"फ़ॉर्मूला वन" के अवतरणों में अंतर
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एफ़-वन के तहत कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इनमें एफ़ वन ग्रैंड प्रिक्स (ग्रांप्री) प्रमुख है। ग्रांप्री के लिए दो चरण अपनाये जाते हैं। पहले बनी-बनायी सर्किट पर गाड़ी दौड़ायी जाती है, उसके बाद सार्वजनिक सड़कों पर इसका मुकाबला होता है। इन दोनों चरण के नतीजों को जोड़कर दो वार्षिक विश्व चैंपियनशिप तय किये जाते हैं। इनमें पहला एफ़-वन चालक के लिए होता है और दूसरा पूरी टीम के लिए। फ़ॉर्मूला वन के लिए जो कार या गाड़ियाँ चुनी जाती है, वह [[गति]] में काफ़ी [[तेज]] होती हैं। | एफ़-वन के तहत कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इनमें एफ़ वन ग्रैंड प्रिक्स (ग्रांप्री) प्रमुख है। ग्रांप्री के लिए दो चरण अपनाये जाते हैं। पहले बनी-बनायी सर्किट पर गाड़ी दौड़ायी जाती है, उसके बाद सार्वजनिक सड़कों पर इसका मुकाबला होता है। इन दोनों चरण के नतीजों को जोड़कर दो वार्षिक विश्व चैंपियनशिप तय किये जाते हैं। इनमें पहला एफ़-वन चालक के लिए होता है और दूसरा पूरी टीम के लिए। फ़ॉर्मूला वन के लिए जो कार या गाड़ियाँ चुनी जाती है, वह [[गति]] में काफ़ी [[तेज]] होती हैं। | ||
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लगभग छह महीने यहां फ़ॉर्मूला वन प्रतियोगिता चलती रहती हैं। यदि फ़ॉर्मूला वन की पहली रेसिंग की बात करें तो 1920-30 के दशक में इसका आयोजन शुरू हुआ। हालांकि, 1947 के पहले तक इसका आयोजन औपचारिक तौर पर नहीं होता था। इस खेल के प्रमुख खिलाड़ियों की बात करें तो माइकल शुमाकर, निको रोजबर्ग, राफ़ शुमाकर और भारतीय खिलाड़ी में [[नारायण कार्तिकेयन]] हैं। | लगभग छह महीने यहां फ़ॉर्मूला वन प्रतियोगिता चलती रहती हैं। यदि फ़ॉर्मूला वन की पहली रेसिंग की बात करें तो 1920-30 के दशक में इसका आयोजन शुरू हुआ। हालांकि, 1947 के पहले तक इसका आयोजन औपचारिक तौर पर नहीं होता था। इस खेल के प्रमुख खिलाड़ियों की बात करें तो माइकल शुमाकर, निको रोजबर्ग, राफ़ शुमाकर और भारतीय खिलाड़ी में [[नारायण कार्तिकेयन]] हैं। | ||
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किसी अन्य खेल की तरह फॉर्मूला-1 रेस में भी खेल अंकों का ही होता है। आइए जानें कि क्या है इस खेल का अंकगणित। फॉर्मूला-1 रेस हर साल होने वाला टूर्नामेंट है। इसके एक सत्र में कुल 19 (इस सत्र) रेस होती हैं। हर रेस का आयोजन स्थल निर्धारित होता है। हर रेस अलग-अलग देश में होती है। ये वे मेजबान देश हैं, जिनके पास फॉर्मूला-1 सर्किट है। अब भारत भी इस क्लब में शामिल हो गया है। 9 महीने में 19 रेस, सत्र की शुरुआत होती है [[मार्च]] में और समाप्ति [[नवंबर]]-[[दिसंबर]] में। इस तरह अमूमन एक माह में औसत दो-तीन रेस हो जाती हैं। | किसी अन्य खेल की तरह फॉर्मूला-1 रेस में भी खेल अंकों का ही होता है। आइए जानें कि क्या है इस खेल का अंकगणित। फॉर्मूला-1 रेस हर साल होने वाला टूर्नामेंट है। इसके एक सत्र में कुल 19 (इस सत्र) रेस होती हैं। हर रेस का आयोजन स्थल निर्धारित होता है। हर रेस अलग-अलग देश में होती है। ये वे मेजबान देश हैं, जिनके पास फॉर्मूला-1 सर्किट है। अब भारत भी इस क्लब में शामिल हो गया है। 9 महीने में 19 रेस, सत्र की शुरुआत होती है [[मार्च]] में और समाप्ति [[नवंबर]]-[[दिसंबर]] में। इस तरह अमूमन एक माह में औसत दो-तीन रेस हो जाती हैं। | ||
