मैथिली भाषा

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मैथिली हिन्दी प्रदेश की उपभाषा 'बिहारी' की यह एक बोली है। 'मैथिली' नाम उस क्षेत्र के नाम 'मिथिला' से सम्बद्ध है। 'मिथिला' शब्द भारतीय साहित्य में बहुत पहले से है। मैथिली मुख्य रूप से भारत में उत्तरी बिहार और नेपाल के तराई के ईलाक़ों में बोली जाने वाली भाषा है। यह प्राचीन भाषा हिन्द आर्य परिवार की सदस्य है और भाषाई तौर पर हिन्दी,(जिससे इसकी लगभग 65 प्रतिशत शब्दावली आती है), बांग्ला, असमिया, उड़िया और नेपाली से इसका काफ़ी निकट का संबंध है।

संक्षिप्त परिचय

  • लिपि— तिरहुता व देवनागरी
  • केन्द्र— मिथिला या विदेह या तिरहुत
  • बोलने वालों की संख्या— 1.5 करोड़
  • साहित्य— साहित्य की दृष्टि से मैथिली बहुत सम्पन्न है।
  • रचनाकारविद्यापति (पदावली)— यदि ब्रजभाषा को सूरदास ने, अवधी को तुलसीदास ने चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया तो मैथिली को विद्यापति ने, हरिमोहन झा (उपन्यास— कन्यादान, द्विरागमन, कहानी संग्रह—एकादशी, 'खट्टर काकाक तरंग'), नागार्जुन (मैथिली में 'यात्री' नाम से लेखन; उपन्यास— पारो, कविता संग्रह— 'कविक स्वप्न', 'पत्रहीन नग्न गाछ'), राजकमल चौधरी ('स्वरगंघा') आदि।
  • आठवीं अनुसूची में स्थान— 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की 8वीं अनुसूची में 4 भाषाओं को स्थान दिया गया। मैथिली हिंदी क्षेत्र की बोलियों में से 8वीं अनुसूची में स्थान पाने वाली एकमात्र बोली है।
  • नमूनापटना किए एलऽह? पटना एलिअइ नोकरी करैले।

भेटलह नोकरी? नाकरी कत्तौ नइ भेटल। गाँ में काज नइ भेटइ छलऽह? भेटै छलै, रूपैयाबला नइ, अऽनबला। तखन एलऽ किऐ? रिनियाँ तङ केलकइ, तै। कत्ते रीन छऽह? चाइर बीस। सूद कत्ते लइ छऽह? दू पाइ महिनबारी।

इतिहास

याज्ञवल्क्य स्मृति तथा वाल्मीकि रामायण में भी इसका उल्लेख है। 'मिथिला' शब्द की व्युत्पत्ति अनिश्चित है। एक मतानुसार यहाँ के एक प्राचीन राजा का नाम 'मिथि' था। उन्हीं के आधार पर यह 'मिथिला' कहलाया। एक दूसरा मत उणादि सूत्रकार का है। वे इसे मंथ धातु (मथना) से सम्बद्ध मानते हैं। कुछ लोग इसी से सम्बद्ध कल्पना यह भी करते हैं कि पहले यहाँ समुद्र मंथन यहीं हुआ था, अत: यह मिथिला कहलाया। एक चौथे मत के अनुसार 'मिथिला' नामक ऋषि से इसका सम्बन्ध है। एक आधुनिक मत यह भी है कि 'मिथ' का अर्थ है 'एकसाथ' या 'मिला हुआ'। यह प्रदेश तीन प्राचीन छोटे - छोटे राज्यों वैशाली, विदेह तथा अंग का मिला रूप है, अत: इसे मिथिला कहा गया है। छठा मत शाकटायन का दिया जा सकता है, जिनके अनुसार 'मिथिला' का अर्थ है, 'वह देश जहाँ शत्रुओं का दमन हो।' सत्य यह है कि ये सभी मत अनुमान मात्र हैं। इनमें पुष्ट प्रमाणों पर कोई भी आधारित नहीं है। मैथिली भाषा के लिए एक प्राचीन नाम 'देसिल बअना' विद्यापति मिलता है। इसका एक अन्य नाम 'तिरहुतिया' भी है। यह नाम भी 'मैथिली' नाम से पुराना है। इसका प्रथम उल्लेख 1771 में 'तिरुतियन' रूप में बेलिगत्ती लिखित 'अब्फाबेटुम ब्राह्मनिकुम' की अम्दुजी की भूमिका में[1] मिलता है।

