माउन्टबेटन योजना

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माउन्टबेटन योजना 3 जून, 1947 ई. को लॉर्ड माउन्ट बेटन द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना भारत के जनसाधारण लोगों में 'मनबाटन योजना' के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। 'मुस्लिम लीग' पाकिस्तान के निर्माण पर अड़ी हुई थी। विवशतापूर्वक कांग्रेस तथा सिक्खों द्वारा देश के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद समस्या के हल के लिए लॉर्ड माउन्ट बेटन लन्दन गये और वापस आकर उन्होंने योजना प्रस्तुत की।

मुस्लिम लीग की जिद

24 मार्च, 1947 ई. को लॉर्ड माउन्ट बैटन भारत के वायसराय बनकर आये। पद ग्रहण करते ही उन्होंने 'कांग्रेस' एवं 'मुस्लिम लीग' के नेताओं से तात्कालिक समस्याओं पर व्यापक विचार विमर्श किया। 'मुस्लिम लीग' पाकिस्तान के अतिरिक्त किसी भी विकल्प पर सहमत नहीं हुई माउन्ट बेटन ने कांग्रेस से देश के विभाजन रूपी कटु सत्य को स्वीकार करने का अनुरोध किया। कांग्रेस नेता भी परिस्थितियों के दबाव को महसूस कर इस सत्य को स्वीकार करने क लिए तैयार हो गये। विभाजन को स्वीकार करने की कांग्रेसियों की विवशता सरदार वल्लभ भाई पटेल के इस वक्तव्य से ज़ाहिर होती है। इस सम्बन्ध में पटेल ने कहा- "यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार न करती तो एक पाकिस्तान के स्थान पर कई पाकिस्तान बनतें।" सिक्खों ने भी इस योजना को अनमने ढंग से स्वीकृत दे दी।

योजना की मुख्य बातें

18 मई, 1947 ई. को माउन्ट बेटन समस्या के अन्तिम हल के लिए ब्रिटिश सरकार से बातचीत हेतु लन्दन गये और पुनः भारत आने पर 3 जून, 1947 ई. को उन्होंने "माउन्टबेटन योजना", जो जनसाधारण में "मनबाटन योजना" के नाम से प्रसिद्ध है, प्रस्तुत की। इसकी मुख्य बातें इस प्रकार थीं-

  1. वर्तमान परिस्थितियों में भारत के विभाजन से ही समस्या सुलझ सकती है। अतः हिन्दुस्तान को दो हिस्सों, भारतीय संघ और पाकिस्तान में बांट दिया जायेगा। संविधान सभा द्वारा पारित संविधान भारत के उन भागों में लागू नहीं होगा, जो इसे मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
  2. बंगाल, पंजाब एवं असम में विधानमण्डलों के अधिवेशन दो भागों में किये जायेगें। एक भाग में उन ज़िलों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगें, जहाँ मुसलमानों की बहुलता है और दूसरे में उन ज़िलों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगें, जहाँ मुसलमानों अल्पसंख्या में है। दोनों यह निर्णय स्वयं लेंगे कि उन्हें भारत में रहना है या पाकिस्तान में।
  3. उत्तर-पश्चिमी प्रांत में जनसंग्रह द्वारा यह पता लगाया जायेगा कि वे किस भाग, भारत या पाकिस्तान, में रहना चाहते हैं।
  4. असम के सिलहट ज़िले के लोगों की भी राय जानने के लिए जनमत संग्रह का सहारा लिया जायेगा।
  5. पंजाब, बंगाल व असम के विभाजन के लिए एक सीमा आयोग की नियुक्ति होगी, जो उक्त प्रान्तों की सीमा निश्चित करेगा।
  6. देशी रियासतों से भी 15 अगस्त, 1947 ई. से ब्रिटिश सर्वोच्चता हटा ली जायेगी तथा उन्हें भारत या पाकिस्तान में मिलने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी।

भारतीय स्वतंत्रता विधेयक

'माउन्टबेटन योजना' के आधार पर ही 'भारतीय स्वतंत्रता विधेयक' ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई. को प्रस्तुत किया गया, जिसे 18 जुलाई को स्वीकृत मिली। इस विधेयक के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार थे-

  1. प्रस्ताव के आधार पर भारत और पाकिस्तान नाम के दो अधिराज्यों को स्वतंत्र कर दिया जायगा।
  2. दोनों अधिराज्य अपनी-अपनी संविधान सभा का गठन करेंगे।
  3. भारत और पाकिस्तान के पास राष्ट्रमण्डल से अलग होने का पूर्ण अधिकार होगा।
  4. नया संविधान बनने तक संविधान सभा के सदस्य ही विधानमण्डल के रूप में कार्य करेंगे और साथ ही उचित संशोधनों के साथ 1935 ई. के अधिनियम के द्वारा ही शासन कार्यों का संचालन किया जायेगा।
  5. दोनों अधिराज्यों के लिए एक-एक गवर्नर-जनरल की व्यवस्था की गई।
  6. जब तक नये संविधान के अन्तर्गत प्रान्तों में चुनाव नहीं होता, तब तक पुराना विधानमण्डल ही प्रान्तों में कार्य करेगा।

