"बलराज साहनी" के अवतरणों में अंतर

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|अन्य जानकारी=बलराज साहनी बेहतरीन साहित्यकार भी थे। उन्होंने 'पाकिस्तान का सफ़र' और 'रूसी सफरनामा' जैसे चर्चित यात्रा वृतांतों की रचना की थी, जिनमें उन देशों की राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थतियों का शानदार चित्रण किया गया है।
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|अन्य जानकारी=बलराज साहनी बेहतरीन साहित्यकार भी थे। उन्होंने 'पाकिस्तान का सफ़र' और 'रूसी सफरनामा' जैसे चर्चित यात्रा वृतांतों की रचना की थी, जिनमें उन देशों की राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का शानदार चित्रण किया गया है।
 
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'''बलराज साहनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Balraj Sahni'', जन्म: [[1 मई]], [[1913]]; मृत्यु: [[13 अप्रैल]], [[1973]]) [[हिन्दी फ़िल्म जगत|हिन्दी फ़िल्मों]] के प्रसिद्ध [[अभिनेता]] थे। उनका जन्म रावलपिंडी ([[पाकिस्तान]]) में हुआ था। बलराज साहनी ख्याति प्राप्त लेखक [[भीष्म साहनी]] के बड़े भाई व चरित्र अभिनेता परीक्षत साहनी के [[पिता]] थे। वे [[रंगमंच]] और [[सिनेमा]] की अप्रतिम प्रतिभा थे। बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के रूप में जाना जाता था, जिन्हें [[रंगमंच]] और फ़िल्म दोनों ही माध्यमों में समान दिलचस्पी थी। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे।
 
'''बलराज साहनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Balraj Sahni'', जन्म: [[1 मई]], [[1913]]; मृत्यु: [[13 अप्रैल]], [[1973]]) [[हिन्दी फ़िल्म जगत|हिन्दी फ़िल्मों]] के प्रसिद्ध [[अभिनेता]] थे। उनका जन्म रावलपिंडी ([[पाकिस्तान]]) में हुआ था। बलराज साहनी ख्याति प्राप्त लेखक [[भीष्म साहनी]] के बड़े भाई व चरित्र अभिनेता परीक्षत साहनी के [[पिता]] थे। वे [[रंगमंच]] और [[सिनेमा]] की अप्रतिम प्रतिभा थे। बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के रूप में जाना जाता था, जिन्हें [[रंगमंच]] और फ़िल्म दोनों ही माध्यमों में समान दिलचस्पी थी। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे।
==जीवन परिचय==
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==जन्म तथा शिक्षा==
रावलपिंडी में एक मध्यम वर्गीय व्यवसायी परिवार में [[1 मई]], [[1913]] को जन्मे बलराज साहनी का मूल नाम 'युधिष्ठर साहनी', का झुकाव बचपन से ही [[पिता]] के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने [[अंग्रेज़ी साहित्य]] में स्नात्तकोत्तर की शिक्षा [[लाहौर]] के मशहूर 'गवर्नमेंट कॉलेज' से पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद बलराज साहनी रावलपिंडी लौट गये और पिता के व्यापार में उनका हाथ बंटाने लगे। वर्ष [[1930]] के अंत मे बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़कर [[रवीन्द्रनाथ टैगोर|गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर]] के [[शांति निकेतन]] पहुंचे, जहां बलराज साहनी [[अंग्रेज़ी]] के शिक्षक नियुक्त हुए। वर्ष [[1938]] में बलराज साहनी ने [[महात्मा गांधी]] के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बी.बी.सी के [[हिन्दी]] के उदघोषक के रूप में [[इंग्लैंड]] में नियुक्त किया गया। लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह [[1943]] में [[भारत]] लौट आये।<ref name="देशबंधु">{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2559/7/70 |title=दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी बलराज साहनी ने |accessmonthday=9 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=देशबंधु |language= हिंदी}}</ref>
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रावलपिंडी में एक मध्यम वर्गीय व्यवसायी परिवार में [[1 मई]], [[1913]] को बलराज साहनी का जन्म हुआ था। उनका मूल नाम 'युधिष्ठर साहनी' था। बलराज साहनी का झुकाव बचपन से ही [[पिता]] के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने [[अंग्रेज़ी साहित्य]] में स्नात्तकोत्तर की शिक्षा [[लाहौर]] के मशहूर 'गवर्नमेंट कॉलेज' से पूरी की थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद बलराज साहनी रावलपिंडी लौट गये और पिता के व्यापार में उनका हाथ बंटाने लगे।
====आरंभिक जीवन====
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====महात्मा गाँधी से सम्पर्क====
बलराज साहनी बचपन का शौक़ पूरा करने के लिये इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसियेशन ([[इप्टा]]) में शामिल हो गये। इप्टा में वर्ष [[1946]] में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक 'इंसाफ' में अभिनय करने का मौका मिला। इसके साथ ही [[ख़्वाजा अहमद अब्बास]] के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फ़िल्म 'धरती के लाल' में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला। इप्टा से जुडे रहने के कारण बलराज साहनी को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचारों के कारण जेल भी जाना पडा। उन दिनों वह फ़िल्म 'हलचल' की शूटिंग में व्यस्त थे और निर्माता के आग्रह पर विशेष व्यवस्था के तहत फ़िल्म की शूटिंग किया करते थे। शूटिंग खत्म होने के बाद वापस जेल चले जाते थे।<ref name="देशबंधु"/>
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वर्ष [[1930]] के अंत में बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़कर [[रवीन्द्रनाथ टैगोर|गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर]] के '[[शांति निकेतन]]' पहुंचे, जहां बलराज साहनी [[अंग्रेज़ी]] के शिक्षक नियुक्त हुए। वर्ष [[1938]] में बलराज साहनी ने [[महात्मा गांधी]] के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात् महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बीबीसी के [[हिन्दी]] के उद्घोषक के रूप में [[इंग्लैंड]] में नियुक्त किया गया। लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह [[1943]] में [[भारत]] लौट आये।<ref name="देशबंधु">{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2559/7/70 |title=दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी बलराज साहनी ने |accessmonthday=9 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=देशबंधु |language= हिंदी}}</ref>
 