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शीर्ष दस ड्राइवरों को स्थान के मुताबिक [[अंक]] मिलते हैं, जिसका नियम निर्धारित है। विजेता को 25 अंक, दूसरे स्थान पर रहने वाले को 18 अंक, तीसरे को 15, चौथे को 12, पाचवें को 10, छठे को 8, सातवें को 6, आठवें को 4, नौवें को 2 और दसवें को 1 अंक दिया जाता है। हर टीम के दो ड्राइवर रेस में होते हैं, लिहाजा दोनों के अंकों के योग टीम को मिलने वाले अंकों में जुड़ते हैं। मसलन, यदि टीम का एक ड्राइवर पहले स्थान पर रहता है और दूसरा पांचवें स्थान पर, तो टीम को मिलेंगे कुल 35 अंक। इसी तरह सत्र की सभी 19 रेस में टीम और ड्राइवर के कुल अंकों के आधार पर सत्र के चैंपियन ड्राइवर और टीम का निर्धारण किया जाता है। इसकी घोषणा सत्र की अंतिम रेस के बाद होती है। चौंकना मना है एफ-1 कार के टायर एक सेकंड में 50 बार घूमते हैं, जिस कारण रेस के दौरान ये काफी गर्म हो जाते हैं। खास बात यह है कि यह गर्माहट इनके लिए फायदेमंद रहती है। ये जितना गर्म होते हैं उनकी जमीन पर पकड़ भी उतनी ही अच्छी होती जाती है। सामान्य तापमान में ये टायर जब 900 से 1200 डिग्री सेंटीग्रेट गर्म हो जाते हैं तब ट्रैक पर इनकी पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती है। | शीर्ष दस ड्राइवरों को स्थान के मुताबिक [[अंक]] मिलते हैं, जिसका नियम निर्धारित है। विजेता को 25 अंक, दूसरे स्थान पर रहने वाले को 18 अंक, तीसरे को 15, चौथे को 12, पाचवें को 10, छठे को 8, सातवें को 6, आठवें को 4, नौवें को 2 और दसवें को 1 अंक दिया जाता है। हर टीम के दो ड्राइवर रेस में होते हैं, लिहाजा दोनों के अंकों के योग टीम को मिलने वाले अंकों में जुड़ते हैं। मसलन, यदि टीम का एक ड्राइवर पहले स्थान पर रहता है और दूसरा पांचवें स्थान पर, तो टीम को मिलेंगे कुल 35 अंक। इसी तरह सत्र की सभी 19 रेस में टीम और ड्राइवर के कुल अंकों के आधार पर सत्र के चैंपियन ड्राइवर और टीम का निर्धारण किया जाता है। इसकी घोषणा सत्र की अंतिम रेस के बाद होती है। चौंकना मना है एफ-1 कार के टायर एक सेकंड में 50 बार घूमते हैं, जिस कारण रेस के दौरान ये काफी गर्म हो जाते हैं। खास बात यह है कि यह गर्माहट इनके लिए फायदेमंद रहती है। ये जितना गर्म होते हैं उनकी जमीन पर पकड़ भी उतनी ही अच्छी होती जाती है। सामान्य तापमान में ये टायर जब 900 से 1200 डिग्री सेंटीग्रेट गर्म हो जाते हैं तब ट्रैक पर इनकी पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती है। | ||
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12:12, 14 नवम्बर 2011 का अवतरण
रेसिंग की दुनिया में फ़ॉर्मूला वन का नाम सबकी जुबान पर पहले आता है। इसने कार रेसिंग को एक अलग ही मुक़ाम दिया है। इसे फ़ॉर्मूला-1 या एफ़-1 (Formula One, Formula 1, F1) के नाम से भी जाना जाता है। आधिकारिक तौर पर, इसके तहत जो प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं उसे फ़ॉर्मूला वन वर्ल्ड चैंपियनशिप (FIA) कहते हैं। यहाँ फ़ॉर्मूला से मतलब उन नियमों से है, जिसका पालन सभी खिलाड़ियों को जरूरी तौर पर करना पड़ता है।
रफ्तार का खेल
