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'''महिषासुर / Mahishasur'''<br />
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[[चित्र:Mahishasur-Statue-Mysore.jpg|thumb|[[चामुण्डी पर्वत]] पर स्थित महिषासुर की प्रतिमा, [[मैसूर]]]]
 
 
 
पूर्वकाल की बात है। रम्भ दानव को महिषासुर नामक एक प्रबल पराक्रमी तथा अमित बलशाली पुत्र हुआ उसने अमर होने की इच्छा से [[ब्रह्मा]] जी को प्रसन्न करने के लिये बड़ी कठिन तपस्या की। उसकी दस हज़ार वर्षों की तपस्या के बाद लोकपितामह ब्रह्मा प्रसन्न हुए। वे हंस पर बैठकर महिषासुर के निकट आये और बोले-'वत्स! उठो, अब तुम्हारी तपस्या सफल हो गयी। मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा। इच्छानुसार वर माँगो।' महिषासुर ने उनसे अमर होने का वर माँगा।
 
पूर्वकाल की बात है। रम्भ दानव को महिषासुर नामक एक प्रबल पराक्रमी तथा अमित बलशाली पुत्र हुआ उसने अमर होने की इच्छा से [[ब्रह्मा]] जी को प्रसन्न करने के लिये बड़ी कठिन तपस्या की। उसकी दस हज़ार वर्षों की तपस्या के बाद लोकपितामह ब्रह्मा प्रसन्न हुए। वे हंस पर बैठकर महिषासुर के निकट आये और बोले-'वत्स! उठो, अब तुम्हारी तपस्या सफल हो गयी। मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा। इच्छानुसार वर माँगो।' महिषासुर ने उनसे अमर होने का वर माँगा।
 
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ब्रह्माजी ने कहा- 'पुत्र! जन्मे हुए प्राणी का मरना और मरे हुए प्राणी का जन्म लेना सुनिश्चित है। अतएव एक मृत्यु को छोड़कर, जो कुछ भी चाहो, मैं तुम्हें प्रदान कर सकता हूँ। महिषासुर बोला-'प्रभो! देवता, दैत्य, मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।' ब्रह्माजी 'एवमस्तु' कहकर अपने लोक चले गये। वर प्राप्त करके लौटने के बाद समस्त दैत्यों ने प्रबल पराक्रमी महिषासुर को अपना राजा बनाया। उसने दैत्यों की विशाल वाहिनी लेकर पाताल और मृत्युलोक पर धावा बोल दिया। समस्त प्राणी उसके अधीन हो गये। फिर उसने इन्द्रलोक पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान [[विष्णु]] और [[शिव]] भी देवराज [[इन्द्र]] की सहायता के लिये आये, किन्तु महाबली महिषासुर के सामने सबको पराजय का मुख देखना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया। भगवान [[शंकर]] और [[ब्रह्मा]] को आगे करके सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और महिषासुर के आतंक से छुटकारा प्राप्त करने का उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने कहा- 'देवताओं! ब्रह्मा जी के वरदान से महिषासुर अजेय हो चुका है। हममें से कोई भी उसे नहीं मार सकता है। आओ! हम सभी मिलकर सबकी आदि कारण [[दुर्गा|भगवती]] महाशक्ति की आराधना करें।' फिर सभी लोगों ने मिलकर भगवती की आर्तस्वर में प्रार्थना की। सबके देखते-देखते ब्रह्मादि सभी [[देवता|देवताओं]] के शरीरों से दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। भगवती महाशक्ति के अद्भुत तेज से सभी देवता आश्चर्यचकित हो गये। हिमवान ने भगवती के सवारी के लिये सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किये। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया।
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ब्रह्माजी ने कहा- 'पुत्र! जन्मे हुए प्राणी का मरना और मरे हुए प्राणी का जन्म लेना सुनिश्चित है। अतएव एक मृत्यु को छोड़कर, जो कुछ भी चाहो, मैं तुम्हें प्रदान कर सकता हूँ। महिषासुर बोला-'प्रभो! देवता, दैत्य, मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।' ब्रह्माजी 'एवमस्तु' कहकर अपने लोक चले गये। वर प्राप्त करके लौटने के बाद समस्त दैत्यों ने प्रबल पराक्रमी महिषासुर को अपना राजा बनाया। उसने दैत्यों की विशाल वाहिनी लेकर पाताल और मृत्युलोक पर धावा बोल दिया। समस्त प्राणी उसके अधीन हो गये। फिर उसने इन्द्रलोक पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान [[विष्णु]] और [[शिव]] भी देवराज [[इन्द्र]] की सहायता के लिये आये, किन्तु महाबली महिषासुर के सामने सबको पराजय का मुख देखना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया। भगवान [[शंकर]] और [[ब्रह्मा]] को आगे करके सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और महिषासुर के आतंक से छुटकारा प्राप्त करने का उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने कहा- 'देवताओं! ब्रह्मा जी के वरदान से महिषासुर अजेय हो चुका है। हममें से कोई भी उसे नहीं मार सकता है। आओ! हम सभी मिलकर सबकी आदि कारण [[दुर्गा|भगवती]] महाशक्ति की आराधना करें।' फिर सभी लोगों ने मिलकर भगवती की आर्तस्वर में प्रार्थना की। सबके देखते-देखते ब्रह्मादि सभी [[देवता|देवताओं]] के शरीरों से दिव्य तेज़ निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। भगवती महाशक्ति के अद्भुत तेज़ से सभी देवता आश्चर्यचकित हो गये। हिमवान ने भगवती के सवारी के लिये सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किये। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया।
 
