मुक्तहरा सवैया

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मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।

  • "दिना दस जोबन जीवन री, मरिये पचि होइ, जुपै मरियै न।"[1]
  • "सुलच्छन राजन के सो सुहाई अनोखि अकृत्रिम सुन्दरताई।"[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देव : शब्द रसायन, प्र. 4 : शान्त
  2. सत्यनारायण

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 741।

बाहरी कड़ियाँ

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