मस्तानी

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मस्तानी
मस्तानी
पूरा नाम मस्तानी
मृत्यु तिथि 28 अप्रैल, 1740 ई.
पिता/माता छत्रसाल
पति/पत्नी बाजीराव प्रथम
संबंधित लेख मराठा साम्राज्य, पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बालाजी बाजीराव, शिवाजी, बाजीराव प्रथम, शाहजी भोंसले, शम्भाजी पेशवा, बाजीराव द्वितीय, राजाराम शिवाजी, दौलतराव शिन्दे, नाना फड़नवीस, दादोजी कोंडदेव
अन्य जानकारी बाजीराव ने मस्तानी को अपनी दूसरी पत्नी का दर्जा दिया। वह मस्तानी की कई प्रतिभाओं से आकर्षित था। मस्तानी खूबसूरत तो थी ही, वह एक कुशल घुड़सवार, तलवारबाज, युद्ध नीति, धार्मिक अध्ययन, कविता, नर्तकी व गायिका भी थी। इन अपार खूबियों ने मस्तानी को बाजीराव प्रथम का प्रिय बना दिया था।

मस्तानी (अंग्रेज़ी:Mastani) मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम की प्रेयसी थी। बाजीराव ने उसे अपनी दूसरी पत्नी का दर्जा दिया था। मस्तानी बहुत ही सुंदर होने के साथ-साथ कुशल घुड़सवार, तलवारबाज, युद्ध नीति की जानकार, धार्मिक अध्ययन और कविता करने वाली, अच्छी नर्तकी तथा गायिका भी थी। बाजीराव प्रथम और मस्तानी की प्रेम कहानी इतिहास की दिलचस्प प्रेम कहानियों में एक है।

परिचय

मस्तानी बाजीराव प्रथम की दूसरी पत्नी थी। कहते हैं कि वह मुसलमान थी और बुंदेलखंड से ताल्लुक रखती थी। उसके बारे में कहा जाता है कि उसकी बेइन्तहा खूबसूरती के चलते उसे ‘सौंदर्य की रानी’ कहा जाता था। मस्तानी को बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की बेटी भी माना जाता है। जबकि कुछ इतिहासकार उसे छत्रसाल के राज्य की एक नर्तकी मानते हैं। बाजीराव प्रथम को मात्र 20 वर्ष की उम्र में अपने मराठा साम्राज्य के पेशवा के रूप में नियुक्त कर दिया गया था। इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आने वाले 20 वर्षों में लगभग 41 से भी अधिक युद्ध लड़े। उसके बारे में प्रचलित है कि इन युद्धों में से एक भी युद्ध में वह पराजित नहीं हुआ। वह विजय का परचम लहराते हुए आगे बढ़ता रहा। बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी इतिहास की दिलचस्प प्रेम कहानियों में एक है। वैसे बाजीराव और मस्तानी से जुड़ी कई कहानियां हैं, लेकिन उन सभी कहानियों में एक बात समान है, और वह है असीम प्रेम।[1]

दिसंबर 1728 ई. में अल्लाहाबाद के मुग़ल प्रमुख मोहम्मद ख़ान बंगाश ने बुंदेलखंड पर हमले की योजना बनाई। महाराजा छत्रसाल को बंगाश की योजना के बारे में पता चल चुका था। उन्होंने सहायता मुहैया कराने के लिए बाजीराव प्रथम को एक पत्र लिखा और सहायता माँगी। पत्र मिलने के तुरंत बाद ही बाजीराव अपनी सेना के साथ महाराजा छत्रसाल की सहायता के लिए रवाना हो गया। बंगाश युद्ध में परास्त हो गया और उसे बंदी बना लिया गया। बाद में उसे इस शर्त के साथ मुक्त कर दिया गया कि वह दोबारा कभी भी बुंदेलखंड पर आक्रमण नहीं करेगा। युद्ध में बाजीराव द्वारा दी गई सहायता से छत्रसाल बाजीराव के बहुत आभारी थे और उसे अपने बेटे के रूप में मानने लगे थे। इतना ही नहीं, छत्रसाल ने अपने साम्राज्य को तीन भागों में विभाजित कर दिया, जिनमें से एक हिस्सा बाजीराव प्रथम को भेंट स्वरूप प्रदान किया। इनमें झाँसी, सागर और काल्पी का भी समावेश था। इसके साथ ही छत्रसाल ने अपनी बेटी मस्तानी और बाजीराव के विवाह का प्रस्ताव भी बाजीराव के समक्ष रखा। वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मस्तानी छत्रसाल की बेटी नहीं, बल्कि छत्रसाल के दरबार की नर्तकी थी।