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पराम्बा महामाया [[हिमालय]] पर पहुँचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। उस भयंकर शब्द को सुनकर दानव डर गये और [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] काँप उठी। महिषासुर ने देवी के पास अपना दूत भेजा। दूत ने कहा- 'सुन्दरी! मैं महिषासुर का दूत हूँ। मेरे स्वामी त्रैलोक्यविजयी हैं। वे तुम्हारे अतुलनीय सौन्दर्य के पुजारी बन चुके हैं और तुम से विवाह करना चाहते हैं। देवि! तुम उन्हें स्वीकार करके कृतार्थ करो।' भगवती ने कहा- 'मूर्ख! मैं सम्पूर्ण सृष्टि की जननी और महिषासुर की मृत्यु हूँ। तू उससे जाकर यह कर दे कि वह तत्काल पाताल चला जाय, अन्यथा युद्ध में उसकी मृत्यु निश्चित है।' दूत ने अपने स्वामी महिषासुर को देवी का संदेश दिया। भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी देवी के हाथों से मृत्यु को प्राप्त हुए। महिषासुर का भी भगवती के साथ महान संग्राम हुआ। उस दुष्ट ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर महामाया के साथ युद्ध किया। अन्त में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया। देवताओं ने भगवती की स्तुति की और भगवती महामाया प्रत्येक संकट में देवताओं का सहयोग करने का आश्वासन देकर अन्तर्धान हो गयीं।
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पराम्बा महामाया [[हिमालय]] पर पहुँचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। उस भयंकर शब्द को सुनकर दानव डर गये और [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] काँप उठी। महिषासुर ने देवी के पास अपना दूत भेजा। दूत ने कहा- 'सुन्दरी! मैं महिषासुर का दूत हूँ। मेरे स्वामी त्रैलोक्यविजयी हैं। वे तुम्हारे अतुलनीय सौन्दर्य के पुजारी बन चुके हैं और तुम से विवाह करना चाहते हैं। देवि! तुम उन्हें स्वीकार करके कृतार्थ करो।' भगवती ने कहा- 'मूर्ख! मैं सम्पूर्ण सृष्टि की जननी और महिषासुर की मृत्यु हूँ। तू उससे जाकर यह कर दे कि वह तत्काल पाताल चला जाय, अन्यथा युद्ध में उसकी मृत्यु निश्चित है।' दूत ने अपने स्वामी महिषासुर को देवी का संदेश दिया। भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी देवी के हाथों से मृत्यु को प्राप्त हुए। महिषासुर का भी भगवती के साथ महान् संग्राम हुआ। उस दुष्ट ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर महामाया के साथ युद्ध किया। अन्त में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया। देवताओं ने भगवती की स्तुति की और भगवती महामाया प्रत्येक संकट में देवताओं का सहयोग करने का आश्वासन देकर अन्तर्धान हो गयीं।
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11:12, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

