मध्य प्रदेश की संस्कृति

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मध्य प्रदेश में अनेक मन्दिर, क़िले व गुफ़ाएँ हैं, जिनमें क्षेत्र के पूर्व इतिहास और स्थानीय राजवंशों व राज्यों, दोनों के ऐतिहासिक अध्ययन की दृष्टि से रोमांचक प्रमाण मिलते हैं। यहाँ के प्रारम्भिक स्मारकों में से एक सतना के पास भरहुत का स्तूप (लगभग 175 ई.पू.) है, जिसके अवशेष अब कोलकाता के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे हैं। ऐसे ही एक स्मारक, साँची के स्तूप (विदिशा से लगभग 13 किमी दक्षिण-पश्चिम में) को मूलत: 265 से 238 ई.पू. में सम्राट अशोक ने बनवाया था। बाद में शुंग राजाओं ने इस स्तूप में और भी काम करवाया। बौद्ध विषयों पर आधारित चित्रों से सुसज्जित महू के समीप स्थित बाघ गुफ़ाएँ विशेषकर उल्लेखनीय हैं। विदिशा के समीप उदयगिरि की गुफ़ाएँ (बौद्ध और जैन मठ) चट्टान काटकर बनाए गए वास्तुशिल्प और कला का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

प्रसिद्धि

श्रृंगारिक कला के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध खजुराहो के मन्दिर राज्य के उत्तर में छतरपुर ज़िले में स्थित हैं; 1000 ई. से बनना शुरू हुए इन मन्दिरों का निर्माण चन्देल राजाओं ने करवाया था। ग्वालियर और उसके आसपास के मन्दिर भी उल्लेखनीय हैं। मांडू (धार के समीप) के महल और मस्जिद, 14वीं शताब्दी में निर्मित बांधवगढ़ का अदभुत क़िला और सम्भवत: मध्य प्रदेश के भूतपूर्व कुंवरों के आवासों में सबसे शानदार ग्वालियर का क़िला वास्तुशिल्पीय उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य उल्लेखनीय उदाहरण हैं। यद्यपि मध्य प्रदेश के लोगों ने बाहरी प्रभावों को कमोबेश ग्रहण किया है लेकिन उनकी कई जनजातीय परम्पराएँ जीवंत तथा सशक्त बनी हुई हैं, और जनजातीय मिथकों व लोककथाओं को बड़ी संख्या में सुरक्षित रखा गया है। प्रधान (गोंडों के भाट) अब भी गोंड जनजाति के पौराणिक आदि पुरुष लिंगो-पेन की अनुश्रुत वीर गाथाओं को गाते हैं। महाभारत की समतुल्य गोंडों की पंडवानी है, जबकि रामायण का गोंड समतुल्य लछमनजति दंतकथा है। अपने मूल के सम्बन्ध में हर जनजाति के अपने मिथक और दंतकथाएँ हैं। इनके अपने जन्मोत्सव तथा विवाह के गीत हैं, और विभिन्न नृत्य शैलियों की संगत उनके गानों के की जाती है। लोककथाएँ, पहेलियाँ और लोकोक्तियाँ इनकी सांस्कृतिक विरासत की विशेषताएँ हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम

राज्य में हर साल कई जाने-माने सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जैसे उज्जैन का कालिदास समारोह (प्रदर्श्य कलाओं और ललित कलाओं के लिए), ग्वालियर का तानसेन समारोह (गायन) और खजुराहो का नृत्य महोत्सव, जिसमें भारत भर के कलाकार शामिल होते हैं। भोपाल में एक बेजोड़ सांस्कृतिक भवन भारत भवन है, जो विभिन्न क्षेत्रों के कलाकारों के मिलन स्थल का काम करता है। भोपाल ताल के समीप स्थित इस भवन में एक संग्रहालय, एक पुस्तकालय, एक मुक्ताकाशी रंगमंच और बहुत से सम्मेलन परिसर हैं। मंदसौर और उज्जैन में महत्त्वपूर्ण वार्षिक धार्मिक मेले लगते हैं।

त्‍योहार

मध्‍य प्रदेश में कई त्‍योहार और उत्‍सव मनाए जाते हैं।

  • आदिवासियों का एक महत्‍वपूर्ण त्‍योहार 'भगोरिया' है, जो पंरपरागत हर्षोल्‍लास से मनाया जाता है।
  • खजुराहो, भोजपुर, पंचमढ़ी और उज्जैन में शिवरात्रि के पर्व के दौरान स्‍थानीय परंपराओं का रंग दिखाई देता है।
  • चित्रकूट और ओरछा में रामनवमी पर्व के आयोजन की अनोखी परंपरा है। ओरछा, मालवा और पचमढ़ी के उत्‍सवों में कला और संस्कृति का बड़ा सुंदर मेल दिखाई देता है।
  • ग्वालियर के 'तानसेन संगीत समारोह', मैहर के 'उस्‍ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत समारोह', उज्जैन के 'कालिदास समारोह' और 'खजुराहों के नृत्‍य समारोह' मध्‍य प्रदेश के कुछ प्रसिद्ध कला उत्‍सव हैं।
  • जबलपुर में संगमरमर की चट्टानों के लिए मशहूर भेड़ाघाट में इस वर्ष से वार्षिक 'नर्मदा उत्‍सव' की शुरुआत की गई है।
  • शिवपुरी में इस वर्ष से शिवपुरी उत्‍सव शुरू किया गया है।

हिंगोट युद्ध

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मध्य प्रदेश के इन्दौर के आसपास के क्षेत्रों में दीपावली के बाद खेला जाने वाला पारंपरिक 'युद्ध' है। इस युद्ध में प्रयोग होने वाला 'हथियार' हिंगोट है जो हिंगोट फल के खोल में बारूद, कंकड़-पत्त्थर भरकर बनाया जाता है। इस युद्ध में किसी दल की हार-जीत नहीं होती किन्तु सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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