भयहरणनाथ धाम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
भयहरणनाथ धाम

भयहरणनाथ धाम, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के प्रतापगढ़ ज़िले के मान्धाता विकासखंड से 9 किलोमीटर दूर ग्राम कटरा गुलाब सिह में वेद वर्णित बकुलाही नदी के पावन तट पर स्थित है। यह भगवान शिव का प्रमुख अतिप्राचीन मंदिर है। अपनी प्राकृतिक एवं अनुपम छटा तथा बकुलाही नदी के तट पर स्थित होने के कारण यह स्थल आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यन्त जीवन्त है। यह धाम आसपास के क्षेत्रों के लाखो लोगों की आस्था और विश्वास का केंद्र है।

इतिहास

भयहरणनाथ धाम

भयहरणनाथ धाम की आयु के संबंध मे कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर सैकड़ो वर्षो से भयहरणनाथ धाम एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ रहा है। वर्तमान मे इस मंदिर का निर्माण व जीर्णोद्नार ब्रह्मलीन संत श्री नागाबाबा जी तथा स्थानीय जनसहयोग द्वारा संपन्न हुआ। इस क्षेत्र में महाभारत काल के और कई पौराणिक स्थल तथा भग्नावशेष आज भी मौजूद है, जिसमे ऊँचडीह गांव का टीला तथा उसकी खुदाई में प्राप्त मूर्तियाँ, स्वरूपपुर गांव का सूर्य मन्दिर तथा कमासिन में कामाख्या देवी का मन्दिर प्रमुख है। इस सब के सम्बन्ध तरह - तरह की लोक श्रुतियाँ, लोक मान्यतायें प्रचलित हैं। इस मंदिर के महत्व के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसमें कहा गया है कि जब पांडवों को अज्ञातवास मिला तो वह यहां वहां अपने को छुपाते हुए घूम रहे थे। तब यहां पर आए इस दौरान भीम ने यहाँ पर राक्षस बकासुर का वध करने के पश्चात् इस शिवलिंग की स्थापना की थी। भीम ने राक्षस बकासुर का वध कर ग्रामवासियों को राक्षस बकासुर के आतंक से भय मुक्त किया था, तत्पश्चात् जनकल्याण के लिए शिवलिंग की स्थापना की और तब से ही भयहारी कहे जाने वाले भगवान भोलेनाथ जनमानस में "'भव भयहरणनाथ"' के नाम से प्रसिद्ध हुए।

कथा

भयहरणनाथ धाम

महाभारत के वन पर्व में एक कथा है जिसके अनुसार कौरवों से जुए में हारने के बाद युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ वनवास को चले गए। जुए में शर्त के अनुसार इनको एक वर्ष अज्ञातवास करना था। अज्ञातवास करने के लिए पाण्डव छिपते हुए प्रतापगढ़ के निकट सघन वन क्षेत्र द्वैतवन में आ गए। यहां पांचो पांडवों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए अलग-अलग स्थानों पर शिवलिंग स्थापित किए। बताते हैं, धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रतापगढ़ के रानीगंज अजगरा में अजगर रूपी राक्षस नहस का वध किया था। आज भी यहाँ पाँच सिद्ध स्थान है जो पांडवों ने स्थापित किये थे। बाद में पांडव नेपाल के विराट नगर चले गए। महाभारत में बालकुनी नदी का उल्लेख हुआ है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार बालकुनी का अपभ्रंश बकुलाही हो गया। वर्तमान की बकुलाही नदी के तट पर भगवान भयहरणनाथ लिंग रूप में विराजमान है।

महिमा

भयहरणनाथ धाम

बाबा भयहरणनाथ महादेव की बड़ी महिमा है। यहाँ महादेव को भवभयहारी कहा गया है। प्रतापगढ़ ज़िले का पंचधाम (भयहरणनाथ धाम, घुइसरनाथ धाम, बेलखरनाथ धाम, हौदेश्वरनाथ धाम, बालेश्वरनाथ धाम) - ये पाँच प्रधान तीर्थ है, इन पंच शिवलिंग के दर्शन का बड़ा ही माहात्म्य है। भयहरणनाथ बाबा के संबंध मे भक्तो की गहरी आस्था है कि भयहरणनाथ महादेव भक्तों के भय, दुःख, व्याधि दूर कर सुख, समृद्धि और वैभव प्रदान करते है। भयहरणनाथ धाम मंदिर के दर्शन पाकर सभी भक्त आत्मिक शांति को पाते हैं इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट, कलेश दूर हो जाते हैं। भक्तों का अटूट विश्वास इस स्थान की महत्ता को दर्शाता है। मंदिर में हर समय ही भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है।