लिपि

पहले इसे मिथिलाक्षर तथा कैथी लिपि में लिखा जाता था जो बांग्ला और असमिया लिपियों से मिलती थी पर कालान्तर में देवनागरी का प्रयोग होने लगा। मैथिली के लिए तीन लिपियों का प्रयोग होता है। मैथिल ब्राह्मणों में मैथिली लिपि प्रचलित है, जो बंगला से बहुत मिलती-जुलती है। अन्य जातियों के लोग स्थानीय रूपांतरों के साथ कैथी लिपि का प्रयोग करते हैं। साहित्यिक कार्यों के लिए नागरी का प्रयोग होता है। अब नागरी का प्रयोग धीरे- धीरे सभी कार्यों में बढ़ रहा है।

विकास

प्राचीन मैथिली के विकास का शुरुआती दौर प्राकृत और अपभ्रंश के विकास से जोड़ा जाता है। लगभग 700 ई. के आसपास इसमें रचनाएं की जाने लगी। विद्यापति मैथिली के आदिकवि तथा सर्वाधिक ज्ञात कवि हैं। विद्यापति ने मैथिली के अतिरिक्त संस्कृत तथा अवहट्ट में भी रचनाएं लिखीं। ये वह दो प्रमुख भाषाएं हैं जहाँ से मैथिली का विकास हुआ। लगभग 1 से 1.2 करोड़ लोग मैथिली को मातृ-भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं और इसके प्रयोगकर्ता भारत के विभिन्न हिस्सों सहित विश्व के कई देशों में फैले हैं।

आधुनिक समय में

'मैथिली' नाम का प्रयोग आधुनिक काल में है। सर्वप्रथम 1801 में कोलब्रुक ने इस नाम का उल्लेख अपने लिखों में किया। ग्रियर्सन के भाषा- सर्वेक्षण के अनुसार इसके बोलने वालों की संख्या एक करोड़ से कुछ ऊपर थी। 'मैथिली' का क्षेत्र बिहार के उत्तरी भाग में पूर्वी चम्पारन, मुजफ्फरपुर, मुँगेर, भागलपुर, दरभंगा, पूर्णियाँ तथा उत्तरी संथाल परगना में है। इसके अतिरिक्त यह माल्दह और दिनाज़पुर में तथा भागलपुर एवं तिरहुत सब - डिवीजन की सीमा के पास नेपाल की तराई में भी बोली जाती है।

उपबोलियाँ

'उत्तरी मैथिली', 'दक्षिण मैथिली', पूर्वी मैथिली', 'पश्चिमी मैथिली' , 'छिका- छिकी' तथा 'जोलहा बोली' मैथिली की ये छ: उपबोलियाँ हैं। कुछ लोग पूर्वी सीतापुर तथा मधुबनी सब - डिवीजन की निम्न श्रेणी की जातियों की बोली को केन्द्रीय जनसाधारण की मैथिली का नाम देते हैं। इस प्रकार इसकी बोलियों की संख्या सात हो जाती है। इनमें उत्तरी मैथिली ही 'मैथिली' का परिनिष्ठित रूप है, जो उत्तरी दरभंगा तथा आसपास के ब्राह्मणों में विशेष रूप से प्रयुक्त होती है। बिहारी बोलियों में केवल 'मैथिली' ही साहित्यिक दृष्टि से सम्पन्न है। इसके प्रसिद्ध कवि विद्यापति हिन्दी की विभूति हैं। यहाँ के अन्य साहित्यिकों में उमापति, नन्दीपति, रामापति, महीपति तथा मनबोध झा आदि प्रधान हैं। अब 'मैथिली' भाषा - भाषी साहित्य में खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं। मैथिली की उत्पत्ति मागधी अपभ्रंश के मध्य या केन्द्रीय रूप से मानी जाती है।


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टीका टिप्पणी

  1. बेलिगत्ती लिखित 'अब्फाबेटुम ब्राह्मनिकुम' की अम्दुजी की भूमिका में

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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