प्रतिभा सम्पन्न

बाजीराव ने मस्तानी को अपनी दूसरी पत्नी का दर्जा दिया। वह मस्तानी की कई प्रतिभाओं से आकर्षित था। मस्तानी खूबसूरत तो थी ही, वह एक कुशल घुड़सवार, तलवारबाज, युद्ध नीति, धार्मिक अध्ययन, कविता, नर्तकी व गायिका भी थी। इन अपार खूबियों ने मस्तानी को बाजीराव प्रथम का प्रिय बना दिया था। माना जाता है कि मस्तानी ने कई सैन्य अभियानों में बाजीराव का साथ दिया था।[1]

संतान

मस्तानी से बाजीराव को एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई। माना जाता है कि स्थानीय ब्राह्मण समुदाय एवं हिन्दुओं ने मस्तानी के पुत्र को पूर्ण रूप से ब्राह्मण मानने से इन्कार कर दिया, क्योंकि मस्तानी मुसलमान थी। यहां तक कि उन्होंने बाजीराव और मस्तानी के विवाह को भी मानने से इन्कार कर दिया। बाजीराव प्रथम की पहली पत्नी का नाम काशीबाई था। बाजीराव से विवाह के बाद काशीबाई मराठा साम्राज्य की रानी बन गई। काशीबाई बाजीराव के प्रति बेहद ही निष्ठावान थी। जब बाजीराव का विवाह मस्तानी से हुआ, तब काशीबाई ने इस विवाह को स्वीकार किया, क्योंकि उस समय राजा का किसी दूसरी स्त्री से विवाह अनुचित नहीं माना जाता था। कुछ समय बाद काशीबाई और मस्तानी ने अपने-अपने पुत्रों को जन्म दिया, लेकिन काशीबाई के पुत्र की मृत्यु कम उम्र में ही हो गई। जहां एक तरफ़ काशीबाई अपने पुत्र को खोने के दुःख से उबर रही थी, वहीं दूसरी ओर मस्तानी का दबदबा बढ़ता ही जा रहा था। इस बात से काशीबाई व्यथित थी। इतिहासकार मानते हैं कि काशीबाई को मस्तानी के पुत्र को देखकर ईर्ष्या होती थी। यही नहीं, बाजीराव के परिवार के ही कुछ सदस्यों ने बाजीराव से मस्तानी को दूर करने के कई प्रयास किए। बाजीराव के परिवार के मस्तानी के साथ दुर्व्यहार के कारण बाजीराव ने मस्तानी के लिए वर्ष 1734 ई. में कोथरुड में एक अलग निवास स्थान का निर्माण करवाया। यह स्थान आज भी कर्वे रोड पर मृत्युंजय मंदिर के बगल में स्थित है।

मृत्यु

28 अप्रैल, 1740 ई. को बाजीराव प्रथम की तबियत अधिक ख़राब होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। बाजीराव के देहान्त के कुछ दिनों बाद मस्तानी की भी मौत हो गई। मस्तानी की मृत्यु कैसे हुई, इस संबंध में कोई साक्ष्य नहीं है। लेकिन दंतकथाओं के अनुसार बाजीराव प्रथम की मौत की खबर सुनते ही मस्तानी ने अपनी अंगूठी में रखा ज़हर पीकर आत्महत्या कर ली। वहीं कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि मस्तानी सती संस्कार की प्रथा अपनाते हुए बाजीराव की चिता पर सती हो गईं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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