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==अभिनय जीवन की शुरुआत==
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बलराज साहनी अपने बचपन का शौक़ पूरा करने के लिये 'इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसियेशन' ([[इप्टा]]) में शामिल हो गये। 'इप्टा' में वर्ष [[1946]] में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक 'इंसाफ' में अभिनय करने का मौका मिला। इसके साथ ही [[ख़्वाजा अहमद अब्बास]] के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फ़िल्म 'धरती के लाल' में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला। इप्टा से जुड़े रहने के कारण बलराज साहनी को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचारों के कारण जेल भी जाना पड़ा। उन दिनों वह फ़िल्म 'हलचल' की शूटिंग में व्यस्त थे और निर्माता के आग्रह पर विशेष व्यवस्था के तहत फ़िल्म की शूटिंग किया करते थे। शूटिंग खत्म होने के बाद वापस जेल चले जाते थे।<ref name="देशबंधु"/>
 
==जनमानस के अभिनेता==
 
==जनमानस के अभिनेता==
साम्यवादी विचारधारा के मुखर समर्थक साहनी जनमानस के अभिनेता थे, जो अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे। जब पर्दे पर वह अपनी [[दो बीघा ज़मीन]] फ़िल्म में ज़मीन गंवा चुके मज़दूर, रिक्शाचालक की भूमिका में नज़र आए तो कहीं से नहीं महसूस हुआ कि [[कोलकाता]] की सड़कों पर रिक्शा खींच रहा रिक्शाचालक शंभु नहीं बल्कि कोई स्थापित अभिनेता है। दरअसल पात्रों में पूरी तरह डूब जाना उनकी खूबी थी। यह काबुली वाला, लाजवंती, हक़ीक़त, [[दो बीघा ज़मीन]], धरती के लाल, [[गर्म हवा]], वक़्त, दो रास्ते सहित उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है।
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साम्यवादी विचारधारा के मुखर समर्थक साहनी जनमानस के अभिनेता थे, जो अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे। जब पर्दे पर वह अपनी '[[दो बीघा ज़मीन]]' फ़िल्म में ज़मीन गंवा चुके मज़दूर, रिक्शा चालक की भूमिका में नज़र आए तो कहीं से नहीं महसूस हुआ कि [[कोलकाता]] की सड़कों पर रिक्शा खींच रहा रिक्शा चालक शंभु नहीं बल्कि कोई स्थापित अभिनेता है। दरअसल पात्रों में पूरी तरह डूब जाना उनकी खूबी थी। यह 'काबुली वाला', 'लाजवंती', 'हक़ीक़त', [[दो बीघा ज़मीन]], 'धरती के लाल', '[[गर्म हवा]]', 'वक़्त', 'दो रास्ते' सहित उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है।
 
