एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-4 ब्राह्मण-1

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:31, 3 अगस्त 2014 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • इस ब्राह्मण में 'ब्रह्म' के विशिष्ट स्वरूपों की व्याख्या विदेहराज जनक याज्ञवल्क्य को सुनाते हैं।
  • उन्होंने बताया कि शिलिक ऋषि के पुत्र जित्वा ब्रह्म को 'वाक्' (वाणी) रूप में मानते हैं।
  • इसी प्रकार शुल्व ऋषि के पुत्र उदंक ने 'प्राण' को ब्रह्म माना है।
  • इसी प्रकार वृष्णा के पुत्र वर्कु ने 'चक्षु' को ब्रह्म स्वीकार किया है।
  • याज्ञवल्क्य ने ब्रह्म के तीनों रूपों का समर्थन करते हुए उसे सत्य माना।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-1

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-2

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-3

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6 | ब्राह्मण-7 | ब्राह्मण-8 | ब्राह्मण-9

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-4

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 से 4 | ब्राह्मण-5 से 12 | ब्राह्मण-13 | ब्राह्मण-14 | ब्राह्मण-15

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-6

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5