भिन्नमाल

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भिलमाल / श्रीमाल
आबू पहाड़ से 50 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है। चीनी यात्री युवानच्वांग ने भिन्नमाल को सम्भवतः पिलोमोलो नाम से अभिहित किया है और इस नगर को गुर्जर देश की राजधानी बताया है। भिन्नमाल का एक अन्य नाम श्रीमाल भी प्रचलित है। 12वीं-13वीं शती में रचित प्रभावकचरित नामक ग्रंथ में प्रभाचंद्र ने श्रीमाल को गुर्जर देश का प्रमुख नगर कहा है- अस्ति-गुर्जरदेशोऽन्यसज्जराजन्यदुर्जरः तत्र श्रीमालमित्यस्ति पुरं मुखमिव क्षितेः इस ग्रंथ में यहाँ के तत्कालीन राजा श्रीवर्मन का उल्लेख है। सातवीं शती ई॰ में गुर्जर-प्रतिहार राजपूतों की शक्ति का विकास दक्षिणी मारवाड़ में प्रारम्भ हुआ था।

राजधानी भिन्नमाल

राजाओं ने अपनी राजधानी भिन्नमाल में बनाई। ये राजपूत स्वयं को विशुद्ध क्षत्रिय और श्रीराम के प्रतिहार लक्ष्मण का वंशज मानते थे। भिन्नमाल और कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार राजा बहुत प्रतापी और यशस्वी हुए हैं। भिन्नमाल के राजाओं में वत्सराज (775-800 ई0) पहला प्रतापी राजा था। इसने बंगाल तक अपनी विजय पताका फहराई और वहाँ के पालवंशीय राजा धर्मपाल को युद्ध में पराजित किया। मालवा पर भी इसका शासन स्थापित हो गया था। वत्सराज को राष्ट्रकूट नरेश राजध्रुव से पराजित होना पड़ा, अतः उसका महाराष्ट्र-विजय का स्वप्न साकार न हो सका। वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने धर्मपाल को मुंगेर की लड़ाई में हराया और उसके द्वारा नियुक्त कन्नौज के शासक चक्रायुध से कन्नौज को छीन लिया। उसके प्रभुत्व का विस्तार काठियावाड़ से बंगाल तक और कन्नौज से आन्ध्र प्रदेश तक स्थापित था। उसने सिंध के अरबों को भी पश्चिमी भारत में अग्रसर होने से रोका। किन्तु अपने पिता की भाँति नागभट्ट को भी राष्ट्रकूट नरेश से हार माननी पड़ी। इस समय राष्ट्रकूट का शासक गोविन्द तृतीय था। नागभट्ट के पौत्र मिहिरभोज (836-890 ई.) ने उत्तर भारत में गुर्जर-प्रतिहारों के समाप्त होते हुए प्रभुत्व को सम्भाला। इसने अपने विस्तृत राज्य का भली-भाँति शासन प्रबन्ध करने के लिए, अपनी राजधानी भिन्नमाल से हटाकर कन्नौज में स्थापित की। इस प्रकार भिन्नमाल को लगभग 100 वर्षों तक प्रतापी गुर्जर-प्रतिहारों की राजधानी बने रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भिन्नमाल में इनके शासनकाल के अनेक ऐतिहासिक अवशेष स्थित हैं। अनुमान है कि इनका समय 7वीं शती का उत्तरार्घ और 8वीं शती का पूर्वार्ध था।

महाकवि माघ

शिशुपाल वध की कई प्राचीन हस्तलिपियों में महाकवि माघ का भिन्नमाल या भिन्नमालव से सम्बन्ध इस प्रकार बताया गया है-

इति श्री भिन्नमालववास्तव्यदत्तकसूनोर्महावैयाकरणस्य माघस्य कृतो शिशुपालवधे महाकाव्ये

माघ के पितामह सुप्रभदेव श्रीमालनरेश वर्मलात या वर्मल के महामात्य थे। ऐतिहासिक किंवदन्तियों से भी यही सूचित होता है कि संस्कृत के महाकवि माघ भिन्नमाल के ही निवासी थे। भिन्नमाल का रूपान्तर भिलमाल भी प्रचलित है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 667-668 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार