माया देवी शक्तिपीठ

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माया देवी शक्तिपीठ
माया देवी शक्तिपीठ, हरिद्वार
वर्णन 'माया देवी शक्तिपीठ' उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। माना जाता है कि यहाँ सती के मृत शरीर की 'नाभि' गिरी थी।
स्थान हरिद्वार, उत्तराखंड
देवी-देवता माया देवी, देवी काली, देवी कामाख्या
संबंधित लेख शक्तिपीठ, हरिद्वार, सती, शिव
मान्यता मान्यता है कि माँ की पूजा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक भक्त भैरव बाबा का दर्शन पूजन कर उनकी आराधना नहीं कर लेते।
अन्य जानकारी प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है।

माया देवी शक्तिपीठ उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरिद्वार में स्थित है। 'धर्मनगरी' कहे जाने वाले हरिद्वार के मध्य स्थित माया देवी मंदिर, देवी के 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। 'देवीपुराण' में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

मान्यता

माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी को कहा जाता है। माना जाता है कि यह वही स्थान है, जहाँ माता सती के मृत शरीर की 'नाभि' गिरी थी। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है।

कथा

प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार स्थित कनखल में यज्ञ किया। यज्ञ में शिव शंकर के अपमान से कुपित होकर माता सती ने हवनकुंड में आहुति दे दी। इस पर शिव शंकर व्यधित होकर पत्‍‌नी के वियोग में खो गए। कहते हैं कि वियोग में भोले शंकर सती के मृत शरीर को लेकर जगह-जगह भटकने लगे। इस पर विष्णु भगवान ने शिव शंकर के वियोग को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती की मृत काया के 51 हिस्से कर दिए। ये हिस्से जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि माया देवी मंदिर में सती की मृत काया की 'नाभि' गिरी थी और यह जगह माया देवी के रूप में विख्यात हुई। इसीलिए मायादेवी मंदिर को सभी 51 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि इसी कारण इस पावन धरा का नाम 'मायापुरी' पड़ा। ब्रह्मपुराण में सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी बताया है। इनमें मायापुरी भी शामिल है।[1]

ऐतिहासिकता

माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं। प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है। हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर माँ मनसा और माँ चंडी रक्षा कवच के रूप में स्थित हैं तो वहीं त्रिकोण का शिखर धरती की ओर है और उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं।[2]

पूजा-पाठ

मां के इस दरबार में माँ माया के अलावा मां काली और देवी कामाख्या के दर्शनों का भी सौभाग्य भक्तों को प्राप्त होता है। जहां माँ काली देवी माया के बायीं और तो वहीं दाहिंनी ओर माँ कामाख्या विराजमान हैं। माँ माया के आशीर्वाद से बिगड़े काम भी बन जाते हैं और सफलता की राह में आ रही बाधाएं दूर हो जाती हैं। माँ के चमत्कारों की कहानी लंबी है और महिमा अनंत। माँ माया के द्वार पर एक बार जो आ गया, वो फिर कहीं और नहीं जाता। माँ माया देवी मंदिर के साथ ही भैरव बाबा का मंदिर भी मौजूद है और मान्यता है कि माँ की पूजा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक भक्त भैरव बाबा का दर्शन पूजन कर उनकी आराधना नहीं कर लेते। भगवती की सुबह शाम होने वाली आरती में जो लोग शामिल होते हैं, वे अखंड पुण्य के भागी होते हैं। आरती की लौ में माँ का असीम आशीर्वाद है और आरती के लौ की रौशनी जीवन के तमाम कष्टों का अंधियारा हर कर भक्तों के जीवन में खुशियों का उजियारा लाती है। माँ माया देवी के पीठ पर शाम ढले हजारों लाखों भक्त माँ के दर्शन करने, उनकी आरती में शामिल होने के लिए घंटों इंतजार करते हैं और जब ढोल, नगाड़ों व घंटे की आवाजों से माँ का श्रृंगार और उनकी आराधना होती है तो भक्तों की हर कामना पूरी हो जाती है।

त्रिभुज

माया देवी शक्तिपीठ की एक विशेषता यह भी है कि मनसा देवी और चंडी देवी को मिलाकर यह एक अद्भुत त्रिभुज का निर्माण करता है। मान्यता है इस अद्भुत त्रिभुज का दिव्य लाभ भी यहां आने वाले भक्तों को प्राप्त होता है।

महत्ता

नवरात्र में माँ मायादेवी मंदिर में भक्तों की तादाद बढ़ जाती है। यहां आने वाले भक्त माँ शक्ति की आराधना करते हैं। माना जाता है कि माँ मायादेवी मंदिर में पूजा कभी निष्फल नहीं जाती है। नवरात्रों के दौरान इस मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। यहां आने वाले भक्तों की माँ मायादेवी मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है और मान्यता है कि जिसने भी सच्चे मन से पूजा करके माँ के दरबार में गुहार लगायी है, माँ ने उसकी पुकार कभी अनसुनी नहीं की। भक्त मुरादें पूरी होने पर माँ को श्रद्धा के फूल चढ़ाना भी नहीं भूलते। यूं तो मोक्ष की नगरी में अनगिनत मंदिर हैं, लेकिन माँ माया का ये मंदिर अपने चमत्कारों की वजह से पूरे शहर में कुछ अलग ही स्थान रखता है। ये माँ की महिमा और भक्तों का यकीन ही है कि यहां हरिद्वार से ही नहीं देश के दूसरे कोनों से भी भक्त उमड़ते हैं और माँ के आगे शीश झुकाते हैं।[2]

कैसे पहुँचें

माया देवी शक्तिपीठ हरिद्वार रेलवे स्टेशन से महज दो कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां ऑटो, रिक्शा, टेम्पो और तांगे से आसानी से पहुंचा जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. माया देवी मंदिर, 51 शक्तिपीठों में प्रमुख (हिन्दी) जागरण। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।
  2. 2.0 2.1 सती के त्याग का गवाह है माया देवी शक्तिपीठ (हिन्दी) ब्रेकिंग न्यूज। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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