"रामायण सामान्य ज्ञान 9" के अवतरणों में अंतर

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{[[समुद्र मंथन]] से जो भयानक विष निकला था, उसका नाम क्या था?
 
|type="()"}
 
+[[हलाहल विष|हलाहल]]
 
-यमद
 
-[[वत्सनाभ]]
 
-नीलकंठ
 
||[[चित्र:Shiv-drinking-Poison.jpg|right|80px|विष का पान करते भगवान शिव]]'हलाहल विष' [[देवता|देवताओं]] और [[असुर|असुरों]] द्वारा मिलकर किये गए [[समुद्र मंथन]] के समय निकला था। मंथन के फलस्वरूप जो चौदह मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं, उनमें से [[हलाहल विष]] सबसे पहले निकला था। हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा असुर जलने लगे और उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। देवताओं तथा असुरों की प्रार्थना पर [[शिव|महादेव शिव]] उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये, किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस कालकूट विष के प्रभाव से [[शिव]] का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव को 'नीलकण्ठ' कहा जाने लगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हलाहल विष]], [[शिव]]
 
 
{[[समुद्र मंथन]] हेतु जिस [[पर्वत]] को मथानी बनाया गया, वह कौन-सा था?
 
|type="()"}
 
-[[हिमालय]]
 
-[[मैनाक]]
 
+[[मंदराचल पर्वत|मंदराचल]]
 
-[[गिरनार पर्वत|गिरनार]]
 
||'मंदराचल' या 'मंदार' पर्वत का उल्लेख पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं में हुआ है। [[समुद्र मंथन]] की जिस घटना का उल्लेख हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में हुआ है, उनके अनुसार [[मंदार पर्वत]] को मंथन के समय मथानी की तरह प्रयोग किया गया था। सदियों से खड़ा मंदार पर्वत आज भी लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यह प्रसिद्ध पर्वत [[बिहार|बिहार राज्य]] के [[बाँका ज़िला|बाँका ज़िले]] के बौंसी गाँव में स्थित है। इस [[पर्वत]] की ऊँचाई लगभग 700 से 750 फुट है। यह [[भागलपुर]] से 30-35 मील की दूरी पर स्थित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मंदराचल पर्वत]]
 
 
{'[[रामायण]]' के सबसे बड़े कांड का क्या नाम है?
 
|type="()"}
 
-[[सुन्दर काण्ड वा॰ रा॰|सुंदरकांड]]
 
+[[युद्धकाण्ड वा. रा.|युद्धकांड]]
 
-[[उत्तर काण्ड वा॰ रा॰|उत्तरकांड]]
 
-[[किष्किन्धा काण्ड वा॰ रा॰|किष्किंधाकांड]]
 
||[[चित्र:Ramayana.jpg|right|80px|रामायण]]इस प्रसिद्ध कांड में 128 सर्ग तथा सबसे अधिक 5,692 [[श्लोक]] प्राप्त होते हैं। शत्रु के जय, उत्साह और लोकापवाद के दोष से मुक्त होने के लिए [[युद्धकाण्ड वा. रा.|युद्धकांड]] का पाठ करना चाहिए। इसे 'बृहद्धर्मपुराण' में 'लंकाकांड' भी कहा गया है। युद्धकांड में वानरसेना का पराक्रम, विभीषण-तिरस्कार, [[विभीषण]] का [[राम]] के पास गमन, [[राम]]-[[रावण]] युद्ध, रावण वध, [[मंदोदरी]] विलाप, विभीषण का शोक, राम के द्वारा विभीषण का राज्याभिषेक, [[हनुमान]], [[सुग्रीव]], [[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]] आदि के साथ राम, [[लक्ष्मण]] तथा [[सीता]] का [[अयोध्या]] प्रत्यावर्तन, राम का राज्याभिषेक तथा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] का युवराज पद पर आसीन होना, रामराज्य वर्णन और [[रामायण]] पाठ श्रवणफल कथन आदि का निरूपण किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[युद्धकाण्ड वा. रा.|युद्धकांड]]
 
