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* यहाँ हम भारतीय कला से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद भारतीय [[साहित्य]], [[संगीत]], नाटक और [[चित्रकला]] आदि को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय और राज्य कला अकादमियों की स्थापना की गयी।  
 
* यहाँ हम भारतीय कला से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद भारतीय [[साहित्य]], [[संगीत]], नाटक और [[चित्रकला]] आदि को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय और राज्य कला अकादमियों की स्थापना की गयी।  
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* भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय और रसात्मक तत्त्व उसके कला रूपों में प्रकट हुए हैं। मानवीय संबंधों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को 'कला' उजागार करती है। -'''[[महादेवी वर्मा]]'''
 
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* भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय और रसात्मक तत्त्व उसके कला रूपों में प्रकट हुए हैं। मानवीय संबंधों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को 'कला' उजागार करती है। -'''[[महादेवी वर्मा]]'''
 
 
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[नृत्य कला]]'''</div>
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[मेवाड़ की चित्रकला]]'''</div>
[[चित्र:Bharatanatyam-Dance.jpg|right|100px|भरतनाट्यम नृत्य|link=भरतनाट्यम नृत्य]]
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[[चित्र:Mewar-painting.jpg|right|120px|शिकार के लिए जाते हुए मेवाड़ के प्रधानमंत्री अमीर चंद बडवा|link=मेवाड़ की चित्रकला]]
* जयमंगल के मतानुसार [[चौंसठ कलाएँ|चौंसठ कलाओं]] में से यह एक कला है।
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* 'नृत्य में करण, अंगहार, विभाव, भाव, अनुभाव और रसों की अभिव्यक्ति की जाती है। नृत्य के दो प्रकार हैं- '''नाट्य और अनाट्य'''।
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        '''[[मेवाड़ की चित्रकला]]''' काफ़ी लम्बे समय से ही लोगों का ध्यान आकर्षित करती रही है। यहाँ चित्रांकन की अपनी एक विशिष्ट परंपरा है, जिसे यहाँ के चित्रकार पीढ़ियों से अपनाते रहे हैं। 'चितारे' अपने अनुभवों एवं सुविधाओं के अनुसार चित्रण के कई नए तरीक़े भी खोजते रहे। रोचक तथ्य यह है कि यहाँ के कई स्थानीय चित्रण केन्द्रों में वे परंपरागत तकनीक आज भी जीवित है। तकनीकों का प्रादुर्भाव पश्चिमी भारतीय चित्रण पद्धति के अनुरूप ही [[ताड़पत्र (लेखन सामग्री)|ताड़पत्रों]] के चित्रण कार्यों में ही उपलब्ध होता है। यशोधरा द्वारा उल्लेखित षडांग के संदर्भ एवं 'समराइच्चकहा' एवं 'कुवलयमाला' कहा जैसे ग्रंथों में 'दट्ठुम' शब्द का प्रयोग चित्र की समीक्षा हेतु हुआ है, जिससे इस क्षेत्र की उत्कृष्ट परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। ये चित्र मूल्यांकन की कसौटी के रूप में प्रमुख मानक तथा समीक्षा के आधार थे। विकास के इस सतत् प्रवाह में विष्णुधर्मोत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार एवं चित्र लक्षण जैसे अन्य ग्रंथों में वर्णित चित्रकर्म के सिद्धांत का भी पालन किया गया है। परंपरागत कला सिद्धांतों के अनुरूप ही शास्त्रीय विवेचन में आये आदर्शवाद एवं यथार्थवाद का निर्वाह हुआ है। '''[[मेवाड़ की चित्रकला|.... और पढ़ें]]'''  
* स्वर्ग-नरक या [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] के निवासियों की कृतिका अनुकरण को 'नाट्य' कहा जाता है और अनुकरण-विरहित नृत्य को 'अनाट्य' कहा जाता है।
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* [[भारत]] में शास्त्रीय और लोक परम्पराओं के ज़रिये एक प्रकार की नृत्य-नाटिका का उदय हुआ है। जो पूर्णतः एक नाट्य स्वरूप है।
 
* भारत में नृत्य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में है। इस विशाल उपमहाद्वीप में नृत्यों की विभिन्न विधाओं ने जन्म लिया है।  
 
* वर्तमान समय में भारत में नृत्य की लोकप्रियता इस तथ्य से आंकी जा सकती है कि शायद ही कोई ऐसी भारतीय फ़िल्म होगी, जिसमें आधे दर्जन नृत्य न हों।
 
* भारत की सभी संस्कृतियों में किसी न किसी रूप में नृत्य विद्यमान है। '''[[नृत्य कला|.... और पढ़ें]]'''  
 
