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||परंपरागत राजनीति विज्ञान तथ्यों के अध्ययन पर बल नहीं देता है बल्कि व्यवहारवाद नई पद्धतियों, नई तकनीकों, नए तथ्यों और एक व्यवस्थित सिद्धांत के विकास के अध्ययन पर बल देता है, द्वितीय महायुद्ध के पश्चात, परंपरागत राजनीति विज्ञान के विरोध में एक व्यापक क्रांति हुई, इसे 'व्यवहारवाद' का नाम दिया गया। व्यवहारवाद की आधारभूत मान्यता यह है कि प्राकृतिक विज्ञानों और समाज विज्ञानों के बीच एक गुणात्मक निरंतरता है।
 
||परंपरागत राजनीति विज्ञान तथ्यों के अध्ययन पर बल नहीं देता है बल्कि व्यवहारवाद नई पद्धतियों, नई तकनीकों, नए तथ्यों और एक व्यवस्थित सिद्धांत के विकास के अध्ययन पर बल देता है, द्वितीय महायुद्ध के पश्चात, परंपरागत राजनीति विज्ञान के विरोध में एक व्यापक क्रांति हुई, इसे 'व्यवहारवाद' का नाम दिया गया। व्यवहारवाद की आधारभूत मान्यता यह है कि प्राकृतिक विज्ञानों और समाज विज्ञानों के बीच एक गुणात्मक निरंतरता है।
  
{जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों का विभायन किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-11
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{जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों का विभाजन किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-11
 
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{अध्यक्षात्मक व्यवस्था में कैबिनट के सदस्य जिम्मेदार होते हैं- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-94,प्रश्न-3
 
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||अध्यक्षात्मक प्रणाली में कैबिनेट के सदस्य राष्ट्रपति के प्रति जिम्मेदार होते हैं। राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को नियुक्त करता है और उन्हें जब चाहे परच्युत करता है।
 
||अध्यक्षात्मक प्रणाली में कैबिनेट के सदस्य राष्ट्रपति के प्रति जिम्मेदार होते हैं। राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को नियुक्त करता है और उन्हें जब चाहे परच्युत करता है।
  
{भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-21
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-संसद एवं राज्य-विधान सभा
 
-संसद एवं राज्य-विधान सभा
||भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत मतदाता या जनता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार, "उद्देशिका स्पष्ट करती है कि भारतीय संविधान का आधार जनता है एवं इसमें निहित प्राधिकार और प्रभुसत्ता सब जनता से प्राप्त हुई हैं"।
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||भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत मतदाता या जनता है। [[भीमराव अंबेडकर|डॉ. भीमराव अंबेडकर]] के अनुसार, "उद्देशिका स्पष्ट करती है कि [[भारतीय संविधान]] का आधार जनता है एवं इसमें निहित प्राधिकार और प्रभुसत्ता सब जनता से प्राप्त हुई हैं"।
  
{इंग्लैंड में लॉर्ड बेवरिज प्रतिवेदन ने जिस राज्य की अवधारणा को प्रकट किया था, वह था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-38, प्रश्न-13
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{[[इंग्लैंड]] में लॉर्ड बेवरिज प्रतिवेदन ने जिस राज्य की अवधारणा को प्रकट किया था, वह था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-38, प्रश्न-13
 
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+कल्याणकारी राज्य
 
+कल्याणकारी राज्य
||दिसंबर, 1942 में इंग्लैंड में आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा 'लॉर्ड विलियम बेवरिज प्रतिवेदन' के मध्य से प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट के माध्यम से पांच महा बुराइयों का अंत करने के लिए राज्य द्वारा कदम उठाने को कहा गया। ये पांच बुराइयां- कमी, बीमारी, अज्ञानता, गंदनी तथा आलस्य हैं। यह रिपोर्ड सरकार से नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, पर्याप्त शिक्षा, पर्याप्त आवास तथा पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने की मांग करती है।
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||[[दिसंबर]], 1942 में इंग्लैंड में आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा 'लॉर्ड विलियम बेवरिज प्रतिवेदन' के मध्य से प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट के माध्यम से पांच महाबुराइयों का अंत करने के लिए राज्य द्वारा कदम उठाने को कहा गया। ये पांच बुराइयां- कमी, बीमारी, अज्ञानता, गंदनी तथा आलस्य हैं। यह रिपोर्ड सरकार से नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, पर्याप्त शिक्षा, पर्याप्त आवास तथा पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने की मांग करती है।
  
{'अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-23
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{'अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-23
 
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||अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का प्रतिपादन राजनीतिक क्षेत्र में कार्य मार्क्स द्वारा किया गया। 'अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत' (Theory of Surplus Value) मूलत: रिकार्डो के 'मूल्य का श्रम सिद्धांत' (Labour Theory of value) से प्रभावित है। मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत रिकार्डो के सिद्धांत का ही व्यापक रूप है। इसलिए रिकार्डो को अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का जनक माना जाता है। मार्क्स के अनुसार, "अतिरिक्त मूल्य उन दो मूल्यों का अंतर है जिसे एक मजदूर पैदा करता है और जो वह वास्तव में पाता है।"
 
||अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का प्रतिपादन राजनीतिक क्षेत्र में कार्य मार्क्स द्वारा किया गया। 'अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत' (Theory of Surplus Value) मूलत: रिकार्डो के 'मूल्य का श्रम सिद्धांत' (Labour Theory of value) से प्रभावित है। मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत रिकार्डो के सिद्धांत का ही व्यापक रूप है। इसलिए रिकार्डो को अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का जनक माना जाता है। मार्क्स के अनुसार, "अतिरिक्त मूल्य उन दो मूल्यों का अंतर है जिसे एक मजदूर पैदा करता है और जो वह वास्तव में पाता है।"
  
