञानिक समाजवाद' कहा जाता है। लास्की के अनुसार, 'मार्क्स ने समाजवाद को अव्यवस्थित रूप में पाया और इसे एक निश्चित आंदोलन बना दिया"।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[कार्ल मार्क्स]] |
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{निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50 | {निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50 |
09:29, 8 नवम्बर 2017 का अवतरण
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