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'''डॉ. नजमा हेपतुल्ला''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Najma Heptulla'', जन्म- [[13 अप्रैल]], [[1940]], [[भोपाल]], [[मध्य प्रदेश]]) सौम्य, मृदुल एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली डॉ. हेपतुल्ला भारतीय राजनीति में उन चंद महिला राजनीतिज्ञों में से हैं जिन्होंने योग्यता के बल पर अपना एक मुकाम बनाया है। 74 वर्षीय नजमा हेपतुल्ला, मोदी मंत्रिमंडल में सब से अधिक उम्र की और एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्या हैं, उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया है।
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==जन्म तथा शिक्षा==
 
==जन्म तथा शिक्षा==
13 अप्रैल 1940 को मध्यप्रदेश के भोपाल मे जन्मी डॉ. हेपतुल्ला को राजनीति बिरासत में मिली है। रिश्ते में मौलाना अबुल कलाम आजाद की नातिन हेपतुल्ला ने एमएससी करने के बाद हृदय रोग विज्ञान में पीएचडी प्राप्त की पर राजनीति में दिलचस्पी के कारण वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ी रहीं और जमीनी स्तर पर काम करती रहीं।
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पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह का जन्म [[3 जनवरी]] [[1938]] को राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव जसोल में [[राजपूत]] परिवार में हुआ। पिता का नाम ठाकुर सरदारा सिंह और माता कुंवर बाई सा थीं। उन्होंने मेयो कॉलेज अजमेर से बीए, बीएससी करने के अलावा भारतीय सैन्य अकादमी [[देहरादून]] और खड़गवासला से भी सैन्य प्रशिक्षण लिया। वे पंद्रह वर्ष की उम्र में [[भारतीय सेना]] में शामिल हो गए। [[जोधपुर]] के पूर्व महाराजा गजसिंह के करीबी जसवंत सिंह [[1960]] के दशक में वे भारतीय सेना में अधिकारी थे।
 
==राजनैतिक जीवन==
 
==राजनैतिक जीवन==
मुंबई प्रदेश कांग्रेस कमेटी की महासचिव और उपाध्यक्ष रहीं हेपतुल्ला 1980 से राज्यसभा की सदस्य हैं। वह 1985 से 1986 तथा 1988 से जुलाई 2007 तक राज्यसभा की उपसभापति रहीं इस दौरान उन्होंने सदन की कार्यवाही का कुशल संचालन किया और वह सत्तापक्ष तथा विपक्ष में भी लोकप्रिय बनी रहीं। लेकिन श्रीमती सोनिया गाँधी से उनके रिश्तों में आई खटास के बाद वह भाजपा में शामिल हो गई। इस समय वह राज्यसभा में भाजपा की सांसद है।
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जसवंत सिंह [[1980]] में पहली बार [[राज्यसभा]] के लिए चुने गए। [[1996]] में उन्हें [[अटल बिहारी वाजपेयी]] की सरकार में वित्तमंत्री चुना गया। हालांकि वह 15 दिन ही वित्तमंत्री रहे और फिर वाजपेयी सरकार गिर गई। दो साल बाद [[1998]] में दोबारा वाजपेयी की सरकार बनने पर उन्हें विदेशमंत्री बनाया गया।
 
 
तीन बेटियों की माँ और सफल वैवाहिक जीवन बिता रही डॉ. हेपतुल्ला भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की अध्यक्ष भी रहीं। सन 2002 में उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस का उम्मीदवार बनाए जाने की भी चर्चा चली, पर वह उम्मीदवार नहीं बनाई गईं। उसके बाद वह कांग्रेस के भीतर असंतुष्ट रहने लगी और धीरे-धीरे राजग के निकट आने लगीं।
 
 
 
सन 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा का दामन पकड़ लिया। वे जुलाई 2004 में दोबारा राज्यसभा के लिए भाजपा की टिकट पर चुनी गईं। वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी बनाई गईं।
 
 
 
राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाता रहा है कि अगर डॉ. हेपतुल्ला कांग्रेस में होती तो वे अपनी योग्यता के आधार पर उपराष्ट्रपति पद के लिए स्वाभाविक उम्मीदवार होती। भाजपा में शामिल होने के बाद यह भी माना जाने लगा था कि उपराष्ट्रपति पद के लिए वही पार्टी की स्वाभाविक प्रत्याशी होंगी।
 
 
 
74 वर्षीय नजमा हेपतुल्ला, मोदी मंत्रिमंडल में सब से अधिक उम्र की और एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्या हैं, उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया है। नजमा हेपतुल्ला ने मुंबई प्रदेश कांग्रेस कमेटी की महासचिव के तौर पर अपना राष्ट्रीय जीवन शुरू किया. बाद में उपाध्यक्ष का दायित्व भी निभाया. वे 1985 से 1986  और 1988 से 2007 तक राज्यसभा की उपसभापति भी रहीं. इस दौरान उन्होंने सदन की कार्यवाही का कुशल संचालन किया और सत्ता पक्ष तथा विपक्ष में भी लोकप्रिय बनीं।
 