====स्वाभिमानी व्यक्तित्व====
 
====स्वाभिमानी व्यक्तित्व====
बलराज साहनी का फ़िल्मों में आना संयोग ही रहा। उन्होंने हंस पत्रिका को एक कहानी लिखी थी जो अस्वीकृत होकर लौट आई। उन्होंने खुद ही लिखा है कि वह उन भाग्यशाली लेखकों में थे जिनकी भेजी हुई कोई रचना अस्वीकृत नहीं हुई थी। लेकिन बीच में चार साल तक उन्होंने कोई कहानी नहीं लिखी। जब छूटे अभ्यास को बहाल करने का प्रयास करते हुए उन्होंने एक कहानी लिखी और उसे हंस पत्रिका को भेज दिया लेकिन वह अस्वीकृत होकर वापस आ गई। इससे उनके स्वाभिमान को ठेस लगी और उसके बाद उन्होंने कोई कहानी नहीं लिखी। उन्होंने अपने एक आलेख में लिखा था कि फ़िल्मों का मार्ग अपनाने का कारण वह अस्वीकृत कहानी भी रही।  
+
बलराज साहनी का फ़िल्मों में आना संयोग ही रहा था। उन्होंने 'हंस पत्रिका' के लिए एक [[कहानी]] लिखी थी, जो अस्वीकृत होकर लौट आई। उन्होंने खुद ही लिखा है कि- "वह उन भाग्यशाली लेखकों में थे जिनकी भेजी हुई कोई रचना अस्वीकृत नहीं हुई थी।" लेकिन बीच में चार साल तक उन्होंने कोई कहानी नहीं लिखी। छूटे अभ्यास को बहाल करने का प्रयास करते हुए उन्होंने एक कहानी लिखी और उसे 'हंस पत्रिका' को भेज दिया, लेकिन वह अस्वीकृत होकर वापस आ गई। इससे उनके स्वाभिमान को ठेस लगी और उसके बाद उन्होंने कोई कहानी नहीं लिखी। उन्होंने अपने एक आलेख में लिखा था कि फ़िल्मों का मार्ग अपनाने का कारण वह अस्वीकृत कहानी भी रही।  
 
