बिल्वत्रिरात्र व्रत

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • ज्येष्ठा नक्षत्र से युक्त ज्येष्ठ पूर्णिमा पर सरसों से युक्त जल से स्नान कर, बिल्व वृक्ष पर जल छिड़कना और उसे गंध आदि से पूजना चाहिए।
  • एक वर्ष तक नक्त विधि से आहार लेना चाहिए।
  • वर्ष के अन्त में बिल्व वृक्ष के पास में बाँस के पात्र में बालू जौ, चावल, तिल आदि भर कर पहुँचना तथा पुष्पों आदि से उमा एवं महेश्वर की पूजा वैधव्याभाव, सम्पत्ति, स्वास्थ्य, पुत्रादि के लिए मन्त्र के साथ में बिल्व को सम्बोधित करना चाहिए।
  • सहस्रों बिल्व दल से होम कर, सोने के फलों के साथ चाँदी का एक बिल्व वृक्ष बनाना चाहिए।
  • उपवास के साथ में त्रयोदशी से पूर्णिमा तक तीन दिन तक जागरण करना चाहिए।
  • दूसरे दिन प्रातः स्नान कर, वस्त्रों, आभूषण आदि से आचार्य को सम्मान; 16, 8 या 4 सपत्नीक ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
  • इस व्रत से उमा, लक्ष्मी, शची, सावित्री एवं सीता को क्रम से शिव, कृष्ण, इन्द्र, ब्रह्मा एवं राम ऐसे पतियों की प्राप्ति हुई।[1], [2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत0 2, 308-312, स्कन्दपुराण से उद्धरण
  2. स्मृतिकौस्तुभ (123-124

संबंधित लेख