रामानन्द चैटर्जी

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रामानन्द चैटर्जी
रामानन्द चैटर्जी
पूरा नाम रामानन्द चैटर्जी
जन्म 29 मई, 1865
जन्म भूमि बांकुड़ा ज़िला, बंगाल
मृत्यु कोलकाता
मृत्यु स्थान 30 सितंबर, 1943
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
संबंधित लेख जगदीश चन्द्र बोस, ब्रह्मसमाज
अन्य जानकारी रामानन्द भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रबल समर्थक थे। कुछ वर्षां के पश्चात् उन्होंने कांग्रेस राष्ट्रवादी पार्टी और हिन्दू सभा का सहयोग दिया। रामानन्द सम्पादकीय विचार की स्वाधीनता के प्रबल समर्थक थे।
अद्यतन‎ 04:31, 25 फ़रवरी-2017 (IST)

रामानन्द चैटर्जी (अंग्रेज़ी: Ramananda Chatterjee, जन्म- 29 मई, 1865, बांकुड़ा ज़िला, बंगाल; मृत्यु- 30 सितंबर, 1943, कोलकाता) पत्रकारिता जगत के एक पुरोगामी शख्सियत थे। वे कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'मॉडर्न रिव्यू' के संस्थापक, संपादक एवं मालिक थे। उन्हें "भारतीय पत्रकारिता का जनक" माना जाता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने विशेष रूप से कार्य किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अध्यापक और प्राचार्य के पद पर काम किया था।

परिचय

रामानन्द चैटर्जी का जन्म 29 मई, 1865 को बांकुड़ा ज़िला, बंगाल में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता और बांकुड़ा से अपनी शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से सन 1890 में अंग्रेज़ी में स्नात्तकोत्तर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीण की थी। वे आचार्य जगदीश चन्द्र बोस तथा शिवनाथ शास्त्री से अत्यन्त प्रभावित थे। उनके सामने इंग्लैंड जाकर आगे अध्ययन करने का प्रस्ताव भी आया, पर रामानंद ने उसे स्वीकार नहीं किया। तब तक उन पर ब्रह्म समाज का प्रभाव पड़ चुका था।

सम्पादन कार्य

रामानन्द चैटर्जी पत्रकारिता जगत के पुरोगामी शख्सियत थे। उन्होंने प्रवासी, बंगाल भाषा, 'मॉडर्न रिव्यू' अंग्रेज़ी में तथा 'विशाल भारत' जैसी पत्रिकाएँ निकालीं। रामानंद चटर्जी ने प्रसिद्ध भारतीय मासिक पत्र 'मॉडर्न रिव्यु' का दिसंबर 1906 में प्रकाशन आरंभ किया। 1901 ई. में उन्होंने बांग्ला भाषा के पत्र 'प्रवासी' का संपादन किया। विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने 'द इंडियन मैसेंजर' के संपादन का काम अपने हाथ में ले लिया था और बांग्ला पत्र 'संजीवनी' में नियमित रूप से लिखा करते थे। उनका 'देशाश्रय' नाम के सामाजिक संगठन से संपर्क हुआ तो उसकी मुखपत्र 'दासी' का सम्पादन भी उन्होंने ही किया। उन्होंने बच्चों की पत्रिका 'मुकुल' और साहित्यिक पत्रिका 'प्रदीप' के संपादन में भी सहयोग दिया। इनके माध्यम से ही रामानंद का रबींद्रनाथ टैगोर से परिचय हुआ था। शीघ्र ही यह 'प्रवासी' नामक पत्रिका बंगला भाषा-भाषियों की अत्यंत प्रिय पत्रिका बन गई। यह अपने समय का अत्यंत प्रसिद्ध पत्र बन गया। उच्च कोटि के लेखक‍ इसमें अपनी रचनाएं भेजते थे। इसकी संपादकीय टिप्पणियां ज्ञानवर्धक और प्रेरक होती थीं।[1]

प्रधानाचार्य का पद

कुछ समय बाद रामानन्द चैटर्जी की कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद के प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्ति हुई और वे कोलकाता से इलाहाबाद आ गए। इसी बीच जातीय भेदभाव के कारण उन्हें कायस्थ पाठशाला से त्यागपत्र देना पड़ा।

विदेश यात्रा

रामानन्द चैटर्जी कुछ वर्ष बाद हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने। पत्रकार के रूप में उनकी ख्याति के कारण राष्ट्र संघ ने अपनी कार्रवाई स्वयं देखने के लिए उन्हें जिनेवा आमंत्रित किया था। तभी उन्होंने यूरोप के विभिन्न देशों का भी भ्रमण किया। उन्हें रूस से भी निमंत्रण मिला था, पर वहां अभिव्यक्ति पर प्रतिबंधों को देखते हुए उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। वे 'प्रवासी बंग साहित्य सम्मेलन' के संस्थापकों में से थे और उसके अध्यक्ष भी रहे।

कांग्रेस समर्थक

रामानन्द भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रबल समर्थक थे। कुछ वर्षों के पश्चात् उन्होंने कांग्रेस राष्ट्रवादी पार्टी और हिन्दू सभा का सहयोग दिया। रामानन्द सम्पादकीय विचार की स्वाधीनता के प्रबल समर्थक थे।

मृत्यु

रामानन्द चैटर्जी का निधन कोलकाता में 30 सितंबर, 1943 को हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 740 |

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