फ़ॉर्मूला वन की गाड़ियां 360 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भागती हैं। इसमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होता है और ये गाड़ियां बेहद महंगी होती हैं। इस तरह यह खेल भी काफ़ी खर्चीला होता है। फ़ॉर्मूला वन खेल में वक्त के साथ-साथ काफ़ी बदलाव आया है। आमतौर पर यह खेल यूरोप में अधिक आयोजित होता है।
प्रतियोगिताएँ
एफ़-वन के तहत कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इनमें एफ़ वन ग्रैंड प्रिक्स (ग्रांप्री) प्रमुख है। ग्रांप्री के लिए दो चरण अपनाये जाते हैं। पहले बनी-बनायी सर्किट पर गाड़ी दौड़ायी जाती है, उसके बाद सार्वजनिक सड़कों पर इसका मुकाबला होता है। इन दोनों चरण के नतीजों को जोड़कर दो वार्षिक विश्व चैंपियनशिप तय किये जाते हैं। इनमें पहला एफ़-वन चालक के लिए होता है और दूसरा पूरी टीम के लिए। फ़ॉर्मूला वन के लिए जो कार या गाड़ियाँ चुनी जाती है, वह गति में काफ़ी तेज होती हैं।
पहली प्रतियोगिता
लगभग छह महीने यहां फ़ॉर्मूला वन प्रतियोगिता चलती रहती हैं। यदि फ़ॉर्मूला वन की पहली रेसिंग की बात करें तो 1920-30 के दशक में इसका आयोजन शुरू हुआ। हालांकि, 1947 के पहले तक इसका आयोजन औपचारिक तौर पर नहीं होता था। इस खेल के प्रमुख खिलाड़ियों की बात करें तो माइकल शुमाकर, निको रोजबर्ग, राफ़ शुमाकर और भारतीय खिलाड़ी में नारायण कार्तिकेयन हैं।
हालांकि, इटली के गुएप्पे फ़ारिना फ़ॉर्मूला वन वर्ल्ड चैंपियनशिप का पहला खिताब जीतने वाले पहले खिलाड़ी थे। वर्ष 1950 में रोम में आयोजित प्रतियोगिता में उन्होंने यह खिताब जीता था। अक्टूबर, 2011 में भारत में फ़ॉमूर्ला वन चैंपियनशिप का पहली बार आयोजन किया गया।
फॉर्मूला-1 रेस
किसी अन्य खेल की तरह फॉर्मूला-1 रेस में भी खेल अंकों का ही होता है। आइए जानें कि क्या है इस खेल का अंकगणित। फॉर्मूला-1 रेस हर साल होने वाला टूर्नामेंट है। इसके एक सत्र में कुल 19 (इस सत्र) रेस होती हैं। हर रेस का आयोजन स्थल निर्धारित होता है। हर रेस अलग-अलग देश में होती है। ये वे मेजबान देश हैं, जिनके पास फॉर्मूला-1 सर्किट है। अब भारत भी इस क्लब में शामिल हो गया है। 9 महीने में 19 रेस, सत्र की शुरुआत होती है मार्च में और समाप्ति नवंबर-दिसंबर में। इस तरह अमूमन एक माह में औसत दो-तीन रेस हो जाती हैं।
रेस का समय
रेस का समय निर्धारित है। यह रविवार को होती है, जबकि शुक्रवार और शनिवार को दो अभ्यास सत्र होते हैं। प्रत्येक सत्र में कुल 12 टीमें भाग लेती हैं। हर टीम से दो ड्राइवर प्रत्येक रेस में उतरते हैं। इस तरह कुल 24 ड्राइवर रेस में उतरते हैं।
अभ्यास सत्र
प्रत्येक रेस से पहले दो अभ्यास सत्र होते हैं। यह महज अभ्यास के लिए नहीं होते। इनका मुख्य ध्येय होता है मुख्य रेस के लिए 24 ड्राइवरों में से उन दस का चयन, जो रेस की शुरुआत आगे के 10 स्थानों से करेंगे।
- पोल पोजीशन