योजना की पुष्टि

महात्मा गांधी की सलाह पर 'कांग्रेस कार्यकारिणी समिति' ने 12 जून को तथा 'कांग्रेस महासमिति' ने 14 जून ओर 15 जून, 1947 ई. को दिल्ली में हुई बैठक में 'माउण्टबेटन योजना' की पुष्टि कर दी। गोविंद वल्लभ पंत ने विभाजन की योजना की पुष्टि करते हुए कहा कि "आज हमें पाकिस्तान या आत्महत्या में से एक को चुनना है। देश की स्वतंत्रता और मुक्ति पाने का यही एक मात्र रास्ता है। इससे भारत में एक शक्तिशाली संघ की स्थापना होगी।" 'माउन्टबेटन योजना' का पुरुषोत्तम दास टंडन ने विरोध किया था।

देश का विभाजन

'माउन्टबेटन योजना' स्वीकार करने के बाद देश के विभाजन की तैयारी आरंभ हो गयी। बंगाल और पंजाब में ज़िलों के विभाजन तथा सीमा निर्धारण का कार्य एक कमीशन के अधीन सौंपा गया, जिसकी अध्यक्षता 'रेडक्लिफ़' ने की। इस प्रकार 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत तथा पाकिस्तान नाम के दो नये राष्ट्र अस्तित्व में आ गये।

लॉर्ड माउन्ट बेटन द्वारा प्रस्तुत की गई योजना को कांग्रेस के अन्दर जहाँ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एवं पुरुषोत्तम दास टण्डन, सिंध कांग्रेस के नेता चौथराम गिडवानी, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. किचलू तथा मौलाना हफ़ीजुर्रहमान आदि ने अस्वीकार कर दिया, वहीं महात्मा गांधी, गोविन्द बल्लभ पंत, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, जे.बी. कृपलानी आदि ने अनमने ढंग से तथा परिस्थितियों की गम्भीरता को देखते हुए इसे स्वीकार कर लिया। 'मुस्लिम लीग' के नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने पहले अस्त-व्यस्त पाकिस्तान को स्वीकार करने से मना कर दिया, किन्तु माउन्टबेटन के दबाव में उसे भी योजना को स्वीकार करना पड़ा।

विभाजन का विरोध

वायसराय के सचिवालय में उच्च पद पर कार्यरत वी.पी. मेनन ने भारत के दो भागों में विभाजन की योजना बनाई। देश के विभाजन का विरोध करते हुए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा कि "मैं बंटवारे के ख़िलाफ़ हूँ। मुझे यह देखकर अफ़सोस है कि नेहरू और पटेल ने हार मंजूर कर ली। यदि आप (गांधी जी) ने भी इसे स्वीकार कर लिया तो मुझे डर है कि हिन्दुस्तान का सर्वनाश हो जायेगा।" बंटवारे के बारे में गांधी जी ने कहा कि "भारत का विभाजन मेरे शव पर होगा। जब तक मैं ज़िन्दा हूँ, भारत के दो टुकड़े नहीं होने दूँगा। यथा-संभव मैं कांग्रेस को भी भारत का बंटवारा स्वीकार नहीं करने दूंगा।"

गांधी जी का प्रयास

2 अप्रैल को माउन्ट बेटन से एक मुलाकात में महात्मा गांधी ने व्यथित मन से कहा कि आप जिन्ना को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें, कम से कम इससे देश का विभाजन तो रुक जायेगा, परन्तु गांधी जी के इस सुझाव का जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जमकर विरोध किया। गांधी जी इससे इतने मर्माहत हुए कि इनकी अधिक जीने की इच्छा ही समाप्त हो गई। गांधी जी ने अकेले ही साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखी। उनके प्रयासों की प्रशंसा में माउन्ट बेटन ने उन्हें "वन मैन बाउंडरी फ़ोर्स" कहा। अन्ततः महात्मा गांधी ने भी देश में बढ़ रही साम्प्रदायिकता की लहर से निराश होकर विभाजन को मान लिया। भारत विभाजन की स्थिति में ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान ने घोषणा की कि उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न पख्तुनिस्तान बनेगा, क्योंकि वे पाकिस्तान में मिलना नहीं चाहते थे और कांग्रेस ने उन्हें भेड़ियों के आगे डाल दिया है।

जवाहरलाल नेहरू का कथन

14 अगस्त, 1947 ई. की रात पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा को सम्बोधित करते हुए कहा-

"वर्षों पहले हमने किस्मत के साथ बाज़ी लगाई थी। अब समय आ गया है कि हम अपनी प्रतिज्ञा को पूरी तरह न सही काफ़ी हद तक पूरा करें। मध्यरात्रि में जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत नयी जीवन स्वतंत्रता लेकर जागेगा। एक क्षण, जो इतिहास में बिरले ही आता है, ऐसा होता है, जब हम पुरातन से नूतन की ओर जाते है। जब एक युग समाप्त होता है, जब राष्ट्र की बहुत दिनों से दबी आत्मा को वाणी मिल जाती है। यह उपयुक्त है कि हम इस पवित्र क्षण में भारत तथा उसकी जनता की सेवा में और उससे भी अधिक बड़े मानवता के उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने आप को अर्पित करें। आज हम एक दुर्भाग्यपूर्ण अवधि को समाप्त कर रहे हैं और भारत को अपने महत्व का एक बार फिर अहसास हो रहा है। आज हम जिस उपलब्धि को मना रहे हैं, वह निरन्तर प्रयास की उपलब्धि है, जिसके परिणामस्वरूप हम उन प्रतिज्ञाओं को पूरा कर सके, जिन्हें हमने कितनी बार लिया है।"

जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री एवं लॉर्ड माउन्ट बेटन प्रथम गवर्नर-जनरल बने तथा पाकिस्तान का गवर्नर-जनरल मुहम्मद अली जिन्ना एवं प्रधामंत्री लियाकत अली को बनाया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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