==प्रमुख फ़िल्में==
 
==प्रमुख फ़िल्में==
 
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* कठपुतली
 
* कठपुतली
 
* लाजवंती
 
* लाजवंती
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* सोने की चिड़िया
 
* घर संसार
 
* घर संसार
 
* सट्टा बाज़ार
 
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{{Main|दो बीघा ज़मीन}}
 
{{Main|दो बीघा ज़मीन}}
वर्ष [[1953]] में [[बिमल राय]] के निर्देशन मे बनी फ़िल्म [[दो बीघा जमीन]] बलराज साहनी के कैरियर मे अहम पड़ाव साबित हुई। फ़िल्म दो बीघा जमीन की कामयाबी के बाद बलराज साहनी शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इस फ़िल्म के माध्यम से उन्होंने एक रिक्शावाले के किरदार को जीवंत कर दिया। रिक्शावाले को फ़िल्मी पर्दे पर साकार करने के लिये बलराज साहनी ने [[कलकत्ता]] की सड़कों पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चलाया और रिक्शेवालों की ज़िंदगी के बारे में उनसे जानकारी हासिल की। फ़िल्म की शुरूआत के समय निर्देशक बिमल राय सोचते थे कि बलराज साहनी शायद ही फ़िल्म मे रिक्शावाले के किरदार को अच्छी तरह से निभा सकें। वास्तविक ज़िंदगी मे बलराज साहनी बहुत पढे लिखे इंसान थे। लेकिन उन्होंने बिमल राय की सोच को गलत साबित करते हुये फ़िल्म में अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया। दो बीघा जमीन को आज भी भारतीय फ़िल्म इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कला फ़िल्मों में शुमार किया जाता है। इस फ़िल्म को अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी काफ़ी सराहा गया तथा कांस फ़िल्म महोत्सव के दौरान इसे अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।<ref name="देशबंधु"/>
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वर्ष [[1953]] में [[बिमल राय]] के निर्देशन में बनी फ़िल्म [[दो बीघा ज़मीन]] बलराज साहनी के कैरियर में अहम पड़ाव साबित हुई। फ़िल्म दो बीघा ज़मीन की कामयाबी के बाद बलराज साहनी शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इस फ़िल्म के माध्यम से उन्होंने एक रिक्शावाले के किरदार को जीवंत कर दिया। रिक्शावाले को फ़िल्मी पर्दे पर साकार करने के लिये बलराज साहनी ने [[कलकत्ता]] की सड़कों पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चलाया और रिक्शेवालों की ज़िंदगी के बारे में उनसे जानकारी हासिल की। फ़िल्म की शुरूआत के समय निर्देशक बिमल राय सोचते थे कि बलराज साहनी शायद ही फ़िल्म में रिक्शावाले के किरदार को अच्छी तरह से निभा सकें। वास्तविक ज़िंदगी में बलराज साहनी बहुत पढ़े लिखे इंसान थे। लेकिन उन्होंने बिमल राय की सोच को ग़लत साबित करते हुए फ़िल्म में अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया। दो बीघा ज़मीन को आज भी भारतीय फ़िल्म इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कला फ़िल्मों में शुमार किया जाता है। इस फ़िल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफ़ी सराहा गया तथा कांस फ़िल्म महोत्सव के दौरान इसे अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।<ref name="देशबंधु"/>
==साहित्यकार के रुप में==
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====सफलता====
बलराज साहनी बेहतरीन साहित्यकार भी थे, जिन्होंने 'पाकिस्तान का सफ़र' और 'रूसी सफरनामा' जैसे चर्चित यात्रा वृतांतों की रचना की, जिनमें उन देशों की राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थतियों का शानदार चित्रण किया गया है।  
+
फ़िल्म ‘हलचल’ के ठीक बाद बलराज साहनी को जिया सरहदी की फ़िल्म ‘हम लोग’ का प्रस्ताव मिला था। इसमें उन्हें एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार के बेरोजगार युवक की भूमिका मिली। यह पहली फिल्म थी, जिसमें बलराज काफ़ी हद तक अपने रंग में नजर आये और कैमरे के सामने की उनकी अकड़न खत्म-सी हो गयी। ‘हम लोग’ सफल रही और बलराज के अभिनय को काफ़ी सराहा गया। अब वे आर्थिक रूप से भी बेहतर स्थिति में थे। ‘दो बीघा ज़मीन’ में तो उनकी प्रतिभा पूरी तरह परवान चढ़ गई थी। वे अपने किरदार के साथ एकाकार हो गये और एक बेहतरीन स्क्रीन अभिनेता के तौर पर उनकी पहचान स्थापित हो गयी।
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==प्रेरक प्रसंग==
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मुंबई के उपनगर जोगेश्वरी में [[दूध]] वालों की एक बस्ती थी। ये दूध वाले [[उत्तर प्रदेश]] से थे। जिस दिन बलराज को ‘दो बीघा ज़मीन’ के लिए चुना गया, उस दिन से ही उन्होंने जोगेश्वरी के इन दूध वालों की कॉलोनी में जाना शुरू कर दिया। वे गौर से दूध वालों के जीवन को देखा करते थे। उनके बातचीत करने, उठने-बैठने के तरीके पर गौर करते थे। उन्होंने लिखा है कि- "दो बीघा ज़मीन’ में मेरी सफलता के पीछे इन दूध वालों की जिंदगी का नजदीकी मुआयना काफ़ी काम आया"। फिर कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में शूटिंग के दौरान उनकी [[बिहार]] से आये एक रिक्शे वाले से मुलाकात हुई। जब बलराज ने उस रिक्शे वाले को फिल्म की कहानी सुनाई तो वह रोने लगा और उसने बताया कि यह तो बिल्कुल मेरी कहानी है। उसके पास भी दो बीघा ज़मीन थी, जो उसने एक ज़मींदार के पास गिरवी रखी थी और वह उसे छुड़ाने के लिए पिछले पंद्रह साल से कलकत्ता में रिक्शा चला रहा था। हालांकि उसे उम्मीद नहीं थी कि वह उस ज़मीन को कभी हासिल कर पायेगा। इस अनुभव ने बलराज साहनी को बदल कर रख दिया। उन्होंने खुद से कहा कि- "मुझ पर दुनिया को एक ग़रीब, बेबस आदमी की कहानी बताने की जिम्मेदारी डाली गयी है, और मैं इस जिम्मेदारी को उठाने के योग्य होऊं या न होऊं, मुझे अपनी [[ऊर्जा]] का एक-एक कतरा इस जिम्मेदारी को निभाने में खर्च करना चाहिए"।<ref>{{cite web |url=http://akhrawat.blogspot.in/2013/02/blog-post_23.html |title=भीष्म साहनी की नजर से बलराज साहनी|accessmonthday= 06 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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==साहित्यकार के रूप में==
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बलराज साहनी बेहतरीन साहित्यकार भी थे, जिन्होंने 'पाकिस्तान का सफ़र' और 'रूसी सफ़रनामा' जैसे चर्चित यात्रा वृत्तांतों की रचना की, जिनमें उन देशों की राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का शानदार चित्रण किया गया है।
 
==मृत्यु==
 
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बलराज साहनी की मृत्यु [[13 अप्रैल]] [[1973]] को [[मुंबई]] में हुआ।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.livehindustan.com/news/edu/tayaarinews/article1-story-269-67-231594.html  दो बीघा जमीन की एक तलाश]
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*[http://www.livehindustan.com/news/edu/tayaarinews/article1-story-269-67-231594.html  दो बीघा ज़मीन की एक तलाश]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
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05:24, 13 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

बलराज साहनी
बलराज साहनी
पूरा नाम युधिष्ठर साहनी (वास्तविक नाम)
प्रसिद्ध नाम बलराज साहनी
जन्म 1 मई, 1913
जन्म भूमि रावलपिंडी, भारत (अब पाकिस्तान)
मृत्यु 13 अप्रैल, 1973
मृत्यु स्थान मुंबई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी दमयंती
संतान परीक्षत साहनी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र अभिनेता
मुख्य फ़िल्में काबुली वाला, लाजवंती, हक़ीक़त, दो बीघा ज़मीन, धरती के लाल, गर्म हवा, वक़्त, दो रास्ते आदि।
शिक्षा अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर
विद्यालय गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख भीष्म साहनी
अन्य जानकारी बलराज साहनी बेहतरीन साहित्यकार भी थे। उन्होंने 'पाकिस्तान का सफ़र' और 'रूसी सफरनामा' जैसे चर्चित यात्रा वृतांतों की रचना की थी, जिनमें उन देशों की राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का शानदार चित्रण किया गया है।

बलराज साहनी (अंग्रेज़ी: Balraj Sahni, जन्म: 1 मई, 1913; मृत्यु: 13 अप्रैल, 1973) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनका जन्म रावलपिंडी (पाकिस्तान) में हुआ था। बलराज साहनी ख्याति प्राप्त लेखक भीष्म साहनी के बड़े भाई व चरित्र अभिनेता परीक्षत साहनी के पिता थे। वे रंगमंच और सिनेमा की अप्रतिम प्रतिभा थे। बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के रूप में जाना जाता था, जिन्हें रंगमंच और फ़िल्म दोनों ही माध्यमों में समान दिलचस्पी थी। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे।

जन्म तथा शिक्षा

रावलपिंडी में एक मध्यम वर्गीय व्यवसायी परिवार में 1 मई, 1913 को बलराज साहनी का जन्म हुआ था। उनका मूल नाम 'युधिष्ठर साहनी' था। बलराज साहनी का झुकाव बचपन से ही पिता के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नात्तकोत्तर की शिक्षा लाहौर के मशहूर 'गवर्नमेंट कॉलेज' से पूरी की थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद बलराज साहनी रावलपिंडी लौट गये और पिता के व्यापार में उनका हाथ बंटाने लगे।