चामुण्डी पर्वत पर स्थित महिषासुर की प्रतिमा, मैसूर

पूर्वकाल की बात है। रम्भ दानव को महिषासुर नामक एक प्रबल पराक्रमी तथा अमित बलशाली पुत्र हुआ उसने अमर होने की इच्छा से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिये बड़ी कठिन तपस्या की। उसकी दस हज़ार वर्षों की तपस्या के बाद लोकपितामह ब्रह्मा प्रसन्न हुए। वे हंस पर बैठकर महिषासुर के निकट आये और बोले-'वत्स! उठो, अब तुम्हारी तपस्या सफल हो गयी। मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा। इच्छानुसार वर माँगो।' महिषासुर ने उनसे अमर होने का वर माँगा।


ब्रह्माजी ने कहा- 'पुत्र! जन्मे हुए प्राणी का मरना और मरे हुए प्राणी का जन्म लेना सुनिश्चित है। अतएव एक मृत्यु को छोड़कर, जो कुछ भी चाहो, मैं तुम्हें प्रदान कर सकता हूँ। महिषासुर बोला-'प्रभो! देवता, दैत्य, मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।' ब्रह्माजी 'एवमस्तु' कहकर अपने लोक चले गये। वर प्राप्त करके लौटने के बाद समस्त दैत्यों ने प्रबल पराक्रमी महिषासुर को अपना राजा बनाया। उसने दैत्यों की विशाल वाहिनी लेकर पाताल और मृत्युलोक पर धावा बोल दिया। समस्त प्राणी उसके अधीन हो गये। फिर उसने इन्द्रलोक पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव भी देवराज इन्द्र की सहायता के लिये आये, किन्तु महाबली महिषासुर के सामने सबको पराजय का मुख देखना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया। भगवान शंकर और ब्रह्मा को आगे करके सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और महिषासुर के आतंक से छुटकारा प्राप्त करने का उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने कहा- 'देवताओं! ब्रह्मा जी के वरदान से महिषासुर अजेय हो चुका है। हममें से कोई भी उसे नहीं मार सकता है। आओ! हम सभी मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना करें।' फिर सभी लोगों ने मिलकर भगवती की आर्तस्वर में प्रार्थना की। सबके देखते-देखते ब्रह्मादि सभी देवताओं के शरीरों से दिव्य तेज़ निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। भगवती महाशक्ति के अद्भुत तेज़ से सभी देवता आश्चर्यचकित हो गये। हिमवान ने भगवती के सवारी के लिये सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किये। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया।


पराम्बा महामाया हिमालय पर पहुँचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। उस भयंकर शब्द को सुनकर दानव डर गये और पृथ्वी काँप उठी। महिषासुर ने देवी के पास अपना दूत भेजा। दूत ने कहा- 'सुन्दरी! मैं महिषासुर का दूत हूँ। मेरे स्वामी त्रैलोक्यविजयी हैं। वे तुम्हारे अतुलनीय सौन्दर्य के पुजारी बन चुके हैं और तुम से विवाह करना चाहते हैं। देवि! तुम उन्हें स्वीकार करके कृतार्थ करो।' भगवती ने कहा- 'मूर्ख! मैं सम्पूर्ण सृष्टि की जननी और महिषासुर की मृत्यु हूँ। तू उससे जाकर यह कर दे कि वह तत्काल पाताल चला जाय, अन्यथा युद्ध में उसकी मृत्यु निश्चित है।' दूत ने अपने स्वामी महिषासुर को देवी का संदेश दिया। भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी देवी के हाथों से मृत्यु को प्राप्त हुए। महिषासुर का भी भगवती के साथ महान् संग्राम हुआ। उस दुष्ट ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर महामाया के साथ युद्ध किया। अन्त में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया। देवताओं ने भगवती की स्तुति की और भगवती महामाया प्रत्येक संकट में देवताओं का सहयोग करने का आश्वासन देकर अन्तर्धान हो गयीं।

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