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'''मिताक्षरा''' [[संस्कृत भाषा]] में [[धर्मशास्त्र]] का<ref>याज्ञवल्क्य स्मृति का व्याख्यान रूप</ref> प्रसिद्ध [[ग्रन्थ]] है। इसका प्रणयन 'विज्ञानेश्वर' ने किया था, जो [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] की राजधानी [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] में [[विक्रमादित्य षष्ठ|विक्रमादित्य चालुक्य]] (1076-1126 ई.) के राज्य काल में रहता था।
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'''मिताक्षरा''' [[संस्कृत भाषा]] में [[धर्मशास्त्र]] का<ref>याज्ञवल्क्य स्मृति का व्याख्यान रूप</ref> प्रसिद्ध [[ग्रन्थ]] है। इसका प्रणयन '[[विज्ञानेश्वर]]' ने किया था, जो [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] की राजधानी [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] में [[विक्रमादित्य षष्ठ|विक्रमादित्य चालुक्य]] (1076-1126 ई.) के राज्य काल में रहता था।
  
 
*[[बंगाल]] तथा [[आसाम]] के अतिरिक्त शेष [[भारत]] में [[हिन्दू]] क़ानून के विषय में 'मिताक्षरा' को प्रमाण माना जाता है।
 
*[[बंगाल]] तथा [[आसाम]] के अतिरिक्त शेष [[भारत]] में [[हिन्दू]] क़ानून के विषय में 'मिताक्षरा' को प्रमाण माना जाता है।

10:22, 18 मार्च 2015 के समय का अवतरण

मिताक्षरा संस्कृत भाषा में धर्मशास्त्र का[1] प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसका प्रणयन 'विज्ञानेश्वर' ने किया था, जो चालुक्यों की राजधानी कल्याणी में विक्रमादित्य चालुक्य (1076-1126 ई.) के राज्य काल में रहता था।

  • बंगाल तथा आसाम के अतिरिक्त शेष भारत में हिन्दू क़ानून के विषय में 'मिताक्षरा' को प्रमाण माना जाता है।
  • उत्तराधिकारी के सम्बन्ध में इसमें आधारभूत सिद्धांत प्रतिपादित किये गए हैं।
  • इसमें बताया गया है कि हिन्दू परिवारों में समस्त पैतृक सम्पत्तियों में पुत्र पिता का सहभागी होता है।
  • उसे अपनी स्वीकृति के अतिरिक्त अन्य किसी रीति से उत्तराधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 363 |

  1. याज्ञवल्क्य स्मृति का व्याख्यान रूप

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