रुचक
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रुचक हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'विष्णुपुराण'[1] के अनुसार मेरु पर्वत के दक्षिण में स्थित एक पर्वत[2]-
'त्रिकूटः शिशिरश्च पतंगो रुचकस्तथा निषदाद्यादक्षिणतस्तस्य केसर पर्वताः।'
- रुचकवर द्वीप के ठीक मध्य में वलयाकार रुचक पर्वत है, जो चौरासी हज़ार योजन ऊँचा, एक हज़ार योजन जमीन में गहरा, और बयालीस हज़ार योजन विस्तृत है। इसका मूल, मध्य और अग्रभाग समान विस्तार वाला[3] है।
- इस पर्वत के ऊपर पूर्वादि दिशाओं में निम्नलिखित चार कूट हैं-
- नन्द्यावर्त
- स्वस्तिक
- श्रीवृक्ष
- वर्धमान
- उपरोक्त कूट पाँच-पाँच सौ योजन प्रमाण ऊँचे, मूल, मध्य और अग्रभाग में एक-एक हज़ार योजन लम्बे-चौड़े हैं।
- रुचक पर्वत की दक्षिण दिशा में अमोघ, सुप्रबुद्ध, मन्दिर, विमल, रुचक, रुचकोत्तर, चन्द्र और सुप्रतिष्ठ नामक आठ कूट हैं। ये कूट पूर्वोक्त कूटों के समान प्रमाण वाले हैं।
- इस पर्वत पर चारों दिशाओं में चार जिनालय हैं, जिनका मुख पूर्व दिशा की ओर है।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णुपुराण 2,2,27
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 796 |
- ↑ बयालीस हज़ार योजन
- ↑ रुचकवर द्वीप में 4 जिनमंदिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2014।