मंगेशी मंदिर, गोवा

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मंगेशी मंदिर, गोवा

मंगेशी मंदिर पणजी से तक़रीबन 21 कि.मी. दूर, गोवा के पोंडा तालुका में प्रिओल के मंगेशी गांव में स्थित है। इस मंदिर के मुख़्य आराध्य श्री मंगेश हैं, जिन्हें 'मंगिरीश' भी कहा जाता है। उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है और यहाँ एक शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। श्री मंगेश हिन्दू गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों के कुल देवता हैं।

इतिहास

पहले कुशस्थल ग्राम में (जो आजकल कडथाल या कट्ठाल कहा जाता है) श्री मंगेश का विशाल मंदिर था। श्री मंगेश स्वयंभू लिंग उसी में स्थापित था; किंतु गोमांतक प्रदेश (गोवा) में जब पुर्तग़ालियों ने प्रवेश करके उपद्रव प्रारंभ किया, तब भावुक भक्त श्री मंगेश को पालकी में विराजित करके ‘प्रियोल’ गांव ले आए। वहीं कुछ दिन पश्चात मंदिर बन गया। कहा जाता है कि परशुराम द्वारा यज्ञ कार्य संपन्न करने के लिए सह्याद्री पर्वत की तराई में जो ब्राह्मण परिवार तिरहुत से लाए गए थे, उन्ही में से एक परमशिव भक्त शिव शर्मा के लिए भगवान शंकर स्वयं इस लिंग रूप में प्रकट हुए। भगवान शंकर ने उस समय पशुओं का रूप धारण करके दुर्गा जी को डरा दिया था, भयभीत पार्वती ने पुकारना चाहा- ‘मां गिरीश पाहि’, 'कैलाश नाथ मुझे बचाओ।’ किंतु भय के कारण उनके मुख से निकला- ‘मांगीश’। भगवान शिव तत्काल प्रकट हो गए, तभी से शिवलिंग का नाम 'मांगीश' हो गया।[1]

कथा

भगवान मंगेश को परम आराध्य भगवान शिव का अवतार माना जाता है और उनकी उत्पत्ति के साथ एक बहुत ही रोचक प्रसंग जुड़ा है। एक प्रसिद्ध किवदन्ती के अनुसार, एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर्वत पर चौसर खेल रहे थे। शिव ने लगातार हारते हुए अंततः आखिरी चाल में स्वर्ग भी दांव पर लगा दिया और उसे भी हार गए। खेल में हार जाने के कारण उन्हें अपना निवास स्थान हिमालय त्यागना पड़ा। उन्होंने दक्षिण की ओर चलना आरम्भ किया और सह्याद्री पर्वत को पार करते हुए कुशास्थली (वर्तमान करतिलम) जा पहुँचे। कुशास्थली में उनके एक अनन्य भक्त लोपेश ने उनसे वहीं रुकने का अनुनय किया।

तत्पश्चात् देवी पार्वती ने भी स्वर्ग छोड़ दिया और भगवान शिव की तलाश में यहाँ-वहां भटकने लगीं। एक घने जंगल से गुजरते समय अचानक उनके सामने एक बड़ा बाघ आ गया, जिसे देखकर वह बहुत घबरा गईं और एक मन्त्र का जाप करने लगीं; जो शिव ने उन्हें अपनी रक्षा करने के लिए सिखाया था। सही मन्त्र था- "हे गिरिशा ममत्राहि" अर्थात् "हे गिरिराज (पर्वतों के स्वामी) मेरी रक्षा करो!", किन्तु पार्वती इतनी ज़्यादा भयभीत थीं कि उनका अपनी वाणी पर नियंत्रण न रहा और वह ग़लत मन्त्र- "त्राहि माम गिरिशा" का उच्चारण करने लगीं और तब, भगवान शिव जिन्होंने स्वयं उस बाघ का रूप धारण किया हुआ था, तुरंत अपने वास्तविक रूप में आ गए। तदुपरांत, देवी पार्वती की आज्ञानुसार, भगवान शिव ने 'मम-गिरिशा' को अपने उन नामों में शामिल कर दिया, जिनसे उन्हें जाना और पूजा जाता है। फलतः शिव को मम-गिरिशा के संक्षिप्त रूप 'मंगिरीश' और 'मंगेश' नाम से जाना जाने लगा।[2]

स्थापत्य

मंदिर गोवा के ही एक अन्य मंदिर शांता दुर्गा मंदिर की शैली में बना है। यहां एक पानी का कुण्ड भी है। मंदिर के सभी स्तम्भ पत्थर के बने हैं और इसके मध्‍य में एक भव्य दीपस्तंभ भी है। मुख्य कक्ष में सभा गृह भी है। यह मंदिर दिनभर दर्शन के लिए खुला रहता है और हर सोमवार यहां एक महाआरती भी की जाती है। सोमवार को ही पालकी पर प्रतिमा की यात्रा भी निकाली जाती है। माघ महीने में यहां जात्रोत्सव या यात्रोत्सव का भी आयोजन होता है। मंगेशी मंदिर की वास्तुकला विशेष है। यह मंदिर 18वीं शताब्दी में बनाया गया था। यहां एक भव्य दीपस्तंभ भी है। मंगेशी मंदिर गोवा का एक प्रमुख मंदिर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कल्याण विशेषांक तीर्थ अंक, पृष्ठ संख्या 112 -113
  2. मंगेशी मंदिर, गोवा (हिन्दी) m.dailyhunt.in। अभिगमन तिथि: 07 जुलाई, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

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