बिजनौर

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बिजनौर नगर, पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तरी भारत में, दिल्ली के पूर्वोत्तर में गंगा नदी के समीप स्थित है। 1801 में इस नगर को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में शामिल कर लिया गया था। उत्तरी भारत के पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश राज्य, दिल्ली के पूर्वोत्तर में यह नगर स्थित है।

इतिहास

बिजनौर नगर गंगा नदी के वामतट पर लीलावाली घाट से तीन मील की दूरी पर एक छोटा सा कस्बा है। कहा जाता है कि इसे विजयसिहं ने बसाया था। दारानगर यहाँ से 7 मील की दूरी पर स्थित है और इतनी ही दूरी पर विदुरकुटी भी स्थित है। कहा जाता है कि विदुरकुटी महात्मा विदुर की तपोभूमि रही है। जनश्रुतियों के आधार पर बिजनौर की प्राचीनता राम के युग के साथ भी जोड़ी जाती है, जिसका एकमात्र आधार चाँदपुर के निकट बास्टा में प्राप्त सीता का मंदिर है। कहा जाता है कि मंदिरस्थल पर ही धरती फटी थी और सीताजी उसमें समा गई थीं। कहा जाता है कि भारत का प्रथम राजा 'सुदास' इसी पांचाल देश का था। विदुरकुटी महात्मा विदुर की तपोभूमि रही है। बुद्धकालीन भारत में भी चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने छह महीने मतिपुरा (मंडावर) में व्यतीत किए थे। पृथ्वीराज चौहान और जयचंद की पराजय के बाद भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना हुई थी। उस समय यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत का एक हिस्सा रहा था। तब इसका नाम 'कटेहर क्षेत्र' था। औरंगज़ेब कट्टर शासक था। उसके शासनकाल में अनेक विद्रोही केंद्र स्थापित हुए थे। उन दिनों जनपद पर अफ़ग़ानों का अधिकार था। ये अफ़गानी अफ़ग़ानिस्तान के 'रोह' कस्बे से संबद्ध थे अत: ये अफ़गान रोहेले कहलाए और उनका शासित क्षेत्र रुहेलखंड कहलाया गया था। नजीबुद्दौला प्रसिद्ध रोहेला शासक था, जिसने 'पत्थरगढ़ का क़िला' को अपनी राजधानी बनाया था। आज़ादी की लड़ाई के समय सर सैय्यद अहमद ख़ाँ यहीं पर कार्यरत थे। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'तारीक सरकशी-ए-बिजनौर' उस समय के इतिहास पर लिखा गया महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। प्रसिद्ध क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ाँ, रोशनसिंह ने पैजनिया में शरण लेकर ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोकी थी। कांग्रेस द्वारा लड़ी गई आज़ादी की लड़ाई में भी जनपद का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

इन दोनों स्थानों को महाभारत कालीन बताया जाता हैं। स्थानीय जनश्रुति में बिजनौर के निकट गंगातटीय वन में महाभारत काल में मयदानव का निवास स्थान था। भीम की पत्नी हिडिंबा मयदानव की पुत्री थी और भीम से उसने इसी वन में विवाह किया था। यहीं घटोत्कच का जन्म हुआ था। नगर के पश्चिमांत में एक स्थान है जिसे हिडिंबा और पिता मयदानव के इष्टदेव शिव का प्राचीन देवालय कहा जाता है। मेरठ या मयराष्ट्र बिजनौर के निकट गंगा के उस पार है। बिजनौर के इलाके को वाल्मीकि रामायण में प्रलंब नाम से अभिहित किया गया है। नगर से आठ मील दूर मंडावर है जहाँ मालिनी नदी के तट पर कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् नाटक में वर्णित कण्वाश्रम की स्थिति परंपरा से मानी जाती है। [1]

प्रमुख मानदंड

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साहित्य के क्षेत्र में जनपद ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं।

ये सब महान व्यक्ति बिजनौर की धरती की ही देन हैं।

यातायात और परिवहन

गंगा नदी के समीप स्थित यह नगर सड़क और रेलमार्गों से जुड़ा हैं।

कृषि और खनिज

बिजनौर में कृषि प्रमुख है। यहाँ पर रबी, ख़रीफ़, ज़ायद आदि की प्रमुख फ़सलें होती हैं, जिनमें गन्ना, गेहूँ, चावल, मूँगफली की मुख्य उपज होती हैं।

उद्योग और व्यापार

बिजनौर कृषि उत्पादों का व्यावसायिक केंद्र है। और यह धागे बनाने के लिये भी जाना जाता हैं। 33 प्रतिशत जनसंख्या इसी में कार्यरत है। बिजनौर में 58 प्रतिशत जनसंख्या कृषि उद्योग से संबंधित है। अन्य कर्मकार 37 प्रतिशत हैं तथा पारिवारिक उद्योग में 5 प्रतिशत हैं। ज़िले का उत्तरी क्षेत्र सघन वनों से आच्छादित होने के कारण काष्ठ उद्योग विकसित अवस्था में मिलता है। नजीबाबाद, नहटौर, माहेश्वरी, धामपुर आदि स्थानों पर काष्ठ मंडिया हैं। करघा उद्योग यहाँ का तीसरा महत्त्वपूर्ण ग्रामोद्योग है। हथकरघे से बुने हुए कपड़े नहटौर के बाज़ार में बिकते हैं। पशुओं की अधिकता के कारण चर्म उद्योग में भी बहुत से लोग लगे हुए हैं। चमड़े एवं उससे निर्मित वस्तुओं के क्रय-विक्रय से अनेक व्यक्ति जीविकोपार्जन करते हैं। बिजनौर में मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग होता है जिसको कुम्हारगीरी का व्यवसाय भी कहते हैं, यहाँ पर यह एक प्रचलित व्यवसाय है।

