बिहुला

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 20 मार्च 2015 का अवतरण (→‎कथासार)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
बिहुला

बिहुला या 'बेहुला' या 'सती बिहुला' मध्यकालीन बांग्ला साहित्य में 'मानस मंगल' एवं इसी प्रकार की कई अन्य काव्य कृतियों की नायिका है। बिहुला की लोकगाथा करुण रस से परिपूर्ण है। 13वीं से 18वीं शती की अवधि में इसकी कथा पर आधारिक बहुत-सी रचनाएं की गयी थीं। इन कृतियों का धार्मिक उद्देश्य मनसा देवी की महत्ता का प्रतिपादन करना था, किन्तु ये कृतियाँ बिहुला एवं उसके पति बाला लखन्दर के पवित्र प्रेम के लिये अधिक जानी जाती हैं।

नारी के उत्सर्ग की कथा

बिहुला की कथा प्राचीन भारत के षोडश जनपदों में से एक अंगदेश[1] की राजधानी चंपा[2] की है। महाभारत के समय यहाँ के राजा कर्ण हुआ करते थे, ऐसा माना जाता है। सती बिहुला की कथा भोजपुरी भाषी क्षेत्र में एक गीतकथा के रूप में गाई जाती है। सामान्यत: यह निचली जातियों की कथा के रूप में प्रचलित हुआ करती थी, परन्तु अब यह जाति की सीमाओं को लाँघ कर सर्वप्रिय कथा के रूप में स्थापित है और अब यह नारी मात्र के उत्सर्ग के अभूतपूर्व प्रतिमान के उद्धरण की कथा के रूप में जानी जाती है, क्योंकि कहानी के अनुसार अपनी कठोर तपस्या से सती बेहुला ने अपने पति को जीवित कर दिखाया था।

कथासार

विशेष रूप से दलित जातियों में प्रचलित सती बिहुला की लोकगाथा अब अपनी जातीय सीमाओं से परे पूरे बिहार में पसंद की जाती है। यह कहानी सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं के समर्पण और महत्त्व को रेखांकित करती है। बिहार के अतिरिक्त बिहुला की कथा का उत्तर प्रदेश तथा बंगाल में भी प्रचार पाया जाता है। संक्षेप में इसकी कथा निम्नांकित है-

"चन्दू साहू नामक एक प्रसिद्ध सौदागर था। इसके लड़के का नाम बाला लखन्दर था। यह रूप-यौवन से सम्पन्न तथा सुन्दर युवक था। अवस्था प्राप्त होने पर इसका विवाह सम्बन्ध 'बिहुला' नामक एक परम सुन्दरी कन्या से किया गया। चन्दू साहू के 6 लड़के विवाह के अवसर पर कोहबर में साँप के काटने से मर चुके थे। अत: बाला लखन्दर के विवाह के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि पूर्व दुर्घटना की पुनरावृत्ति न होने पाये। इस विचार से ऐसा मकान बनाने का निश्चय हुआ, जिसमें कहीं भी छिद्र न हो।[3]

विषहरी नामक ब्राह्मण, जो चन्दू सौदागर से द्वेष रखता था, बड़ी ही दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति था। उसने मकान बनाने वाले कारीगरों को घूस देकर उसमें सर्प के प्रवेश करने योग्य एक छिद्र बनवा दिया। बिहुला भी इस दुर्घटना को रोकने के लिए बड़ी सचेष्ट थी। उसने अपने मायके से पहरेदार भी चौकसी रखने के लिए बुलवाये थे। विवाह के पश्चात् जब वह बाला लखन्दर के शयनकक्ष में गयी तो देखा कि वह अचेत सो रहा है। बिहुला ने सर्पदंश से रक्षा के लिए उसकी चारपाइयों के चारों पायों में कुत्ता, बिल्ली, नेवला तथा गरुड़ को बाँध दिया और स्वयं चौकसी करती हुई बाला लखन्दर के सिरहाने बैठ गयी। जिस कमरे में बाला लखन्दर सो रहा था, उसमें प्रकाश के लिए नौ मन तेल का अखण्ड दीपक जल रहा था।

दुर्भाग्य से कुछ देर बाद बिहुला को भी नींद लगने लगी और बाला लखन्दर के पास ही वह सो गयी। इसी बीच में विषहरी ब्राह्मण के द्वारा भेजी गयी एक नागिन आयी और उसने बाला लखन्दर को डँस लिया। जब प्रात:काल बिहुला की नींद खुली तो वह देखती है कि इसका पति मरा पड़ा है। उसकी लाश को देखलर उसने बड़ा करुण क्रन्दन किया और अपने भाग्य पर पश्चात्ताप करने लगी। बाला लखन्दर के परिवार में शोक की लहर दौड़ जाती है और पूरा परिवार बिहुला को ही अपशकुन मानता है। बिहुला अपने पति का शव लेकर गंगा में कूद जाती है। गंगा में ही उसकी मुलाकात इंद्र की धोबन से होती है। वह उससे मौसी का रिश्ता बनाकर इंद्रलोक पहुंच जाती है। एक दिन धोये कपड़े की चमक से इंद्र को खुश कर देती है। इस पर इंद्र बिहुला को दरबार बुलाते हैं। बिहुला दरबार पहुंचती है और अप्सराओं के नृत्य पर टिप्पणी करती है। इंद्र उसे नृत्य का अवसर देते हैं और बिहुला के नृत्य से खुश होकर उसे वरदान मांगने को कहते हैं। बिहुला अपने पति और उसके भाइयों को जीवित करने का वरदान मांगती है।[3]

करुण रस की प्रधानता

बिहुला की कथा बड़ी कारुणिक है। बिहुला के विलाप का वर्णन करता हुआ लोककवि कहता है कि-

"ए राम स्वामी स्वामी हाय स्वामी कहे रे दइया छाती पीटी रोदनिया करे ए राम। ए राम कोहबर में रोवे सती बिहुला रे दइया दइया सुनि लोग के छाती फाटे ए राम।।"

करुण रस से ओत-प्रोत बिहुला की कथा को सुनकर पाषाण हृदय का भी चित्त द्रवित हो उठता है। यही कारण है कि इस गाथा को लेकर अनेक छोटी-छोटी पुस्तकों की रचना भोजपुरी भाषा में हुई हैं, जिनमें से 'बिहुला विषहरी' और 'बिहुला-गीत' नामक पुस्तकें प्रसिद्ध हैं।

रचनाएँ

बंगाल में बिहुला की कथा का बड़ा प्रचार है, जो वहाँ 'मनसा मंगल' के नाम से प्रसिद्ध है। बंगाल में 'मनसा' सर्पों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। 'मनसा मंगल' के गीतों का कथानक कुछ थोड़े से परिवर्तन के साथ वही है, जो 'बिहुला' का है। बंगला भाषा के अनेक कवियों ने 'मनसा मंगल' की रचना की है, जिनका प्रकाशन 'कलकत्ता विश्वविद्यालय' तथा 'बंगीय साहित्य परिषद' द्वारा हुआ है। बंग प्रांत में 'मनसा' देवी की पूजा बड़े प्रेम से की जाती है। इस अवसर पर इस कथा को नाटकीय रूप देकर अभिनय भी किया जाता है। इस उल्लेख से पता चलता है कि बिहुला की कथा कितनी लोकप्रिय और व्यापक है।[3]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्तमान बिहार के भागलपुर, मुंगेर ज़िलों के आसपास का क्षेत्र
  2. वर्तमान में भागलपुर ज़िले के नाथनगर के चंपानगर
  3. 3.0 3.1 3.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 386 |

संबंधित लेख