 
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[शास्त्रीय नृत्य]]'''</div>
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[आलम आरा]]'''</div>
[[चित्र:Birju-Maharaj-1.jpg|100px|right|बिरजू महाराज|शास्त्रीय नृत्य]]
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[[चित्र:Alam-Ara-Poster.jpg|120px|border|right|link=आलम आरा]]
 
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    '''शास्त्रीय नृत्य''' प्राचीन [[हिन्दू]] ग्रंथों के सिंद्धातों एवं तकनीकों और [[नृत्य]] के तकनीकी ग्रंथों तथा [[कला]] संबद्वता पर पूर्ण या आंशिक रूप से आधारित है। प्रारंभिक तौर पर यह माना जाता है कि [[भरत नाट्यशास्त्र]] को द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास लिखा गया था। शास्त्रीय नृत्य की अधिकतम प्रचलित प्रणालियाँ उच्च स्तर की विस्तृत प्रणालियों से शासित होती थीं और इनका उदय आम आदमी के बीच से ही होता था। शास्त्रीय नृत्य और [[लोक नृत्य]] के बीच मुख्य अंतर यह है कि यह पूर्व में जान-बूझकर कलात्मकता द्वारा किया गया प्रयास है। नृत्य और नाटक कला अपने अग्रिम सिंद्वातों और शास्त्रों के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं। भावना में चित्रित अवधारणा, व्यक्तिगत नृत्य की मोहकता और पृथकता की कला प्रवीणता तीनों ही शास्त्रीय नृत्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। '''[[शास्त्रीय नृत्य|.... और पढ़ें]]'''</Poem>
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        '''[[आलम आरा]]''' [[भारत]] की पहली बोलती फ़िल्म है जिसका निर्देशन 'अर्देशिर ईरानी' ने किया था। आलम आरा का प्रदर्शन (रिलीज) [[14 मार्च]] [[1931]] को हुआ। फ़िल्म के नायक की भूमिका निभाई मास्टर विट्ठल ने और नायिका थीं ज़ुबैदा। फ़िल्म में [[पृथ्वीराज कपूर]] की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। राजकुमार और बंजारिन की प्रेम कहानी पर आधारित यह फ़िल्म एक पारसी नाटक से प्रेरित थी। पहली सवाक फ़िल्म होने के कारण सामने आने वाली तमाम समस्याओं के बावजूद अर्देशिर ईरानी ने साढ़े दस हज़ार फ़ीट लंबी इस फ़िल्म का निर्माण चार महीने में ही पूरा किया। इस पर कुल मिलाकर चालीस हज़ार रुपए की लागत आई थी। 'आलम आरा' की कामयाबी को देखते हुए तीसरे ही [[सप्ताह]] में उर्दू फ़िल्म 'शीरी-फ़रहाद' आई। इस फ़िल्म में आलम आरा के मुक़ाबले तीन गुना अधिक [[गीत]] थे जो जहाँआरा कज्जन और मास्टर निसार की आवाज़ों में गाए गए थे। [[भारत]] में बनी पहली बोलती फ़िल्म 'आलम आरा' की आवाज़ अब कहीं सुनाई नहीं देगी। [[चेन्नई]] में क्षेत्रीय सिनेमा पर आयोजित एक सेमिनार में सूचना व प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव वी. बी. प्यारेलाल के अनुसार आलम आरा के सभी प्रिंट नष्ट हो चुके हैं। '''[[आलम आरा|.... और पढ़ें]]'''</Poem>
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* [[चौंसठ कलाएँ]]
 
* [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]]
 
 
* [[ललित कला अकादमी]]
 
* [[ललित कला अकादमी]]
 
* [[आलम आरा]]
 
* [[आलम आरा]]
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* [[शास्त्रीय नृत्य]]
 
* [[शास्त्रीय नृत्य]]
 
* [[कुट्टी अट्टम नृत्य]]
 
* [[कुट्टी अट्टम नृत्य]]
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* [[चौंसठ कलाएँ]]
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* [[जैन चित्रकला]]
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* [[पाल चित्रकला]]
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* [[मुग़ल चित्रकला]]
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*  [[पटना चित्रकला]]
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* [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]]
 
* [[मोहनी अट्टम नृत्य]]
 
* [[मोहनी अट्टम नृत्य]]
 
* [[सालारजंग संग्रहालय]]
 
* [[सालारजंग संग्रहालय]]
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* [[मुग़लकालीन चित्रकला]]
 
* [[मुग़लकालीन चित्रकला]]
 
* [[मुग़ल ए आज़म]]
 