महात्मा गाँधी से सम्पर्क

वर्ष 1930 के अंत में बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़कर गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के 'शांति निकेतन' पहुंचे, जहां बलराज साहनी अंग्रेज़ी के शिक्षक नियुक्त हुए। वर्ष 1938 में बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात् महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बीबीसी के हिन्दी के उद्घोषक के रूप में इंग्लैंड में नियुक्त किया गया। लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह 1943 में भारत लौट आये।[1]

अभिनय जीवन की शुरुआत

बलराज साहनी अपने बचपन का शौक़ पूरा करने के लिये 'इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसियेशन' (इप्टा) में शामिल हो गये। 'इप्टा' में वर्ष 1946 में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक 'इंसाफ' में अभिनय करने का मौका मिला। इसके साथ ही ख़्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फ़िल्म 'धरती के लाल' में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला। इप्टा से जुड़े रहने के कारण बलराज साहनी को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचारों के कारण जेल भी जाना पड़ा। उन दिनों वह फ़िल्म 'हलचल' की शूटिंग में व्यस्त थे और निर्माता के आग्रह पर विशेष व्यवस्था के तहत फ़िल्म की शूटिंग किया करते थे। शूटिंग खत्म होने के बाद वापस जेल चले जाते थे।[1]

जनमानस के अभिनेता

साम्यवादी विचारधारा के मुखर समर्थक साहनी जनमानस के अभिनेता थे, जो अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे। जब पर्दे पर वह अपनी 'दो बीघा ज़मीन' फ़िल्म में ज़मीन गंवा चुके मज़दूर, रिक्शा चालक की भूमिका में नज़र आए तो कहीं से नहीं महसूस हुआ कि कोलकाता की सड़कों पर रिक्शा खींच रहा रिक्शा चालक शंभु नहीं बल्कि कोई स्थापित अभिनेता है। दरअसल पात्रों में पूरी तरह डूब जाना उनकी खूबी थी। यह 'काबुली वाला', 'लाजवंती', 'हक़ीक़त', दो बीघा ज़मीन, 'धरती के लाल', 'गर्म हवा', 'वक़्त', 'दो रास्ते' सहित उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है।

स्वाभिमानी व्यक्तित्व

बलराज साहनी का फ़िल्मों में आना संयोग ही रहा था। उन्होंने 'हंस पत्रिका' के लिए एक कहानी लिखी थी, जो अस्वीकृत होकर लौट आई। उन्होंने खुद ही लिखा है कि- "वह उन भाग्यशाली लेखकों में थे जिनकी भेजी हुई कोई रचना अस्वीकृत नहीं हुई थी।" लेकिन बीच में चार साल तक उन्होंने कोई कहानी नहीं लिखी। छूटे अभ्यास को बहाल करने का प्रयास करते हुए उन्होंने एक कहानी लिखी और उसे 'हंस पत्रिका' को भेज दिया, लेकिन वह अस्वीकृत होकर वापस आ गई। इससे उनके स्वाभिमान को ठेस लगी और उसके बाद उन्होंने कोई कहानी नहीं लिखी। उन्होंने अपने एक आलेख में लिखा था कि फ़िल्मों का मार्ग अपनाने का कारण वह अस्वीकृत कहानी भी रही।

प्रमुख फ़िल्में

  • दो बीघा ज़मीन
  • धरती के लाल
  • हमलोग
  • गर्म हवा
  • सीमा
  • वक़्त
  • कठपुतली
  • लाजवंती
  • सोने की चिड़िया
  • घर संसार
  • सट्टा बाज़ार
  • भाभी की चूड़ियाँ
  • हक़ीक़त
  • दो रास्ते
  • एक फूल दो माली
  • मेरे हमसफर

दो बीघा ज़मीन

वर्ष 1953 में बिमल राय के निर्देशन में बनी फ़िल्म दो बीघा ज़मीन बलराज साहनी के कैरियर में अहम पड़ाव साबित हुई। फ़िल्म दो बीघा ज़मीन की कामयाबी के बाद बलराज साहनी शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इस फ़िल्म के माध्यम से उन्होंने एक रिक्शावाले के किरदार को जीवंत कर दिया। रिक्शावाले को फ़िल्मी पर्दे पर साकार करने के लिये बलराज साहनी ने कलकत्ता की सड़कों पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चलाया और रिक्शेवालों की ज़िंदगी के बारे में उनसे जानकारी हासिल की। फ़िल्म की शुरूआत के समय निर्देशक बिमल राय सोचते थे कि बलराज साहनी शायद ही फ़िल्म में रिक्शावाले के किरदार को अच्छी तरह से निभा सकें। वास्तविक ज़िंदगी में बलराज साहनी बहुत पढ़े लिखे इंसान थे। लेकिन उन्होंने बिमल राय की सोच को ग़लत साबित करते हुए फ़िल्म में अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया। दो बीघा ज़मीन को आज भी भारतीय फ़िल्म इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कला फ़िल्मों में शुमार किया जाता है। इस फ़िल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफ़ी सराहा गया तथा कांस फ़िल्म महोत्सव के दौरान इसे अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।[1]