{यदि संविधान परम संप्रभु है, तो तात्कालिक संप्रभुता आरोपित है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-26,प्रश्न-22
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+राष्ट्र में
 
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-विधि निर्माता निकाय में
 
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||यदि संविधान परम संप्रभु है तो तात्कालिक संप्रभुता संविधान का निर्माण करने वाले विधि निर्माता निकाय में आरोपित होगी।
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||यदि संविधान परम संप्रभु है तो तात्कालिक संप्रभुता संविधान का निर्माण करने वाले विधि निर्माता निकाय में आरोपित होगी।
  
 
{प्रभाव की एक विशेषता नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-72,प्रश्न-45
 
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+नाममात्र की शक्ति
 
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-कोई शक्ति नहीं
 
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||संसदीय सरकार में राष्ट्रपति सांविधानिक अध्यक्ष होता है, लेकिन वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि संसदीय शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति शासनाध्यक्ष के पास होती है जबकि नाममात्र की कार्यपालिका शक्ति राज्याध्यक्ष के पास होती है। राज्याध्यक्ष देश का संवैधानिक प्रशासन होता है।
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||संसदीय सरकार में [[राष्ट्रपति]] सांविधानिक अध्यक्ष होता है, लेकिन वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है, जिसका प्रधान [[प्रधानमंत्री]] होता है। मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि संसदीय शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति शासनाध्यक्ष के पास होती है जबकि नाममात्र की कार्यपालिका शक्ति राज्याध्यक्ष के पास होती है। राज्याध्यक्ष देश का संवैधानिक प्रशासन होता है।
  
 
{दबाव समूह की प्रमुख विशेषता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-22
 
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-संवैधानिक साधनों का आवश्यक रूप से प्रयोग
 
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||दबाव समूह की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह राजनीति एवं प्रशासन में परोक्ष भूमिका निभाता है।
 
||दबाव समूह की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह राजनीति एवं प्रशासन में परोक्ष भूमिका निभाता है।
 
 
  
 
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12:37, 24 जनवरी 2018 का अवतरण

1 निम्ननिखित में किन दो के राजनीतिक दर्शन में यह मत व्यक्त किया गया है कि समितियां राज्य-संप्रभुता के लिए हानिकारक हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-25,प्रश्न-21

हॉब्स
रूसो
उपर्युक्त दोनों
उपर्युक्त में से कोई नहीं

2 'परंपरागत राजनीति विज्ञान' का निम्न में से कौन लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-71,प्रश्न-44

अमूर्त स्वरूप
काल्पनिकता
दार्शनिकता पर बल
तथ्यों के अध्ययन पर बल

3 जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों का विभाजन किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-11

स्वसंबंधित एवं परसंबंधित
प्रभावात्मक एवं निष्प्रभावात्मक
धार्मिक एवं नास्तिक
उपर्युक्त में कोई नहीं

4 अध्यक्षात्मक व्यवस्था में कैबिनट के सदस्य जिम्मेदार होते हैं- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-94,प्रश्न-3

राष्ट्रपति के प्रति
व्यक्तिगत रूप से विधायिका के प्रति
सामूहिक रूप से विधायिका के प्रति
मतदाताओं के प्रति

5 भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-21

जनता
संविधान
संसद
संसद एवं राज्य-विधान सभा

6 इंग्लैंड में लॉर्ड बेवरिज प्रतिवेदन ने जिस राज्य की अवधारणा को प्रकट किया था, वह था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-38, प्रश्न-13

उदारवादी राज्य
पंथनिरपेक्ष राज्य
समाजवादी राज्य
कल्याणकारी राज्य

7 'अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-23

एडम स्मिथ ने
मार्शल ने
रॉबिंस ने
कार्ल मार्क्स ने

8 यदि संविधान परम संप्रभु है, तो तात्कालिक संप्रभुता आरोपित है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-26,प्रश्न-22

राष्ट्र में
निर्वाचक-गण में
विधि निर्माता निकाय में
शासक दल में

9 प्रभाव की एक विशेषता नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-72,प्रश्न-45

उसे देखा जा सकता है।
उसे देखा नहीं जा सकता है।
उसे महसूस किया जा सकता है।
इसमें द्विसंबंध होता है।

10 निम्न में कौन-सा कथन सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-12

समानता का अर्थ है व्यवहार व पुरस्कारों की पहचान
समानता का अर्थ है समान आय
समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सब मनुष्यों को समान बनाता है
समानता का अर्थ है कि अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए सबको समान अवसर देने का प्रावधान हो

11 एक संसदीय सरकार में राज्य के प्रधान को है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-94,प्रश्न-4

पूर्व शक्ति
सीमित शक्ति
नाममात्र की शक्ति
कोई शक्ति नहीं

12 दबाव समूह की प्रमुख विशेषता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-22

अनिश्चित कार्यकाल
प्रशासन में अरोक्ष भूमिका
सर्वव्यापक प्रकृति
संवैधानिक साधनों का आवश्यक रूप से प्रयोग