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रंगदेवी श्रीकृष्णप्रिया राधा जी की प्रमुख अष्टसखियों में से एक हैं। राधा जी की यह सखी बड़ी कोमल व सुंदर हैं। सखी रंगदेवी राधारानी के नैनों में काजल लगाती और उनका शृंगार करती हैं। ये जपापुष्प सदृश वस्त्र धारण करती हैं।
- वायव्य दिशा में पुराणों में श्यामला गोपी की स्थिति कही गई है। पुराणों में श्यामला का नाम कलि-भार्या, यम-भार्या आदि के रूप में आता है। श्यामला का अवतरण अनिरुद्ध-भार्या उषा के रूप में तथा देवकी, द्रौपदी, रोहिणी आदि के रूप में हुआ है। वृन्दावन में इस दिशा में रंगदेवी गोपी को स्थान दिया गया है, ऐसा अनुमान है।[1]
- पुराणों के श्यामला नाम और वृन्दावन के रंगदेवी नाम में कोई अन्तर नहीं है।
- 'श्यामला' का अर्थ है- "श्याम वर्ण का लालन करने वाली, उसमें रंग देने वाली"।
- रंगदेवी गोपी की सेवा राधा-कृष्ण को चन्दन अर्पित करना है। वह सुगन्ध की ज्ञाता है। वह मन्त्र द्वारा कृष्ण को आकृष्ट कर सकती हैं।
रंग देवी अति रंग बढावै। नख सिख लौं भूषन पहिरावै॥
भांति भांति के भूषन जेते। सावधान ह्वै राखत तेते॥
कमल केसरी आभा तन की। बडी सक्ति है चित्र लिखिन की॥
तन पर सारी फबि रही, जपा पुहुप के रंग।
ठाढी सब अभरन लिये, जिनके प्रेम अभंग॥
कलकंठी अरु ससि कला, कमला अति ही अनूप।
मधुरिंदा अरु सुन्दरी, कंदर्पा जु सरूप॥
प्रेम मंजरी सो कहै, कोमलता गुन गाथ।
एतो सब रस में पगी, रंग देवी के साथ॥
अन्य सखियाँ
राधाजी की परमश्रेष्ठ सखियाँ आठ मानी गयी हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
- उपरोक्त सखियों में से 'चित्रा', 'सुदेवी', 'तुंगविद्या' और 'इन्दुलेखा' के स्थान पर 'सुमित्रा', 'सुन्दरी', 'तुंगदेवी' और 'इन्दुरेखा' नाम भी मिलते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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