मंदिर वास्तुशिल्प

मुख्य मंदिर एक ऊँचे टीले पर बना हुआ है। मंदिर मे मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारो ओर प्रदक्षिणा पथ है। मुख्य मंदिर के बाहर प्रांगण मे नंदी बैल भगवान शिव के वाहन के रूप मे विराजमान है। मुख्य मंदिर के सामने बारादरी से जुड़ा हुआ शंकर पार्वती की सदेह मूर्ति है, जिसका निर्माण 7 नवंबर 1960 को कुर्मी क्षत्रिय समाज द्वारा किया गया था। धाम मे मुख्यतः दस मंदिर है और तीन समाधिया है। यहाँ की कुछ मंदिर उपेक्षित भी है। मंदिर का वास्तुशिल्प निर्माण उत्तर भारत वास्तुकला के आधार पर हुआ है। हिंदू वास्तुशास्त अनुसार प्रत्येक मंदिर का मुख पूरब सूर्योदय की दिशा मे है।

समाधियाँ

यहाँ मुख्यत: तीन समाधि है।

प्रथम समाधि

प्रथम समाधि है मंदिर के प्रथम पुजारी एवं जीर्णोद्धारक पूज्यनीय संत श्री नागा बाबा की। ब्रह्मलीन नागा बाबा ने जन सहयोग से भवभयहरणनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। वर्तमान मंदिर नागा बाबा के परिश्रम की देन है। इनके संबंध मे बहुत लोक कथाएँ प्रचलित है। महापुरुष संत श्री श्री आज भी स्थानीय लोगो के हृदय में बसते हैं।

द्वितीय समाधि

द्वितीय समाधि है ब्रह्मनिष्ठ स्वामी श्री दाण्डी महाराज की। स्वर्गीय दाण्डी स्वामी ने भी इस धाम के विकास एवं संरक्षण के लिए बहुत कुछ प्रयास किया था। स्वामी श्री ने अपना संपूर्ण जीवन भगवान भोलेनाथ की सेवा मे समर्पित कर दिये थे।

तृतीय समाधि

धाम के प्रांगण मे स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर के सामने एक छोटा सा मंदिर है, जो एक बंदर की समाधि है। इसके संबंध में बताया जाता है कि कटरा गुलाब सिंह बाज़ार मे एक जोड़ा बंदर रहता था। एक दिन एक व्यक्ति ने बाट से बंदरिया को मार दिया, दुर्योग ही कहा जाएगा ,वह बंदरिया मर गई। बाज़ार वासी उस व्यक्ति को बहुत भला बुरा कहे फिर राय बनाकर उसकी अन्तयेष्टि गंगा जी के तट पर करने का निश्चय किया। शवयात्रा निकली,साथ मे नर बंदर भी आगे आगे चला। लोगों ने सोचा, जिस मार्ग से बंदर चले उसी मार्ग से चला जाए। बंदर बाज़ार से बाहर निकलने पर बाबा नगरी भयहरणनाथ धाम की ओर मुड़ गया। सभी लोग तट पर जाने के बजाय उसी बंदर का अनुगमन करते हुए बाबा नगरी पहुँच गए। बंदर पहले प्रधान मंदिर भगवान भव भयहरणनाथ महादेव के सामने पहुँच कर बैठ गया। इसके बाद उठकर राधाकृष्ण मंदिर के सामने बैठा। लोगों ने उसके मौन संकेत को समझकर उसी स्थान पर बंदरिया की समाधि बना दी। कुछ दिन बाद मारने वाला परिवार परेशान होने लगा। बाज़ार वासियों ने उसे बंदरिया की पक्की समाधि बनाने की सलाह दी। उसने अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया लोगों के अनुसार तभी से उस परिवार का कल्याण हो गया।

महाशिवरात्रि

इस प्राचीनतम धार्मिक स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन सैकड़ों वर्षो से विशाल मेला लगता आ रहा है, जिसमे लाखों लोग शामिल होते है। साथ ही प्रत्येक मंगलवार को हजारों की संख्या में क्षेत्रीय जन समुदाय शिवलिंग पर जल तथा पताका चढाने हेतु मन्दिर परिसर में एकत्रित होता है। श्रावण मास में जलाभिषेक के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु उमड़े रहते है। कावंरियों व शिव भक्तों के जमावड़े से धाम गुलज़ार रहती है। मंगलवार को यह दृश्य देखते ही बनता जब जयकारे से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहता है। तेरस पर्व के अवसर पर भारी तादाद में श्रद्धालु लोग दूर -दराज से यहां पहुंचते है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर लगने वाले फागुनी मेले में प्रति वर्ष श्रृंगवेरपुर धाम तथा फाफामऊ से गंगाजल लेकर शिवभक्त कांवरिये पैदल प्रतापगढ़ जनपद स्थित भयहरणनाथ की पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने भगवान भोलेनाथ का जयकारा लगाते हुए आते हैं। अपनी धुन व शिवभक्ति के पक्के कांवरियों की सकुशल सुरक्षित यात्रा, पूजा-अर्चना, जलाभिषेक सम्पन्न कराना प्रशासन के लिए एक चुनौती ही होता है। प्रशासन पूरी यात्रा के दौरान मुस्तैद व चौकना रहता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

भयहरणनाथ धाम में 12 महाकाल महोत्सव

संबंधित लेख