* [[मुग़ल ए आज़म]]
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* [[रासलीला]]
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*  [[नौटंकी]]
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*  [[पाबूजी की फड़]]
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*  [[भंडैती]]
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*  [[देवदास (1936)]]
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* [[दो आँखें बारह हाथ]]
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* [[दो बीघा ज़मीन]]
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* [[मेवाड़ की चित्रकला (तकनीकी)|मेवाड़ की चित्रकला]]
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* [[तंजौर कला]]
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* [[मधुबनी चित्रकला]]
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* [[गुलेरी चित्रकला]]
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* [[बूँदी चित्रकला]]
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* [[बसोहली चित्रकला]]
 
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14:30, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण

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  • यहाँ हम भारतीय कला से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद भारतीय साहित्य, संगीत, नाटक और चित्रकला आदि को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय और राज्य कला अकादमियों की स्थापना की गयी।
  • भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय और रसात्मक तत्त्व उसके कला रूपों में प्रकट हुए हैं। मानवीय संबंधों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को 'कला' उजागार करती है। -महादेवी वर्मा
मुख्य आकर्षण- कला सामान्य ज्ञान · कला कोश
  • भारतकोश पर लेखों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती है जो आप देख रहे वह "प्रारम्भ मात्र" ही है...
विशेष आलेख
शिकार के लिए जाते हुए मेवाड़ के प्रधानमंत्री अमीर चंद बडवा

        मेवाड़ की चित्रकला काफ़ी लम्बे समय से ही लोगों का ध्यान आकर्षित करती रही है। यहाँ चित्रांकन की अपनी एक विशिष्ट परंपरा है, जिसे यहाँ के चित्रकार पीढ़ियों से अपनाते रहे हैं। 'चितारे' अपने अनुभवों एवं सुविधाओं के अनुसार चित्रण के कई नए तरीक़े भी खोजते रहे। रोचक तथ्य यह है कि यहाँ के कई स्थानीय चित्रण केन्द्रों में वे परंपरागत तकनीक आज भी जीवित है। तकनीकों का प्रादुर्भाव पश्चिमी भारतीय चित्रण पद्धति के अनुरूप ही ताड़पत्रों के चित्रण कार्यों में ही उपलब्ध होता है। यशोधरा द्वारा उल्लेखित षडांग के संदर्भ एवं 'समराइच्चकहा' एवं 'कुवलयमाला' कहा जैसे ग्रंथों में 'दट्ठुम' शब्द का प्रयोग चित्र की समीक्षा हेतु हुआ है, जिससे इस क्षेत्र की उत्कृष्ट परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। ये चित्र मूल्यांकन की कसौटी के रूप में प्रमुख मानक तथा समीक्षा के आधार थे। विकास के इस सतत् प्रवाह में विष्णुधर्मोत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार एवं चित्र लक्षण जैसे अन्य ग्रंथों में वर्णित चित्रकर्म के सिद्धांत का भी पालन किया गया है। परंपरागत कला सिद्धांतों के अनुरूप ही शास्त्रीय विवेचन में आये आदर्शवाद एवं यथार्थवाद का निर्वाह हुआ है। .... और पढ़ें

चयनित लेख
Alam-Ara-Poster.jpg

        आलम आरा भारत की पहली बोलती फ़िल्म है जिसका निर्देशन 'अर्देशिर ईरानी' ने किया था। आलम आरा का प्रदर्शन (रिलीज) 14 मार्च 1931 को हुआ। फ़िल्म के नायक की भूमिका निभाई मास्टर विट्ठल ने और नायिका थीं ज़ुबैदा। फ़िल्म में पृथ्वीराज कपूर की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। राजकुमार और बंजारिन की प्रेम कहानी पर आधारित यह फ़िल्म एक पारसी नाटक से प्रेरित थी। पहली सवाक फ़िल्म होने के कारण सामने आने वाली तमाम समस्याओं के बावजूद अर्देशिर ईरानी ने साढ़े दस हज़ार फ़ीट लंबी इस फ़िल्म का निर्माण चार महीने में ही पूरा किया। इस पर कुल मिलाकर चालीस हज़ार रुपए की लागत आई थी। 'आलम आरा' की कामयाबी को देखते हुए तीसरे ही सप्ताह में उर्दू फ़िल्म 'शीरी-फ़रहाद' आई। इस फ़िल्म में आलम आरा के मुक़ाबले तीन गुना अधिक गीत थे जो जहाँआरा कज्जन और मास्टर निसार की आवाज़ों में गाए गए थे। भारत में बनी पहली बोलती फ़िल्म 'आलम आरा' की आवाज़ अब कहीं सुनाई नहीं देगी। चेन्नई में क्षेत्रीय सिनेमा पर आयोजित एक सेमिनार में सूचना व प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव वी. बी. प्यारेलाल के अनुसार आलम आरा के सभी प्रिंट नष्ट हो चुके हैं। .... और पढ़ें

कुछ लेख
कला श्रेणी वृक्ष
चयनित चित्र

छाऊ नृत्य, पश्चिम बंगाल

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