अन्य प्रमुख लघु उद्योग

बिजनौर में बढ़ईगीरी, लुहारगीरी, सुनारगीरी, रँगाई-छपाई, राजगीरी, मल्लाहगीरी, ठठेरे का व्यवसाय, वस्त्रों सिलाई का काम, हलवाईगीरी, दुकानदारी, बाँस की लकड़ी से संबंधित उद्योग, गुड़-ख़ाँडसारी उद्योग, बटाई, बुनाई का काम, वनौषधि-संग्रह आदि व्यवसाय होते हैं।

शिक्षण संस्थान

बिजनौर में कई प्रमुख स्कूल व इंटर कालेज हैं। इसके अतिरिक्त दो स्नातकोत्तर महाविद्यालय हैं। एक इंजीनियरिंग कॉलेज वीरा इंजीनियरिंग कॉलेज, एक फ़ारमेसी कॉलेज विवेक कॉलेज ऑफ़ टेकनिकल एजुकेशन, दो लॉ कॉलेज 'विवेक कॉलेज ऑफ़ लॉ' और 'कृष्णा कॉलेज ऑफ़ लॉ' हैं। ये यहाँ की प्रमुख शिक्षा संस्थाएँ हैं।

जनसंख्या

बिजनौर नगर की जनसंख्या (2001) 79,368 है। और बिजनौर ज़िले की कुल जनसंख्या 31,30,586 है।

पर्यटन

दर्शनीय स्थल

बिजनौर जनपद में अनेक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल हैं।

  • कण्व आश्रम

यह एक महत्त्वपूर्ण स्थल है। अर्वाचीन काल में यह क्षेत्र वनों से आच्छादित था। मालिनी और गंगा के संधिस्थल पर रावली के समीप कण्व मुनि का आश्रम था, जहाँ शिकार के लिए आए राजा दुष्यंत ने शकुंतला के साथ गांधर्व विवाह किया था। रावली के पास अब भी कण्व आश्रम के स्मृति-चिह्न शेष हैं।

विदुरकुटी यह महाभारत काल का एक प्रसिद्ध स्थल है 'विदुरकुटी'। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण जब हस्तिनापुर में कौरवों को समझाने-बुझाने में असफल रहे थे तो वे कौरवों के छप्पन भोगों को ठुकराकर गंगा पार करके महात्मा विदुर के आश्रम में आए थे और उन्होंने यहाँ बथुए का साग खाया था। आज भी मंदिर के समीप बथुए का साग हर ऋतु में उपलब्ध हो जाता है।

  • दारानगर

महाभारत का युद्ध आरंभ होनेवाला था, तभी कौरव और पांडवों के सेनापतियों ने महात्मा विदुर से प्रार्थना की कि वे उनकी पत्नियों और बच्चों को अपने आश्रम में शरण प्रदान करें। अपने आश्रम में स्थान के अभाव के कारण विदुर जी ने अपने आश्रम के निकट उन सबके लिए आवास की व्यवस्था की। आज यह स्थल 'दारानगर' के नाम से जाना जाता है। संभवत: महिलाओं की बस्ती होने के कारण इसका नाम दारानगर पड़ गया।

  • सेंदवार

चाँदपुर के निकट स्थित गाँव 'सेंदवार' का संबंध भी महाभारत काल से जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ है सेना का द्वार। जनश्रुति है कि महाभारत के समय पांडवों ने अपनी छावनी यही बनाई थी। गाँव में इस समय भी द्रोणाचार्य का मंदिर विद्यमान है।

  • पारसनाथ का क़िला

बढ़ापुर से लगभग चार किलोमीटर पूर्व में लगभग पच्चीस एकड़ क्षेत्र में 'पारसनाथ का क़िला' के खंडहर विद्यमान हैं। टीलों पर उगे वृक्षों और झाड़ों के बीच आज भी सुंदर नक़्क़ाशीदार शिलाएँ उपलब्ध होती हैं। इस स्थान को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसके चारों ओर द्वार रहे होंगे। चारो ओर बनी हुई खाई कुछ स्थानों पर अब भी दिखाई देती है।

  • आजमपुर की पाठशाला

चाँदपुर के पास बास्टा से लगभग चार किलोमीटर दूर आजमपुर गाँव में अकबर के नवरत्नों में से दो अबुल फ़जल और फैज़ी का जन्म हुआ था। उन्होंने इसी गाँव की पाठशाला में शिक्षा प्राप्त की थी। अबुल फ़जल और फैज़ी की बुद्धिमत्ता के कारण लोग आज भी पाठशाला के भवन की मिट्टी को अपने साथ ले जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस स्कूल की मिट्टी चाटने से मंदबुद्धि बालक भी बुद्धिमान हो जाते हैं।

  • मयूर ध्वज दुर्ग

चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के अनुसार जनपद में बौद्ध धर्म का भी प्रभाव था। इसका प्रमाण 'मयूर ध्वज दुर्ग' की खुदाई से मिला है। ये दुर्ग भगवान कृष्ण के समकालीन सम्राट मयूर ध्वज ने नजीबाबाद तहसील के अंतर्गत जाफरा गाँव के पास बनवाया था। गढ़वाल विश्वविद्यालय के पुरातत्त्व विभाग ने भी इस दुर्ग की खुदाई की थी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुछ लोगों का कहना है बिजनौर की स्थापना राजा बेन ने की थी जो पंखे या बीजन बेचकर अपना निजी ख़र्च चलाता था और बीजन से ही बिजनौर का नाम करण हुआ।

बाहरी कड़ियाँ