मदर इंडिया
मदर इंडिया महबूब ख़ान के द्वारा निर्देशित एक विख्यात हिन्दी फ़िल्म है, इसका प्रदर्शन 1957 में हुआ था।
कथावस्तु
1940 में फिल्म "औरत" में महबूब एक आम हिंदुस्तानी औरत के संघर्ष और हौसले को सलाम करते हैं और उसे एक ऐसी जीवन वाली महिला के रूप में पेश करते हैं, जो विपरीत हालात में भी डटकर खड़ी रहती है। इस फिल्म में एक गांव की कहानी है, जिसमें एक कुटिल और लालची साहूकार अपनी हवस पूरी करने के लिए किसान परिवार की एक स्त्री पर अत्याचार करता है। सत्रह साल बाद यानी 1957 में महबूब ने इसी फिल्म का नया संस्करण "मदर इंडिया" शीर्षक के साथ बनाया। "औरत" की तरह "मदर इंडिया" को भी अपार सफलता हासिल हुई और इस फ़िल्म ने महबूब को भारतीय सिने इतिहास में अमर कर दिया।
=निर्माण
"मदर इंडिया" को बनाने में पूरे तीन साल लगे और इस दौरान कुल मिलाकर सौ दिनों तक शूटिंग की गई। फ़िल्म की शूटिंग महबूब के बांद्रा स्टूडियो और दक्षिण गुजरात में उमरा नाम के एक छोटे-से शहर में हुई थी। फिल्म का कुछ हिस्सा सरार और काशीपुरा गांवों में भी फिल्माया गया था। [1] आस-पास बसे ये दोनों गांव बड़ौदा जिले में आते हैं।
गीत-संगीत
फिल्म का गीत-संगीत भी बहुत पसंद किया गया। शकील बदायूंनी के लिखे भावपूर्ण गीतों को नौशाद की सुरीली धुनों का सहारा मिला था। नौशाद के संगीत की एक खूबी यह भी थी कि वे अपनी धुनों में लोक-संगीत का बड़ी कुशलता के साथ इस्तेमाल करते थे। गीतों के लिए पाश्र्व गायकों का चुनाव करने में भी नौशाद माहिर थे। उन्होंने फिल्म के ज्यादातर गीत शमशाद बेगम, मुहम्मद रफी और मन्ना डे से गवाए, जबकि नर्गिस पर फिल्माए गए गीतों में उन्होंने लता मंगेशकर की आवाज का इस्तेमाल किया। लता ने भी "मदर इंडिया" के गीतों में अपनी तमाम भावनाएं उतार दीं और यही वजह है कि फिल्म में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद हैं। लता के गाए "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा" और "ओ मेरे लाल आजा" जैसे गीतों को लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (सरार गांव में ही महबूब का जन्म हुआ था)