  
13 अप्रैल 1940 को मध्य प्रदेश के भोपाल में जन्मीं डा. हेपतुल्ला को राजनीति विरासत में मिली है. रिश्ते में मोहम्मद अबुल कलाम आजाद की नातिन, नजमा ने एम.एससी. करने के बाद यूनिवर्सिटी औफ डेनवर से हृदय रोग विज्ञान में पी.एचडी. प्राप्त की पर राजनीति में दिलचस्पी के कारण वे इसी में सक्रिय हो गईं।
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विदेशमंत्री के रूप में उन्होंने [[भारत]]-[[पाकिस्तान]] संबंधों को सुधारने का भरसक प्रयास किया। [[2000]] में उन्होंने भारत के रक्षामंत्री का कार्यभार भी संभाला। [[2001]] में उन्हें सर्वश्रेष्ठ [[सांसद]] का सम्मान भी मिला। फिर साल [[2002]] में [[यशवंत सिन्हा]] के स्थान पर उन्हें वित्तमंत्री बनाया गया और [[मई]] [[2004]] तक उन्होंने वित्तमंत्री के रूप में कार्य किया।
  
राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ वे लेखिका भी हैं. उन्होंने ‘एड्स: ऐप्रोचेज टु प्रिवैंशन’ नाम की किताब भी लिखी है. इस के अलावा भी वे कई तरह के विषयों पर लिखती रही हैं।
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[[2009]] को भारत विभाजन पर उनकी किताब जिन्ना-इंडिया, पार्टिशन, इंडेपेंडेंस पर खासा बवाल हुआ। नेहरू-पटेल की आलोचना और जिन्ना की प्रशंसा के लिए उन्हें [[भारतीय जनता पार्टी|भाजपा]] से निकाल दिया गया। कुछ दिनों बाद [[लालकृष्ण आडवाणी]] के प्रयासों से पार्टी में उनकी सम्मानजनक वापसी भी हो गई। भले ही वह पार्टी में वापसी करने में सफल रहे पर पार्टी में उन्हें नेपथ्य में धकेल दिया गया।
  
नजमा के पति अकबर अली ए. हेपतुल्ला का निधन हो चुका है. उनकी 3 बेटियां हैं, जो अमेरिका में हैं।
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==संबंधित लेख==
 
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08:07, 8 मार्च 2016 का अवतरण

सिद्धार्थ
जसवंत सिंह
पूरा नाम जसवंत सिंह
जन्म 3 जनवरी, 1938
जन्म भूमि बाड़मेर, राजस्थान
अभिभावक पिता- ठाकुर सरदारा सिंह, माता- कुंवर बाई सा
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ और लेखक
पार्टी भारतीय जनता पार्टी
पद पूर्व केन्द्रीय मंत्री
शिक्षा बीए, बीएससी
भाषा हिंदी

जसवंत सिंह (अंग्रेज़ी: Najma Heptulla, जन्म- 3 जनवरी, 1938, बाड़मेर, राजस्थान) एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता हैं। वे अपनी नम्रता और नैतिकता के लिए जाने जाते है। वे उन गिने-चुने नेताओं में से हैं, जिन्हें भारत के रक्षा मंत्री, वित्तमंत्री और विदेशमंत्री बनने का अवसर मिला।

जन्म तथा शिक्षा

पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह का जन्म 3 जनवरी 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव जसोल में राजपूत परिवार में हुआ। पिता का नाम ठाकुर सरदारा सिंह और माता कुंवर बाई सा थीं। उन्होंने मेयो कॉलेज अजमेर से बीए, बीएससी करने के अलावा भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून और खड़गवासला से भी सैन्य प्रशिक्षण लिया। वे पंद्रह वर्ष की उम्र में भारतीय सेना में शामिल हो गए। जोधपुर के पूर्व महाराजा गजसिंह के करीबी जसवंत सिंह 1960 के दशक में वे भारतीय सेना में अधिकारी थे।

राजनैतिक जीवन

जसवंत सिंह 1980 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए। 1996 में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्तमंत्री चुना गया। हालांकि वह 15 दिन ही वित्तमंत्री रहे और फिर वाजपेयी सरकार गिर गई। दो साल बाद 1998 में दोबारा वाजपेयी की सरकार बनने पर उन्हें विदेशमंत्री बनाया गया।

विदेशमंत्री के रूप में उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों को सुधारने का भरसक प्रयास किया। 2000 में उन्होंने भारत के रक्षामंत्री का कार्यभार भी संभाला। 2001 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान भी मिला। फिर साल 2002 में यशवंत सिन्हा के स्थान पर उन्हें वित्तमंत्री बनाया गया और मई 2004 तक उन्होंने वित्तमंत्री के रूप में कार्य किया।

2009 को भारत विभाजन पर उनकी किताब जिन्ना-इंडिया, पार्टिशन, इंडेपेंडेंस पर खासा बवाल हुआ। नेहरू-पटेल की आलोचना और जिन्ना की प्रशंसा के लिए उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया। कुछ दिनों बाद लालकृष्ण आडवाणी के प्रयासों से पार्टी में उनकी सम्मानजनक वापसी भी हो गई। भले ही वह पार्टी में वापसी करने में सफल रहे पर पार्टी में उन्हें नेपथ्य में धकेल दिया गया।

यहां तक की 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में उन्हें पार्टी ने बाड़मेर से सांसद का टिकट भी नहीं दिया। इतना ही नहीं अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए एक बार फिर छह साल के लिए पार्टी से ‍निष्काषित भी कर दिया गया। मोदी लहर के कारण उन्हें कर्नल सोनाराम के हाथों हार का सामना करना पड़ा।


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