सफलता

फ़िल्म ‘हलचल’ के ठीक बाद बलराज साहनी को जिया सरहदी की फ़िल्म ‘हम लोग’ का प्रस्ताव मिला था। इसमें उन्हें एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार के बेरोजगार युवक की भूमिका मिली। यह पहली फिल्म थी, जिसमें बलराज काफ़ी हद तक अपने रंग में नजर आये और कैमरे के सामने की उनकी अकड़न खत्म-सी हो गयी। ‘हम लोग’ सफल रही और बलराज के अभिनय को काफ़ी सराहा गया। अब वे आर्थिक रूप से भी बेहतर स्थिति में थे। ‘दो बीघा ज़मीन’ में तो उनकी प्रतिभा पूरी तरह परवान चढ़ गई थी। वे अपने किरदार के साथ एकाकार हो गये और एक बेहतरीन स्क्रीन अभिनेता के तौर पर उनकी पहचान स्थापित हो गयी।

प्रेरक प्रसंग

मुंबई के उपनगर जोगेश्वरी में दूध वालों की एक बस्ती थी। ये दूध वाले उत्तर प्रदेश से थे। जिस दिन बलराज को ‘दो बीघा ज़मीन’ के लिए चुना गया, उस दिन से ही उन्होंने जोगेश्वरी के इन दूध वालों की कॉलोनी में जाना शुरू कर दिया। वे गौर से दूध वालों के जीवन को देखा करते थे। उनके बातचीत करने, उठने-बैठने के तरीके पर गौर करते थे। उन्होंने लिखा है कि- "दो बीघा ज़मीन’ में मेरी सफलता के पीछे इन दूध वालों की जिंदगी का नजदीकी मुआयना काफ़ी काम आया"। फिर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में शूटिंग के दौरान उनकी बिहार से आये एक रिक्शे वाले से मुलाकात हुई। जब बलराज ने उस रिक्शे वाले को फिल्म की कहानी सुनाई तो वह रोने लगा और उसने बताया कि यह तो बिल्कुल मेरी कहानी है। उसके पास भी दो बीघा ज़मीन थी, जो उसने एक ज़मींदार के पास गिरवी रखी थी और वह उसे छुड़ाने के लिए पिछले पंद्रह साल से कलकत्ता में रिक्शा चला रहा था। हालांकि उसे उम्मीद नहीं थी कि वह उस ज़मीन को कभी हासिल कर पायेगा। इस अनुभव ने बलराज साहनी को बदल कर रख दिया। उन्होंने खुद से कहा कि- "मुझ पर दुनिया को एक ग़रीब, बेबस आदमी की कहानी बताने की जिम्मेदारी डाली गयी है, और मैं इस जिम्मेदारी को उठाने के योग्य होऊं या न होऊं, मुझे अपनी ऊर्जा का एक-एक कतरा इस जिम्मेदारी को निभाने में खर्च करना चाहिए"।[2]

साहित्यकार के रूप में

बलराज साहनी बेहतरीन साहित्यकार भी थे, जिन्होंने 'पाकिस्तान का सफ़र' और 'रूसी सफ़रनामा' जैसे चर्चित यात्रा वृत्तांतों की रचना की, जिनमें उन देशों की राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का शानदार चित्रण किया गया है।

मृत्यु

बलराज साहनी की मृत्यु 13 अप्रैल 1973 को मुंबई में हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी बलराज साहनी ने (हिंदी) देशबंधु। अभिगमन तिथि: 9 फ़रवरी, 2013।
  2. भीष्म साहनी की नजर से बलराज साहनी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 अप्रैल, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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