मुख्य रेस की शुरुआत के दौरान जिस ड्राइवर की कार सबसे आगे के स्थान पर खड़ी होती है, वह स्थान पोल पोजीशन कहलाता है। कैसे मिलती है पोल पोजीशन शुक्रवार और शनिवार को होने वाले अभ्यास सत्र में सभी 24 ड्राइवर उतरते हैं। प्रत्येक सत्र तीन चरणों (क्यू-1, क्यू-2 और क्यू-3) का होता है। पहले चरण में सभी 24 ड्राइवर रेस करते हैं। इनमें से पीछे रह जाने वाले सात दूसरे चरण में भाग लेने के हकदार नहीं होते। दूसरे चरण में भी पीछे रह जाने वाले सात ड्राइवर और हट जाते हैं। इस तरह अब दस ड्राइवर तीसरे चरण में होड़ करते हैं। इन दस का मुख्य रेस की शुरुआत करने के लिए सबसे आगे के दस स्थानों पर क़ब्ज़ा सुनिश्चित हो जाता है। तीसरे चरण में इन दस में से जो सबसे अव्वल रहता है, वह ड्राइवर पोल पोजीशन का हकदार बन जाता है।
- कैसे होती है रेस
उदाहरण के तौर पर इंडियन ग्रैंड प्रिक्स के आयोजन स्थल बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट, ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) को लें। ट्रैक कुल 5.14 किमी का है। इंडियन ग्रैंड प्रिक्स कुल 60 लैप वाली रेस होगी। लैप का मतलब है 5.14 किमी का एक घेरा। यानी ड्राइवरों को 5.14 किमी ट्रैक के कुल 60 चक्कर लगाने होंगे। फॉर्मूला-1 कार की औसत स्पीड 300 किमी प्रतिघंटे के हिसाब से गणना करें तो एक लैप पूरा करने में ड्राइवर को एक मिनट से भी कम (करीब 58.38 सेकंड) का समय लगेगा। यह एक आदर्श स्थिति है जब पूरे लैप में रफ्तार 300 किमी प्रतिघंटे हो, लेकिन ऐसा संभव नहीं होता। मसलन, बुद्ध सर्किट लैप में कुल 16 मोड़ हैं, लिहाजा कार की रफ्तार हर मोड़ पर कम होगी। इसी तरह मौसम भी रफ्तार को कम करता है। इस तरह आदर्श स्थिति में 60 लैप की रेस करीब-करीब एक घंटे में पूरी हो सकती है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर इसमें करीब दो घंटे का समय लगता है। सबसे आगे रहने वाला ड्राइवर, यानी जिसने सबसे कम समय में 60 लैप पूरे किए हों, रेस का विजेता होगा।
- ऐसे मिलते हैं अंक
शीर्ष दस ड्राइवरों को स्थान के मुताबिक अंक मिलते हैं, जिसका नियम निर्धारित है। विजेता को 25 अंक, दूसरे स्थान पर रहने वाले को 18 अंक, तीसरे को 15, चौथे को 12, पाचवें को 10, छठे को 8, सातवें को 6, आठवें को 4, नौवें को 2 और दसवें को 1 अंक दिया जाता है। हर टीम के दो ड्राइवर रेस में होते हैं, लिहाजा दोनों के अंकों के योग टीम को मिलने वाले अंकों में जुड़ते हैं। मसलन, यदि टीम का एक ड्राइवर पहले स्थान पर रहता है और दूसरा पांचवें स्थान पर, तो टीम को मिलेंगे कुल 35 अंक। इसी तरह सत्र की सभी 19 रेस में टीम और ड्राइवर के कुल अंकों के आधार पर सत्र के चैंपियन ड्राइवर और टीम का निर्धारण किया जाता है। इसकी घोषणा सत्र की अंतिम रेस के बाद होती है। चौंकना मना है एफ-1 कार के टायर एक सेकंड में 50 बार घूमते हैं, जिस कारण रेस के दौरान ये काफी गर्म हो जाते हैं। खास बात यह है कि यह गर्माहट इनके लिए फायदेमंद रहती है। ये जितना गर्म होते हैं उनकी जमीन पर पकड़ भी उतनी ही अच्छी होती जाती है। सामान्य तापमान में ये टायर जब 900 से 1200 डिग्री सेंटीग्रेट गर्म हो जाते हैं तब ट्रैक पर इनकी पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती है।
- गेम चेंजर
पिट स्टॉप रेस के दौरान गेम चेंजर में अहम भूमिका निभाती है। इसमें ड्राइवर को हाई-स्पीड एयर गन के साथ नट बदलने और कार की मरम्मत करने का मौका मिलता है। इस दौरान ड्राइवर पुराने चक्के को बदलते हैं और नए चक्के लगाते हैं।
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वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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