 
{उस कौए का क्या नाम था, जिसने [[गरुड़]] को [[राम]] कथा सुनाई थी?
 
|type="()"}
 
-विगत
 
-विनत
 
+[[काकभुशुंडी]]
 
-नागभुशुंडि
 
||[[चित्र:Garuda.jpg|right|100px|गरुड़]]पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू धर्म]] की मान्यताओं के अनुसार [[गरुड़]] पक्षियों के राजा और भगवान [[विष्णु]] के वाहन हैं। ये [[कश्यप|कश्यप ऋषि]] और [[विनता]] के पुत्र तथा [[अरुण देवता|अरुण]] के भ्राता हैं। [[लंका]] के राजा [[रावण]] के पुत्र [[इन्द्रजित]] ने जब युद्ध में [[श्रीराम]] और [[लक्ष्मण]] को नागपाश से बाँध लिया था, तब गरुड़ ने ही उन्हें इस बंधन से मुक्त किया था। काकभुशुंडी नामक एक कौए ने गरुड़ को श्रीराम कथा सुनाई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गरुड़]] तथा [[काकभुशुंडी]]
 
 
{[[अश्वमेध यज्ञ]] के अश्व के मस्तक पर जो पत्र बाँधा जाता था, उसका क्या नाम था?
 
|type="()"}
 
-विजयपत्र
 
-रणपत्र
 
-घोषपत्र
 
+जयपत्र
 
||वैदिक यज्ञों में '[[अश्वमेध यज्ञ]]' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह महाक्रतुओं में से एक है। अश्वमेध मुख्यत: राजनीतिक [[यज्ञ]] था और इसे वही सम्राट कर सकता था, जिसका अधिपत्य अन्य सभी नरेश मानते थे। यज्ञ का प्रारम्भ [[बसन्त ऋतु|बसन्त]] अथवा [[ग्रीष्म ऋतु]] में होता था तथा इसके पूर्व प्रारम्भिक अनुष्ठानों में प्राय: एक [[वर्ष]] का समय लगता था। सर्वप्रथम एक अयुक्त अश्व चुना जाता था। यज्ञ स्तम्भ में बाँधने के प्रतीकात्मक कार्य से मुक्त कर इसे [[स्नान]] कराया जाता था तथा एक वर्ष तक अबन्ध दौड़ने तथा बूढ़े घोड़ों के साथ खेलने दिया जाता था। इसके पश्चात इसकी दिग्विजय यात्रा प्रारम्भ होती थी। इसके सिर पर 'जयपत्र' बाँधकर छोड़ा जाता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अश्वमेध यज्ञ]]
 
 
 
{[[रामायण]] कालीन [[सरयू नदी]] को वर्तमान में क्या कहते हैं?
 
{[[रामायण]] कालीन [[सरयू नदी]] को वर्तमान में क्या कहते हैं?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
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-[[गोमती नदी|गोमती]]
 
-[[गोमती नदी|गोमती]]
 
-[[गंगा नदी|गंगा]]
 
-[[गंगा नदी|गंगा]]
||[[चित्र:Karnali-River-2.jpg|right|100px|घाघरा नदी]][[श्रीराम]] की जन्म-भूमि [[अयोध्या]] [[उत्तर प्रदेश]] में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है। नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। '[[रामायण]]' के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में [[जल]] समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम [[उत्तर प्रदेश]] के [[बहराइच ज़िला|बहराइच ज़िले]] से हुआ है। [[बहराइच]] से निकलकर यह नदी [[गोंडा ज़िला|गोंडा]] से होती हुई [[अयोध्या]] तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में 'पसका' नामक [[तीर्थ स्थान]] पर [[घाघरा नदी]] से मिलती थी। अयोध्या तक ये नदी 'सरयू' के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी 'घाघरा' के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरयू नदी]], [[घाघरा नदी]]
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||[[चित्र:Karnali-River-2.jpg|right|100px|घाघरा नदी]][[श्रीराम]] की जन्म-भूमि [[अयोध्या]] [[उत्तर प्रदेश]] में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है। नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। '[[रामायण]]' के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में [[जल]] समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम [[उत्तर प्रदेश]] के [[बहराइच ज़िला|बहराइच ज़िले]] से हुआ है। [[बहराइच]] से निकलकर यह नदी [[गोंडा]] से होती हुई [[अयोध्या]] तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में 'पसका' नामक [[तीर्थ स्थान]] पर [[घाघरा नदी]] से मिलती थी। अयोध्या तक ये नदी 'सरयू' के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी 'घाघरा' के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरयू नदी]], [[घाघरा नदी]]
  
 
{[[समुद्र]] में रहने वाली उस [[नाग]] माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए [[हनुमान]] को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?
 
{[[समुद्र]] में रहने वाली उस [[नाग]] माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए [[हनुमान]] को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?
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+[[कुशध्वज]]
 
+[[कुशध्वज]]
 
-[[सिरध्वज]]
 
-[[सिरध्वज]]
||'कुशध्वज' [[मिथिला]] के राजा [[निमि]] के पुत्र और [[जनक|राजा जनक]] के छोटे भाई थे। जनक और जिन कुशध्वज की तीन पुत्रियों के साथ [[श्रीराम]] के शेष तीन भाइयों का [[विवाह]] हुआ था, वे जनक के छोटे भाई थे। या तो जनक का मध्यम आयु में देहांत हो गया था या फिर [[कुशध्वज]] काफी दीर्घायु थे, क्योंकि सीरध्वज जनक का कोई पुत्र न होने के कारण, अर्थात [[सीता]] का कोई भाई न होने के कारण, कुशध्वज ही अपने भाई जनक के उत्तराधिकारी बने थे। राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज के भी दो कन्याएँ थीं- श्रुतकीर्ति और [[माण्डवी]]। इनमें माण्डवी के साथ [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] ने और श्रुतकीर्ति के साथ [[शत्रुघ्न]] ने [[विवाह]] किया, जबकि [[लक्ष्मण]] ने मिथलेश कन्या [[उर्मिला]] से विवाह किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुशध्वज]], [[जनक]]
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||'कुशध्वज' [[मिथिला]] के राजा [[निमि]] के पुत्र और [[जनक|राजा जनक]] के छोटे भाई थे। जनक और जिन कुशध्वज की तीन पुत्रियों के साथ [[श्रीराम]] के शेष तीन भाइयों का [[विवाह]] हुआ था, वे जनक के छोटे भाई थे। या तो जनक का मध्यम आयु में देहांत हो गया था या फिर [[कुशध्वज]] काफ़ी दीर्घायु थे, क्योंकि सीरध्वज जनक का कोई पुत्र न होने के कारण, अर्थात [[सीता]] का कोई भाई न होने के कारण, कुशध्वज ही अपने भाई जनक के उत्तराधिकारी बने थे। राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज के भी दो कन्याएँ थीं- श्रुतकीर्ति और [[माण्डवी]]। इनमें माण्डवी के साथ [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] ने और श्रुतकीर्ति के साथ [[शत्रुघ्न]] ने [[विवाह]] किया, जबकि [[लक्ष्मण]] ने मिथलेश कन्या [[उर्मिला]] से विवाह किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुशध्वज]], [[जनक]]
 
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1 रामायण कालीन सरयू नदी को वर्तमान में क्या कहते हैं?

यमुना
घाघरा
गोमती
गंगा

2 समुद्र में रहने वाली उस नाग माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए हनुमान को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?

त्रिजटा
मंथरा
बलंधरा
सुरसा

3 राजा दशरथ ने पुत्रोत्पत्ति हेतु जो यज्ञ किया था, उसका नाम क्या था?

राजसूय
पुत्र कामेष्टि यज्ञ
अश्वमेध
इनमें से कोई नहीं

4 महर्षि विश्वामित्र की तपस्या जिस अप्सरा ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?

उर्वशी
रम्भा
घृताची
मेनका

5 राजा जनक के छोटे भाई का क्या नाम था?

कुशनाभ
कुश
कुशध्वज
सिरध्वज

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